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तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को तलाक दर्ज कराने के लिए कोर्ट जाने की जरूरत नहीं: हाईकोर्ट - केरल तलाक मामला

HC Divorced Muslim women: केरल हाईकोर्ट ने कहा है कि तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को तलाक दर्ज कराने के लिए कोर्ट जाने की जरूरत नहीं है. कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान ये आदेश दिया.

HC Divorced Muslim women
केरल कोर्ट का फैसला
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By PTI

Published : Jan 16, 2024, 6:18 PM IST

कोच्चि: केरल उच्च न्यायालय ने माना है कि एक तलाकशुदा मुस्लिम महिला को तलाक दर्ज करने के लिए अदालत में भेजने की आवश्यकता नहीं है, यदि यह व्यक्तिगत कानून के अनुसार अन्यथा सही है.

न्यायमूर्ति पी वी कुन्हिकृष्णन ने कहा कि केवल इसलिए कि एक महिला ने अपनी शादी को केरल विवाह पंजीकरण (सामान्य) नियम, 2008 के अनुसार पंजीकृत किया है, उसे अपने तलाक को दर्ज करने के लिए अदालत में घसीटने की जरूरत नहीं है, यदि यह उसके व्यक्तिगत कानून के अनुसार प्राप्त किया गया था.

'एक तलाकशुदा मुस्लिम महिला को तलाक दर्ज करने के लिए अदालत में भेजने की आवश्यकता नहीं है यदि यह व्यक्तिगत कानून के अनुसार अन्यथा सही है. संबंधित अधिकारी अदालत के आदेश पर जोर दिए बिना तलाक को रिकॉर्ड कर सकता है.'

न्यायमूर्ति कुन्हिकृष्णन ने इस मामले में 10 जनवरी के अपने फैसले में कहा, 'मुझे लगता है कि इस संबंध में नियम 2008 में एक खामी है. विधायिका को इस बारे में सोचना चाहिए. रजिस्ट्री इस फैसले की एक प्रति राज्य के मुख्य सचिव को कानून के अनुसार आवश्यक कार्रवाई करने के लिए भेजेगी.'

अदालत ने कहा कि 2008 के नियमों के तहत, एक तलाकशुदा मुस्लिम महिला तब तक पुनर्विवाह नहीं कर सकती जब तक कि सक्षम अदालत से संपर्क करके विवाह रजिस्टर में प्रविष्टि को हटा नहीं दिया जाता है, लेकिन पति को ऐसी कोई बाधा नहीं आती है.

अदालत का आदेश और टिप्पणियां एक तलाकशुदा मुस्लिम महिला की याचिका पर आईं, जिसमें स्थानीय विवाह रजिस्ट्रार को उसके तलाक को विवाह रजिस्टर में दर्ज करने का निर्देश देने की मांग की गई थी.

उसने राहत के लिए अदालत का रुख किया क्योंकि रजिस्ट्रार ने इस आधार पर तलाक की प्रविष्टि दर्ज करने से इनकार कर दिया कि 2008 के नियमों में उसे ऐसा करने के लिए अधिकृत करने वाला कोई प्रावधान नहीं है.

याचिका पर विचार करते हुए कोर्ट ने सवाल उठाया कि एक बार जब पति ने तलाक कह दिया तो क्या 2008 के नियमों के मुताबिक विवाह का पंजीकरण अकेले मुस्लिम महिला के लिए बोझ हो सकता है.

ये है मामला : मौजूदा मामले में जोड़े के बीच 2012 में शादी हुई थी, लेकिन यह लंबे समय तक नहीं चली और पति ने 2014 में तलाक दे दिया. महिला को थलास्सेरी महल काजी द्वारा जारी तलाक प्रमाण पत्र भी मिला. हालांकि, जब वह 2008 के नियमों के तहत विवाह रजिस्टर में तलाक की प्रविष्टि करने गई, तो रजिस्ट्रार ने ऐसा करने से इनकार कर दिया.

कोर्ट ने रजिस्ट्रार के रुख से असहमति जताते हुए कहा, 'यदि विवाह को पंजीकृत करने की शक्ति है, तो तलाक को रिकॉर्ड करने की शक्ति भी विवाह को पंजीकृत करने वाले प्राधिकारी के लिए अंतर्निहित और सहायक है, यदि व्यक्तिगत कानून के तहत तलाक होता है.'

अदालत ने स्थानीय विवाह रजिस्ट्रार को निर्देश दिया कि वह तलाक की प्रविष्टि दर्ज करने के लिए महिला के आवेदन पर विचार करे और उसके पूर्व पति को नोटिस जारी करने के बाद उस पर उचित आदेश पारित करे.

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कोच्चि: केरल उच्च न्यायालय ने माना है कि एक तलाकशुदा मुस्लिम महिला को तलाक दर्ज करने के लिए अदालत में भेजने की आवश्यकता नहीं है, यदि यह व्यक्तिगत कानून के अनुसार अन्यथा सही है.

न्यायमूर्ति पी वी कुन्हिकृष्णन ने कहा कि केवल इसलिए कि एक महिला ने अपनी शादी को केरल विवाह पंजीकरण (सामान्य) नियम, 2008 के अनुसार पंजीकृत किया है, उसे अपने तलाक को दर्ज करने के लिए अदालत में घसीटने की जरूरत नहीं है, यदि यह उसके व्यक्तिगत कानून के अनुसार प्राप्त किया गया था.

'एक तलाकशुदा मुस्लिम महिला को तलाक दर्ज करने के लिए अदालत में भेजने की आवश्यकता नहीं है यदि यह व्यक्तिगत कानून के अनुसार अन्यथा सही है. संबंधित अधिकारी अदालत के आदेश पर जोर दिए बिना तलाक को रिकॉर्ड कर सकता है.'

न्यायमूर्ति कुन्हिकृष्णन ने इस मामले में 10 जनवरी के अपने फैसले में कहा, 'मुझे लगता है कि इस संबंध में नियम 2008 में एक खामी है. विधायिका को इस बारे में सोचना चाहिए. रजिस्ट्री इस फैसले की एक प्रति राज्य के मुख्य सचिव को कानून के अनुसार आवश्यक कार्रवाई करने के लिए भेजेगी.'

अदालत ने कहा कि 2008 के नियमों के तहत, एक तलाकशुदा मुस्लिम महिला तब तक पुनर्विवाह नहीं कर सकती जब तक कि सक्षम अदालत से संपर्क करके विवाह रजिस्टर में प्रविष्टि को हटा नहीं दिया जाता है, लेकिन पति को ऐसी कोई बाधा नहीं आती है.

अदालत का आदेश और टिप्पणियां एक तलाकशुदा मुस्लिम महिला की याचिका पर आईं, जिसमें स्थानीय विवाह रजिस्ट्रार को उसके तलाक को विवाह रजिस्टर में दर्ज करने का निर्देश देने की मांग की गई थी.

उसने राहत के लिए अदालत का रुख किया क्योंकि रजिस्ट्रार ने इस आधार पर तलाक की प्रविष्टि दर्ज करने से इनकार कर दिया कि 2008 के नियमों में उसे ऐसा करने के लिए अधिकृत करने वाला कोई प्रावधान नहीं है.

याचिका पर विचार करते हुए कोर्ट ने सवाल उठाया कि एक बार जब पति ने तलाक कह दिया तो क्या 2008 के नियमों के मुताबिक विवाह का पंजीकरण अकेले मुस्लिम महिला के लिए बोझ हो सकता है.

ये है मामला : मौजूदा मामले में जोड़े के बीच 2012 में शादी हुई थी, लेकिन यह लंबे समय तक नहीं चली और पति ने 2014 में तलाक दे दिया. महिला को थलास्सेरी महल काजी द्वारा जारी तलाक प्रमाण पत्र भी मिला. हालांकि, जब वह 2008 के नियमों के तहत विवाह रजिस्टर में तलाक की प्रविष्टि करने गई, तो रजिस्ट्रार ने ऐसा करने से इनकार कर दिया.

कोर्ट ने रजिस्ट्रार के रुख से असहमति जताते हुए कहा, 'यदि विवाह को पंजीकृत करने की शक्ति है, तो तलाक को रिकॉर्ड करने की शक्ति भी विवाह को पंजीकृत करने वाले प्राधिकारी के लिए अंतर्निहित और सहायक है, यदि व्यक्तिगत कानून के तहत तलाक होता है.'

अदालत ने स्थानीय विवाह रजिस्ट्रार को निर्देश दिया कि वह तलाक की प्रविष्टि दर्ज करने के लिए महिला के आवेदन पर विचार करे और उसके पूर्व पति को नोटिस जारी करने के बाद उस पर उचित आदेश पारित करे.

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