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क्या महंगाई ने उपचुनाव में बीजेपी की दुर्गति की, जानें क्यों हुई राज्यों में जीत-हार ?

लोकसभा और विधानसभा उपचुनाव में बीजेपी को कई राज्यों में करारी हार मिली. असम और मध्यप्रदेश समेत जिन राज्यों में जीत मिली, उसमें स्थानीय नेतृत्व की मेहनत नजर आई. बंगाल में बीजेपी प्रत्याशी भारी अंतर से हारे. राजस्थान में बीजेपी कैंडिडेट तीसरे और चौथे स्थान पर खिसक गए. हिमाचल में हार के बाद सीएम जयराम ठाकुर ने हार का ठीकरा महंगाई पर फोड़ दिया.

bypoll result 2021  3 lok sabha seats result
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Published : Nov 3, 2021, 8:27 PM IST

हैदराबाद : 3 लोकसभा और 29 विधानसभा सीटों के हुए उपचुनाव के नतीजे मंगलवार को आए. विधानसभा उपचुनाव में 6 सीटें कांग्रेस के खाते में गईं. असम, कर्नाटक और मध्यप्रदेश के सहारे 7 सीट भाजपा के हिस्से में आई. राजस्थान में भी कांग्रेस का जादू चला. बंगाल की चारों सीटों पर तृणमूल कांग्रेस ने कब्जा किया. बिहार और असम में बीजेपी के सहयोगी दलों ने 2-2 सीट जीतकर अपना दबदबा जता दिया.

...तो अगले विस चुनाव के बाद हिमाचल में कांग्रेस : सबसे चौंकाने वाले परिणाम हिमाचल प्रदेश से आए, जहां बीजेपी की करारी हार हुई, कांग्रेस ने उसका सूपड़ा साफ किया. लोकसभा की मंडी सीट समेत 3 विधानसभा क्षेत्रों में बीजेपी कैंडिडेट हार गए. इससे यह करीब-करीब तय हो गया कि अगर कोई बड़ा चमत्कार नहीं हो तो अगले विधानसभा चुनाव में हिमाचल में सत्ता कांग्रेस के हाथों में आने वाली है. वैसे भी हिमाचल का यह दस्तूर है कि हर पांच के बाद सत्ताधारी दल विपक्ष में तब्दील हो जाता है. इस बार चुनाव में महंगाई का मुद्दा काफी प्रभावी रहा.

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हिमाचल चुनाव में जीते कांग्रेस के प्रत्याशी.

आरजेडी हारा मगर ज्यादा असर होगा चिराग पर : बिहार के तारापुर और कुशेश्वरस्थान के नतीजे चौंकाने वाले तो नहीं है, मगर दोनों सीटों पर जेडी यू के प्रत्याशियों की जीत से विपक्ष की राजनीति की धार कुंद पड़ सकती है. इसके नतीजों के दूरगामी परिणाम भी सामने आएंगे. 1951 में विधानसभा बना तारापुर जमुई लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है. अभी रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान जमुई के सांसद हैं. इस उपचुनाव में चिराग के कैंडिडेट तीसरे स्थान पर रहे. इस चुनाव में जातिगत समीकरण ही महंगाई जैसे मुद्दों पर हावी रहा.

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चिराग पासवान की पार्टी तारापुर में तीसरे स्थान पर रही. तारापुर जमुई लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है.

बिहार में युवा नेतृत्व को लगा तगड़ा झटका : बिहार उपचुनाव में दिलचस्प यह रहा कि बीमार लालू यादव वोटिंग के दिन तक मोर्चे पर डटे रहे. तेजस्वी ने अपने सारे विधायकों को प्रखंड स्तर तक प्रचार में झोंक दिया था, इसके बावजूद किसी सीट पर सफलता नहीं मिली. दूसरी ओर कन्हैया कुमार और हार्दिक पटेल कांग्रेस को रनर अप की कैटिगरी में नहीं ला सके. कन्हैया प्रचार के दौरान तेजस्वी पर ताना मारते रहे और खुद कांग्रेस में शामिल होने पर सफाई देने में ही व्यस्त रहे. बताया जाता है कि चुनाव प्रचार के अंतिम दौर में राष्ट्रीय जनता दल ने अपना पुराना माय (मुस्लिम-यादव) कार्ड चला, लेकिन बाजी जेडी यू के पक्ष में पलट गई.

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राजद और युवा नेतृत्व चुनावी एग्जाम में पास नहीं हो पाया.

गुटबाजी ने कराई राजस्थान में बीजेपी की फजीहत : राजस्थान में भाजपा की सबसे बुरी फजीहत हुई. एक्सपर्ट के मुताबिक, बीजेपी में गुटबाजी और किसान आंदोलन के मिलेजुले का असर नतीजा राजस्थान में साफ दिखा. सबसे पहले कांग्रेस ने भाजपा की परंपरागत सीट धरियावद छीन ली. यहां बीजेपी के प्रत्याशी खेत सिंह मीणा तीसरे पायदान पर खिसक गए. वल्लभनगर में बीजेपी प्रत्याशी चौथे पायदान पर पहुंच गए. इस सीट से कांग्रेस उम्मीदवार प्रीति शक्तावत चुनाव जीतीं. अगर अगले विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी ने गुटबाजी पर अंकुश नहीं लगाया तो अशोक गहलोत का टर्म पूरा होने के बाद भी भाजपा की बारी नहीं आएगी. इस हार से बीजेपी की स्थिति से ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि 2023 के चुनाव में वहां तीसरी पार्टी के लिए भी जगह बन सकती है.

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राजस्थान में उपचुनाव में जीत के बाद अशोक गहलोत की पोजिशन और मजबूत हुई है.

क्या मध्यप्रदेश में महंगाई मुद्दा नहीं बनी : मध्यप्रदेश में भी महंगाई वैसी ही है, जैसी पूरे भारत में. इससे अलग वहां अन्य सुविधाएं जैसे जमीन की रजिस्ट्री और शराब भी अन्य राज्यों से महंगी है. पेट्रोल के सर्वाधिक रेट मध्यप्रदेश में ही हैं. मगर उपचुनावों में मुद्दे बदल गए. सीएम शिवराज सिंह चौहान और गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने लगातार दौरे कर हालात को काबू में रखा. वोटिंग से ठीक पहले डाबर के करवाचौथ वाले विज्ञापन, आश्रम फिल्म के सेट पर तोड़फोड़ और डिजाइनर सव्यसांची की जूलरी कलेक्शन जैसे विवाद पर नरोत्तम मिश्रा के बयान ने मुद्दों को भटका दिया. दूसरी ओर कांग्रेस के बड़े नेता विवाद में उलझ गए. नतीजा बीजेपी के पक्ष में आ गया. अन्य मुद्दों का असर यह रहा कि खंडवा में बीजेपी की जीत का अंतर लाखों से सिमटकर कुछ हजार में रह गया.

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मध्यप्रदेश की रैगांव सीट भाजपा की परंपरागत सीट रही है. भाजपा पूरी तरह आश्वस्त थी कि रैगांव सीट में उसको जीत मिलेगी, इसी मुगालते में इस सीट पर भाजपा का चुनावी प्रबंधन मजबूत नहीं रहा.

बंगाल में सुस्त तरीके से बीजेपी लड़ी उपचुनाव : बंगाल में चार विधानसभा सीटों पर उपचुनाव भाजपा छोड़कर टीएमसी में शामिल होने वाले विधायकों के कारण हुए. भवानीपुर उपचुनाव के बाद बीजेपी का प्रदेश नेतृत्व भी शांत हो गया. एक्सपर्ट बताते हैं कि बीजेपी ने कैंडिडेट उतारकर चुनाव की औपचारिकता ही पूरी की. पूरे प्रचार के दौरान टीएमसी पूरी तरह भाजपा पर हावी रही और नतीजा एकतरफा रहा.

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उपचुनाव के बाद पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की राजनीतिक ताकत बढ़ी है.

असम में हिमंत विस्वसरमा ने बचाई लाज : हिमंत विस्वसरमा ने असम की पांच सीटों पर जीत पर अपनी छाप छोड़ी. उन्होंने अपने सहयोगी यूपीपीएल को दो सीट देकर राजनीतिक चतुराई का परिचय दिया. असम-मिजोरम सीमा विवाद के बाद यह माना जा रहा था कि यह भी उपचुनाव में मुद्दा होगा. मगर कांग्रेस और असम गण परिषद महंगाई और सीमा विवाद जैसे मुद्दे को भुना नहीं सकी. वोटरों ने हिमंत विस्वसरमा के लिए मतदान किया. राजनीतिक एक्सपर्ट मानते हैं कि यह बीजेपी से ज्यादा हिमंत विस्वसरमा की जीत है. मेघालय और मिजोरम में बीजेपी का चांस पहले भी नहीं रहा, इसलिए उपचुनाव में हार-जीत बड़ा मायने नहीं रखती है.

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हिमंत विस्वसरमा

तेलंगाना की जीत ई.राजेंद्र की जीत है: कर्नाटक में भी कांग्रेस और बीजेपी के बीच पलड़ा बराबर का रहा. दोनों ने एक-एक सीट जीतीं. दक्षिण भारत के राज्य तेलंगाना में बीजेपी को थोड़ी राहत मिली, जहां टीआरएस से आए ई राजेंद्र ने अपनी सीट हुजूराबाद दोबारा जीतकर विधानसभा में एक सदस्य की संख्या बढ़ा दी. यह जीत बीजेपी की नहीं, बल्कि ई राजेंद्र की है. वह पिछले 5 चुनाव इस सीट से जीत चुके हैं. अपने व्यक्तिगत व्यवहार के चलते वह क्षेत्र में काफी लोकप्रिय हैं.

हैदराबाद : 3 लोकसभा और 29 विधानसभा सीटों के हुए उपचुनाव के नतीजे मंगलवार को आए. विधानसभा उपचुनाव में 6 सीटें कांग्रेस के खाते में गईं. असम, कर्नाटक और मध्यप्रदेश के सहारे 7 सीट भाजपा के हिस्से में आई. राजस्थान में भी कांग्रेस का जादू चला. बंगाल की चारों सीटों पर तृणमूल कांग्रेस ने कब्जा किया. बिहार और असम में बीजेपी के सहयोगी दलों ने 2-2 सीट जीतकर अपना दबदबा जता दिया.

...तो अगले विस चुनाव के बाद हिमाचल में कांग्रेस : सबसे चौंकाने वाले परिणाम हिमाचल प्रदेश से आए, जहां बीजेपी की करारी हार हुई, कांग्रेस ने उसका सूपड़ा साफ किया. लोकसभा की मंडी सीट समेत 3 विधानसभा क्षेत्रों में बीजेपी कैंडिडेट हार गए. इससे यह करीब-करीब तय हो गया कि अगर कोई बड़ा चमत्कार नहीं हो तो अगले विधानसभा चुनाव में हिमाचल में सत्ता कांग्रेस के हाथों में आने वाली है. वैसे भी हिमाचल का यह दस्तूर है कि हर पांच के बाद सत्ताधारी दल विपक्ष में तब्दील हो जाता है. इस बार चुनाव में महंगाई का मुद्दा काफी प्रभावी रहा.

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हिमाचल चुनाव में जीते कांग्रेस के प्रत्याशी.

आरजेडी हारा मगर ज्यादा असर होगा चिराग पर : बिहार के तारापुर और कुशेश्वरस्थान के नतीजे चौंकाने वाले तो नहीं है, मगर दोनों सीटों पर जेडी यू के प्रत्याशियों की जीत से विपक्ष की राजनीति की धार कुंद पड़ सकती है. इसके नतीजों के दूरगामी परिणाम भी सामने आएंगे. 1951 में विधानसभा बना तारापुर जमुई लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है. अभी रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान जमुई के सांसद हैं. इस उपचुनाव में चिराग के कैंडिडेट तीसरे स्थान पर रहे. इस चुनाव में जातिगत समीकरण ही महंगाई जैसे मुद्दों पर हावी रहा.

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चिराग पासवान की पार्टी तारापुर में तीसरे स्थान पर रही. तारापुर जमुई लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है.

बिहार में युवा नेतृत्व को लगा तगड़ा झटका : बिहार उपचुनाव में दिलचस्प यह रहा कि बीमार लालू यादव वोटिंग के दिन तक मोर्चे पर डटे रहे. तेजस्वी ने अपने सारे विधायकों को प्रखंड स्तर तक प्रचार में झोंक दिया था, इसके बावजूद किसी सीट पर सफलता नहीं मिली. दूसरी ओर कन्हैया कुमार और हार्दिक पटेल कांग्रेस को रनर अप की कैटिगरी में नहीं ला सके. कन्हैया प्रचार के दौरान तेजस्वी पर ताना मारते रहे और खुद कांग्रेस में शामिल होने पर सफाई देने में ही व्यस्त रहे. बताया जाता है कि चुनाव प्रचार के अंतिम दौर में राष्ट्रीय जनता दल ने अपना पुराना माय (मुस्लिम-यादव) कार्ड चला, लेकिन बाजी जेडी यू के पक्ष में पलट गई.

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राजद और युवा नेतृत्व चुनावी एग्जाम में पास नहीं हो पाया.

गुटबाजी ने कराई राजस्थान में बीजेपी की फजीहत : राजस्थान में भाजपा की सबसे बुरी फजीहत हुई. एक्सपर्ट के मुताबिक, बीजेपी में गुटबाजी और किसान आंदोलन के मिलेजुले का असर नतीजा राजस्थान में साफ दिखा. सबसे पहले कांग्रेस ने भाजपा की परंपरागत सीट धरियावद छीन ली. यहां बीजेपी के प्रत्याशी खेत सिंह मीणा तीसरे पायदान पर खिसक गए. वल्लभनगर में बीजेपी प्रत्याशी चौथे पायदान पर पहुंच गए. इस सीट से कांग्रेस उम्मीदवार प्रीति शक्तावत चुनाव जीतीं. अगर अगले विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी ने गुटबाजी पर अंकुश नहीं लगाया तो अशोक गहलोत का टर्म पूरा होने के बाद भी भाजपा की बारी नहीं आएगी. इस हार से बीजेपी की स्थिति से ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि 2023 के चुनाव में वहां तीसरी पार्टी के लिए भी जगह बन सकती है.

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राजस्थान में उपचुनाव में जीत के बाद अशोक गहलोत की पोजिशन और मजबूत हुई है.

क्या मध्यप्रदेश में महंगाई मुद्दा नहीं बनी : मध्यप्रदेश में भी महंगाई वैसी ही है, जैसी पूरे भारत में. इससे अलग वहां अन्य सुविधाएं जैसे जमीन की रजिस्ट्री और शराब भी अन्य राज्यों से महंगी है. पेट्रोल के सर्वाधिक रेट मध्यप्रदेश में ही हैं. मगर उपचुनावों में मुद्दे बदल गए. सीएम शिवराज सिंह चौहान और गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने लगातार दौरे कर हालात को काबू में रखा. वोटिंग से ठीक पहले डाबर के करवाचौथ वाले विज्ञापन, आश्रम फिल्म के सेट पर तोड़फोड़ और डिजाइनर सव्यसांची की जूलरी कलेक्शन जैसे विवाद पर नरोत्तम मिश्रा के बयान ने मुद्दों को भटका दिया. दूसरी ओर कांग्रेस के बड़े नेता विवाद में उलझ गए. नतीजा बीजेपी के पक्ष में आ गया. अन्य मुद्दों का असर यह रहा कि खंडवा में बीजेपी की जीत का अंतर लाखों से सिमटकर कुछ हजार में रह गया.

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मध्यप्रदेश की रैगांव सीट भाजपा की परंपरागत सीट रही है. भाजपा पूरी तरह आश्वस्त थी कि रैगांव सीट में उसको जीत मिलेगी, इसी मुगालते में इस सीट पर भाजपा का चुनावी प्रबंधन मजबूत नहीं रहा.

बंगाल में सुस्त तरीके से बीजेपी लड़ी उपचुनाव : बंगाल में चार विधानसभा सीटों पर उपचुनाव भाजपा छोड़कर टीएमसी में शामिल होने वाले विधायकों के कारण हुए. भवानीपुर उपचुनाव के बाद बीजेपी का प्रदेश नेतृत्व भी शांत हो गया. एक्सपर्ट बताते हैं कि बीजेपी ने कैंडिडेट उतारकर चुनाव की औपचारिकता ही पूरी की. पूरे प्रचार के दौरान टीएमसी पूरी तरह भाजपा पर हावी रही और नतीजा एकतरफा रहा.

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उपचुनाव के बाद पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की राजनीतिक ताकत बढ़ी है.

असम में हिमंत विस्वसरमा ने बचाई लाज : हिमंत विस्वसरमा ने असम की पांच सीटों पर जीत पर अपनी छाप छोड़ी. उन्होंने अपने सहयोगी यूपीपीएल को दो सीट देकर राजनीतिक चतुराई का परिचय दिया. असम-मिजोरम सीमा विवाद के बाद यह माना जा रहा था कि यह भी उपचुनाव में मुद्दा होगा. मगर कांग्रेस और असम गण परिषद महंगाई और सीमा विवाद जैसे मुद्दे को भुना नहीं सकी. वोटरों ने हिमंत विस्वसरमा के लिए मतदान किया. राजनीतिक एक्सपर्ट मानते हैं कि यह बीजेपी से ज्यादा हिमंत विस्वसरमा की जीत है. मेघालय और मिजोरम में बीजेपी का चांस पहले भी नहीं रहा, इसलिए उपचुनाव में हार-जीत बड़ा मायने नहीं रखती है.

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हिमंत विस्वसरमा

तेलंगाना की जीत ई.राजेंद्र की जीत है: कर्नाटक में भी कांग्रेस और बीजेपी के बीच पलड़ा बराबर का रहा. दोनों ने एक-एक सीट जीतीं. दक्षिण भारत के राज्य तेलंगाना में बीजेपी को थोड़ी राहत मिली, जहां टीआरएस से आए ई राजेंद्र ने अपनी सीट हुजूराबाद दोबारा जीतकर विधानसभा में एक सदस्य की संख्या बढ़ा दी. यह जीत बीजेपी की नहीं, बल्कि ई राजेंद्र की है. वह पिछले 5 चुनाव इस सीट से जीत चुके हैं. अपने व्यक्तिगत व्यवहार के चलते वह क्षेत्र में काफी लोकप्रिय हैं.

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