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विश्व स्वास्थ्य संगठन के दावों से मेल नहीं खा रहा यूपी सरकार का कोविड टेस्टिंग डेटा

उत्तर प्रदेश सरकार ने हाल ही में ग्रामीण क्षेत्रों के लिए पांच दिनों तक टेस्टिंग, ट्रीटमेंट और कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग अभियान चलाया था. उसके बाद राज्य सरकार ने जो आंकड़े जारी किए, वे ग्राउंड रिपोर्ट से बिल्कुल भी मेल नहीं खाते. ईटीवी भारत की टीम ने इसकी पुष्टि करने के लिए कुछ क्षेत्रों का दौरा किया. वहां के ग्रामीणों से बातचीत की. संबंधित अधिकारियों से भी जानकारी जुटाई.

यूपी सरकार का कोविड टेस्टिंग डेटा
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Published : May 18, 2021, 8:01 AM IST

Updated : May 18, 2021, 1:31 PM IST

हैदराबाद/लखनऊ: उत्तर प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में कोरोना पर रोकथाम लगाने के लिए हाल ही में प्रदेश की योगी सरकार ने पांच दिनों के लिए टेस्टिंग, ट्रीटमेंट और कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग अभियान चलाया था. इसका उल्लेख विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपनी रिपोर्ट में भी किया है. रिपोर्ट में प्रकाशित आंकड़ों और ईटीवी भारत की ग्राउंड टीम ने इसका सूक्ष्म विश्लेषण किया. इस विश्लेषण में चौंकाने वाले परिणाम सामने आए. सरकार के दावे हकीकत से ठीक उलट पाए गए हैं.

यूपी सरकार का कोविड टेस्टिंग डेटा

बता दें कि गंगा नदी में बहती लाशों की वजह से उत्तर प्रदेश अंतरराष्ट्रीय मीडिया की सुर्खियों में छाया रहा.

पांच दिनों तक चले टेस्टिंग कैंपेन को विश्व स्वास्थ्य संगठन का समर्थन हासिल था. 75 जिलों में 97,941 गांवों को कवर करने की योजना थी, लेकिन जमीनी हकीकत की बात करें तो टेस्टिंग की संख्या उतनी नहीं बढ़ी, जितने दावे किए जा रहे थे. ये आंकड़े कोविड19इंडियाडॉटओआरजी पर उपलब्ध हैं. हमारी टीम ने ग्रामीणों, स्वास्थ्यकर्मियों से भी इस विषय पर बातचीत की.

बता दें, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने उत्तर प्रदेश गोइंग द लास्ट माइल टू स्टॉप कोविड-19 के नाम से एक रिपोर्ट भी प्रकाशित की है. इसमें बताया गया कि कुल 1,41,610 टीमों को जमीनी हकीकत को जानने के लिए जमीन पर उतारा गया था. स्वास्थ्य विभाग के 21,242 सुपरवाइजरों को इस कार्य में लगाया गया था.

एजेंसी ने सात मई को अपनी वेबसाइट में बताया है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने यूपी सरकार के प्रशिक्षण और माइक्रो प्लानिंग का समर्थन किया है. हमारे अधिकारी निगरानी करने के लिए जमीन पर उतर चुके हैं. वे सरकार के साथ रीयल टाइम डेटा साझा कर रहे हैं ताकि गुणवत्ता बरकरार रहे और सुधार हेतु कदम उठते रहें.

पहले दिन विश्व स्वास्थ्य संगठन के फील्ड अधिकारियों ने 2000 सरकारी टीम पर निगरानी रखी थी. उनके अनुसार कम से कम एक लाख घरों तक पहुंच सुनिश्चित की गई.

लेकिन इसके ठीक विपरीत कोविड19इंडियाडॉटओरजी के मुताबिक आंकड़ों में कोई बढ़ोतरी दर्ज नहीं की गई. पांच मई को इस अभियान की शुरुआत हुई थी.

हकीकत तो यह है कि मई की शुरुआत में इससे अधिक जांच किए जा रहे थे.

कोविड19इंडियाडॉटओरजी के अनुसार एक मई को यूपी ने 266619 टेस्टिंग किए थे. दो मई को 297385, तीन मई को 229613 और चार मई को 208564 टेस्टिंग किए गए.

अगर 141610 टीम ने एक दिन में कम से कम दो टेस्ट भी कर लिए होते, तो 283220 टेस्टिंग हर दिन हो सकते थे. यानी आप कह सकते हैं कि 230000 टेस्टिंग से बढ़कर 510000 टेस्टिंग संभव था.

कोविड19इंडियाडॉटओरजी पर उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक पांच मई को यूपी ने 232038 टेस्ट किए. अगले चार दिनों तक यानी छह मई को 226112, सात मई को 241403, आठ मई को 224529 और नौ मई को 229595 टेस्टिंग की.

पांच मई से नौ मई के बीच यूपी ने 1152000 टेस्टिंग की. जबकि इस कैंपेन से पहले हर दिन 282000 टेस्टिंग हो रही थी.

अपनी रिपोर्ट में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा कि उनकी एक निगरानी टीम में दो सदस्य थे. वे गांवों में घर-घर गए. रैपिट एंटीजन टेस्ट किट उनके पास था. पॉजिटिव पाए जाने पर लोगों को तुरंत ही आइसोलेशन की सलाह दी जाती थी. इलाज के लिए उन्हें मेडिकल किट दिया जाता था.

ईटीवी भारत की ग्राउंड रिपोर्टिंग

विश्व स्वास्थ्य संगठन की प्रकाशित रिपोर्ट के बाद हमारे संवाददाताओं ने ग्रामीणों, स्वास्थ्यकर्मियों और संबंधित अधिकारियों से बातचीत की. एजेंसी ने अपनी रिपोर्ट में बाराबंकी जिले के सिपहिया गांव की एक फोटो प्रकाशित की. हमारी टीम वहां पर भी पहुंची.

बाराबंकी पुलिस ने विश्व स्वास्थ्य संगठन की टीम और स्वास्थ्य अधिकारियों के पहुंचने का सत्यापन किया. हमारी टीम ने पाया कि टीम का अधिक ध्यान टेस्टिंग की बजाए जागरूकता अभियान फैलाने पर केंद्रित था.

सुमेरी लाल नाम के एक ग्रामीण ने बताया कि मुख्य चिकित्सा अधिकारी, जिला मजिस्ट्रेट यहां पर पहुंचे थे. उन्होंने पूछा कि किसी को कफ, फीवर या ठंड तो नहीं लग रही है. कुछ घरों में वे गए, लेकिन किसी की टेस्टिंग नहीं की गई.

सिपहिया गांव की एक आशा वर्कर नीलम ने बताया कि पांच दिवसीय अभियान के तहत स्थानीय प्राथमिक विद्यालय में स्वास्थ्य शिविर लगाया गया था. उसने बताया कि जब परीक्षण आयोजित करना होता है तो उससे पहले हमें एक सूचना दी जाती है. उसके बाद हम ग्रामीणों को बुलाते हैं और जांच के लिए ले जाते हैं.

वहीं, जब जिले के दीवान सामुदायिक स्वास्थ्य देखभाल केंद्र के अधीक्षक कैलाश शास्त्री से बात की गई तो उन्होंने जानकारी दी कि आशा कार्यकर्ताओं ने जागरूकता पैदा की है इसलिए अब लोग वैक्सीन सेंटर पर आने लगे हैं. इससे पहले वे नहीं आते थे. हमारी टीम लगातार मॉनिटरिंग कर रही है. उन्होंने कहा कि सिपहिया गांव में 150 लोगों ने सैंपल दिए हैं, जिनमें से सिर्फ एक व्यक्ति संक्रमित पाया गया. बाकी कोई भी संक्रमित नहीं मिला.

वहीं, जब हमारी टीम ने गाजीपुर जिले के कासिमाबाद ब्लॉक के भैंसदा गांव का दौरा किया तो यहां चौंकाने वाली बात सामने आई. यहां के ग्रामीणों ने बताया कि पिछले साल से अभी तक स्वास्थ्य विभाग की किसी भी टीम ने गांव का दौरा नहीं किया है. गांव के हालत बहुत खराब हैं. उन्होंने कहा कि गांव के करीब हर घर में लोग बीमार हैं.

इसी गांव के रहने वाले गुन्नू यादव ने बताया कि वह अपने परिवार की सुरक्षा को लेकर बेहद चिंतित हैं क्योंकि गंगा नदी में सैकड़ों शवों को बहाया गया है, जो हमारे गांव से होकर बहती है.

यादव ने हमारी टीम को यह भी बताया कि गांव में कई लोग संक्रमित हैं. यह जानने के बाद भी स्वास्थ्य विभाग की किसी भी टीम ने यहां का दौरा नहीं किया है. चार से पांच दिनों के भीतर इस गांव में 10 से 12 लोगों की मौत भी हुई है.

सहायक मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. उमेश कुमार ने इस मसले पर कहा कि सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ के निर्देश के निर्देश ही चलाया गया था. स्वास्थ्य विभाग मोबाइल टीमों के जरिए सर्वे कर रहा है. ये सभी टीमें गांवों में एंटीजन टेस्ट कर रही हैं.

वहीं, बस्ती जिले के दुबोलिया प्रखंड के बक्सर और पेठिया लश्करी गांव के एक ग्रामीण ने बताया कि यहां डब्ल्यूएचओ की किसी भी गतिविधि की जानकारी नहीं है. उसने कहा कि मुझे याद नहीं पड़ता कि मेरे गांव में एक भी मेडिकल टीम आई हो. हालांकि, एक अन्य ग्रामीण ने कहा कि विभाग की एक स्वास्थ्य टीम ने बीमार महिला की मदद की है.

इसी गांव के एक निवासी राम जियावां ने कहा कि एक महिला की गंभीर हालत के चलते स्वास्थ्य विभाग की एक टीम गांव में आई थी. टीम उसे एम्बुलेंस से अस्पताल ले गई. हकीकत जानने के लिए जब ईटीवी भारत ने पेठिया गांव में डब्ल्यूएचओ के जिला प्रभारी स्नेहल परमार से संपर्क किया तो उन्होंने कहा कि हमें अभियान के बारे में कोई भी जानकारी देने की अनुमति नहीं है. उन्होंने कहा कि मुझे पता नहीं कि परीक्षण के लिए वैन कौन चला रहा है.

इसके बाद जिले के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. अनूप कुमार श्रीवास्तव ने ईटीवी भारत को बताया कि गांवों को सेनेटाइज किया जाता है और मोबाइल इकाइयों द्वारा कोविड-19 परीक्षण भी किया गया है. जहां कहीं से भी कोरोना के मामले सामने आ रहे हैं, वहां के लोगों को जागरुक और कंटेनमेंट जोन बनाकर मरीजों का इलाज किया जा रहा है.

सहारनपुर जिले के बनिखेड़ा गांव निवासी सतीश कुमार ने कहा कि स्वास्थ्य विभाग और डब्ल्यूएचओ की टीम यहां नहीं आई. किसी भी तरह का कोई सैनिटाइजेशन नहीं हुआ है. गांव साफ नहीं हैं. अब हमें भगवान पर ही भरोसा है. यहां के दूसरे ग्रामीण यशपाल सिंह ने कहा कि मेरा गांव सहारनपुर मुख्यालय के पास है. गांव में लोगों को बुखार और सर्दी है. डब्ल्यूएचओ या स्वास्थ्य विभाग द्वारा कोई दवा वितरित नहीं की जा रही है.

ईटीवी भारत के सवालों पर डब्ल्यूएचओ ने ईमेल से जवाब देते हुए कहा कि देशभर में निगरानी करना हमारे प्रमुख कार्यों में से एक है. उन्होंने कहा कि संगठन के पास कई वर्षों से उत्तर प्रदेश में चिकित्सा अधिकारियों और फील्ड मॉनिटरिंग की एक बड़ी टीम काम कर रही है.

आगे जवाब देते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा कि पोलियो उन्मूलन कार्यक्रम का समर्थन करने के लिए टीम का गठन किया गया था. जो घर-घर जाकर ऐसे बच्चों की पहचान करती है, जो टीकाकरण से चूके गए थे. आगे कहा गया कि यह पहल सर्वोत्तम प्रथाओं में से एक है. नियमित टीकाकरण और अब महामारी में भी हमारी टीम सक्रिय है. यह पहल पिछले साल उत्तर प्रदेश में दो चरणों में लागू की गई थी और अब इसे दोहराया जा रहा है.

हैदराबाद/लखनऊ: उत्तर प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में कोरोना पर रोकथाम लगाने के लिए हाल ही में प्रदेश की योगी सरकार ने पांच दिनों के लिए टेस्टिंग, ट्रीटमेंट और कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग अभियान चलाया था. इसका उल्लेख विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपनी रिपोर्ट में भी किया है. रिपोर्ट में प्रकाशित आंकड़ों और ईटीवी भारत की ग्राउंड टीम ने इसका सूक्ष्म विश्लेषण किया. इस विश्लेषण में चौंकाने वाले परिणाम सामने आए. सरकार के दावे हकीकत से ठीक उलट पाए गए हैं.

यूपी सरकार का कोविड टेस्टिंग डेटा

बता दें कि गंगा नदी में बहती लाशों की वजह से उत्तर प्रदेश अंतरराष्ट्रीय मीडिया की सुर्खियों में छाया रहा.

पांच दिनों तक चले टेस्टिंग कैंपेन को विश्व स्वास्थ्य संगठन का समर्थन हासिल था. 75 जिलों में 97,941 गांवों को कवर करने की योजना थी, लेकिन जमीनी हकीकत की बात करें तो टेस्टिंग की संख्या उतनी नहीं बढ़ी, जितने दावे किए जा रहे थे. ये आंकड़े कोविड19इंडियाडॉटओआरजी पर उपलब्ध हैं. हमारी टीम ने ग्रामीणों, स्वास्थ्यकर्मियों से भी इस विषय पर बातचीत की.

बता दें, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने उत्तर प्रदेश गोइंग द लास्ट माइल टू स्टॉप कोविड-19 के नाम से एक रिपोर्ट भी प्रकाशित की है. इसमें बताया गया कि कुल 1,41,610 टीमों को जमीनी हकीकत को जानने के लिए जमीन पर उतारा गया था. स्वास्थ्य विभाग के 21,242 सुपरवाइजरों को इस कार्य में लगाया गया था.

एजेंसी ने सात मई को अपनी वेबसाइट में बताया है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने यूपी सरकार के प्रशिक्षण और माइक्रो प्लानिंग का समर्थन किया है. हमारे अधिकारी निगरानी करने के लिए जमीन पर उतर चुके हैं. वे सरकार के साथ रीयल टाइम डेटा साझा कर रहे हैं ताकि गुणवत्ता बरकरार रहे और सुधार हेतु कदम उठते रहें.

पहले दिन विश्व स्वास्थ्य संगठन के फील्ड अधिकारियों ने 2000 सरकारी टीम पर निगरानी रखी थी. उनके अनुसार कम से कम एक लाख घरों तक पहुंच सुनिश्चित की गई.

लेकिन इसके ठीक विपरीत कोविड19इंडियाडॉटओरजी के मुताबिक आंकड़ों में कोई बढ़ोतरी दर्ज नहीं की गई. पांच मई को इस अभियान की शुरुआत हुई थी.

हकीकत तो यह है कि मई की शुरुआत में इससे अधिक जांच किए जा रहे थे.

कोविड19इंडियाडॉटओरजी के अनुसार एक मई को यूपी ने 266619 टेस्टिंग किए थे. दो मई को 297385, तीन मई को 229613 और चार मई को 208564 टेस्टिंग किए गए.

अगर 141610 टीम ने एक दिन में कम से कम दो टेस्ट भी कर लिए होते, तो 283220 टेस्टिंग हर दिन हो सकते थे. यानी आप कह सकते हैं कि 230000 टेस्टिंग से बढ़कर 510000 टेस्टिंग संभव था.

कोविड19इंडियाडॉटओरजी पर उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक पांच मई को यूपी ने 232038 टेस्ट किए. अगले चार दिनों तक यानी छह मई को 226112, सात मई को 241403, आठ मई को 224529 और नौ मई को 229595 टेस्टिंग की.

पांच मई से नौ मई के बीच यूपी ने 1152000 टेस्टिंग की. जबकि इस कैंपेन से पहले हर दिन 282000 टेस्टिंग हो रही थी.

अपनी रिपोर्ट में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा कि उनकी एक निगरानी टीम में दो सदस्य थे. वे गांवों में घर-घर गए. रैपिट एंटीजन टेस्ट किट उनके पास था. पॉजिटिव पाए जाने पर लोगों को तुरंत ही आइसोलेशन की सलाह दी जाती थी. इलाज के लिए उन्हें मेडिकल किट दिया जाता था.

ईटीवी भारत की ग्राउंड रिपोर्टिंग

विश्व स्वास्थ्य संगठन की प्रकाशित रिपोर्ट के बाद हमारे संवाददाताओं ने ग्रामीणों, स्वास्थ्यकर्मियों और संबंधित अधिकारियों से बातचीत की. एजेंसी ने अपनी रिपोर्ट में बाराबंकी जिले के सिपहिया गांव की एक फोटो प्रकाशित की. हमारी टीम वहां पर भी पहुंची.

बाराबंकी पुलिस ने विश्व स्वास्थ्य संगठन की टीम और स्वास्थ्य अधिकारियों के पहुंचने का सत्यापन किया. हमारी टीम ने पाया कि टीम का अधिक ध्यान टेस्टिंग की बजाए जागरूकता अभियान फैलाने पर केंद्रित था.

सुमेरी लाल नाम के एक ग्रामीण ने बताया कि मुख्य चिकित्सा अधिकारी, जिला मजिस्ट्रेट यहां पर पहुंचे थे. उन्होंने पूछा कि किसी को कफ, फीवर या ठंड तो नहीं लग रही है. कुछ घरों में वे गए, लेकिन किसी की टेस्टिंग नहीं की गई.

सिपहिया गांव की एक आशा वर्कर नीलम ने बताया कि पांच दिवसीय अभियान के तहत स्थानीय प्राथमिक विद्यालय में स्वास्थ्य शिविर लगाया गया था. उसने बताया कि जब परीक्षण आयोजित करना होता है तो उससे पहले हमें एक सूचना दी जाती है. उसके बाद हम ग्रामीणों को बुलाते हैं और जांच के लिए ले जाते हैं.

वहीं, जब जिले के दीवान सामुदायिक स्वास्थ्य देखभाल केंद्र के अधीक्षक कैलाश शास्त्री से बात की गई तो उन्होंने जानकारी दी कि आशा कार्यकर्ताओं ने जागरूकता पैदा की है इसलिए अब लोग वैक्सीन सेंटर पर आने लगे हैं. इससे पहले वे नहीं आते थे. हमारी टीम लगातार मॉनिटरिंग कर रही है. उन्होंने कहा कि सिपहिया गांव में 150 लोगों ने सैंपल दिए हैं, जिनमें से सिर्फ एक व्यक्ति संक्रमित पाया गया. बाकी कोई भी संक्रमित नहीं मिला.

वहीं, जब हमारी टीम ने गाजीपुर जिले के कासिमाबाद ब्लॉक के भैंसदा गांव का दौरा किया तो यहां चौंकाने वाली बात सामने आई. यहां के ग्रामीणों ने बताया कि पिछले साल से अभी तक स्वास्थ्य विभाग की किसी भी टीम ने गांव का दौरा नहीं किया है. गांव के हालत बहुत खराब हैं. उन्होंने कहा कि गांव के करीब हर घर में लोग बीमार हैं.

इसी गांव के रहने वाले गुन्नू यादव ने बताया कि वह अपने परिवार की सुरक्षा को लेकर बेहद चिंतित हैं क्योंकि गंगा नदी में सैकड़ों शवों को बहाया गया है, जो हमारे गांव से होकर बहती है.

यादव ने हमारी टीम को यह भी बताया कि गांव में कई लोग संक्रमित हैं. यह जानने के बाद भी स्वास्थ्य विभाग की किसी भी टीम ने यहां का दौरा नहीं किया है. चार से पांच दिनों के भीतर इस गांव में 10 से 12 लोगों की मौत भी हुई है.

सहायक मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. उमेश कुमार ने इस मसले पर कहा कि सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ के निर्देश के निर्देश ही चलाया गया था. स्वास्थ्य विभाग मोबाइल टीमों के जरिए सर्वे कर रहा है. ये सभी टीमें गांवों में एंटीजन टेस्ट कर रही हैं.

वहीं, बस्ती जिले के दुबोलिया प्रखंड के बक्सर और पेठिया लश्करी गांव के एक ग्रामीण ने बताया कि यहां डब्ल्यूएचओ की किसी भी गतिविधि की जानकारी नहीं है. उसने कहा कि मुझे याद नहीं पड़ता कि मेरे गांव में एक भी मेडिकल टीम आई हो. हालांकि, एक अन्य ग्रामीण ने कहा कि विभाग की एक स्वास्थ्य टीम ने बीमार महिला की मदद की है.

इसी गांव के एक निवासी राम जियावां ने कहा कि एक महिला की गंभीर हालत के चलते स्वास्थ्य विभाग की एक टीम गांव में आई थी. टीम उसे एम्बुलेंस से अस्पताल ले गई. हकीकत जानने के लिए जब ईटीवी भारत ने पेठिया गांव में डब्ल्यूएचओ के जिला प्रभारी स्नेहल परमार से संपर्क किया तो उन्होंने कहा कि हमें अभियान के बारे में कोई भी जानकारी देने की अनुमति नहीं है. उन्होंने कहा कि मुझे पता नहीं कि परीक्षण के लिए वैन कौन चला रहा है.

इसके बाद जिले के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. अनूप कुमार श्रीवास्तव ने ईटीवी भारत को बताया कि गांवों को सेनेटाइज किया जाता है और मोबाइल इकाइयों द्वारा कोविड-19 परीक्षण भी किया गया है. जहां कहीं से भी कोरोना के मामले सामने आ रहे हैं, वहां के लोगों को जागरुक और कंटेनमेंट जोन बनाकर मरीजों का इलाज किया जा रहा है.

सहारनपुर जिले के बनिखेड़ा गांव निवासी सतीश कुमार ने कहा कि स्वास्थ्य विभाग और डब्ल्यूएचओ की टीम यहां नहीं आई. किसी भी तरह का कोई सैनिटाइजेशन नहीं हुआ है. गांव साफ नहीं हैं. अब हमें भगवान पर ही भरोसा है. यहां के दूसरे ग्रामीण यशपाल सिंह ने कहा कि मेरा गांव सहारनपुर मुख्यालय के पास है. गांव में लोगों को बुखार और सर्दी है. डब्ल्यूएचओ या स्वास्थ्य विभाग द्वारा कोई दवा वितरित नहीं की जा रही है.

ईटीवी भारत के सवालों पर डब्ल्यूएचओ ने ईमेल से जवाब देते हुए कहा कि देशभर में निगरानी करना हमारे प्रमुख कार्यों में से एक है. उन्होंने कहा कि संगठन के पास कई वर्षों से उत्तर प्रदेश में चिकित्सा अधिकारियों और फील्ड मॉनिटरिंग की एक बड़ी टीम काम कर रही है.

आगे जवाब देते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा कि पोलियो उन्मूलन कार्यक्रम का समर्थन करने के लिए टीम का गठन किया गया था. जो घर-घर जाकर ऐसे बच्चों की पहचान करती है, जो टीकाकरण से चूके गए थे. आगे कहा गया कि यह पहल सर्वोत्तम प्रथाओं में से एक है. नियमित टीकाकरण और अब महामारी में भी हमारी टीम सक्रिय है. यह पहल पिछले साल उत्तर प्रदेश में दो चरणों में लागू की गई थी और अब इसे दोहराया जा रहा है.

Last Updated : May 18, 2021, 1:31 PM IST
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