नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को राष्ट्रीय राजधानी में सेवाओं के नियंत्रण पर केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच विवाद को पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ के पास भेज दिया. मुख्य न्यायाधीश एन वी रमना और न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने कहा कि सेवाओं पर नियंत्रण के मुद्दे को छोड़कर अन्य सभी मुद्दों पर 2018 में पिछली संविधान पीठ ने विस्तार से विचार किया था और उन पर दोबारा विचार नहीं किया जाएगा.
CJI ने फैसले के ऑपरेटिव हिस्से को पढ़ते हुए कहा कि संविधान के प्रावधानों और संविधान के अनुच्छेद 239AA (जो दिल्ली की शक्ति से संबंधित है) के अधीन और संविधान पीठ के फैसले (2018 के) पर विचार करने पर ऐसा प्रतीत होता है कि इस पीठ के समक्ष एक लंबित विचार को छोड़कर सभी मुद्दों पर विस्तार से विचार किया गया है. इसलिए, हम उन मुद्दों पर फिर से विचार करना जरूरी नहीं समझते हैं जो पहले से ही सुलझे हुए हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि इस पीठ को जो सीमित मुद्दा भेजा गया है, वह सेवाओं की शर्तों के संबंध में केंद्र और दिल्ली सरकार की विधायी और कार्यकारी शक्तियों के दायरे से संबंधित है. इस अदालत की संविधान पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 239AA की व्याख्या करते हुए यहां विवाद की विशेष रूप से व्याख्या करने का कोई अवसर नहीं पाया. इसलिए हम संविधान पीठ द्वारा आधिकारिक घोषणा के लिए उपरोक्त सीमित प्रश्न को रेफर करना उचित समझते हैं. हम इसे बुधवार को सूचीबद्ध कर रहे हैं. कृपया, किसी भी स्थगन (11 मई को) के लिए न कहें. पीठ ने 28 अप्रैल को केंद्र की इस दलील पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था कि सेवाओं पर नियंत्रण के विवाद को पांच-न्यायाधीशों की पीठ के पास भेजा जाए, एक याचिका जिसका आप के नेतृत्व वाली दिल्ली सरकार ने कड़ा विरोध किया था.
पीठ ने आदेश को सुरक्षित रखते हुए कहा था कि वह इस मुद्दे की सुनवाई के लिए पांच जजों की पीठ का गठन करने का फैसला की है जिन्हें अपनी सुनवाई 15 मई से पहले समाप्त करनी होगी ताकि छुट्टी के समय का उपयोग निर्णय तैयार करने के लिए किया जा सके. सिंघवी ने कहा था कि यह अदालत हर बार छोटा मामला सामने आने पर रेफर करने के लिए नहीं है. अगर तीन या पांच जज होते तो यह कैसे होता. बात क्यों नहीं है, क्यों के बारे में है.
सॉलिसिटर जनरल ने कहा था कि इस मामले को इस आधार पर संविधान पीठ को भेजने की जरूरत है कि पांच न्यायाधीशों की पीठ के पहले के फैसलों में यह तय करने के लिए कोई रोडमैप नहीं दिया गया है कि क्या संघ या दिल्ली सरकार के पास विवादित विषय पर निर्णय लेने का अधिकार क्षमता होगी या नहीं. मेहता ने कहा कि पीठ का निष्कर्ष है कि वृहद संविधान पीठ ने कुछ पहलुओं पर विचार नहीं किया और इसलिए विवाद को रेफर करने की जरूरत है. विधि अधिकारी ने केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच सत्ता के बंटवारे से संबंधित बाद के फैसले में न्यायमूर्ति अशोक भूषण (सेवानिवृत्त होने के बाद) द्वारा की गई टिप्पणियों का उल्लेख किया और कहा कि रेफर का मामला केवल उस व्याख्या से बना था.
सॉलिसिटर जनरल ने यह भी कहा था कि दिल्ली के एनसीटी के शासन के मॉडल के लिए केंद्र सरकार को एक केंद्रीय भूमिका निभाने की आवश्यकता होगी, भले ही एक विधान सभा या मंत्रिपरिषद पेश की जाए. केंद्र सरकार ने सेवाओं पर नियंत्रण और संशोधित GNCTD अधिनियम, 2021 की संवैधानिक वैधता और व्यापार नियमों के लेनदेन को चुनौती देने वाली दिल्ली सरकार की दो भिन्न भिन्न याचिकाओं की संयुक्त सुनवाई की भी मांग की थी. जो कथित तौर पर क्रमशः उपराज्यपाल को अधिक अधिकार देते हैं. उनके अनुसार वे प्रथम दृष्टया आपस में जुड़े हैं.
दिल्ली सरकार की याचिका 14 फरवरी, 2019 के विभाजित फैसले से उत्पन्न होती है, जिसमें न्यायमूर्ति एके सीकरी और भूषण की दो न्यायाधीश-पीठ, दोनों सेवानिवृत्त हुए थे, ने भारत के मुख्य न्यायाधीश से सिफारिश की थी कि तीन-न्यायाधीशों की पीठ विभाजन के फैसले के मद्देनजर राष्ट्रीय राजधानी में सेवाओं के नियंत्रण के मुद्दे को अंतिम रूप से तय करने के लिए गठित किया जाएगा.
न्यायमूर्ति भूषण ने कहा था कि दिल्ली सरकार के पास सभी प्रशासनिक सेवाओं का कोई अधिकार नहीं है. हालांकि जस्टिस सीकरी का अपना अलग मत था. उन्होंने कहा कि नौकरशाही (संयुक्त निदेशक और ऊपर) के शीर्ष पदों पर अधिकारियों का स्थानांतरण या पोस्टिंग केवल केंद्र सरकार द्वारा किया जा सकता है और अन्य नौकरशाहों से संबंधित मामलों पर मतभेद के मामले में लेफ्टिनेंट गवर्नर का विचार ही मान्य होगा. 2018 के फैसले में, पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से कहा था कि दिल्ली के उपराज्यपाल निर्वाचित सरकार की सहायता और सलाह से बंधे हैं, और दोनों को एक-दूसरे के साथ मिलकर काम करने की जरूरत है.
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