हैदराबाद : किसानों के सामने मानसून, प्राकृतिक आपदाएं, अनियमित वर्षा, आपूर्ति श्रृंखलाओं में बाधा और महंगाई जैसी समस्याओं का सामना पहले से ही कर रहे थे, लेकिन इस साल स्थिति और अधिक खराब हो गई. पहले कोरोना और उसके बाद टिड्डियों के आक्रमण ने किसानों को परेशान कर दिया.
जीडीपी में कृषि का योगदान लगभग 17 प्रतिशत है. साथ ही इस पर देश की 70 फीसदी आबादी अपनी जीविका के लिए निर्भर है. कोविड महामारी ने सबसे अधिक कृषि और इसकी आपूर्ति श्रृंखलाओं को बाधित किया है. लॉकडाउन के दौरान कृषि क्षेत्रों का कैसे प्रबंधन हो, इसके लिए केंद्र और राज्यों के बीच संचार और समन्वय में काफी कमियां देखी गईं. शुरुआती रिपोर्ट बताती हैं कि श्रम की अनुपलब्धता की वजह से कटाई प्रभावित हुई. आपूर्ति शृंखलाओं में बाधा के कारण कीमतों में गिरावट आई, लेकिन दूसरी ओर उपभोक्ताओं को अधिक पैसे देने पड़े.
वैश्विक स्तर पर प्रभाव
रबी के मौसम से लेकर गर्मी के मौसम तक बीज की आपूर्ति पर प्रभाव नहीं पड़ेगा. लेकिन फर्टिलाइजर और पेस्टिसाइड्स की समस्या का सामना करना पड़ रहा है. आने वाले कुछ दिनों तक सामान्य रूप से इसकी उपलब्धता में दिक्कतें और आएंगी.
अधिकांश देशों में कोविड बीमारी की वजह से यात्राओं पर प्रतिबंध लगा दिए गए. लोगों को घरों में रहने को कहा गया. व्यवसाय ठप हो गया. लिहाजा, किसान अपनी उपज घरों में रखने को बाध्य हो गए.
कोरोना के कारण मत्स्य और पशुधन क्षेत्र बहुत अधिक प्रभावित हुआ. पशु आहार तक सीमित पहुंच और श्रम की कमी के कारण लाइवस्टॉक घट गया.
कम बचत या बचत नहीं होने के कारण निम्न और मध्यम आय वाले देशों में कृषि श्रमिकों के पास उचित स्वास्थ्य सेवाओं और सामाजिक सुरक्षा का अभाव है. आइसोलेशन में रहने के बावजूद वे अपनी जीविका के लिए काम करने को बाध्य हुए.
कृषि में कई अनौपचारिक कार्यकर्ता कोविड महामारी के दौरान आत्म-अलगाव प्रोटोकॉल के अपने निर्वाह के लिए काम करने के लिए बाध्य हुए.
लोगों की आमदनी प्रभावित होने के कारण फूड की मांग में कमी आई. लॉकडाउन की वजह से लोग चिंतित होने लगे. इसलिए फूड का स्टॉक भी किया. इससे भी कीमत प्रभावित हुई.
भारत पर असर
भारत में रबी फसल प्रभावित हुई. गेंहू, चना, सरसों और लेंटिल की खेती सर्वाधिक प्रभावित हुई. ये सभी रबी मौसम की फसल हैं. रिवर्स माइग्रेशन की वजह से कई जगहों पर श्रमिकों की पर्याप्त संख्या नहीं थी. लिहाजा, मजदूरी बढ़ गई. परिवहन की समस्या की वजह से कीमतें गिरने लगीं. बाजार में जाना मुश्किल था. शहर से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में आवश्यक वस्तुओं (अनाज, फल, सब्जी) की ठीक से पूर्ति नहीं हो रही थी.
ऊपर से बिक्री पर प्रतिबंध भी लगाया गया. उसकी सीमाएं तय कर दी गईं. खेती से जुड़ी मशीनों के एक राज्य से दूसरे राज्य में ले जाने पर भी बैन लग गया था. कई दिनों तक फूड आइटम ट्रकों पर ही लदे रह गए. ऐसे में खेती के लिए लोन लेने वाले किसानों के सामने इसे चुकाना बड़ी समस्या है.
आर्थिक मदद
11000 करोड़ फंड की मदद से मैरिन और इनलैंड फिशरीज को मदद. एनिमल हसबेंड्री के लिए 15 हजार करोड़ का फंड. डेयरी में निजी निवेश को बढ़ावा. पशुपालन के लिए ढांचागत मदद.
सरकार आदिवासियों / आदिवासियों के लिए रोजगार सृजन की सुविधा के लिए 6 हजार करोड़ रुपये की योजना की घोषण (मुआवजा वितरण प्रबंधन और योजना प्राधिकरण के तहत) इसके लिए (i) वनीकरण और वृक्षारोपण किया जाएगा. शहरी क्षेत्र भी शामिल है. (ii) कृत्रिम उत्थान, सहायता प्राप्त प्राकृतिक उत्थान, (iii) वन प्रबंधन, मृदा और नमी संरक्षण कार्य, (iv) वन संरक्षण, वन और वन्यजीव संबंधित बुनियादी ढांचा विकास, और वन्यजीव संरक्षण और प्रबंधन. फंड का उपयोग वर्तमान में वन और वन्यजीव प्रबंधन के संरक्षण के लिए किया जाता है.
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लोन चुकाने पर तीन महीने की रोक लगाई गई. सरकार के अनुसार तीन करोड़ किसानों ने इसका लाभ लिया. 4.25 लाख करोड़ कृषि ऋण थी. आरबीआई ने दो प्रतिशत ब्याज उपकर के लाभ और फसल ऋण पर तीन प्रतिशत शीघ्र पुनर्भुगतान प्रोत्साहन को 31 मई, 2020 तक बढ़ा दिया था. 25 लाख नए किसान क्रेडिट कार्ड बांटे गए. 25,000 करोड़ की राशि लोन के लिए निर्धारित की गई. 86,600 करोड़ रुपये के 63 लाख ऋण 1 मार्च, 2020 से 30 अप्रैल, 2020 के बीच कृषि क्षेत्र में स्वीकृत किए गए.
नाबार्ड ने मार्च 2020 में सहकारी बैंकों और आरआरबी को 29,500 करोड़ रुपये की पुनर्वित्त प्रदान की है. ग्रामीण आधारभूत संरचना में सुधार के लिए उसी महीने के दौरान ग्रामीण अवसंरचना विकास निधि के तहत 4,200 करोड़ रुपये का और समर्थन प्रदान किया गया. मार्च 2020 से कृषि उपज की खरीद में शामिल राज्य सरकार की संस्थाओं के लिए 6,700 करोड़ रुपये की कार्यशील पूंजी की सीमा को भी मंजूरी दी गई है.
कानूनी मदद
आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 केंद्र और राज्य सरकारों को कुछ वस्तुओं के उत्पादन, आपूर्ति और वितरण को नियंत्रित करने का अधिकार देता है, ताकि किसी वस्तुओं की कमी या अधिकता से निपटा जा सके.
कृषि बाजार में सुधार - राज्यों के बीच निर्बाध व्यापार सुनिश्चित करना, ई-व्यापार के लिए रूपरेखा बनाना और किसानों को अपना उत्पाद बेचने के लिए अधिक विकल्प उपलब्ध कराना. किसानों को एक निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से प्रोसेसर, एग्रीगेटर, बड़े खुदरा विक्रेताओं और निर्यातकों के साथ जुड़ने में सक्षम बनाने के लिए एक सुविधाजनक कानूनी ढांचा बनाए जाने का वादा.