ETV Bharat / bharat

MP के दमोह में तालाब किनारे है हर जाति के लिए अलग-अलग घाट, लोगों का दावा- जातिवाद नहीं ये है परंपरा - Damaoh Hinauti Village 4 castes on pond

MP के दमोह के हिनौती गांव में भले ही छुआछूत और जातिगत भेदभाव जड़ जमाए बैठा है, लेकिन ग्रामीण इस बात को मानने से इंकार कर रहे हैं. दरअसल गांव के एक ही तालाब पर 4 अलग-अलग वर्णों के घाट बने हैं, लेकिन लोगों का दावा है कि, यहां छुआछूत नहीं है, बल्कि सदियों से ऐसे ही अपनी ही जाति के घाटों का उपयोग करने की परंपरा है.

damoh one pond 4 ghats
एमपी के गांव में जाति के हिसाब से घाटों का बंटवारा
author img

By

Published : Jan 9, 2023, 10:30 PM IST

Updated : Jan 10, 2023, 7:44 PM IST

एमपी के गांव में जाति के हिसाब से घाटों का बंटवारा

दमोह। कहने को आज हम 21वीं सदीं में जीवन यापन कर रहे हैं, लेकिन आज भी जातिवाद और छुआछूत जैसी कुरीतियां हमारे साथ चल रही हैं. इसका एक उदाहण दमोह के हनौती से सामने आया है. दरअसल जिला मुख्यालय से 10 किलोमीटर दूर हिनौती पिपरिया पंचायत के हिनौती गांव में लोग जातिवाद और छुआछूत के चलते 1 ही तालाब के 4 अलग-अलग घाटों से पानी भर रहे हैं. ग्रामीणों का कहना है कि सदियों पहले हमारे पूर्वजों ने यह व्यवस्था बनाई थी, उन्हीं का पालन कर हम भी आज ऐसे ही पानी का उपयोग करते हैं. खास बात ये है कि गांव के लोग यहां तक कि सरपंच भी जातिवाद और छुआछूत जैसी बातों को सिरे से नकार रहे हैं.

लोगों के लिए छुआछूत, हमारे लिए परंपरा: 2020 की आबादी वाले इस गांव में एक तालाब बना हुआ है, यही लोगों के निस्तार एवं पानी का एकमात्र बड़ा माध्यम है. ढाई एकड़ में फैले इस तालाब पर 4 घाट हैं. जो वर्ण व्यवस्था के हिसाब से बने हैं, लेकिन पंचायत के लोग इसे ना तो वर्ण व्यवस्था मानते हैं और ना ही छुआछूत. इससे उलट वे इसे पूर्वजों द्वारा बनाई गई परंपरा बताते हैं. ग्रामीणों का कहना है कि, "कई पीढ़ियों पहले लोगों ने अपनी-अपनी जातियों एवं सुविधा के हिसाब से तालाब पर घाट बांट लिए थे, अब उन्हीं घाटों से संबंधित जाति के लोग पानी लेते हैं. लोग इसे जातिवाद और छुआछूत का नाम देते हैं, लेकिन हम इसे एक परंपरा मानते हैं."

नहीं है छुआछूत, अपनी मर्जी से भरते हैं पानी: यहां की सरपंच नीताबाई अहिरवार कहती हैं कि, "मेरी शादी को 27 साल हो गए हैं, जब से मैं यहां आई हूं लोगों को उनके बने हुए घाटों से ही पानी भरता देख रही हूं. तालाब पर ठाकुर, कोटवार, अहिरवार, बंसल आदि जातियों के लिए अलग-अलग घाट बने हैं." यह पूछने पर क्या इस गांव में भेदभाव या ऊंच-नीच है? इस पर वह कहती हैं कि "बुजुर्गों ने इस परंपरा को बनाया है, यह कोई जोर जबरदस्ती की बात नहीं है. ना ही कोई किसी को डराता धमकाता है, सब लोग स्वेच्छा से एक ही तालाब के अलग-अलग घाटों से पानी भरते हैं."

MP Betul News : महात्मा गांधी ने समाज में फैली कुरीतियों को दूर किया, छुआछूत को जड़ से खत्म कराया

कैसे हुआ जाति के हिसाब से बंटवारा: गांव के बाशिंदों का कहना है कि उनके पुरखों ने सदियों पहले ही हनौती में घाटों का बंटवारा कर दिया था. सारे घाट एक लाइन से बनाए गए हैं और लोग इनका आज भी समाज के बनाए नियमों के मुताबिक ही करते हैं.

  1. पहला घाट ठाकुर समुदाय को दिया गया है. इसे लोधी, राजपूत, आदिवासी समाज के लोग इस्तेमाल में लाते हैं. अपने कपड़े से लेकर बाकी के काम पहले घाट पर ही करते हैं.
  2. दूसरा घाट प्रजापति समुदाय का है. दावा है कि इस समुदाय और इसके लोगों ने कभी भी किसी दूसरी जाति के घाट का इस्तेमाल नहीं किया. इनकी आबादी भी काफी कम है.
  3. बंसल और अहिरवार समुदाय के घाट अगल-बगल बने हैं. इनमें दूरी काफी कम है, बावजूद इसके पुरखों के बनाए नियमों का काफी कड़ाई से ये पालन करते हैं. युवा भी नियम नहीं तोड़ते.

हीनौती की आबादी कितनी है: गांव करीब 2020 की आबादी का है और इसमें सबसे ज्यादा ठाकुर समुदाय के लोग हैं. इसके बाद बाकी की जाति के लोग हैं. पटेल, यादव, ब्राह्मण समुदाय के लोग यहां नहीं रहते, मगर कभी कभार किसी काम से आते भी हैं तो वो तालाब के नियमों को नहीं तोड़ते.

  1. ठाकुर समुदाय के 1250 (लोधी, राजपूत, आदिवासी शामिल)
  2. अहिरवार - 450
  3. बंसल - 250
  4. प्रजापति - 25
  5. आदिवासी समुदाय के लोगों की आबादी 45

हैंडपंप पर खत्म हो जातीं हैं कुरीतियां: इसी तरह गांव के ही देवीलाल आदिवासी कहते हैं कि, "जो परंपरा बुजुर्गों ने बनाई है उसको सभी लोग मानते हैं, कोई जोर जबरदस्ती नहीं है. तालाब पर जैसे जिसके घाट बने हैं, वह उसी घाट से पानी भरता है. इतना जरूर है कि तालाब सूख जाने के बाद लोगों को पानी की समस्या होती है, तब वह हैंडपंप का सहारा लेते हैं."

ऐसे भी मिटता है भेदभाव: गांव के नौजवान रूपसिंह लोधी कहते हैं कि, "गांव में पानी के लिए टंकी बनी हुई है, लेकिन वह भी क्षतिग्रस्त है. आस-पास के गांव भूरी, बिजोरी, पिपरिया आदि गांव में पानी के लिए पाइप लाइन डल चुकी हैं, वहां पर पानी की सप्लाई भी हो रही है, लेकिन हमारे यहां अभी तक पानी की कोई सुविधा नहीं है. जब तालाब सूख जाता है तो लोग नल से पानी भरते हैं. नल से पानी भरने में भी किसी तरह का कोई भेदभाव नहीं है."

क्या कहते हैं अधिकारी: जातिवाद के इन अनूठे घाटों को लेकर Etv Bharat संवाददाता शंकर दूबे ने जनपद पंचायत CEO विनोद जैन से बात कि तो उनका कहना है कि हिनौती पंचायत से इस संबंध में जानकारी मांगी गई है. नोटिस भी जारी किया गया है. जानकारी मिलने के बाद और संबंधित पक्ष से बातचीत के बाद एक्शन लिया जाएगा. वहीं पंचायत सचिव राखी जैन का कहना है कि, मेरी डेढ़ साल पहले पोस्टिंग हुई है, मगर यहां कभी भी जातिवाद या छुआछूत जैसे मामले सामने नहीं आए. किसी किस्म के विवाद की जानकारी भी नहीं मिली. किसी पक्ष ने इस दौरान कोई मौखिक शिकायत भी नहीं की. मगर अब इस मामले के समाने आने के बाद खुद भी जाकर देखेंगी.

एमपी के गांव में जाति के हिसाब से घाटों का बंटवारा

दमोह। कहने को आज हम 21वीं सदीं में जीवन यापन कर रहे हैं, लेकिन आज भी जातिवाद और छुआछूत जैसी कुरीतियां हमारे साथ चल रही हैं. इसका एक उदाहण दमोह के हनौती से सामने आया है. दरअसल जिला मुख्यालय से 10 किलोमीटर दूर हिनौती पिपरिया पंचायत के हिनौती गांव में लोग जातिवाद और छुआछूत के चलते 1 ही तालाब के 4 अलग-अलग घाटों से पानी भर रहे हैं. ग्रामीणों का कहना है कि सदियों पहले हमारे पूर्वजों ने यह व्यवस्था बनाई थी, उन्हीं का पालन कर हम भी आज ऐसे ही पानी का उपयोग करते हैं. खास बात ये है कि गांव के लोग यहां तक कि सरपंच भी जातिवाद और छुआछूत जैसी बातों को सिरे से नकार रहे हैं.

लोगों के लिए छुआछूत, हमारे लिए परंपरा: 2020 की आबादी वाले इस गांव में एक तालाब बना हुआ है, यही लोगों के निस्तार एवं पानी का एकमात्र बड़ा माध्यम है. ढाई एकड़ में फैले इस तालाब पर 4 घाट हैं. जो वर्ण व्यवस्था के हिसाब से बने हैं, लेकिन पंचायत के लोग इसे ना तो वर्ण व्यवस्था मानते हैं और ना ही छुआछूत. इससे उलट वे इसे पूर्वजों द्वारा बनाई गई परंपरा बताते हैं. ग्रामीणों का कहना है कि, "कई पीढ़ियों पहले लोगों ने अपनी-अपनी जातियों एवं सुविधा के हिसाब से तालाब पर घाट बांट लिए थे, अब उन्हीं घाटों से संबंधित जाति के लोग पानी लेते हैं. लोग इसे जातिवाद और छुआछूत का नाम देते हैं, लेकिन हम इसे एक परंपरा मानते हैं."

नहीं है छुआछूत, अपनी मर्जी से भरते हैं पानी: यहां की सरपंच नीताबाई अहिरवार कहती हैं कि, "मेरी शादी को 27 साल हो गए हैं, जब से मैं यहां आई हूं लोगों को उनके बने हुए घाटों से ही पानी भरता देख रही हूं. तालाब पर ठाकुर, कोटवार, अहिरवार, बंसल आदि जातियों के लिए अलग-अलग घाट बने हैं." यह पूछने पर क्या इस गांव में भेदभाव या ऊंच-नीच है? इस पर वह कहती हैं कि "बुजुर्गों ने इस परंपरा को बनाया है, यह कोई जोर जबरदस्ती की बात नहीं है. ना ही कोई किसी को डराता धमकाता है, सब लोग स्वेच्छा से एक ही तालाब के अलग-अलग घाटों से पानी भरते हैं."

MP Betul News : महात्मा गांधी ने समाज में फैली कुरीतियों को दूर किया, छुआछूत को जड़ से खत्म कराया

कैसे हुआ जाति के हिसाब से बंटवारा: गांव के बाशिंदों का कहना है कि उनके पुरखों ने सदियों पहले ही हनौती में घाटों का बंटवारा कर दिया था. सारे घाट एक लाइन से बनाए गए हैं और लोग इनका आज भी समाज के बनाए नियमों के मुताबिक ही करते हैं.

  1. पहला घाट ठाकुर समुदाय को दिया गया है. इसे लोधी, राजपूत, आदिवासी समाज के लोग इस्तेमाल में लाते हैं. अपने कपड़े से लेकर बाकी के काम पहले घाट पर ही करते हैं.
  2. दूसरा घाट प्रजापति समुदाय का है. दावा है कि इस समुदाय और इसके लोगों ने कभी भी किसी दूसरी जाति के घाट का इस्तेमाल नहीं किया. इनकी आबादी भी काफी कम है.
  3. बंसल और अहिरवार समुदाय के घाट अगल-बगल बने हैं. इनमें दूरी काफी कम है, बावजूद इसके पुरखों के बनाए नियमों का काफी कड़ाई से ये पालन करते हैं. युवा भी नियम नहीं तोड़ते.

हीनौती की आबादी कितनी है: गांव करीब 2020 की आबादी का है और इसमें सबसे ज्यादा ठाकुर समुदाय के लोग हैं. इसके बाद बाकी की जाति के लोग हैं. पटेल, यादव, ब्राह्मण समुदाय के लोग यहां नहीं रहते, मगर कभी कभार किसी काम से आते भी हैं तो वो तालाब के नियमों को नहीं तोड़ते.

  1. ठाकुर समुदाय के 1250 (लोधी, राजपूत, आदिवासी शामिल)
  2. अहिरवार - 450
  3. बंसल - 250
  4. प्रजापति - 25
  5. आदिवासी समुदाय के लोगों की आबादी 45

हैंडपंप पर खत्म हो जातीं हैं कुरीतियां: इसी तरह गांव के ही देवीलाल आदिवासी कहते हैं कि, "जो परंपरा बुजुर्गों ने बनाई है उसको सभी लोग मानते हैं, कोई जोर जबरदस्ती नहीं है. तालाब पर जैसे जिसके घाट बने हैं, वह उसी घाट से पानी भरता है. इतना जरूर है कि तालाब सूख जाने के बाद लोगों को पानी की समस्या होती है, तब वह हैंडपंप का सहारा लेते हैं."

ऐसे भी मिटता है भेदभाव: गांव के नौजवान रूपसिंह लोधी कहते हैं कि, "गांव में पानी के लिए टंकी बनी हुई है, लेकिन वह भी क्षतिग्रस्त है. आस-पास के गांव भूरी, बिजोरी, पिपरिया आदि गांव में पानी के लिए पाइप लाइन डल चुकी हैं, वहां पर पानी की सप्लाई भी हो रही है, लेकिन हमारे यहां अभी तक पानी की कोई सुविधा नहीं है. जब तालाब सूख जाता है तो लोग नल से पानी भरते हैं. नल से पानी भरने में भी किसी तरह का कोई भेदभाव नहीं है."

क्या कहते हैं अधिकारी: जातिवाद के इन अनूठे घाटों को लेकर Etv Bharat संवाददाता शंकर दूबे ने जनपद पंचायत CEO विनोद जैन से बात कि तो उनका कहना है कि हिनौती पंचायत से इस संबंध में जानकारी मांगी गई है. नोटिस भी जारी किया गया है. जानकारी मिलने के बाद और संबंधित पक्ष से बातचीत के बाद एक्शन लिया जाएगा. वहीं पंचायत सचिव राखी जैन का कहना है कि, मेरी डेढ़ साल पहले पोस्टिंग हुई है, मगर यहां कभी भी जातिवाद या छुआछूत जैसे मामले सामने नहीं आए. किसी किस्म के विवाद की जानकारी भी नहीं मिली. किसी पक्ष ने इस दौरान कोई मौखिक शिकायत भी नहीं की. मगर अब इस मामले के समाने आने के बाद खुद भी जाकर देखेंगी.

Last Updated : Jan 10, 2023, 7:44 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.