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व्यक्ति के इम्यून सिस्टम पर भी निर्भर है एंटीबॉडी बनना : विशेषज्ञ

स्वास्थ्य विशेषज्ञ और आईसीएमआर सलाहकार डॉ सुनीला गर्ग ने कहा कि क्योंकि पहली खुराक लेने के बाद टीकों को मानव शरीर में एंटीबॉडी बनाना शुरू करने में कम से कम दो से तीन सप्ताह का समय लगता है. उन्होंने बताया कि एंटीबॉडी विकसित करना व्यक्ति के इम्यून सिस्टम पर भी निर्भर करता है.

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Published : May 20, 2021, 3:55 PM IST

नई दिल्ली : भारत में अधिकारियों ने टीकाकरण प्रक्रिया को तेज कर दिया है. ऐसे में वैक्सीन लेने के बाद भी लोगों में संक्रमण होने की खबरें लगातार आ रही हैं, जो भारत की स्वास्थ्य प्रणाली के लिए एक प्रमुख चिंता का विषय बन गई हैं.

इसने भारत के कोविड टीकों पर भी सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या टीके समय पर एंटीबॉडी बना रहे हैं या टीकों की प्रभावकारिता पर गौर करने की आवश्यकता है?

भारत के शीर्ष ड्रग कंट्रोलर, ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (DCGI) ने विशेषज्ञ समूहों द्वारा उचित अध्ययन और परीक्षण के बाद कोवैक्सीन (भारत बायोटेक) और केविशील्ड (सीरम इंस्टिटयूट ऑफ इंडिया) दोनों को आपातकालीन उपयोग प्राधिकरण दिया है.

स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने कहा कि सुरक्षात्मक स्तर पर एंटीबॉडी आमतौर पर दूसरी खुराक लेने के दो सप्ताह बाद विकसित होती है.

ईटीवी भारत के एक वरिष्ठ स्वास्थ्य विशेषज्ञ और आईसीएमआर सलाहकार डॉ सुनीला गर्ग ने कहा कि क्योंकि पहली खुराक लेने के बाद टीकों को मानव शरीर में एंटीबॉडी बनाना शुरू करने में कम से कम दो से तीन सप्ताह का समय लगता है... और उसके बाद यह एंटीबॉडीज बनता चला जाता है.

उन्होंने बताया कि एंटीबॉडी विकसित करना व्यक्ति की प्रतिरक्षा प्रणाली पर भी निर्भर करता है.

डॉ गर्ग ने कहा कि कोवैक्सीन की दो खुराकों के बीच का अंतर छह सप्ताह का है, जबकि सरकार ने हाल ही में कोविशील्ड की दो खुराक की अवधि 12 सप्ताह तक बढ़ा दी है.

डॉ गर्ग ने कहा कि नवीनतम विकास और अध्ययनों के बाद ही कोविशील्ड पर निर्णय लिया गया था.

उन्होंने कहा कि उपलब्ध वास्तविक जीवन के सबूतों के आधार पर कोविड -19 वर्किंग ग्रुप कोविशील्ड वैक्सीन की दो खुराक के बीच खुराक अंतराल को 12-16 सप्ताह तक बढ़ाने के लिए सहमत हुआ. उन्होंने कहा कि कोवैक्सिन की खुराक के अंतराल में कोई बदलाव नहीं किया गया है.

डॉ गर्ग ने कहा कि दोनों टीकों में सार्स-कोव-2 से लड़ने की क्षमता है और दोनों टीकों में 70-81 प्रतिशत प्रभावकारिता है.

आंकड़ों का हवाला देते हुए डॉ गर्ग ने कहा कि एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन, वैक्सजेवरिया, छह सप्ताह से कम समय में 55 प्रतिशत और छह से आठ सप्ताह में लगभग 60 प्रतिशत की तुलना में 12 सप्ताह या उससे अधिक के अंतराल के बाद ज्यादा प्रभाव दिखाती है.

डॉक्टरों को टीके की दो खुराक लेने के बाद भी संक्रमण होने के मुद्दे पर बात करते हुए, डॉ गर्ग ने कहा कि डॉक्टर और अस्पताल के कर्मचारी कोविड-रोगियों के संपर्क में हैं और उनके संक्रमित होने का खतरा अधिक है.उन्होंने कहा कि हाल ही में पद्मश्री कार्डियोलॉजिस्ट डॉ केके अग्रवाल का कोविड-19 संक्रमण के बाद निधन हो गया. उन्होंने टीकों की दोनों खुराक ले ली थी.

प्रारंभिक रिपोर्टों के अनुसार डॉ अग्रवाल को पल्मोनरी एम्बोलिज्म था. हालांकि, उनके डेटा के वैज्ञानिक विश्लेषण से यह तस्वीर साफ हो सकेगी कि आखिर उनकी मौत किस वजह से हुई.

वहीं दूसरी ओर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा कि वह टीका लगवाने के बाद भी कोविड-19 पॉजिटिव पाए जाने वालों का डेटा एकत्र करेगा. इस मुद्दे पर भारत के शीर्ष चिकित्सा अनुसंधान संस्थान(ICMR) द्वारा भी कड़ी नजर रखी जा रही है.

पढ़ें - दिल्ली में अब ब्लैक फंगस, AIIMS में भर्ती 80 से ज्यादा मरीज

हालांकि सरकार ने कहा कि ऐसे संक्रमणों का प्रतिशत बहुत कम (0.1 प्रतिशत) है. टीकाकरण के बाद संक्रमण का प्रतिशत बहुत कम है.

कोविड 19 पर भारत के राष्ट्रीय कार्य बल के अध्यक्ष और नीति आयोग के सदस्य डॉ वीके पॉल ने कहा कि अगर टीकाकरण के बाद किसी को संक्रमण हो जाता है, तो उसमें कोई गंभीरता नहीं होगी.

उन्होंने कहा कि आईसीएमआर इस पर कड़ी नजर रखे हुए है. यह एक गतिशील स्थिति है और इसे ध्यान से देखा जाना चाहिए.

रिपोर्टों से पता चलता है कि लखनऊ में किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) के कम से कम 40 डॉक्टरों ने कोविड -19 के लिए सकारात्मक परीक्षण किया है, हालांकि उनमें से अधिकांश ने टीके की दोनों खुराक ले ली है. टीकाकरण के बाद भी बिहार में 26 से अधिक डॉक्टरों को कोविड पॉजिटिव बताया गया है.

आईसीएमआर के प्रवक्ता डॉ लोकेश ने ईटीवी भारत से बात करते हुए कहा कि कोई भी टीका 100 प्रतिशत प्रतिरक्षा प्रदान नहीं करता है और टीकाकरण के बाद संक्रमण की हमेशा संभव होती है.

हालांकि टीके व्यक्तियों को बीमारी से बचाते हैं और अगर टीकाकरण के बाद कोई संक्रमण होता है, तो गंभीरता बहुत कम होती है.

लोकेश ने कहा कि वर्तमान में हमारे पास सामान्य स्थिति की ओर बढ़ने के लिए एकमात्र हथियार के रूप में टीके हैं. हमारे टीकों की प्रभावकारिता बहुत अच्छी है. ये टीके संक्रमण को गंभीर नहीं होने देंगे.

नई दिल्ली : भारत में अधिकारियों ने टीकाकरण प्रक्रिया को तेज कर दिया है. ऐसे में वैक्सीन लेने के बाद भी लोगों में संक्रमण होने की खबरें लगातार आ रही हैं, जो भारत की स्वास्थ्य प्रणाली के लिए एक प्रमुख चिंता का विषय बन गई हैं.

इसने भारत के कोविड टीकों पर भी सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या टीके समय पर एंटीबॉडी बना रहे हैं या टीकों की प्रभावकारिता पर गौर करने की आवश्यकता है?

भारत के शीर्ष ड्रग कंट्रोलर, ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (DCGI) ने विशेषज्ञ समूहों द्वारा उचित अध्ययन और परीक्षण के बाद कोवैक्सीन (भारत बायोटेक) और केविशील्ड (सीरम इंस्टिटयूट ऑफ इंडिया) दोनों को आपातकालीन उपयोग प्राधिकरण दिया है.

स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने कहा कि सुरक्षात्मक स्तर पर एंटीबॉडी आमतौर पर दूसरी खुराक लेने के दो सप्ताह बाद विकसित होती है.

ईटीवी भारत के एक वरिष्ठ स्वास्थ्य विशेषज्ञ और आईसीएमआर सलाहकार डॉ सुनीला गर्ग ने कहा कि क्योंकि पहली खुराक लेने के बाद टीकों को मानव शरीर में एंटीबॉडी बनाना शुरू करने में कम से कम दो से तीन सप्ताह का समय लगता है... और उसके बाद यह एंटीबॉडीज बनता चला जाता है.

उन्होंने बताया कि एंटीबॉडी विकसित करना व्यक्ति की प्रतिरक्षा प्रणाली पर भी निर्भर करता है.

डॉ गर्ग ने कहा कि कोवैक्सीन की दो खुराकों के बीच का अंतर छह सप्ताह का है, जबकि सरकार ने हाल ही में कोविशील्ड की दो खुराक की अवधि 12 सप्ताह तक बढ़ा दी है.

डॉ गर्ग ने कहा कि नवीनतम विकास और अध्ययनों के बाद ही कोविशील्ड पर निर्णय लिया गया था.

उन्होंने कहा कि उपलब्ध वास्तविक जीवन के सबूतों के आधार पर कोविड -19 वर्किंग ग्रुप कोविशील्ड वैक्सीन की दो खुराक के बीच खुराक अंतराल को 12-16 सप्ताह तक बढ़ाने के लिए सहमत हुआ. उन्होंने कहा कि कोवैक्सिन की खुराक के अंतराल में कोई बदलाव नहीं किया गया है.

डॉ गर्ग ने कहा कि दोनों टीकों में सार्स-कोव-2 से लड़ने की क्षमता है और दोनों टीकों में 70-81 प्रतिशत प्रभावकारिता है.

आंकड़ों का हवाला देते हुए डॉ गर्ग ने कहा कि एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन, वैक्सजेवरिया, छह सप्ताह से कम समय में 55 प्रतिशत और छह से आठ सप्ताह में लगभग 60 प्रतिशत की तुलना में 12 सप्ताह या उससे अधिक के अंतराल के बाद ज्यादा प्रभाव दिखाती है.

डॉक्टरों को टीके की दो खुराक लेने के बाद भी संक्रमण होने के मुद्दे पर बात करते हुए, डॉ गर्ग ने कहा कि डॉक्टर और अस्पताल के कर्मचारी कोविड-रोगियों के संपर्क में हैं और उनके संक्रमित होने का खतरा अधिक है.उन्होंने कहा कि हाल ही में पद्मश्री कार्डियोलॉजिस्ट डॉ केके अग्रवाल का कोविड-19 संक्रमण के बाद निधन हो गया. उन्होंने टीकों की दोनों खुराक ले ली थी.

प्रारंभिक रिपोर्टों के अनुसार डॉ अग्रवाल को पल्मोनरी एम्बोलिज्म था. हालांकि, उनके डेटा के वैज्ञानिक विश्लेषण से यह तस्वीर साफ हो सकेगी कि आखिर उनकी मौत किस वजह से हुई.

वहीं दूसरी ओर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा कि वह टीका लगवाने के बाद भी कोविड-19 पॉजिटिव पाए जाने वालों का डेटा एकत्र करेगा. इस मुद्दे पर भारत के शीर्ष चिकित्सा अनुसंधान संस्थान(ICMR) द्वारा भी कड़ी नजर रखी जा रही है.

पढ़ें - दिल्ली में अब ब्लैक फंगस, AIIMS में भर्ती 80 से ज्यादा मरीज

हालांकि सरकार ने कहा कि ऐसे संक्रमणों का प्रतिशत बहुत कम (0.1 प्रतिशत) है. टीकाकरण के बाद संक्रमण का प्रतिशत बहुत कम है.

कोविड 19 पर भारत के राष्ट्रीय कार्य बल के अध्यक्ष और नीति आयोग के सदस्य डॉ वीके पॉल ने कहा कि अगर टीकाकरण के बाद किसी को संक्रमण हो जाता है, तो उसमें कोई गंभीरता नहीं होगी.

उन्होंने कहा कि आईसीएमआर इस पर कड़ी नजर रखे हुए है. यह एक गतिशील स्थिति है और इसे ध्यान से देखा जाना चाहिए.

रिपोर्टों से पता चलता है कि लखनऊ में किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) के कम से कम 40 डॉक्टरों ने कोविड -19 के लिए सकारात्मक परीक्षण किया है, हालांकि उनमें से अधिकांश ने टीके की दोनों खुराक ले ली है. टीकाकरण के बाद भी बिहार में 26 से अधिक डॉक्टरों को कोविड पॉजिटिव बताया गया है.

आईसीएमआर के प्रवक्ता डॉ लोकेश ने ईटीवी भारत से बात करते हुए कहा कि कोई भी टीका 100 प्रतिशत प्रतिरक्षा प्रदान नहीं करता है और टीकाकरण के बाद संक्रमण की हमेशा संभव होती है.

हालांकि टीके व्यक्तियों को बीमारी से बचाते हैं और अगर टीकाकरण के बाद कोई संक्रमण होता है, तो गंभीरता बहुत कम होती है.

लोकेश ने कहा कि वर्तमान में हमारे पास सामान्य स्थिति की ओर बढ़ने के लिए एकमात्र हथियार के रूप में टीके हैं. हमारे टीकों की प्रभावकारिता बहुत अच्छी है. ये टीके संक्रमण को गंभीर नहीं होने देंगे.

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