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जम्मू कश्मीर में परिसीमन आयोग और उसके प्रभाव

परिसीमन आयोग (delimitation commission) ने जम्मू-कश्मीर के चुनावी नक्शे में कई मौजूदा निर्वाचन क्षेत्रों का पुनर्निर्धारण करते हुए महत्वपूर्ण बदलाव करने का प्रस्ताव दिया है.

जम्मू कश्मीर में परिसीमन आयोग
जम्मू कश्मीर में परिसीमन आयोग
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Published : Feb 8, 2022, 2:08 PM IST

श्रीनगर: केंद्र की मोदी सरकार ने 5 अगस्त 2019 को जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 (Article 370 from Jammu and Kashmir) को खत्म किया था. वहीं, इसके बाद केंद्र शासित प्रदेश में विधान सभा और संसदीय क्षेत्रों की सीमाओं को फिर से बनाने के लिए जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 (Jammu and Kashmir Reorganization Act 2019) के तहत परिसीमन आयोग बनाने की बात कही गई थी.

आयोग का गठन
सुप्रीम कोर्ट की रिटायर्ड जज रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में परिसीमन आयोग (delimitation commission) का गठन मार्च 2020 में किया गया और इसे एक वर्ष के भीतर परिसीमन प्रक्रिया को पूरा करने के लिए कहा गया था, लेकिन समय सीमा के भीतर यह प्रक्रिया पूरी नहीं हो सकी इस वजह से इसका कार्यकाल मार्च 2022 तक बढ़ा दिया गया है. शुरुआत में असम, मणिपुर, नागालैंड, अरुणाचल प्रदेश और जम्मू कश्मीर के निर्वाचन क्षेत्रों को फिर से तैयार करने के लिए परिसीमन आयोग की स्थापना की गई थी, लेकिन जब इसका कार्यकाल एक वर्ष के लिए बढ़ा दिया गया तो उत्तर-पूर्वी राज्यों को इससे बाहर कर दिया गया.

राजनीतिक दलों ने किया आयोग का विरोध
इसके गठन के बाद से ही जम्मू कश्मीर के राजनीतिक दलों विशेष रूप से नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी ने आयोग की जमकर आलोचना की. इन पार्टियों का तर्क था कि आयोग का गठन जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 के तहत किया गया था, जिसे इन पार्टियों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. दलों ने यह भी तर्क दिया कि जम्मू कश्मीर में परिसीमन 2026 तक सुप्रीम कोर्ट द्वारा रोक दिया गया था और साथ ही नेशनल कॉन्फ्रेंस सरकार ने 2002 में 2026 तक परिसीमन पर रोक लगा दी थी.

बता दें, जम्मू कश्मीर में राष्ट्रपति शासन के दौरान अंतिम परिसीमन 1994-95 में किया गया था, जब तत्कालीन राज्य विधान सभा की सीटों को 76 से बढ़ाकर 87 कर दिया गया था. जम्मू क्षेत्र की सीटें 32 से बढ़कर 37, कश्मीर की 42 से 46 और लद्दाख की सीटें दो से बढ़कर चार हो गई हैं.

भाजपा को छोड़कर जम्मू कश्मीर में राजनीतिक दलों के विरोध के बावजूद, आयोग ने अपनी कवायद जारी रखी और 2021 में दो बार केंद्र शासित प्रदेश का दौरा किया और कश्मीर और जम्मू क्षेत्रों में राजनीतिक दलों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और अन्य हितधारकों के साथ कई बैठकें कीं. पीडीपी ने आयोग का बहिष्कार करते हुए कहा कि आयोग का गठन जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम के तहत किया गया था जो असंवैधानिक है. वहीं, राजनीतिक दलों का यह भी तर्क है कि परिसीमन 2011 की जनगणना के अनुसार किया जाना चाहिए, हालांकि, आयोग ने कहा कि भूगोल, जनसांख्यिकी, पहुंच और संचार मानदंड हैं जिन पर वह परिसीमन करेगा.

सीटों का पुनर्निर्धारण

तत्कालीन राज्य जम्मू कश्मीर में 111 सीटें थीं, जिनमें 24 पीओके के लिए आरक्षित थीं और 87 विधानसभा सीटों के लिए चुनाव हो रहे थे, पिछली विधान सभा में कश्मीर में 46, जम्मू में 37 और लद्दाख में चार सीटें थीं. जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के दो केंद्र शासित प्रदेशों में पूर्ववर्ती राज्य के विभाजन के बाद, लद्दाख की चार सीटें खत्म करके विधान सभा सीटें 83 कर दी गईं इस केंद्रशासित प्रदेश में कोई विधायिका नहीं रखी गई थी. जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम के तहत जम्मू कश्मीर में विधान सभा सीटों की संख्या 107 से बढ़ाकर 114 कर दी जाएगी, जिसमें 24 सीटें शामिल हैं जो पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) के लिए आरक्षित हैं, जबकि चुनाव 90 सीटों के लिए होंगे. आयोग के अपने सदस्यों के अलावा, जम्मू-कश्मीर के पांच लोकसभा सदस्य, नेशनल कांफ्रेंस के तीन और भाजपा के दो सदस्य इसके सहयोगी सदस्य हैं.

पिछले साल 20 दिसंबर को आयोग ने सहयोगी सदस्यों के साथ अपना पहला मसौदा साझा किया और जम्मू संभाग में छह अतिरिक्त विधानसभा क्षेत्रों और कश्मीर में एक का प्रस्ताव रखा. इस प्रस्ताव से जम्मू में सीटों की संख्या 37 से 43 और कश्मीर में 46 से बढ़कर 47 हो जाएगी. इन 90 सीटों में से नौ सीटें अनुसूचित जनजाति (एसटी) और सात सीटें अनुसूचित जाति (एससी) के लिए आरक्षित होंगी. 4 फरवरी को आयोग ने अपने दूसरे मसौदे को सहयोगी सदस्यों के साथ साझा किया, जिसमें विस्तृत विवरण दिया गया कि केंद्र शासित प्रदेश में विधान सभा और संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों को कैसे फिर से बनाया गया है.

दूसरे मसौदे में सभी विधान सभा क्षेत्रों और संसदीय सीटों में बड़ा झटका देखा गया, जिसने सभी पूर्व विधायकों के पिछले चुनावी ढांचे को भी हिला कर रख दिया है. सभी निर्वाचन क्षेत्रों को बदली हुई सीमाओं के साथ फिर से तैयार किया गया है. 28 निर्वाचन क्षेत्रों को नए सिरे से बनाया गया है और उनका नाम बदल दिया गया है जबकि 19 मौजूदा निर्वाचन क्षेत्रों को हटा दिया गया है. कश्मीर में पैनल द्वारा तैयार किए गए नए विधान सभा क्षेत्रों में जम्मू प्रांत में केवल 1.25 लाख के मुकाबले 1.46 लाख की औसत आबादी होगी. आयोग ने एसटी के लिए नौ सीटें आरक्षित की हैं- जम्मू संभाग में छह और कश्मीर संभाग में तीन और जम्मू संभाग में एससी के लिए सात सीटें आरक्षित की हैं.

जम्मू प्रांत में परिसीमन

जम्मू क्षेत्र में, इसके दस जिलों में बड़े आंतरिक परिवर्तन और पुनर्रचना के साथ छह नए खंड बनाए गए हैं. बनाए गए नए खंड सांबा में रामगढ़, उधमपुर जिले में उधमपुर पश्चिम, राजौरी में सुंदरबनी-कलाकोट, डोडा जिले में डोडा पश्चिम, किश्तवाड़ जिले में मुगल मैदान और पद्दार हैं.

कश्मीर घाटी में परिसीमन

कश्मीर घाटी में पिछले निर्वाचन क्षेत्रों के बड़े पैमाने पर परिवर्तन का प्रस्ताव किया गया है और कुपवाड़ा जिले में केवल एक खंड त्रेहगाम बनाया गया है. गुलमर्ग, संग्रामा, शांगस, होमशालिबाग, अमीरा कदल, बटमालू जैसे पुराने खंडों को हटा दिया गया और नए खंडों में पुन: विभक्त किया गया.

एसटी और एससी आबादी के लिए आरक्षित सीटें

अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए नौ सीटें आरक्षित की गई हैं, जिनमें जम्मू संभाग में दरहल, थन्ना मंडी, सुरनकोट, मेंढर, पुंछ हवेली और महोर और कश्मीर संभाग में लार्नू, गुरेज और कंगन शामिल हैं. अनुसूचित जाति (एससी) के लिए सात जिसमें मढ़, बिश्नाह, आरएस पुरा, अखनूर, रामगढ़, कठुआ दक्षिण और रामनगर (उधमपुर) शामिल हैं.

सभी पांच लोक सभा सीटों की सीमाएं बदल दी गई हैं, जबकि अनंतनाग-राजौरी सीट में जम्मू प्रांत के क्षेत्र शामिल हैं. इस मामले पर वरिष्ठ पत्रकार और लेखक जफर चौधरी ने कहा कि अनंतनाग-राजौरी लोक सभा क्षेत्र एक नया प्रयोग करता है जिसे बहुत सावधानी से करना होगा. चौधरी ने कहा कि जबकि पीरपंजाल पर्वतीय क्षेत्र के दोनों किनारों में फैली एकल लोक सभा सीट कश्मीर और जम्मू के बीच राजनीतिक और सांस्कृतिक बातचीत के अवसर प्रदान करेगी, लेकिन विचारों और विचारधाराओं को जबरन थोपना न केवल इस उप-क्षेत्र के लिए बल्कि पूरे राज्य के लिए खतरनाक साबित हो सकता है.

राजनीतिक दलों ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया है. नेशनल कॉफ्रेंस पार्टी के प्रवक्ता इमरान नबी डार ने कहा कि हमारी पार्टी चार फरवरी को परिसीमन आयोग द्वारा सहयोगी सदस्यों को उपलब्ध कराए गए ड्राफ्ट वर्किंग पेपर को सरसरी तौर पर खारिज करती है. बता दें, नेकां के कश्मीर से तीन लोकसभा सदस्य हैं- फारूक अब्दुल्ला, हसनैन मसूदी और अकबर लोन.

पूर्व मुख्यमंत्री और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने कहा कि परिसीमन आयोग का प्रस्ताव आश्चर्य के रूप में नहीं आया है और यह जम्मू-कश्मीर में लोकतंत्र पर एक और हमला है. उन्होंने कहा कि पीडीपी को हमेशा संदेह था कि परिसीमन आयोग मूल रूप से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का एजेंडा है. भाजपा अपने निर्वाचन क्षेत्रों को मजबूत करना चाहती है. वे बहुसंख्यक समुदायों को शक्तिहीन करना चाहते हैं, चाहे वह राजौरी, चिनाब घाटी में हों. जब छह महीने सड़क बंद रहेगी तो कोई सांसद राजौरी या चिनाब घाटी कैसे पहुंचेगा. जानकारी के मुताबिक नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी, जो पीएजीडी में प्रमुख दल हैं, 13 फरवरी को जम्मू में परिसीमन के बारे में बैठक करने वाले हैं.

वहीं, इस मामले पर राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यदि प्रस्तावित परिसीमन लागू किया गया तो कई पूर्व विधायकों के राजनीतिक करियर खतरे में पड़ जाएंगे क्योंकि उनके निर्वाचन क्षेत्रों को उनके वोट बैंक को नष्ट करने वाले अन्य क्षेत्रों में विलय कर दिया गया है. वरिष्ठ पत्रकार और लेखक जफर चौधरी ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि परिसीमन की प्रक्रिया ने जम्मू क्षेत्र के कई राजनेताओं के पैरों तले जमीन हिला दी हैं. उन्होंने आगे कहा कि वरिष्ठ भाजपा नेता और वे दिग्गज जो हाल के वर्षों में भगवा पार्टी में अपने निर्वाचन क्षेत्रों की 'रक्षा' करने के लिए जोरदार प्रयास में शामिल हुए, वास्तव में जमीन खो चुके हैं.

श्रीनगर: केंद्र की मोदी सरकार ने 5 अगस्त 2019 को जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 (Article 370 from Jammu and Kashmir) को खत्म किया था. वहीं, इसके बाद केंद्र शासित प्रदेश में विधान सभा और संसदीय क्षेत्रों की सीमाओं को फिर से बनाने के लिए जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 (Jammu and Kashmir Reorganization Act 2019) के तहत परिसीमन आयोग बनाने की बात कही गई थी.

आयोग का गठन
सुप्रीम कोर्ट की रिटायर्ड जज रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में परिसीमन आयोग (delimitation commission) का गठन मार्च 2020 में किया गया और इसे एक वर्ष के भीतर परिसीमन प्रक्रिया को पूरा करने के लिए कहा गया था, लेकिन समय सीमा के भीतर यह प्रक्रिया पूरी नहीं हो सकी इस वजह से इसका कार्यकाल मार्च 2022 तक बढ़ा दिया गया है. शुरुआत में असम, मणिपुर, नागालैंड, अरुणाचल प्रदेश और जम्मू कश्मीर के निर्वाचन क्षेत्रों को फिर से तैयार करने के लिए परिसीमन आयोग की स्थापना की गई थी, लेकिन जब इसका कार्यकाल एक वर्ष के लिए बढ़ा दिया गया तो उत्तर-पूर्वी राज्यों को इससे बाहर कर दिया गया.

राजनीतिक दलों ने किया आयोग का विरोध
इसके गठन के बाद से ही जम्मू कश्मीर के राजनीतिक दलों विशेष रूप से नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी ने आयोग की जमकर आलोचना की. इन पार्टियों का तर्क था कि आयोग का गठन जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 के तहत किया गया था, जिसे इन पार्टियों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. दलों ने यह भी तर्क दिया कि जम्मू कश्मीर में परिसीमन 2026 तक सुप्रीम कोर्ट द्वारा रोक दिया गया था और साथ ही नेशनल कॉन्फ्रेंस सरकार ने 2002 में 2026 तक परिसीमन पर रोक लगा दी थी.

बता दें, जम्मू कश्मीर में राष्ट्रपति शासन के दौरान अंतिम परिसीमन 1994-95 में किया गया था, जब तत्कालीन राज्य विधान सभा की सीटों को 76 से बढ़ाकर 87 कर दिया गया था. जम्मू क्षेत्र की सीटें 32 से बढ़कर 37, कश्मीर की 42 से 46 और लद्दाख की सीटें दो से बढ़कर चार हो गई हैं.

भाजपा को छोड़कर जम्मू कश्मीर में राजनीतिक दलों के विरोध के बावजूद, आयोग ने अपनी कवायद जारी रखी और 2021 में दो बार केंद्र शासित प्रदेश का दौरा किया और कश्मीर और जम्मू क्षेत्रों में राजनीतिक दलों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और अन्य हितधारकों के साथ कई बैठकें कीं. पीडीपी ने आयोग का बहिष्कार करते हुए कहा कि आयोग का गठन जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम के तहत किया गया था जो असंवैधानिक है. वहीं, राजनीतिक दलों का यह भी तर्क है कि परिसीमन 2011 की जनगणना के अनुसार किया जाना चाहिए, हालांकि, आयोग ने कहा कि भूगोल, जनसांख्यिकी, पहुंच और संचार मानदंड हैं जिन पर वह परिसीमन करेगा.

सीटों का पुनर्निर्धारण

तत्कालीन राज्य जम्मू कश्मीर में 111 सीटें थीं, जिनमें 24 पीओके के लिए आरक्षित थीं और 87 विधानसभा सीटों के लिए चुनाव हो रहे थे, पिछली विधान सभा में कश्मीर में 46, जम्मू में 37 और लद्दाख में चार सीटें थीं. जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के दो केंद्र शासित प्रदेशों में पूर्ववर्ती राज्य के विभाजन के बाद, लद्दाख की चार सीटें खत्म करके विधान सभा सीटें 83 कर दी गईं इस केंद्रशासित प्रदेश में कोई विधायिका नहीं रखी गई थी. जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम के तहत जम्मू कश्मीर में विधान सभा सीटों की संख्या 107 से बढ़ाकर 114 कर दी जाएगी, जिसमें 24 सीटें शामिल हैं जो पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) के लिए आरक्षित हैं, जबकि चुनाव 90 सीटों के लिए होंगे. आयोग के अपने सदस्यों के अलावा, जम्मू-कश्मीर के पांच लोकसभा सदस्य, नेशनल कांफ्रेंस के तीन और भाजपा के दो सदस्य इसके सहयोगी सदस्य हैं.

पिछले साल 20 दिसंबर को आयोग ने सहयोगी सदस्यों के साथ अपना पहला मसौदा साझा किया और जम्मू संभाग में छह अतिरिक्त विधानसभा क्षेत्रों और कश्मीर में एक का प्रस्ताव रखा. इस प्रस्ताव से जम्मू में सीटों की संख्या 37 से 43 और कश्मीर में 46 से बढ़कर 47 हो जाएगी. इन 90 सीटों में से नौ सीटें अनुसूचित जनजाति (एसटी) और सात सीटें अनुसूचित जाति (एससी) के लिए आरक्षित होंगी. 4 फरवरी को आयोग ने अपने दूसरे मसौदे को सहयोगी सदस्यों के साथ साझा किया, जिसमें विस्तृत विवरण दिया गया कि केंद्र शासित प्रदेश में विधान सभा और संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों को कैसे फिर से बनाया गया है.

दूसरे मसौदे में सभी विधान सभा क्षेत्रों और संसदीय सीटों में बड़ा झटका देखा गया, जिसने सभी पूर्व विधायकों के पिछले चुनावी ढांचे को भी हिला कर रख दिया है. सभी निर्वाचन क्षेत्रों को बदली हुई सीमाओं के साथ फिर से तैयार किया गया है. 28 निर्वाचन क्षेत्रों को नए सिरे से बनाया गया है और उनका नाम बदल दिया गया है जबकि 19 मौजूदा निर्वाचन क्षेत्रों को हटा दिया गया है. कश्मीर में पैनल द्वारा तैयार किए गए नए विधान सभा क्षेत्रों में जम्मू प्रांत में केवल 1.25 लाख के मुकाबले 1.46 लाख की औसत आबादी होगी. आयोग ने एसटी के लिए नौ सीटें आरक्षित की हैं- जम्मू संभाग में छह और कश्मीर संभाग में तीन और जम्मू संभाग में एससी के लिए सात सीटें आरक्षित की हैं.

जम्मू प्रांत में परिसीमन

जम्मू क्षेत्र में, इसके दस जिलों में बड़े आंतरिक परिवर्तन और पुनर्रचना के साथ छह नए खंड बनाए गए हैं. बनाए गए नए खंड सांबा में रामगढ़, उधमपुर जिले में उधमपुर पश्चिम, राजौरी में सुंदरबनी-कलाकोट, डोडा जिले में डोडा पश्चिम, किश्तवाड़ जिले में मुगल मैदान और पद्दार हैं.

कश्मीर घाटी में परिसीमन

कश्मीर घाटी में पिछले निर्वाचन क्षेत्रों के बड़े पैमाने पर परिवर्तन का प्रस्ताव किया गया है और कुपवाड़ा जिले में केवल एक खंड त्रेहगाम बनाया गया है. गुलमर्ग, संग्रामा, शांगस, होमशालिबाग, अमीरा कदल, बटमालू जैसे पुराने खंडों को हटा दिया गया और नए खंडों में पुन: विभक्त किया गया.

एसटी और एससी आबादी के लिए आरक्षित सीटें

अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए नौ सीटें आरक्षित की गई हैं, जिनमें जम्मू संभाग में दरहल, थन्ना मंडी, सुरनकोट, मेंढर, पुंछ हवेली और महोर और कश्मीर संभाग में लार्नू, गुरेज और कंगन शामिल हैं. अनुसूचित जाति (एससी) के लिए सात जिसमें मढ़, बिश्नाह, आरएस पुरा, अखनूर, रामगढ़, कठुआ दक्षिण और रामनगर (उधमपुर) शामिल हैं.

सभी पांच लोक सभा सीटों की सीमाएं बदल दी गई हैं, जबकि अनंतनाग-राजौरी सीट में जम्मू प्रांत के क्षेत्र शामिल हैं. इस मामले पर वरिष्ठ पत्रकार और लेखक जफर चौधरी ने कहा कि अनंतनाग-राजौरी लोक सभा क्षेत्र एक नया प्रयोग करता है जिसे बहुत सावधानी से करना होगा. चौधरी ने कहा कि जबकि पीरपंजाल पर्वतीय क्षेत्र के दोनों किनारों में फैली एकल लोक सभा सीट कश्मीर और जम्मू के बीच राजनीतिक और सांस्कृतिक बातचीत के अवसर प्रदान करेगी, लेकिन विचारों और विचारधाराओं को जबरन थोपना न केवल इस उप-क्षेत्र के लिए बल्कि पूरे राज्य के लिए खतरनाक साबित हो सकता है.

राजनीतिक दलों ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया है. नेशनल कॉफ्रेंस पार्टी के प्रवक्ता इमरान नबी डार ने कहा कि हमारी पार्टी चार फरवरी को परिसीमन आयोग द्वारा सहयोगी सदस्यों को उपलब्ध कराए गए ड्राफ्ट वर्किंग पेपर को सरसरी तौर पर खारिज करती है. बता दें, नेकां के कश्मीर से तीन लोकसभा सदस्य हैं- फारूक अब्दुल्ला, हसनैन मसूदी और अकबर लोन.

पूर्व मुख्यमंत्री और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने कहा कि परिसीमन आयोग का प्रस्ताव आश्चर्य के रूप में नहीं आया है और यह जम्मू-कश्मीर में लोकतंत्र पर एक और हमला है. उन्होंने कहा कि पीडीपी को हमेशा संदेह था कि परिसीमन आयोग मूल रूप से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का एजेंडा है. भाजपा अपने निर्वाचन क्षेत्रों को मजबूत करना चाहती है. वे बहुसंख्यक समुदायों को शक्तिहीन करना चाहते हैं, चाहे वह राजौरी, चिनाब घाटी में हों. जब छह महीने सड़क बंद रहेगी तो कोई सांसद राजौरी या चिनाब घाटी कैसे पहुंचेगा. जानकारी के मुताबिक नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी, जो पीएजीडी में प्रमुख दल हैं, 13 फरवरी को जम्मू में परिसीमन के बारे में बैठक करने वाले हैं.

वहीं, इस मामले पर राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यदि प्रस्तावित परिसीमन लागू किया गया तो कई पूर्व विधायकों के राजनीतिक करियर खतरे में पड़ जाएंगे क्योंकि उनके निर्वाचन क्षेत्रों को उनके वोट बैंक को नष्ट करने वाले अन्य क्षेत्रों में विलय कर दिया गया है. वरिष्ठ पत्रकार और लेखक जफर चौधरी ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि परिसीमन की प्रक्रिया ने जम्मू क्षेत्र के कई राजनेताओं के पैरों तले जमीन हिला दी हैं. उन्होंने आगे कहा कि वरिष्ठ भाजपा नेता और वे दिग्गज जो हाल के वर्षों में भगवा पार्टी में अपने निर्वाचन क्षेत्रों की 'रक्षा' करने के लिए जोरदार प्रयास में शामिल हुए, वास्तव में जमीन खो चुके हैं.

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