नई दिल्ली: देश में बढ़ते मुकदमों को लेकर दिल्ली की एक अदालत ने आदेश दिया है. कोर्ट ने घरेलू हिंसा के एक मामले पर सुनवाई करते हुए कहा कि तुच्छ और विलासी मुकद्दमेबाजी बढ़ते हुए मुकदमों के प्रमुख कारणों में से एक है और इस देश की अदालतों का नागरिकों के प्रति कर्तव्य है कि वे इस तरह की बुराई की व्यवस्था को खत्म करें.
बता दें, एक व्यक्ति ने कोर्ट के एक आदेश को चुनौती दी थी जिसमें उसे अपने बच्चों के स्कूल स्थानांतरण प्रमाण पत्र (Transfer Certificate) पर हस्ताक्षर करने का निर्देश दिया गया था, जो अपनी अलग पत्नी से अलग रहता था. रिकॉर्ड में पता चला कि उस शख्स ने आज तक प्रमाण पत्र (Transfer Certificate) पर हस्ताक्षर नहीं किए थे, लेकिन बच्चों का नए स्कूल में एडमिशम करवा दिया गया था. इसलिए व्यक्ति के वकील ने अदालत से दस्तावेज पर अपने हस्ताक्षर करने के निर्देश को माफ करने का आग्रह किया.
कोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए न केवल याचिका को खारिज कर दिया, बल्कि अपीलकर्ता पर तीस हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया. फैसले से अलग होने से पहले, अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अनुज अग्रवाल ने कहा कि यहां यह देखना उचित होगा कि यह अदालत यहां अपीलकर्ता के कपटी और लापरवाह रवैये से क्षुब्ध और स्तब्ध है. किसी व्यक्ति के अधिकार के बारे में उचित न्यायालय के समक्ष एक याचिका दायर करके अपनी शिकायतों के न्यायिक निवारण की मांग के बारे में कोई दूसरा विचार नहीं हो सकता है, लेकिन साथ ही मुकदमेबाजी के अधिकार को दांव या मनोरंजन की गतिविधि में कम नहीं किया जा सकता है.
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने कहा कि जब तक अदालतें उचित जुर्माना लगाना शुरू नहीं करेंगी, बेकार और विलासी मुकदमेबाजी का खतरा पूरी व्यवस्था को नुकसान पहुंचाता रहेगा.
उन्होंने कहा कि बेकार और विलासी मुकदमेबाजी का खतरा दो मायने में न्याय के कारण को नुकसान पहुंचा रहा है. एक ओर, एक बेहूदा वादी केवल एक तुच्छ याचिका दायर करके लंबित निचली अदालत की कार्यवाही को शरारत से रोक सकता है और दूसरी ओर यह वादियों के मौलिक अधिकारों पर अनावश्यक रूप से अनावश्यक रूप से बोझ डालकर और अपीलीय न्यायालय के कीमती न्यायिक समय को सीधे तौर पर प्रभावित करके त्वरित और प्रभावी न्याय प्राप्त करने का प्रयास करने वाले वादियों के मौलिक अधिकारों पर सीधा हमला करने के समान है.
कोर्ट ने आगे कहा कि जब तक अदालतें उचित लागत लगाना शुरू नहीं करतीं, तब तक इस तरह के मुकदमेबाजी का खतरा पूरी व्यवस्था को प्रभावित करता रहेगा. वर्तमान अपील को न केवल तुच्छ बताया गया, बल्कि निचली अदालत की कार्यवाही में देरी करने का एक कपटी प्रयास भी बताया गया.
इसलिए मैं यह उचित समझता हूं कि तत्काल अपील न केवल खारिज किए जाने के योग्य है बल्कि अपीलकर्ता ₹30,000 जुर्माना देने का हकदार है. तत्काल मामले में अपीलकर्ता/अभियुक्त को तत्काल आदेश की तारीख से सात दिनों के भीतर वकील कल्याण कोष, साकेत बार एसोसिएशन के साथ 30,000 रुपये की राशि जमा करने का निर्देश दिया जाता है.