नई दिल्ली : आठ राजनीतिक पार्टियों के नेता जिस तरह एक गुलदस्ते में जमा हुए. इनमें से ज्यादातर क्षेत्रीय पार्टी के कद्दावर नेता हैं. ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या एक राष्ट्रीय पार्टी के सशक्त प्रधानमंत्री उम्मीदवार को चुनौती देने के लिए ये मंच पर्याप्त है, यह बात एक बार फिर से चर्चा का मुद्दा बनी हुई है. हाल में ही जब नरेंद्र मोदी पार्ट टू सरकार ने 7 साल पूरे किए, तो कई संस्थाओं में 2024 में भारत का प्रधानमंत्री के लिए सशक्त उम्मीदवार कौन है इस बात पर सर्वे कराया गया था, जिसमें बाकी नेताओं के अलावा राहुल गांधी को भी एक उम्मीदवार के तौर पर प्रधानमंत्री उम्मीदवार बताया गया था. इस सर्वे में नरेंद्र मोदी की रेटिंग इन नेताओं से काफी अधिक थी.
राष्ट्र मंच के बैनर तले क्षेत्रीय पार्टियों का यह जमावड़ा, 2024 के चुनाव में क्या सचमुच नरेंद्र मोदी की सरकार के लिए चुनौती बन पायेगा, या फिर इसके उलट इन तमाम पार्टियों का गठबंधन नरेंद्र मोदी के लिए सहानुभूति की लहर पैदा करेगा. यह अपने आप में एक बड़ा सवाल है.
ममता की कवायद
तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, आम आदमी पार्टी, राष्ट्रीय लोक दल और वाम दलों समेत आठ विपक्षी दलों के नेता एक मंच के नीचे राष्ट्रवादी कांग्रेस के नेता शरद पवार के घर पर इकट्ठा हुए और इस जमावड़े का मुख्य मुद्दा था 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को चुनौती देना, क्योंकि पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में मिली भारी जीत के बाद से ही टीएमसी की नेत्री ममता बनर्जी की तरफ से राष्ट्रीय स्तर पर मजबूत मोर्चा बनाए जाने की कवायद शुरू की जा चुकी है.
कहीं ना कहीं ममता बनर्जी अब प्रधानमंत्री पद की भी ख्वाब देख रही हैं, जो कभी पहले नीतीश कुमार ने भी देखा था,और बंगाल चुनाव में टीएमसी के रणनीतिकार रहे प्रशांत किशोर लगातार इस मंच को सक्रिय करने में स्टेज के पीछे की भूमिका निभा रहे हैं.
ममता बनर्जी ना सिर्फ क्षेत्रीय पार्टियों का मंच तैयार कर रही हैं, बल्कि गुपकार नेताओं के भी समर्थन हासिल करने में जोड़-तोड़ में जुटी हुईं हैं, लेकिन राजनीतिक विश्लेषक एक प्रदेश में हुई जीत को 2024 के लोकसभा की जीत से जोड़कर नहीं देखना चाहते और उनका कहना है कि इससे पहले भी इस तरह के तीसरे मोर्चे की कवायद की जा चुकी है और इसने मोदी को नुकसान पहुंचाने के बजाय उल्टे फायदा पहुंचाया है.
पीएम मोदी को फायदा
एक मंच पर इतनी पार्टियों का नरेंद्र मोदी के खिलाफ आना जनता में सहानुभूति की लहर पैदा करता है और इस तरह से नरेंद्र मोदी की खिलाफ तमाम पार्टियों की तरफ से की जा रही कवायद को देखते हुए जनता और ज्यादा पोलराइज हो जाती है.
यहां गौर करने लायक बात यह है कि नरेंद्र मोदी और शाह की जोड़ी को भी ये अच्छी तरह से मालूम है कि राष्ट्रीय स्तर पर क्षेत्रीय पार्टियां बड़ी चुनौती साबित नहीं हो सकती और यही वजह है कि भारतीय जनता पार्टी 2024 के लिए जो भी कार्यक्रम बना रही है या फिर अपने कैंपेन को आक्रामक कर रही है वह तमाम बातें कांग्रेस के खिलाफ ही और कांग्रेस को ही केंद्र में रखकर तैयारी की जा रही हैं.
पार्टी के सूत्रों की मानें तो 2024 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी कांग्रेस को ही मुख्य रेस में रखना चाहती है और यही वजह है कि वह राष्ट्र मंच और उसमें मौजूद क्षेत्रीय पार्टियों को बहुत ज्यादा तरजीह नहीं देना चाहती, ताकि उनकी महत्ता राष्ट्रीय स्तर पर ज्यादा ना बन पाएं, क्योंकि बीजेपी को हर हाल में कांग्रेस को ही चुनौती देने में राष्ट्रीय स्तर पर फायदा है.
भाजपा के लिए कांग्रेस प्रतिद्वंदी
2019 के लोकसभा चुनाव में तीसरे मोर्चे के दुर्प्रभाव के बावजूद भी मुकाबला कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के बीच ही रहा था, हां यह अलग बात है कि भाजपा की मुख्य प्रतिद्वंदी के तौर पर करीब 90% सीटों पर कांग्रेस हार गई थी. बावजूद इसके यदि भाजपा को 38 फ़ीसदी वोट मिले थे, तो कांग्रेस को भी 20 फीसदी वोट मिले थे, जो भाजपा से आधे से कुछ ही कम प्रतिशत के थे और यदि क्षेत्रीय पार्टियां, जो विपक्षी दल में मौजूद थे उनके सीटों की प्रतिशत भी जोड़ कर देखी जाए, तो यूपीए के अंदर मौजूद डीएमके, एनसीपी और आरजेडी जैसे गठबंधन की पार्टियों को एक फ़ीसदी से कुछ ज्यादा ही वोट मिले थे और यदि इन तमाम पार्टियों के वोट प्रतिशत को जोड़ भी दिया जाए तो वह भी कांग्रेस के वोट से कम थे, इसीलिए तमाम तीसरे मोर्चे की कवायद के बावजूद भी बीजेपी मुख्य प्रतिद्वंदी के तौर पर 2024 के लिए कांग्रेस को ही देख रही है और इसी के तहत राजनीतिक स्ट्रेटजी अपना रही है.
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सूत्रों की मानें तो भारतीय जनता पार्टी इस बात को लेकर भी सशंकित है कि पिछले लोकसभा चुनाव में 20 फ़ीसदी जो कांग्रेस को वोट पड़े थे वह यदि इस बार बढ़कर 25 फ़ीसदी भी हो जाता है तो राष्ट्रीय राजनीति की दशा दिशा बदल सकती है. इस वजह से अंदर खाने भारतीय जनता पार्टी 2024 से पहले कांग्रेस के युवराज समेत गांधी परिवार पर आक्रामक हमले और तेज करने की योजना बना रही है.
बीजेपी को यह भली-भांति पता है कि ममता बनर्जी के नेतृत्व में या फिर शरद पवार प्रधानमंत्री पद के चाहे कितने भी सपने देख लें, लेकिन उनका मुकाबला 2024 में मुख्य तौर पर कांग्रेस से ही होगा और 2024 से पहले 16 राज्यों के विधानसभा के चुनाव भी होने हैं, जिनमे उत्तर प्रदेश को छोड़कर बाकी सभी राज्यों में भाजपा की मुख्य प्रतिद्वंदी कांग्रेस ही होगी और यदि इनमें कांग्रेस को थोड़ी भी कामयाबी मिलती है, तो वह कांग्रेस के लिए 2024 से पहले जान फूक सकती है और यदि इन राज्य में लगातार कांग्रेस को हार मिलती है तो यह नाकामयाबी भी 2024 के चुनाव पर असर डाल सकती है.
राष्ट्र मंच हास्यपद
इस मुद्दे पर भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता सुदेश वर्मा ने ईटीवी के सवाल पर कहा कि यह जो बातें हो रही हैं तीसरे मोर्चे की जनमोर्चा की या राष्ट्र मंच की, यह बहुत ही हास्यपद है. पहले भी इन लोगों ने काफी प्रयास किया मगर उसका कोई परिणाम नहीं निकला.
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वर्चस्व को बरकरार रखने प्रयास
बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता का कहना है कि यह वह लोग हैं, जो राजनीति में अपना वजूद खो चुके हैं और अपने वर्चस्व को बरकरार रखने का प्रयास कर रहे हैं. उनका कहना है कि इन लोगों के खड़े होने से जनता को यह समझने में आसानी होगी कि नरेंद्र मोदी के खिलाफ या एनडीए सरकार के खिलाफ यह कौन लोग हैं जो खड़े हैं. उनका कहना है कि राजनीति में इन पार्टियों को पहले काफी सुनहरा मौका मिला मगर इन पार्टियों ने कुछ भी नहीं किया और यह सिर्फ देश के खिलाफ बातें कर सकते हैं और नकारात्मकता फैला सकते हैं उनका कहना है कि जनता जानती है कि यह नेता कितने तरह के स्कैम में शामिल थे और यह लोग केंद्र की राजनीति से बाहर हैं तो अपनी सक्रियता बढ़ाने की कोशिश में है.
उनका कहना है कि उनके मंच बनाने से जनता को और आसानी होगी यह समझने में कि नरेंद्र मोदी के खिलाफ वह कौन से चेहरे हैं, जो घोटालों में लिप्त रहे हैं, उनका दावा है कि इससे कुछ होना नहीं है,उल्टे इसका फायदा नरेंद्र मोदी और एनडीए को होगा मगर राजनीति में प्रयास होते रहना चाहिए और उन पार्टियों को हमारी शुभकामनाएं हैं.