मुरैना। आजादी के 75 साल पूरा होने पर देश में नए संसद भवन की नींव रखी गई थी जिसका उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को किया. खास बात यह है कि, वर्तमान के संसद का जो डिजाइन है वो सदियों पहले बनाए गए मुरैना के चौसठ योगिनी मितावली मंदिर से हूबहू मिलता है. बताया जाता है कि, इसी मंदिर के डिजाइन पर संसद भवन का डिजाइन तैयार किया गया था इसलिए मुरैना के इस मंदिर को यहां के लोग संसद भवन के नाम से भी जानते हैं.
मुस्लिम शासकों का आक्रमण: मुरैना से करीब 45 किलोमीटर दूर एक ऊंची पहाड़ी पर बने इस ऐतिहासिक मंदिर का निर्माण 6वीं शताब्दी में कराया गया था. इस पूरे परिसर में मुख्य शिव मंदिर के अलावा 64 अलग अलग कक्ष बने हुए हैं जिनमें पहले एक योगिनी और एक शिवलिंग हुआ करता था, ऐसा बताते हैं कि कुछ मुस्लिम शासकों द्वारा उन्हें खंडित कर दिया गया. अक्षांश और देशान्तर रेखा का बाइब्रेशन होने से यह लोगों के लिए बेहद रोचक स्थल है. इसे चौसठ योगिनी के मंदिर के नाम से जाना जाता है. यह स्थल आदिकाल में तंत्र विद्या का महाविद्यालय भी हुआ करता था.
हूबहू कॉपी है संसद भवन : मुरैना जिले के पड़ावली के पास स्थित मितावली गांव के बीहड़ों में बने प्राचीन चौसठ योगिनी मंदिर की, जो हूबहू देश के संसद भवन की तरह दिखाई देता है. मंदिर का डिज़ाइन और पुराने संसद भवन का डिजाइन एक जैसा ही है. दोनों ही गोलाकार संरचना के हैं. अगर कुछ अंतर है तो वह है सिर्फ इतना सा कि, चौसठ योगिनी मंदिर 101 खंबों पर और संसद भवन 144 मजबूत स्तंभ पर टिका हैं. चौसठ योगिनी मंदिर में 64 कक्ष हैं, संसद में कक्षों की संख्या 340 है. इसके अलावा संसद और मंदिर में समानता की बात करें तो डिजाइन के अलावा चौसठ योगिनी मंदिर के बीच में एक विशाल कक्ष है, जिसमें बड़ा शिव मंदिर है. उसी तरह संसद भवन के बीच में विशाल हॉल है. कमरों से लेकर भवनों की बनावट हूबहू मिलती जुलती है, माना यही जाता है कि मुरैना के इस चौसठ योगिनी मंदिर के डिजाइन की कॉपी करके आज से ठीक 94 साल पहले अंग्रेजों ने 84 लाख रुपए की लागत से वर्तमान के संसद भवन को बनाया था.
तंत्र विद्या का केंद्र: मुरैना के इस 64 योगिनी मंदिर का निर्माण 6वीं शताब्दी में कच्छप राजा जयपाल ने कराया था, इसका एक नाम एकंतेश्वर जा इकोत्तरसो महादेव मन्दिर भी है. कहा जाता है कि, यहां तंत्र मंत्र की शिक्षा दी जाती थी, इसी मान्यता के कारण इस मंदिर में आज भी कोई इंसान रात में नहीं रुकता. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने इस मंदिर को प्राचीन और ऐतिहासिक स्मारक घोषित किया है, इस मंदिर का नामकरण इसके 64 कमरे और हर कमरे में शिवलिंग होने के कारण हुआ है. स्थानीय लोगों की इस मंदिर को लेकर बड़ी ही आस्था है.
रात में नहीं रुकता कोई इंसान: प्रसिद्ध चौसठ योगिनी मंदिर पुरातत्व की दृष्टि से भी बहुत प्रसिद्ध है. इस मंदिर के डिजाइन को देखकर हर कोई हैरान हो जाता है क्योंकि, देश के संसद भवन और यह मंदिर एक जैसे लगते हैं. इसी वजह से लोग उस जमाने की तकनीक को देखकर आज भी हैरान हो जाते हैं. यहां दूर-दूर से श्रद्धालु दर्शनों के लिए आते हैं, तांत्रिक भी यहां पर तंत्र विद्या सीखने और उसे जागृत करने के लिए आते जाते रहते हैं लेकिन, पुरानी मान्यता के अनुसार यहां पर रात्रि में कोई भी नहीं रुकता है सभी लोग सूरज छुपने से पहले ही यहां से चले जाते हैं.
सावन में भक्तों की भीड़: चौसठ योगिनी मंदिर को लेकर पौराणिक कथाओं में भी लेख है, कहा जाता है कि, शिव के इन 64 मंदिरों के लगातार दर्शन करने और शिव की भक्ति पूर्वक आराधना करने से लोग जन्म मरण के बंधनों से मुक्त हो जाते हैं और उन्हें बार- बार अलग-अलग योनियों में जन्म नहीं लेना पड़ता, सावन के महीने में इस मंदिर पर श्रद्धालुओं की ज्यादा भीड़ रहती है लेकिन, मंदिर इतना विशाल है कि, हजारों की भीड़ भी यहां बहुत कम लगती है.