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स्वादिष्ट आमों से मिठाइयां बनाने वाले सरकारी सहायता से वंचित - मालदा

आमसोटो या मैंगो पल्प कैंडीज किसी भी बंगाली रसोई का खास हिस्सा है. वास्तव में गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर उस भोजन को लोकप्रिय बनाने वाले पहले व्यक्ति थे. जहां दूध के साथ आम के गूदे की ऐसी मिठाइयां मिश्रित होती हैं.

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Published : Jun 21, 2021, 10:48 PM IST

मालदा : आम पल्प कैंडीज के उत्पादन का केंद्र मालदा रहा है. इसका सेवन विभिन्न तरीकों से किया जाता है. वास्तव में इन आम पल्प कैंडीज का उपयोग विभिन्न प्रकार के बंगाली व्यंजन तैयार करने के लिए भी किया जाता है. इतना ही नहीं बकिंघम पैलेस के निवासियों के बीच ये कैंडी काफी लोकप्रिय है.

हालांकि इन लोकप्रिय कैंडीज के निर्माता, जो मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल के मालदा जिले की महिलाएं हैं, असंगठित क्षेत्र में बनी हुई हैं. व्यापार से जुड़े लोगों को लगता है कि सरकार की लापरवाही मुख्य कारण है जिसके परिणामस्वरूप उत्पाद को अभी तक ठोस आधार का बाजार नहीं मिला है.

मालदा में इस आम के गूदे की कैंडी के व्यापारियों ने दावा किया कि अगर इस उत्पाद का विपणन संगठित तरीके से किया जाता तो यह उत्पाद लगभग 100 करोड़ रुपये का सालाना कारोबार कर सकता है. अगर ऐसा होता तो जिलों की महिलाएं आत्मनिर्भर का दर्जा हासिल कर सकती हैं. राज्य के प्रसंस्करण विभाग के अधिकारी भी ऐसा महसूस करते हैं. हालांकि कोई नहीं जानता कि व्यापार में अच्छे दिन देखने को मिलेंगे.

लगभग तीन लाख मीट्रिक टन के वार्षिक उत्पादन के साथ मालदा में 32,000 हेक्टेयर भूमि पर आम की खेती की जाती है. इस वर्ष उत्पादन अच्छा रहा है और जिले की महिलाएं इन आम के गूदे की मिठाइयों के उत्पादन में लगी हैं. व्यापार में ऑपरेटरों को लगता है कि उचित विपणन से प्रति किलोग्राम 700 रुपये से 2,000 रुपये के बीच की कीमतें मिल सकती हैं. हाल ही में राज्य सरकार ने कुछ स्वयं सहायता समूहों को कुछ आदेश दिए हैं. उन्हें उत्पादन मशीनें भी प्रदान की गई हैं. हालांकि इनकी संख्या नाकाफी है.

ऐसे ही एक स्वयं सहायता समूह के सदस्य योगमय दास ने कहा कि आम के गूदे की इन मिठाइयों के उचित उत्पादन के लिए दिन भर की धूप आवश्यक है. हालांकि, चक्रवात यास के कारण इस साल हमारा उत्पादन प्रभावित हुआ है. उच्च गुणवत्ता वाले आमों की बाजार दर को ध्यान में रखते हुए हमें कुछ लाभ कमाने के लिए अपने उत्पादों को 1,500 रुपये से 2,000 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से बेचना पड़ता है. मशीन से बनी आम के गूदे की मिठाइयां उच्च गुणवत्ता की नहीं होती हैं. इसलिए हम पारंपरिक उत्पादन प्रक्रिया को प्राथमिकता देते हैं.

80 वर्षीय वयोवृद्ध लक्ष्मी दास, जिन्होंने इन मैंगो पल्प कैंडीज की कई उत्पादन प्रक्रिया सिखाई है, कहा कि उत्पादन प्रक्रिया में बहुत मेहनत लगती है. हालांकि हमें अक्सर उस कड़ी मेहनत के लिए पारिश्रमिक नहीं मिलता है. हमें लोगों को काम पर रखना पड़ता है. लेकिन हमें उचित मूल्य नहीं मिल पाता है. हम उत्पादन के लिए बैंक ऋण लेते हैं. अगर सरकार ने हमारी मदद की होती तो यह मददगार होता.

डॉ कमलकृष्ण दास जो कि लंबे समय से मालदा आमों पर शोध कर रहे हैं, ने महसूस किया कि मई और जुलाई के बीच सिर्फ तीन महीनों के लिए आम का उत्पादन होता है. फल के उपोत्पाद पूरे साल विपणन किए जाते हैं. मालदा में उत्पादित कुछ आम के गूदे की कैंडी को दो साल तक संरक्षित किया जा सकता है. जिले की महिलाएं मुख्य रूप से उत्पादक हैं. यदि सरकार सहायता प्रदान करती है तो ये महिलाएं आत्मनिर्भर होंगी और जिले की अर्थव्यवस्था में भी सुधार होगा. साथ ही राज्य अधिक राजस्व प्राप्त करेगा.

मालदा मर्चेंट चैंबर ऑफ कॉमर्स के सचिव जयंत कुंडू ने भी सरकार से सहायता की कमी की शिकायत की. कहा कि सरकारी सहायता से स्वयं सहायता समूहों को प्रोत्साहित किया जा सकता है. जिलों की महिलाएं आत्मनिर्भर बन सकती हैं और राज्य की अर्थव्यवस्था में सुधार हो सकता है. इस मसले पर हाल ही में प्रशासनिक बैठक हुई थी लेकिन कुछ भी आगे नहीं बढ़ा है.

मालदा मैंगो मर्चेंट एसोसिएशन के अध्यक्ष उज्ज्वल साहा ने कहा कि आम के गूदे की कैंडी का एक आकर्षक बाजार हो सकता है. बशर्ते उत्पाद को सरकारी सहायता से संगठित तरीके से विपणन किया जाए. उत्पाद को गहन शोध की आवश्यकता है. मालदा में एक केंद्रीय आम अनुसंधान केंद्र है लेकिन उन्होंने भी इस मामले में कुछ नहीं किया है. अगर केंद्र व राज्य सरकारें मदद करें तो आम के गूदे की कैंडीज का अंतरराष्ट्रीय बाजार आकर्षक भी हो सकता है.

यह भी पढ़ें-पश्चिम बंगाल के किसान ने उगाया 32 फीट उंचा मिर्च का पौधा, 44 फीट का गन्ना

राज्य खाद्य प्रसंस्करण विभाग के उप निदेशक कृष्णेंदु नंदन ने कहा कि दिल्ली में आम के मेले का आयोजन किया जाता था, जिसमें जिले की महिला आम लुगदी कैंडी निर्माताओं ने भाग लिया. हम स्वयं सहायता समूहों को प्रशिक्षित करने और प्रोत्साहित करने के लिए निश्चित कदम उठा रहे हैं. हमने उन्हें मशीनरी मुहैया कराई है. हालांकि मौजूदा उत्पादों का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विपणन किया जा सकता है क्योंकि मौजूदा उत्पादन प्रक्रिया अस्वास्थ्यकर है. केवल मशीन से बने उत्पादों को ही अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भेजा जा सकता है लेकिन हम सभी को आगे आना होगा.

मालदा : आम पल्प कैंडीज के उत्पादन का केंद्र मालदा रहा है. इसका सेवन विभिन्न तरीकों से किया जाता है. वास्तव में इन आम पल्प कैंडीज का उपयोग विभिन्न प्रकार के बंगाली व्यंजन तैयार करने के लिए भी किया जाता है. इतना ही नहीं बकिंघम पैलेस के निवासियों के बीच ये कैंडी काफी लोकप्रिय है.

हालांकि इन लोकप्रिय कैंडीज के निर्माता, जो मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल के मालदा जिले की महिलाएं हैं, असंगठित क्षेत्र में बनी हुई हैं. व्यापार से जुड़े लोगों को लगता है कि सरकार की लापरवाही मुख्य कारण है जिसके परिणामस्वरूप उत्पाद को अभी तक ठोस आधार का बाजार नहीं मिला है.

मालदा में इस आम के गूदे की कैंडी के व्यापारियों ने दावा किया कि अगर इस उत्पाद का विपणन संगठित तरीके से किया जाता तो यह उत्पाद लगभग 100 करोड़ रुपये का सालाना कारोबार कर सकता है. अगर ऐसा होता तो जिलों की महिलाएं आत्मनिर्भर का दर्जा हासिल कर सकती हैं. राज्य के प्रसंस्करण विभाग के अधिकारी भी ऐसा महसूस करते हैं. हालांकि कोई नहीं जानता कि व्यापार में अच्छे दिन देखने को मिलेंगे.

लगभग तीन लाख मीट्रिक टन के वार्षिक उत्पादन के साथ मालदा में 32,000 हेक्टेयर भूमि पर आम की खेती की जाती है. इस वर्ष उत्पादन अच्छा रहा है और जिले की महिलाएं इन आम के गूदे की मिठाइयों के उत्पादन में लगी हैं. व्यापार में ऑपरेटरों को लगता है कि उचित विपणन से प्रति किलोग्राम 700 रुपये से 2,000 रुपये के बीच की कीमतें मिल सकती हैं. हाल ही में राज्य सरकार ने कुछ स्वयं सहायता समूहों को कुछ आदेश दिए हैं. उन्हें उत्पादन मशीनें भी प्रदान की गई हैं. हालांकि इनकी संख्या नाकाफी है.

ऐसे ही एक स्वयं सहायता समूह के सदस्य योगमय दास ने कहा कि आम के गूदे की इन मिठाइयों के उचित उत्पादन के लिए दिन भर की धूप आवश्यक है. हालांकि, चक्रवात यास के कारण इस साल हमारा उत्पादन प्रभावित हुआ है. उच्च गुणवत्ता वाले आमों की बाजार दर को ध्यान में रखते हुए हमें कुछ लाभ कमाने के लिए अपने उत्पादों को 1,500 रुपये से 2,000 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से बेचना पड़ता है. मशीन से बनी आम के गूदे की मिठाइयां उच्च गुणवत्ता की नहीं होती हैं. इसलिए हम पारंपरिक उत्पादन प्रक्रिया को प्राथमिकता देते हैं.

80 वर्षीय वयोवृद्ध लक्ष्मी दास, जिन्होंने इन मैंगो पल्प कैंडीज की कई उत्पादन प्रक्रिया सिखाई है, कहा कि उत्पादन प्रक्रिया में बहुत मेहनत लगती है. हालांकि हमें अक्सर उस कड़ी मेहनत के लिए पारिश्रमिक नहीं मिलता है. हमें लोगों को काम पर रखना पड़ता है. लेकिन हमें उचित मूल्य नहीं मिल पाता है. हम उत्पादन के लिए बैंक ऋण लेते हैं. अगर सरकार ने हमारी मदद की होती तो यह मददगार होता.

डॉ कमलकृष्ण दास जो कि लंबे समय से मालदा आमों पर शोध कर रहे हैं, ने महसूस किया कि मई और जुलाई के बीच सिर्फ तीन महीनों के लिए आम का उत्पादन होता है. फल के उपोत्पाद पूरे साल विपणन किए जाते हैं. मालदा में उत्पादित कुछ आम के गूदे की कैंडी को दो साल तक संरक्षित किया जा सकता है. जिले की महिलाएं मुख्य रूप से उत्पादक हैं. यदि सरकार सहायता प्रदान करती है तो ये महिलाएं आत्मनिर्भर होंगी और जिले की अर्थव्यवस्था में भी सुधार होगा. साथ ही राज्य अधिक राजस्व प्राप्त करेगा.

मालदा मर्चेंट चैंबर ऑफ कॉमर्स के सचिव जयंत कुंडू ने भी सरकार से सहायता की कमी की शिकायत की. कहा कि सरकारी सहायता से स्वयं सहायता समूहों को प्रोत्साहित किया जा सकता है. जिलों की महिलाएं आत्मनिर्भर बन सकती हैं और राज्य की अर्थव्यवस्था में सुधार हो सकता है. इस मसले पर हाल ही में प्रशासनिक बैठक हुई थी लेकिन कुछ भी आगे नहीं बढ़ा है.

मालदा मैंगो मर्चेंट एसोसिएशन के अध्यक्ष उज्ज्वल साहा ने कहा कि आम के गूदे की कैंडी का एक आकर्षक बाजार हो सकता है. बशर्ते उत्पाद को सरकारी सहायता से संगठित तरीके से विपणन किया जाए. उत्पाद को गहन शोध की आवश्यकता है. मालदा में एक केंद्रीय आम अनुसंधान केंद्र है लेकिन उन्होंने भी इस मामले में कुछ नहीं किया है. अगर केंद्र व राज्य सरकारें मदद करें तो आम के गूदे की कैंडीज का अंतरराष्ट्रीय बाजार आकर्षक भी हो सकता है.

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राज्य खाद्य प्रसंस्करण विभाग के उप निदेशक कृष्णेंदु नंदन ने कहा कि दिल्ली में आम के मेले का आयोजन किया जाता था, जिसमें जिले की महिला आम लुगदी कैंडी निर्माताओं ने भाग लिया. हम स्वयं सहायता समूहों को प्रशिक्षित करने और प्रोत्साहित करने के लिए निश्चित कदम उठा रहे हैं. हमने उन्हें मशीनरी मुहैया कराई है. हालांकि मौजूदा उत्पादों का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विपणन किया जा सकता है क्योंकि मौजूदा उत्पादन प्रक्रिया अस्वास्थ्यकर है. केवल मशीन से बने उत्पादों को ही अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भेजा जा सकता है लेकिन हम सभी को आगे आना होगा.

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