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काेविड-19 ने निपटने में 'डेटा' निभा सकती है अहम भूमिका

देश इस वक्त काेराेना महामारी से बुरी तरह जूझ रहा है. ऐसे में कहां किस क्षेत्र में कितने लाेग प्रभावित हैं और सरकार स्थानीय स्तर पर उन्हें कैसे मदद पहुंचा सकती है इसमें डेटा की महत्वपूर्ण भूमिका सामने आयी है.

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Published : Apr 30, 2021, 2:14 PM IST

डेटा
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हैदराबाद : देश इस वक्त काेराेना महामारी से बुरी तरह जूझ रहा है. ऐसे में एक अनुमान के मुताबिक प्रभावित लाेगाें की संख्या का पता लगाने और ऐसी स्थिति में लाेगाें की मदद में डेटा की भूमिका महत्वपूर्ण बताई गई है. इससे प्रभावित लाेगाें की वास्तिवक स्थिति के बारे में पता चलता जिससे कि समय रहते उन्हें मदद पहुंचाई जा सके.

हम सब जानते हैं कि COVID-19 ने देश के शहरों को किस तरह प्रभावित किया है, वहीं आर्थिक सुधार में शहराें की भूमिका महत्वपूर्ण हाेती है.

COVID-19 महामारी ने सूचना के अभाव में विशेष रूप से तीन क्षेत्रों में अपर्याप्त शहरी सेवा वितरण को उजागर किया है जिनमें सार्वजनिक स्वास्थ्य, परिवहन और प्रवासियाें की सुरक्षा शामिल हैं. इन्हें दूर करने के लिए, दीर्घकालिक व्यवस्थित शहर डेटा संग्रह नीतियां तैयार करना जरूरी है.

माेबेलिटी का महत्व

काेराेना-19 काे लेकर हुए लॉकडाउन के दौरान यह पता चला कि किस तरह शहर, नागरिकों की सार्वजनिक स्वास्थ्य आवश्यकताओं की पूर्ति करने में असक्षम है.

इस दाैरान अधिकारियों काे इलाके की सुविधाओं और अस्पतालाें में बेड की संख्या का बेसिक डेटा लेने में काफी समय लगा. वहीं इससे हाेने वाली माैताें और इसके फैलने काे लेकर भी स्थिति स्पष्ट नहीं थी.

समय के साथ कुछ शहर ने केस की संख्या जानने के लिए एक प्लेटफार्म तैयार किया. इसके साथ ही भौगोलिक सूचना प्रणाली (जीआईएस) से भी कंटेंमेंट जाेन और एलाेकेट रिसोसेज के बारे में पता चलता है.

नागरिक स्वयंसेवी प्रयास जैसे कि covid19india.org और गूगल मोबिलिटी जैसे आंदोलन ट्रैकर्स क्रमशः संक्रमण के मामलाें और इसकी गतिशीलता का पता लगाने के एकल स्रोत बन गए.

COVID-19 से यह स्पष्ट हाे गया कि समय पर सही डेटा का नहीं हाेना कैसे आपदा से निपटने में बाधा पहुंचाते हैं. यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि शहरी सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं काे मजबूती प्रदान करने के लिए इसकी कितनी जरूरत है. पीड़िताें की जानकारी, सेवाओं की जरूरत, मौजूदा सुविधाओं की गुणवत्ता आदि के लिए डेटा की आवश्यकता होती है. इस सिस्टम काे अल्टरनेटिव सोर्सेज और इंफाेरमेशन के रूप में भी समायाेजित किया जा सकता है. इसका काेविड 19 जैसी महामारी के दाैरान उपयाेग किया जा सकता है.

COVID-19 महामारी ने लाेगाें के परिवहन की जरूरताें काे बदला है, जैसे लाेग अब निजी वाहन जैसे मोटरसाइकिल जैसे परिवहन के साधन काे चुन रहे हैं. यहां यह महत्वपूर्ण है कि वर्तमान डेटा-संग्रह विधियों को बदल दिया जाए. कैसे अर्बन ट्रेवेल डिमांट बदल रही है इस पर नजरदारी के लिए कलेक्ट ट्रांसपोर्ट डेटा तैयार करना बहुत जरूरी है.

उदाहरण के लिए, यदि अधिकारी लाेगाें की पसंद और व्यवहार पर डेटा एकत्र कर सकते हैं, तो वे समझ पाएंगे कि COVID-19 महामारी के बाद क्या पैटर्न विकसित हुए हैं और उनमें क्या बदलाव हुए हैं. इससे अनुकूल नीतियों के साथ इस पर काम करने में सक्षम हाेंगे.

COVID-19 महामारी के दौरान प्रवासी श्रमिकों द्वारा झेली गई परेशानियां चर्चा का विषय रहीं. संकट से पहले, शहरों में प्रवासियों की वास्तविक संख्या और उनके द्वारा उपयोग की जाने वाली सेवाओं पर बहुत अधिक डेटा उपलब्ध नहीं था. इसलिए जब देश में लॉकडाउन था. एक अनुमान के मुताबिक, इनकी संख्या 2.6 से 30 मिलियन तक थी.

इस जानकारी के अभाव में संकट के समय इनके लिए स्वास्थ्य सेवाएं जैसी प्रमुख सार्वजनिक सेवा मुहैया कराने में परेशानी आई. इसके लिए सरकार के पास अभी तक 2011 की जनगणना का डेटा है.

प्रवासियाें के आंकड़ों को नियमित शहरी सर्वेक्षणों के माध्यम से एकत्र किया जाना चाहिए, जो इसकी वास्तविक स्थिति काे बताते हैं कि कितने लाेगाें की सेवाओं तक पहुंच है, वे कहां से आते हैं आदि. इससे सही डेटा उपलब्ध हाेगा जाे उन तक याेजनाओं काे पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायेगा और इससे आवास और पर्याप्त बुनियादी सरकारी योजनाओं काे लाेगाें तक पहुंचाने में सुविधा हाेगी. आने वाले समय में यह शहरों को अधिक सुलभ, आरामदायक और कमजोर आबादी काे और सुरक्षित बनाने में मदद करेगा.

अभी हाल ही में आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय द्वारा नेशनल अर्बन डिजिटल मिशन और इंडियन अर्बन डेटा एक्सचेंज जैसी याेजनाएं शुरू की गई हैं. भारत के शहरों और उनके वैश्विक समकक्षों के अनुभव से पता चलता है कि यदि शहरों को संस्थागत बनाना और मजबूत करना है, तो स्मार्ट समाधानों के उपयोग को प्राथमिकता देने और कुछ जरूरी कदम उठाये जाने की आवश्यकता है, जिनमें ये शामिल हैं.

शहर आधारित प्रौद्योगिकी प्रबंधन नीतियों के जरिए डेटा का इंटरोऑपरेबिलिटी और स्मार्ट सिटी सिस्टम को सुनिश्चित करना.

शहर और राज्य सरकारों के बीच सूचना साझा करने के लिए नए तंत्र की स्थापना के माध्यम से एजेंसियों के बीच समन्वय को मजबूत करना.

मुख्य शहर डेटा अधिकारी और शहर डेटा योगदानकर्ताओं की नियुक्ति के साथ शुरू होने वाले पर्याप्त रूप से कर्मचारी प्रौद्योगिकी और डेटा प्रबंधन संगठनों की स्थापना करें.

मूल्यांकन ढांचे को विकसित करके सेवा वितरण की निगरानी के लिए वस्तुनिष्ठ संकेतकों को अपनाएं. संपर्क-संबंधी स्मार्ट समाधानों के कार्यान्वयन के माध्यम से सार्वजनिक वितरण के लिए कई वितरण चैनलों का लाभ उठाएं. बेहतर प्रशासन के लिए शहराें का डेटा तैयार कर इसका विश्लेषण कर साझा करना महत्वपूर्ण हाेता है.

इसे भी पढ़ें : कोरोना के बढ़ते मामले को लेकर पीएम मोदी ने बुलाई कैबिनेट की बैठक

दूसरी ओर, ऐसा करने से न केवल आने वाली मुसीबताें से निपटा जा सकता है बल्कि उन्हें अपनी क्षमता विकास में भी मदद मिलेगी.

हैदराबाद : देश इस वक्त काेराेना महामारी से बुरी तरह जूझ रहा है. ऐसे में एक अनुमान के मुताबिक प्रभावित लाेगाें की संख्या का पता लगाने और ऐसी स्थिति में लाेगाें की मदद में डेटा की भूमिका महत्वपूर्ण बताई गई है. इससे प्रभावित लाेगाें की वास्तिवक स्थिति के बारे में पता चलता जिससे कि समय रहते उन्हें मदद पहुंचाई जा सके.

हम सब जानते हैं कि COVID-19 ने देश के शहरों को किस तरह प्रभावित किया है, वहीं आर्थिक सुधार में शहराें की भूमिका महत्वपूर्ण हाेती है.

COVID-19 महामारी ने सूचना के अभाव में विशेष रूप से तीन क्षेत्रों में अपर्याप्त शहरी सेवा वितरण को उजागर किया है जिनमें सार्वजनिक स्वास्थ्य, परिवहन और प्रवासियाें की सुरक्षा शामिल हैं. इन्हें दूर करने के लिए, दीर्घकालिक व्यवस्थित शहर डेटा संग्रह नीतियां तैयार करना जरूरी है.

माेबेलिटी का महत्व

काेराेना-19 काे लेकर हुए लॉकडाउन के दौरान यह पता चला कि किस तरह शहर, नागरिकों की सार्वजनिक स्वास्थ्य आवश्यकताओं की पूर्ति करने में असक्षम है.

इस दाैरान अधिकारियों काे इलाके की सुविधाओं और अस्पतालाें में बेड की संख्या का बेसिक डेटा लेने में काफी समय लगा. वहीं इससे हाेने वाली माैताें और इसके फैलने काे लेकर भी स्थिति स्पष्ट नहीं थी.

समय के साथ कुछ शहर ने केस की संख्या जानने के लिए एक प्लेटफार्म तैयार किया. इसके साथ ही भौगोलिक सूचना प्रणाली (जीआईएस) से भी कंटेंमेंट जाेन और एलाेकेट रिसोसेज के बारे में पता चलता है.

नागरिक स्वयंसेवी प्रयास जैसे कि covid19india.org और गूगल मोबिलिटी जैसे आंदोलन ट्रैकर्स क्रमशः संक्रमण के मामलाें और इसकी गतिशीलता का पता लगाने के एकल स्रोत बन गए.

COVID-19 से यह स्पष्ट हाे गया कि समय पर सही डेटा का नहीं हाेना कैसे आपदा से निपटने में बाधा पहुंचाते हैं. यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि शहरी सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं काे मजबूती प्रदान करने के लिए इसकी कितनी जरूरत है. पीड़िताें की जानकारी, सेवाओं की जरूरत, मौजूदा सुविधाओं की गुणवत्ता आदि के लिए डेटा की आवश्यकता होती है. इस सिस्टम काे अल्टरनेटिव सोर्सेज और इंफाेरमेशन के रूप में भी समायाेजित किया जा सकता है. इसका काेविड 19 जैसी महामारी के दाैरान उपयाेग किया जा सकता है.

COVID-19 महामारी ने लाेगाें के परिवहन की जरूरताें काे बदला है, जैसे लाेग अब निजी वाहन जैसे मोटरसाइकिल जैसे परिवहन के साधन काे चुन रहे हैं. यहां यह महत्वपूर्ण है कि वर्तमान डेटा-संग्रह विधियों को बदल दिया जाए. कैसे अर्बन ट्रेवेल डिमांट बदल रही है इस पर नजरदारी के लिए कलेक्ट ट्रांसपोर्ट डेटा तैयार करना बहुत जरूरी है.

उदाहरण के लिए, यदि अधिकारी लाेगाें की पसंद और व्यवहार पर डेटा एकत्र कर सकते हैं, तो वे समझ पाएंगे कि COVID-19 महामारी के बाद क्या पैटर्न विकसित हुए हैं और उनमें क्या बदलाव हुए हैं. इससे अनुकूल नीतियों के साथ इस पर काम करने में सक्षम हाेंगे.

COVID-19 महामारी के दौरान प्रवासी श्रमिकों द्वारा झेली गई परेशानियां चर्चा का विषय रहीं. संकट से पहले, शहरों में प्रवासियों की वास्तविक संख्या और उनके द्वारा उपयोग की जाने वाली सेवाओं पर बहुत अधिक डेटा उपलब्ध नहीं था. इसलिए जब देश में लॉकडाउन था. एक अनुमान के मुताबिक, इनकी संख्या 2.6 से 30 मिलियन तक थी.

इस जानकारी के अभाव में संकट के समय इनके लिए स्वास्थ्य सेवाएं जैसी प्रमुख सार्वजनिक सेवा मुहैया कराने में परेशानी आई. इसके लिए सरकार के पास अभी तक 2011 की जनगणना का डेटा है.

प्रवासियाें के आंकड़ों को नियमित शहरी सर्वेक्षणों के माध्यम से एकत्र किया जाना चाहिए, जो इसकी वास्तविक स्थिति काे बताते हैं कि कितने लाेगाें की सेवाओं तक पहुंच है, वे कहां से आते हैं आदि. इससे सही डेटा उपलब्ध हाेगा जाे उन तक याेजनाओं काे पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायेगा और इससे आवास और पर्याप्त बुनियादी सरकारी योजनाओं काे लाेगाें तक पहुंचाने में सुविधा हाेगी. आने वाले समय में यह शहरों को अधिक सुलभ, आरामदायक और कमजोर आबादी काे और सुरक्षित बनाने में मदद करेगा.

अभी हाल ही में आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय द्वारा नेशनल अर्बन डिजिटल मिशन और इंडियन अर्बन डेटा एक्सचेंज जैसी याेजनाएं शुरू की गई हैं. भारत के शहरों और उनके वैश्विक समकक्षों के अनुभव से पता चलता है कि यदि शहरों को संस्थागत बनाना और मजबूत करना है, तो स्मार्ट समाधानों के उपयोग को प्राथमिकता देने और कुछ जरूरी कदम उठाये जाने की आवश्यकता है, जिनमें ये शामिल हैं.

शहर आधारित प्रौद्योगिकी प्रबंधन नीतियों के जरिए डेटा का इंटरोऑपरेबिलिटी और स्मार्ट सिटी सिस्टम को सुनिश्चित करना.

शहर और राज्य सरकारों के बीच सूचना साझा करने के लिए नए तंत्र की स्थापना के माध्यम से एजेंसियों के बीच समन्वय को मजबूत करना.

मुख्य शहर डेटा अधिकारी और शहर डेटा योगदानकर्ताओं की नियुक्ति के साथ शुरू होने वाले पर्याप्त रूप से कर्मचारी प्रौद्योगिकी और डेटा प्रबंधन संगठनों की स्थापना करें.

मूल्यांकन ढांचे को विकसित करके सेवा वितरण की निगरानी के लिए वस्तुनिष्ठ संकेतकों को अपनाएं. संपर्क-संबंधी स्मार्ट समाधानों के कार्यान्वयन के माध्यम से सार्वजनिक वितरण के लिए कई वितरण चैनलों का लाभ उठाएं. बेहतर प्रशासन के लिए शहराें का डेटा तैयार कर इसका विश्लेषण कर साझा करना महत्वपूर्ण हाेता है.

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दूसरी ओर, ऐसा करने से न केवल आने वाली मुसीबताें से निपटा जा सकता है बल्कि उन्हें अपनी क्षमता विकास में भी मदद मिलेगी.

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