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कभी दून की पहचान हुआ करती थी नहरें, अब आधुनिकीकरण और कंक्रीट के जंगलों में हुई गुम

कभी 'नहरों का शहर' कहे जाने वाले देहरादून में आज नहरें देखने को ही नहीं मिलती हैं. जो नहरें कभी देहरादून की पहचान हुआ करती थी वो कंक्रीट के जंगलों में कहीं गुम सी हो गई हैं. देहरादून का नहरों का अपना एक अलग इतिहास रहा है. इनके बनाने से लेकर इनकी निकासी सब उस जमाने में अव्वल दर्जे की थी, जो आज देखने को नहीं मिलती.

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कभी दून की पहचान हुआ करती थी नहरें
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Published : May 19, 2022, 10:27 PM IST

देहरादून: उत्तराखंड की राजधानी देहरादून का अपना एक समृद्ध और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि रही है. यह शहर अपनी उपजाऊ भूमि के साथ ही बासमती चावल के उत्पादन के लिए भी जाना जाता रहा है. यहां की उपजाऊ भूमि का मुख्य कारण कभी यहां नहरों का एक बड़ा जाल होना था, जो आज कहीं खो सी गई हैं. कभी नहरों के नाम से जाना जाने वाला देहरादून शहर आज कंक्रीट के जंगल में तब्दील हो गया है. आज यहां हर ओर बसावट नजर आती है. जिसने इस शहर के इतिहास के साथ खूबसूरती को भी छीन लिया है.

किसी जमाने में देहरादून में रिस्पना जैसी बड़ी नदियां होती थी, लेकिन धीरे-धीरे होते आधुनिकरण ने यहां की नहरों की खूबसूरती छीन ली. विशेषज्ञों की मानें तो इसका मुख्य कारण शहर की नदियों का नाले में बदल जाना है. जिससे यहां की नहरों का अस्तित्व भी खतरे में आ गया. बढ़ती आबादी भी इन नहरों के खत्म होने के कारण हैं.

कभी दून की पहचान हुआ करती थी नहरें
पढ़ें- Chardham Yatra: साढ़े 6 लाख से अधिक श्रद्धालुओं ने टेका मत्था, यात्रा के दौरान 47 यात्रियों की मौत

देहरादून शहर की बात करें, तो यहां पर बहने वाली प्रमुख नदियों में कालापत्थर, बीजापुर, राजपुर,जाखन, पूर्वी नहर और कलंगा शामिल हैं. हालांकि, कलंगा अभी भी मानसून में जीवित रहती है. यह शहर के बाहरी इलाके में बहती है. वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत बताते हैं कि देहरादून में नहरों की नींव 1650 के दशक में रानी कर्णावती के कार्यकाल के दौरान रखी गई थी. इसके साथ पंजाब कौर ने भी यहां पर नहरों का निर्माण करवाया था. उसके बाद 1850 में एक अंग्रेजी इंजीनियर कर्नल प्रोबी थॉमस काटली ने पूरे शहर को कवर करने के लिए पांच नहरों का विस्तार करवाया.
पढ़ें- Chardham Yatra: साढ़े 6 लाख से अधिक श्रद्धालुओं ने टेका मत्था, यात्रा के दौरान 47 यात्रियों की मौत

रावत बताते हैं कि पलटन बाजार से बहने वाली राजपुर नहर का पानी झंडा मेला के तालाब को भरने के लिए इस्तेमाल किया जाता था. आज शहर की सबसे पुरानी नहर का अस्तित्व मात्र इतिहास बनकर रह गया है. जानकारों की मानें तो देहरादून शहर की यह नहरें शहर के परिस्थितिक तंत्र को भी मजबूत रखती थी. नहरों के पानी के कारण जमीन की नमी जहां कृषि भूमि को उपजाऊ बनाती थी. यहां के मौसम में भी ठंडक बनी रहती थी. कहा जता है कि देहरादून में नहरों का निर्माण योजना बड़ी चतुराई के साथ किया गया था. नहरों के आसपास छोटी-छोटी नलियां भी बनाई गई थी. जहां घोड़े पानी पीते थे. इसके साथ ही नहरों के लिए प्राकृतिक जल निकासी सुनिश्चित की गई थी. जिससे बरसात में कभी शहर जलमग्न नहीं होता था, लेकिन आज ये नहरें बढ़ती आबादी और बसावट की भेंट चढ़ गई हैं.

देहरादून: उत्तराखंड की राजधानी देहरादून का अपना एक समृद्ध और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि रही है. यह शहर अपनी उपजाऊ भूमि के साथ ही बासमती चावल के उत्पादन के लिए भी जाना जाता रहा है. यहां की उपजाऊ भूमि का मुख्य कारण कभी यहां नहरों का एक बड़ा जाल होना था, जो आज कहीं खो सी गई हैं. कभी नहरों के नाम से जाना जाने वाला देहरादून शहर आज कंक्रीट के जंगल में तब्दील हो गया है. आज यहां हर ओर बसावट नजर आती है. जिसने इस शहर के इतिहास के साथ खूबसूरती को भी छीन लिया है.

किसी जमाने में देहरादून में रिस्पना जैसी बड़ी नदियां होती थी, लेकिन धीरे-धीरे होते आधुनिकरण ने यहां की नहरों की खूबसूरती छीन ली. विशेषज्ञों की मानें तो इसका मुख्य कारण शहर की नदियों का नाले में बदल जाना है. जिससे यहां की नहरों का अस्तित्व भी खतरे में आ गया. बढ़ती आबादी भी इन नहरों के खत्म होने के कारण हैं.

कभी दून की पहचान हुआ करती थी नहरें
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देहरादून शहर की बात करें, तो यहां पर बहने वाली प्रमुख नदियों में कालापत्थर, बीजापुर, राजपुर,जाखन, पूर्वी नहर और कलंगा शामिल हैं. हालांकि, कलंगा अभी भी मानसून में जीवित रहती है. यह शहर के बाहरी इलाके में बहती है. वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत बताते हैं कि देहरादून में नहरों की नींव 1650 के दशक में रानी कर्णावती के कार्यकाल के दौरान रखी गई थी. इसके साथ पंजाब कौर ने भी यहां पर नहरों का निर्माण करवाया था. उसके बाद 1850 में एक अंग्रेजी इंजीनियर कर्नल प्रोबी थॉमस काटली ने पूरे शहर को कवर करने के लिए पांच नहरों का विस्तार करवाया.
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रावत बताते हैं कि पलटन बाजार से बहने वाली राजपुर नहर का पानी झंडा मेला के तालाब को भरने के लिए इस्तेमाल किया जाता था. आज शहर की सबसे पुरानी नहर का अस्तित्व मात्र इतिहास बनकर रह गया है. जानकारों की मानें तो देहरादून शहर की यह नहरें शहर के परिस्थितिक तंत्र को भी मजबूत रखती थी. नहरों के पानी के कारण जमीन की नमी जहां कृषि भूमि को उपजाऊ बनाती थी. यहां के मौसम में भी ठंडक बनी रहती थी. कहा जता है कि देहरादून में नहरों का निर्माण योजना बड़ी चतुराई के साथ किया गया था. नहरों के आसपास छोटी-छोटी नलियां भी बनाई गई थी. जहां घोड़े पानी पीते थे. इसके साथ ही नहरों के लिए प्राकृतिक जल निकासी सुनिश्चित की गई थी. जिससे बरसात में कभी शहर जलमग्न नहीं होता था, लेकिन आज ये नहरें बढ़ती आबादी और बसावट की भेंट चढ़ गई हैं.

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