नई दिल्ली: देश में आजादी के बाद श्रमिकों को जागरूक बनाने के उद्देश्य से स्थापित नेशनल बोर्ड फॉर वर्कर्स एजुकेशन एंड डेवलपमेंट आज अपना 63वां स्थापना दिवस मना रहा है. 2016 में दत्तोपंत ठेंगड़ी का नाम इस बोर्ड के साथ जोड़ा गया जिसके बाद अब ये दत्तोपंत ठेंगड़ी नेशनल बोर्ड फॉर वर्कर्स एजुकेशन एंड डेवलपमेंट के नाम से जाना जाता है.
बोर्ड के कार्यों के बारे में जानकारी देते हुए महानिदेशक हर्ष वैद्य ने बताया कि यह संगठित, असंगठित और ग्रामीण क्षेत्रों के कामगारों के बीच कार्य करता है. इसके साथ-साथ बोर्ड उन्हें प्रशिक्षित और जागरूक करने का कार्य भी करता रहा है. आज देश के हर हिस्से में बोर्ड की शाखाएं हैं और लगभग सभी विषयों पर इससे जुड़े लोग श्रमिकों के बीच काम करते हैं. बदलते समय के साथ बोर्ड ने भी खुद को परिवर्तित करने का निर्णय लिया है और डिजिटल युग में श्रमिकों को डिजिटल साक्षर करने का जिम्मा उठाया है.
हर्ष वैद्य ने आगे बताया कि नये लेबर कोड के बारे में भी उन्होंने अपने शिक्षा पदाधिकारियों को प्रशिक्षण दिया है. जब भी नये श्रम कानून लागू होंगे उनके शिक्षा पदाधिकारी सभी क्षेत्रों में जा कर लोगों को इसके बारे में पूरी जानकारी देंगे. बदलते परिवेश में बोर्ड मोबाइल ऐप्प, हेल्प डेस्क और ई-एजुकेशन कैम्प्स भी आयोजित करने जा रहा है. महानिदेशक हर्ष वैद्य ने जानकारी दी कि वह जल्द ही इंदिरा गांधी नेशनल ओपन यूनिवर्सिटी के साथ एक एमओयू भी साइन करेंगे जिसके तहत श्रमिकों के लिये पत्राचार के माध्यम से कोर्स चलाए जा सकेंगे. इससे श्रमिक शिक्षा बोर्ड की पहुंच और ज्यादा लोगो तक हो सकेगी. बोर्ड फाइनेंसियल लिटरेसी, डिजिटल लिटरेसी और लेबर कोड नये विषय हैं जिसमें अब बोर्ड आगे बढ़ने वाला है.
63वें स्थापना दिवस पर आयोजित होने वाले विशेष कार्यक्रम के बारे में जानकारी देते हुए दत्तोपंत ठेंगड़ी राष्ट्रीय श्रमिक शिक्षा एवं विकास बोर्ड के अध्यक्ष विरजेश उपध्याय ने बताया कि वह पूरी प्रणाली को नई ऊर्जा के साथ फिर से शुरू करने वाले हैं. कोरोना महामारी के बाद पूरे विश्व में लोगों के सोचने का तरीका बदला है. ऐसे में बोर्ड भी अपने काम करने के तरीकों को उसके अनुसार बदल रहा है. इंडस्ट्री 4.0 के मुताबिक बदलते हुए तकनीक के साथ कोई भी एक विशेष स्किल किसी को हमेशा के लिये रोजगार दे यह संभव नहीं है. इस समस्या को देखते हुए बोर्ड ने पहल की है कि एक श्रमिक अपने कार्य जीवन में रोजगारपरक रह सके इसके लिये काम के साथ साथ शिक्षा की व्यवस्था हो. इससे श्रमिक बदलती तकनीक के साथ अपने स्किल को भी उसके अनुसार बेहतर कर सकेंगे.
विरजेश उपाध्याय ने आगे कहा कि आजादी के बाद सैकड़ो योजनाएं बनी, लेकिन देखा जाता है कि उनके बजटीय आवंटन भी खर्च नहीं हो पाते हैं. ऐसा नहीं कि लोगों को इसकी आवश्यकता नहीं है, लेकिन उन्हें जानकारी नहीं है कि क्या योजना है और कैसे उसका लाभ ले सकते हैं इसलिये बोर्ड ने यह निर्णय लिया कि वह जरूरतमंदों को सरकार की योजनाओं से जोड़ने का भी काम करेंगे. नये लेबर कोड पर बात करते हुए उपाध्याय ने कहा कि आजादी के बाद ऐसा पहली बार हुआ है कि एक लेबर कोड ऐसा आया है जो असंगठित और ग्रामीण क्षेत्र के मजदूरों को भी समाहित करता है. इसके तहत जो सुविधाएँ और अधिकार कामगारों को मिले हैं वह सब तक पहुंचे इसकी व्यवस्था भी बोर्ड करेगा. आज 63वें स्थापना दिवस पर दिल्ली में आयोजित कार्यक्रम में केंद्रीय श्रम व रोजगार मंत्री भूपेंद्र यादव और श्रम मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी भी मौजूद रहेंगे.