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दिव्यांग बालाकृष्णन ने पेश की मिसाल, उगा डाले 6 हजार किस्म के पौधे

मूल रूप से केरल के रहने वाले दिव्यांग बालाकृष्णन ने समाज के लिए उदाहरण पेश किया है. उन्होंने दिव्यांगता को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया, बल्कि 6 हजार किस्म के पौधों की खेती कर डाली.

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Published : Nov 18, 2020, 3:46 PM IST

disabled person who succeeded in agriculture
लोगों को कर रहे प्रेरित

उडुपी (कर्नाटक) : मनुष्य, ईश्वर के महानतम जीवों में से एक है, लेकिन इनका जीवन एक-दूसरे से अलग होता है. वहीं, दुनिया के अधिकांश लोग अपने शरीर से काफी अच्छे होते हैं तो वहीं, कुछ लोग अपने दिमाग से काफी बुरे. ऐसे लोगों का जीवन में कोई लक्ष्य नहीं होता है. दुनिया में इसके अलावा ऐसे लोग भी हैं जो कुछ भी हासिल करने के लिए काफी मेहनत करते हैं, लेकिन जब वे अपने लक्ष्य को हासिल नहीं कर पाते तो वे निराश हो जाते हैं. ऐसे लोगों के लिए कर्नाटक के उडुपी जिले के बिंदूर से दिव्यांग बालाकृष्णन प्रेरणास्रोत हैं.

मूलरूप से केरल के हैं बालाकृष्णन

बता दें, दिव्यांग बालाकृष्णन मूल रूप से केरल के रहने वाले हैं. किसी कारणवश वे बिंदूर तालुक के जादकल में आकर बस गए. वे बचपन से ही दिव्यांग हैं, लेकिन उन्होंने कभी भी दिव्यांगता को अपनी जिंदगी में बाधा नहीं बनने दिया. दिव्यांग होने के बावजूद भी उन्होंने प्रयास करते हुए अपने घर में लगे पेड़-पौधों में हर दिन पानी और उर्वरकों डालने की ठानी. इसके लिए उन्होंने एक नर्सरी भी बनाई है. बता दें, पहले वह रेडियो और अन्य इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं की मरम्मत का काम करते थे, लेकिन 80% तक अपनी आंखों की रोशनी खोने के बाद वह कृषि कार्य में जुट गए.

खुद बने और दूसरों को भी बना रहे आत्मनिर्भर

वर्तमान समय में दिव्यांग बालाकृष्णन पूरी तरह से कृषि के कामों में व्यस्त रहते हैं. इससे इनको काफी लाभ भी हुआ है. दिव्यांग बालाकृष्णन ने अपने को आत्मनिर्भर बनाने के साथ ही दूसरों की भी मदद कर रहे हैं. वह पौधों की नई किस्मों को विकसित करते हैं और लोगों को पौध देकर मदद भी करते हैं. दिव्यांग बालाकृष्णन के पास एक एकड़ जमीन है, इसी जमीन पर वह विभिन्न प्रकार के पौधों को उगाते हैं और दूसरों को बेचते हैं. बालाकृष्णन अपने खेत में रबड़, काली मिर्च, एरेका नट, आम और कई अन्य औषधीय पौधों की खेती करते हैं.

6 हजार से ज्यादा के पौधे उगाए

आपको जानकार आश्चर्य होगा कि दिव्यांग बालाकृष्णन ने बिना किसी की मदद लिए अपनी नर्सरी में लगभग छह हजार किस्मों के पौधे उगाए हैं. इसके साथ-साथ वह अपनी नर्सरी की रखवाली भी करते हैं. पूरा उडुपी जिला और उसके आस-पास के इलाकों के लोग उनसे पौधों की अच्छी गुणवत्ता प्राप्त करने के लिए यहां आते हैं.

पढ़ें: हरियाणा से लंदन भेजी जाएगी यह कुतिया, तीन लाख रुपये होंगे खर्च

समाज के लिए हैं प्रेरणास्रोत

दिव्यांग बालाकृष्णन को कर्नाटक एकीकृत विकास सोसायटी ने सर्वश्रेष्ठ किसान पुरस्कार से सम्मानित भी किया. आज के हालातों में उनके जैसा जीना इतना आसान नहीं है. जब हम उसकी जीवन शैली को देखते हैं, तो सभी के मन में तमाम प्रश्न उठने स्वाभाविक हैं.

उडुपी (कर्नाटक) : मनुष्य, ईश्वर के महानतम जीवों में से एक है, लेकिन इनका जीवन एक-दूसरे से अलग होता है. वहीं, दुनिया के अधिकांश लोग अपने शरीर से काफी अच्छे होते हैं तो वहीं, कुछ लोग अपने दिमाग से काफी बुरे. ऐसे लोगों का जीवन में कोई लक्ष्य नहीं होता है. दुनिया में इसके अलावा ऐसे लोग भी हैं जो कुछ भी हासिल करने के लिए काफी मेहनत करते हैं, लेकिन जब वे अपने लक्ष्य को हासिल नहीं कर पाते तो वे निराश हो जाते हैं. ऐसे लोगों के लिए कर्नाटक के उडुपी जिले के बिंदूर से दिव्यांग बालाकृष्णन प्रेरणास्रोत हैं.

मूलरूप से केरल के हैं बालाकृष्णन

बता दें, दिव्यांग बालाकृष्णन मूल रूप से केरल के रहने वाले हैं. किसी कारणवश वे बिंदूर तालुक के जादकल में आकर बस गए. वे बचपन से ही दिव्यांग हैं, लेकिन उन्होंने कभी भी दिव्यांगता को अपनी जिंदगी में बाधा नहीं बनने दिया. दिव्यांग होने के बावजूद भी उन्होंने प्रयास करते हुए अपने घर में लगे पेड़-पौधों में हर दिन पानी और उर्वरकों डालने की ठानी. इसके लिए उन्होंने एक नर्सरी भी बनाई है. बता दें, पहले वह रेडियो और अन्य इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं की मरम्मत का काम करते थे, लेकिन 80% तक अपनी आंखों की रोशनी खोने के बाद वह कृषि कार्य में जुट गए.

खुद बने और दूसरों को भी बना रहे आत्मनिर्भर

वर्तमान समय में दिव्यांग बालाकृष्णन पूरी तरह से कृषि के कामों में व्यस्त रहते हैं. इससे इनको काफी लाभ भी हुआ है. दिव्यांग बालाकृष्णन ने अपने को आत्मनिर्भर बनाने के साथ ही दूसरों की भी मदद कर रहे हैं. वह पौधों की नई किस्मों को विकसित करते हैं और लोगों को पौध देकर मदद भी करते हैं. दिव्यांग बालाकृष्णन के पास एक एकड़ जमीन है, इसी जमीन पर वह विभिन्न प्रकार के पौधों को उगाते हैं और दूसरों को बेचते हैं. बालाकृष्णन अपने खेत में रबड़, काली मिर्च, एरेका नट, आम और कई अन्य औषधीय पौधों की खेती करते हैं.

6 हजार से ज्यादा के पौधे उगाए

आपको जानकार आश्चर्य होगा कि दिव्यांग बालाकृष्णन ने बिना किसी की मदद लिए अपनी नर्सरी में लगभग छह हजार किस्मों के पौधे उगाए हैं. इसके साथ-साथ वह अपनी नर्सरी की रखवाली भी करते हैं. पूरा उडुपी जिला और उसके आस-पास के इलाकों के लोग उनसे पौधों की अच्छी गुणवत्ता प्राप्त करने के लिए यहां आते हैं.

पढ़ें: हरियाणा से लंदन भेजी जाएगी यह कुतिया, तीन लाख रुपये होंगे खर्च

समाज के लिए हैं प्रेरणास्रोत

दिव्यांग बालाकृष्णन को कर्नाटक एकीकृत विकास सोसायटी ने सर्वश्रेष्ठ किसान पुरस्कार से सम्मानित भी किया. आज के हालातों में उनके जैसा जीना इतना आसान नहीं है. जब हम उसकी जीवन शैली को देखते हैं, तो सभी के मन में तमाम प्रश्न उठने स्वाभाविक हैं.

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