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अपराध कंट्रोल करने के लिए होगा मकोका का इस्तेमाल, डीसीपी को मिले महत्वपूर्ण निर्देश - मकोका दिल्ली में कब से लागू

संगठित अपराध को खत्म करने के लिए महाराष्ट्र सरकार के बनाए कानून मकोका का इस्तेमाल अब दिल्ली पुलिस भी धड़ल्ले से करेगी. बताया जा रहा है कि इस बारे में निर्देश मिले हैं. 2002 में दिल्ली सरकार ने दिल्ली में इस कानून को लागू किया था.

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Published : Jun 30, 2022, 10:02 PM IST

नई दिल्ली : राजधानी में अपराध पर लगाम लगाने के मकसद से दिल्ली पुलिस मकोका (महाराष्ट्र कंट्रोल ऑफ ऑर्गनाइज्ड क्राइम एक्ट) का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करेगी. इसके लिए पुलिस कमिश्नर राकेश अस्थाना ने सभी जिला डीसीपी को निर्देश दिये हैं. उन्होंने ऐसे बदमाशों को चिन्हित करने के निर्देश दिए हैं, जिन पर मकोका लगाया जा सकता है. इसके साथ ही उन्होंने उन बदमाशों को भी चिन्हित करने को कहा है, जिन्हें थाने का घोषित बदमाश बनाया जा सकता है.


जानकारी के अनुसार, अपराध पर लगाम लगाने के लिये पुलिस समय-समय पर कई महत्वपूर्ण कदम उठाती है. इसके लिए हाल ही में आयोजित बैठक में पुलिस कमिश्नर ने शातिर अपराधियों पर मकोका के तहत FIR दर्ज करने की सलाह दी है. पुलिस कमिश्नर को बताया गया कि बीते कुछ वर्षों में नीरज बवाना, लारेंस बिश्नोई, काला जठेड़ी, नासिर, मंजीत महाल, सुकेश चंद्रशेखर आदि पर उन्होंने मकोका लगा रखा है. इसकी वजह से यह सभी बदमाश एवं उनसे जुड़े गुर्गे कई वर्षों से जेल में हैं. पुलिस कमिश्नर ने अभी के समय में सक्रिय बदमाशों का आकलन करने के लिए डीसीपी को निर्देश दिए हैं. सभी जिला डीसीपी पुलिस मुख्यालय को जल्द बताएंगे कि उनके यहां किस पर मकोका लगाई जा सकती है.


पूर्व एसीपी वेदभूषण ने बताया कि दिल्ली पुलिस कमिश्नर द्वारा मकोका के मामलों को बढ़ाने की पहल करना एक सराहनीय कदम है. मकोका अपराध पर लगाम लगाने में एक बड़े हथियार का काम करता है. यह एकमात्र ऐसी FIR है, जिसमें केवल गैंग का सरगना नहीं बल्कि उसके सभी गुर्गे भी आरोपी बन जाते हैं. उन्होंने बताया कि मकोका केवल ऐसे गैंग पर लगता है जो संगठित रूप से अपराध कर रहा हो. इसके लिए मुख्य आरोपी के खिलाफ बीते दो वर्षों में दो FIR होनी चाहिए और इनमें पुलिस आरोपपत्र दाखिल कर चुकी हो. यह शर्त पूरी होने पर ही मकोका की FIR होती है. इसका जांच अधिकारी भी एसीपी होता है.


दिल्ली पुलिस के पूर्व एसीपी वेदभूषण ने बताया कि मकोका कानून महाराष्ट्र सरकार द्वारा बनाया गया था. इसका मकसद संगठित रूप से अपराध करने वाले बदमाशों को जेल के भीतर डालना था. दिल्ली पुलिस में बीते एक दशक से मकोका के इस्तेमाल में बढ़ोतरी हुई है. मकोका के तहत जिसके खिलाफ FIR होती है, उसको अदालत से अग्रिम ज़मानत नहीं मिलती है. पुलिस को गिरफ्तारी के बाद आरोपपत्र दाखिल करने के लिए 6 महीने का समय मिलता है. मकोका के तहत गिरफ्तार आरोपी के लिए लगभग पांच साल तक जेल से निकलना असंभव हो जाता है. इस वजह से अपराधी भी इस कानून के इस्तेमाल से डरते हैं.

मकोका की अहम बातें

  • वर्ष 1999 में संगठित अपराध और आतंकवाद से निपटने के लिए महाराष्ट्र सरकार मकोका कानून लाई थी.
  • 2002 में इस कानून को दिल्ली सरकार ने भी लागू किया था.
  • मकोका में आरोपी बनाए गए शख्स द्वारा अपराध से बनाई गई संपत्ति को जब्त किया जाता है.
  • इसमें अगर छह माह के भीतर पुलिस आरोपपत्र दाखिल नहीं करती तो आरोपी को जमानत मिल सकती है.
  • मकोका के मामले में आरोपी को एक महीने तक की रिमांड पर पुलिस ले सकती है.
  • इस कानून के तहत कम से कम 5 साल और अधिकतम फांसी की सजा का प्रावधान है.
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नई दिल्ली : राजधानी में अपराध पर लगाम लगाने के मकसद से दिल्ली पुलिस मकोका (महाराष्ट्र कंट्रोल ऑफ ऑर्गनाइज्ड क्राइम एक्ट) का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करेगी. इसके लिए पुलिस कमिश्नर राकेश अस्थाना ने सभी जिला डीसीपी को निर्देश दिये हैं. उन्होंने ऐसे बदमाशों को चिन्हित करने के निर्देश दिए हैं, जिन पर मकोका लगाया जा सकता है. इसके साथ ही उन्होंने उन बदमाशों को भी चिन्हित करने को कहा है, जिन्हें थाने का घोषित बदमाश बनाया जा सकता है.


जानकारी के अनुसार, अपराध पर लगाम लगाने के लिये पुलिस समय-समय पर कई महत्वपूर्ण कदम उठाती है. इसके लिए हाल ही में आयोजित बैठक में पुलिस कमिश्नर ने शातिर अपराधियों पर मकोका के तहत FIR दर्ज करने की सलाह दी है. पुलिस कमिश्नर को बताया गया कि बीते कुछ वर्षों में नीरज बवाना, लारेंस बिश्नोई, काला जठेड़ी, नासिर, मंजीत महाल, सुकेश चंद्रशेखर आदि पर उन्होंने मकोका लगा रखा है. इसकी वजह से यह सभी बदमाश एवं उनसे जुड़े गुर्गे कई वर्षों से जेल में हैं. पुलिस कमिश्नर ने अभी के समय में सक्रिय बदमाशों का आकलन करने के लिए डीसीपी को निर्देश दिए हैं. सभी जिला डीसीपी पुलिस मुख्यालय को जल्द बताएंगे कि उनके यहां किस पर मकोका लगाई जा सकती है.


पूर्व एसीपी वेदभूषण ने बताया कि दिल्ली पुलिस कमिश्नर द्वारा मकोका के मामलों को बढ़ाने की पहल करना एक सराहनीय कदम है. मकोका अपराध पर लगाम लगाने में एक बड़े हथियार का काम करता है. यह एकमात्र ऐसी FIR है, जिसमें केवल गैंग का सरगना नहीं बल्कि उसके सभी गुर्गे भी आरोपी बन जाते हैं. उन्होंने बताया कि मकोका केवल ऐसे गैंग पर लगता है जो संगठित रूप से अपराध कर रहा हो. इसके लिए मुख्य आरोपी के खिलाफ बीते दो वर्षों में दो FIR होनी चाहिए और इनमें पुलिस आरोपपत्र दाखिल कर चुकी हो. यह शर्त पूरी होने पर ही मकोका की FIR होती है. इसका जांच अधिकारी भी एसीपी होता है.


दिल्ली पुलिस के पूर्व एसीपी वेदभूषण ने बताया कि मकोका कानून महाराष्ट्र सरकार द्वारा बनाया गया था. इसका मकसद संगठित रूप से अपराध करने वाले बदमाशों को जेल के भीतर डालना था. दिल्ली पुलिस में बीते एक दशक से मकोका के इस्तेमाल में बढ़ोतरी हुई है. मकोका के तहत जिसके खिलाफ FIR होती है, उसको अदालत से अग्रिम ज़मानत नहीं मिलती है. पुलिस को गिरफ्तारी के बाद आरोपपत्र दाखिल करने के लिए 6 महीने का समय मिलता है. मकोका के तहत गिरफ्तार आरोपी के लिए लगभग पांच साल तक जेल से निकलना असंभव हो जाता है. इस वजह से अपराधी भी इस कानून के इस्तेमाल से डरते हैं.

मकोका की अहम बातें

  • वर्ष 1999 में संगठित अपराध और आतंकवाद से निपटने के लिए महाराष्ट्र सरकार मकोका कानून लाई थी.
  • 2002 में इस कानून को दिल्ली सरकार ने भी लागू किया था.
  • मकोका में आरोपी बनाए गए शख्स द्वारा अपराध से बनाई गई संपत्ति को जब्त किया जाता है.
  • इसमें अगर छह माह के भीतर पुलिस आरोपपत्र दाखिल नहीं करती तो आरोपी को जमानत मिल सकती है.
  • मकोका के मामले में आरोपी को एक महीने तक की रिमांड पर पुलिस ले सकती है.
  • इस कानून के तहत कम से कम 5 साल और अधिकतम फांसी की सजा का प्रावधान है.
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