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तमिलनाडु : डीएमके नेता एमके स्टालिन की राजनीतिक सफर - डीएमके नेता स्टालिन

डीएमके के नेता एमके स्टालिन ने महज 13 वर्ष की आयु में ही राजनीति में कदम रख दिया था. आपातकाल के दौरान वह गिरफ्तार भी किए गए. इसके बाद उन्होंने पार्टी की युवा शाखा के गठन के साथ उसे मजबूत करने के लिए तमिलनाडु के हर गांव का दौरा किया. इतना ही नहीं उन्होंने चेन्नई के मेयर से लेकर प्रदेश के पहले उप मुख्यमंत्री तक का पद संभाला.

स्टालिन
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Published : May 3, 2021, 7:39 PM IST

चेन्नई : रूस के कम्युनिस्ट नेता जोसेफ स्टालिन की मौत के चार दिन बाद करुणानिधि की पहली पत्नी से 1 मार्च 1953 को इनका जन्म हुआ. इसी दौरान करुणानिधि ने शोक सभा के दौरान यूरोपीय नेता के नाम पर अपने बेटे का नाम एमके स्टालिन रखा.

हालांकि, पार्टी कैडर ने लंबे समय तक स्टालिन को 'थलापथी' (कमांडर) के रूप में संबोधित किया था, जबकि करुणानिधि को 'कलिनगर' (कलाकार) के रूप में जाना जाता है. अब डीएमके के अध्यक्ष के रूप में, स्टालिन का 'थलाइवर' (नेता) के नाम से नामकरण किया गया है.

स्टालिन की राजनीतिक यात्रा तभी शुरू हो गई थी जब वे 13 वर्ष के थे. इस दौरान उन्होंने पार्टी के कार्यक्रमों को व्यवस्थित करने में मदद करनी शुरू कर दी थी. उन्हें 20 साल की उम्र में आपातकाल के दौरान गिरफ्तार किया गया था. इस बारे में उन्होंने इस बात को अक्सर याद किया है कि उस समय विरोध प्रदर्शन के दौरान उन्हें जब गिरफ्तार किए गए अन्य लोगों के साथ जेल में बुरी तरह से पीटा गया था. यह डीएमके के विरोध प्रदर्शनों में सबसे बड़ा था.

1980 में द्रमुक युवा शाखा का गठन किया

एमके स्टालिन में करुणानिधि के गोपालपुरम निवास पर 1980 में 27 वर्ष की आयु में द्रमुक युवा शाखा का गठन किया था. स्टालिन ने 1984 में चेन्नई की थाउजेंड लाइट्स विधानसभा क्षेत्र से अपना पहला चुनाव लड़ा था, लेकिन वे चुनाव हार गए थे. तब वे 31 साल के थे. स्टालिन ने 1989 के बाद के चुनावों में इस सीट को जीता, लेकिन 1991 में डीएमके सरकार को चंद्रशेखर सरकार ने बर्खास्त कर दिया. इसी बीच वह 1991 में फिर से चुनाव हार गए, लेकिन 1996 से इस निर्वाचन क्षेत्र से लगातार तीन बार चुने गए. वह 1983 में पार्टी के सचिव बने और 2017 तक इस पद पर बने रहे. इसके बाद उन्होंने यह पद अपने बेटे उधयनिधि को सौंप दिया.

चेन्नई मेयर व उप मुख्यमंत्री का पदभार भी संभाला

स्टालिन ने पार्टी के कोषाध्यक्ष के अलावा चेन्नई के मेयर और फिर 2009 में तमिलनाडु के पहले उप मुख्यमंत्री का दायित्व संभाला. इतना ही नहीं 2001 में मेयर के रूप में चुना गया. महापौर के कार्यकाल में उन्होंने चेन्नई में 12 फ्लाईओवर बनवाए, हालांकि ये बाद में विवादित हो गए. क्योंकि कुछ बहुत संकीर्ण थे. स्टालिन ने 2011 से एक नए निर्वाचन क्षेत्र, कोलाथुर का प्रतिनिधित्व किया है.

प्रेसीडेंसी कॉलेज से स्नातक डिग्री ली

स्टालिन ने चेन्नई के प्रेसीडेंसी कॉलेज से राजनीति विज्ञान में स्नातक की डिग्री हासिल की है. यह वही कॉलेज है जहां से नोबेल पुरस्कार विजेता सीवी रमन व पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री पी चिदंबरम जैसे पूर्व छात्रों ने शिक्षा ग्रहण की थी. लेकिन हाल के वर्षों में यह संस्थान हिंसक छात्र झड़प से भी चर्चा में रहा है.

करुणानिधि ने स्टालिन को अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी घोषित किया

करुणानिधि ने अपने अंतिम वर्षों के दौरान सार्वजनिक बैठक में स्टालिन के प्रयासों को सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया, जहां उन्होंने कहा कि स्टालिन का अर्थ है 'काम, काम, काम'. लेकिन जब पार्टी 2016 में चुनाव मैदान में थी तब भी 92 वर्षीय करुणानिधि मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार थे. स्टालिन के 65वें जन्मदिन के जश्न के दौरान ही यह बताया गया था कि पिता ने कहा है कि वह फिर से मुख्यमंत्री नहीं बनना चाहते हैं. 2010 के दशक के दौरान यह स्पष्ट हो गया था कि स्टालिन ही करुणानिधि के राजनीतिक उत्तराधिकारी होंगे. उस समय तक, करुणानिधि ने अपने बड़े बेटे एमके अलागिरि और स्टालिन की सौतेली बहन के कनिमोझी को भी महत्वपूर्ण पद दिए थे.

पार्टी और परिवार के भीतर शक्ति संघर्ष

एमके स्टालिन के उदय को डीएमके के पहले परिवार के भीतर कुछ चुनौतियों का सामना करना पड़ा था. वर्षों तक वह और अलागिरी प्रतिद्वंद्वी थे. अलागिरि को अभी भी मदुरै बेल्ट में अच्छी पकड़ वाला माना जाता है, लेकिन द्रमुक के भीतर सामान्य धारणा हमेशा से रही है कि वह आवेगी और क्रोध करने में तेज है. पार्टी में, उनके प्रतिद्वंद्वी वी गोपालसामी या वाइको, एक करिश्माई नेता और मजबूत संचालक थे. सालों तक, उन्हें करुणानिधि का स्वाभाविक उत्तराधिकारी माना जाता था, लेकिन 1980 और 1990 के दशक के अंत में करुणानिधि ने पॉवर व पोजिशन के लिए उनके साथ धोखा किया. उस अवधि को याद करते हुए सुब्रमण्यन ने कहा कि स्टालिन ने खुद को पक्षपाती नहीं होने को साबित करने के लिए कड़ी मेहनत की. स्टालिन ने गांवों तक पार्टी की पकड़ बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. उन्होंने 80 और 90 के दशक के बीच तमिलनाडु का एक भी ऐसा गांव नहीं बचा था जहां वह नहीं गए थे.

2014 में वाइको को करुणानिधि ने किया था निष्कासित

करुणानिधि द्वारा स्टालिन के लिए अपनी पसंद का संकेत मिलने के बाद वाइको ने मारुमालार्ची द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (एमडीएमके) का गठन किया. राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि हालांकि यह पार्टी अब द्रमुक के साथ गठबंधन में है और जो द्रमुक के बैनर के तहत चुनाव लड़ेगी. अलागिरी के लिए यह स्पष्ट था कि पार्टी उन्हें और स्टालिन दोनों को समायोजित नहीं कर सकती है, फलस्वरूप करुणानिधि ने उन्हें 2014 में निष्कासित कर दिया. इस पर एक पार्टी नेता ने कहा था कि परिवार और पार्टी आलाकमान के भीतर, यह स्पष्ट था कि दोहरे नेतृत्व नहीं हो सकते.

स्टालिन ने वफादारों के पद बरकरार रखे थे

एमके स्टालिन ने अपने पिता की मौत के बाद पदभार संभाला, लेकिन उन्होंने वफादारों के महत्वपूर्ण पदों को बरकरार रखा. स्टालिन के पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद पार्टी के महासचिव, डीएमके के सर्वोच्च निर्णय लेने वाले निकाय के साथ सांसद टीआर बालू को कोषाध्यक्ष के रूप में चुना गया, जबकि दुरई मुरुगन पार्टी के महासचिव बने थे.

पढ़ें - तमिलनाडु में 'उगते सूरज' की वापसी, एमके स्टालिन की अगुवाई में डीएमके की बनेगी सरकार

चेन्नई : रूस के कम्युनिस्ट नेता जोसेफ स्टालिन की मौत के चार दिन बाद करुणानिधि की पहली पत्नी से 1 मार्च 1953 को इनका जन्म हुआ. इसी दौरान करुणानिधि ने शोक सभा के दौरान यूरोपीय नेता के नाम पर अपने बेटे का नाम एमके स्टालिन रखा.

हालांकि, पार्टी कैडर ने लंबे समय तक स्टालिन को 'थलापथी' (कमांडर) के रूप में संबोधित किया था, जबकि करुणानिधि को 'कलिनगर' (कलाकार) के रूप में जाना जाता है. अब डीएमके के अध्यक्ष के रूप में, स्टालिन का 'थलाइवर' (नेता) के नाम से नामकरण किया गया है.

स्टालिन की राजनीतिक यात्रा तभी शुरू हो गई थी जब वे 13 वर्ष के थे. इस दौरान उन्होंने पार्टी के कार्यक्रमों को व्यवस्थित करने में मदद करनी शुरू कर दी थी. उन्हें 20 साल की उम्र में आपातकाल के दौरान गिरफ्तार किया गया था. इस बारे में उन्होंने इस बात को अक्सर याद किया है कि उस समय विरोध प्रदर्शन के दौरान उन्हें जब गिरफ्तार किए गए अन्य लोगों के साथ जेल में बुरी तरह से पीटा गया था. यह डीएमके के विरोध प्रदर्शनों में सबसे बड़ा था.

1980 में द्रमुक युवा शाखा का गठन किया

एमके स्टालिन में करुणानिधि के गोपालपुरम निवास पर 1980 में 27 वर्ष की आयु में द्रमुक युवा शाखा का गठन किया था. स्टालिन ने 1984 में चेन्नई की थाउजेंड लाइट्स विधानसभा क्षेत्र से अपना पहला चुनाव लड़ा था, लेकिन वे चुनाव हार गए थे. तब वे 31 साल के थे. स्टालिन ने 1989 के बाद के चुनावों में इस सीट को जीता, लेकिन 1991 में डीएमके सरकार को चंद्रशेखर सरकार ने बर्खास्त कर दिया. इसी बीच वह 1991 में फिर से चुनाव हार गए, लेकिन 1996 से इस निर्वाचन क्षेत्र से लगातार तीन बार चुने गए. वह 1983 में पार्टी के सचिव बने और 2017 तक इस पद पर बने रहे. इसके बाद उन्होंने यह पद अपने बेटे उधयनिधि को सौंप दिया.

चेन्नई मेयर व उप मुख्यमंत्री का पदभार भी संभाला

स्टालिन ने पार्टी के कोषाध्यक्ष के अलावा चेन्नई के मेयर और फिर 2009 में तमिलनाडु के पहले उप मुख्यमंत्री का दायित्व संभाला. इतना ही नहीं 2001 में मेयर के रूप में चुना गया. महापौर के कार्यकाल में उन्होंने चेन्नई में 12 फ्लाईओवर बनवाए, हालांकि ये बाद में विवादित हो गए. क्योंकि कुछ बहुत संकीर्ण थे. स्टालिन ने 2011 से एक नए निर्वाचन क्षेत्र, कोलाथुर का प्रतिनिधित्व किया है.

प्रेसीडेंसी कॉलेज से स्नातक डिग्री ली

स्टालिन ने चेन्नई के प्रेसीडेंसी कॉलेज से राजनीति विज्ञान में स्नातक की डिग्री हासिल की है. यह वही कॉलेज है जहां से नोबेल पुरस्कार विजेता सीवी रमन व पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री पी चिदंबरम जैसे पूर्व छात्रों ने शिक्षा ग्रहण की थी. लेकिन हाल के वर्षों में यह संस्थान हिंसक छात्र झड़प से भी चर्चा में रहा है.

करुणानिधि ने स्टालिन को अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी घोषित किया

करुणानिधि ने अपने अंतिम वर्षों के दौरान सार्वजनिक बैठक में स्टालिन के प्रयासों को सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया, जहां उन्होंने कहा कि स्टालिन का अर्थ है 'काम, काम, काम'. लेकिन जब पार्टी 2016 में चुनाव मैदान में थी तब भी 92 वर्षीय करुणानिधि मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार थे. स्टालिन के 65वें जन्मदिन के जश्न के दौरान ही यह बताया गया था कि पिता ने कहा है कि वह फिर से मुख्यमंत्री नहीं बनना चाहते हैं. 2010 के दशक के दौरान यह स्पष्ट हो गया था कि स्टालिन ही करुणानिधि के राजनीतिक उत्तराधिकारी होंगे. उस समय तक, करुणानिधि ने अपने बड़े बेटे एमके अलागिरि और स्टालिन की सौतेली बहन के कनिमोझी को भी महत्वपूर्ण पद दिए थे.

पार्टी और परिवार के भीतर शक्ति संघर्ष

एमके स्टालिन के उदय को डीएमके के पहले परिवार के भीतर कुछ चुनौतियों का सामना करना पड़ा था. वर्षों तक वह और अलागिरी प्रतिद्वंद्वी थे. अलागिरि को अभी भी मदुरै बेल्ट में अच्छी पकड़ वाला माना जाता है, लेकिन द्रमुक के भीतर सामान्य धारणा हमेशा से रही है कि वह आवेगी और क्रोध करने में तेज है. पार्टी में, उनके प्रतिद्वंद्वी वी गोपालसामी या वाइको, एक करिश्माई नेता और मजबूत संचालक थे. सालों तक, उन्हें करुणानिधि का स्वाभाविक उत्तराधिकारी माना जाता था, लेकिन 1980 और 1990 के दशक के अंत में करुणानिधि ने पॉवर व पोजिशन के लिए उनके साथ धोखा किया. उस अवधि को याद करते हुए सुब्रमण्यन ने कहा कि स्टालिन ने खुद को पक्षपाती नहीं होने को साबित करने के लिए कड़ी मेहनत की. स्टालिन ने गांवों तक पार्टी की पकड़ बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. उन्होंने 80 और 90 के दशक के बीच तमिलनाडु का एक भी ऐसा गांव नहीं बचा था जहां वह नहीं गए थे.

2014 में वाइको को करुणानिधि ने किया था निष्कासित

करुणानिधि द्वारा स्टालिन के लिए अपनी पसंद का संकेत मिलने के बाद वाइको ने मारुमालार्ची द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (एमडीएमके) का गठन किया. राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि हालांकि यह पार्टी अब द्रमुक के साथ गठबंधन में है और जो द्रमुक के बैनर के तहत चुनाव लड़ेगी. अलागिरी के लिए यह स्पष्ट था कि पार्टी उन्हें और स्टालिन दोनों को समायोजित नहीं कर सकती है, फलस्वरूप करुणानिधि ने उन्हें 2014 में निष्कासित कर दिया. इस पर एक पार्टी नेता ने कहा था कि परिवार और पार्टी आलाकमान के भीतर, यह स्पष्ट था कि दोहरे नेतृत्व नहीं हो सकते.

स्टालिन ने वफादारों के पद बरकरार रखे थे

एमके स्टालिन ने अपने पिता की मौत के बाद पदभार संभाला, लेकिन उन्होंने वफादारों के महत्वपूर्ण पदों को बरकरार रखा. स्टालिन के पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद पार्टी के महासचिव, डीएमके के सर्वोच्च निर्णय लेने वाले निकाय के साथ सांसद टीआर बालू को कोषाध्यक्ष के रूप में चुना गया, जबकि दुरई मुरुगन पार्टी के महासचिव बने थे.

पढ़ें - तमिलनाडु में 'उगते सूरज' की वापसी, एमके स्टालिन की अगुवाई में डीएमके की बनेगी सरकार

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