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नैनीताल हाईकोर्ट के सामने आया अजीब सवाल, क्या कैदी को बच्चा पैदा करने का है अधिकार ?

क्या किसी कैदी को बच्चा पैदा करने का अधिकार है. अदालत ने कहा कि जहां एक ओर पैदा होने वाले बच्चे का भविष्य बिना पिता के मुश्किल होगा, वहीं किसी अभियुक्त को गरिमा के अधिकार से वंचित करना भी कानून के लिहाज से सही नहीं होगा. पढ़िए विस्तार से यह खबर.

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नैनीताल हाईकोर्ट
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Published : Aug 5, 2021, 10:04 PM IST

Updated : Aug 5, 2021, 10:47 PM IST

नैनीताल : सजायाफ्ता कैदियों को संतानोत्पत्ति का अधिकार है या नहीं इस सवाल पर उत्तराखंड उच्च न्यायालय गहन विचार करेगा. मुख्य न्यायाधीश आर. एस. चौहान और न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने पॉक्सो कानून के तहत 20 साल की सजा काट रहे एक कैदी द्वारा परिवार शुरू करने के लिए जमानत का अनुरोध करने पर सुनवाई के दौरान उक्त बात कही.

अदालत कैदी की जमानत अर्जी उसके अपराध की गंभीरता को देखते हुए पहले दो बार बार खारिज कर चुका है.

जमानत अर्जी में कहा गया है कि सात साल पहले जेल भेज जाने के समय उसकी शादी को केवल तीन महीने हुए थे, ऐसे में उसे परिवार शुरू करने का मौका नहीं मिला.

हालांकि, इसपर अदालत ने कहा कि ऐसे कई मामले हैं जिनका सभी पहलुओं से परीक्षण करने की जरुरत है.

अदालत ने कहा कि जहां एक ओर पैदा होने वाले बच्चे का भविष्य बिना पिता के मुश्किल होगा, वहीं किसी अभियुक्त को गरिमा के अधिकार से वंचित करना भी कानून के लिहाज से सही नहीं होगा.

अदालत ने यह भी महसूस किया कि ऐसे मामलों में पत्नी के अधिकारों पर भी विचार करना होगा.

ये भी पढ़ें : सरकार अदालत को मूर्ख बनाना बंद करे और जमीनी सच्चाई बताए : हाईकोर्ट

मामले के सभी विधिक और सामाजिक पहलुओं को ध्यान में रखते हुए अदालत ने अर्जी को आगे सुनवाई और समग्र रूप से परीक्षण के लिए सुरक्षित रख लिया.

(एजेंसी)

नैनीताल : सजायाफ्ता कैदियों को संतानोत्पत्ति का अधिकार है या नहीं इस सवाल पर उत्तराखंड उच्च न्यायालय गहन विचार करेगा. मुख्य न्यायाधीश आर. एस. चौहान और न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने पॉक्सो कानून के तहत 20 साल की सजा काट रहे एक कैदी द्वारा परिवार शुरू करने के लिए जमानत का अनुरोध करने पर सुनवाई के दौरान उक्त बात कही.

अदालत कैदी की जमानत अर्जी उसके अपराध की गंभीरता को देखते हुए पहले दो बार बार खारिज कर चुका है.

जमानत अर्जी में कहा गया है कि सात साल पहले जेल भेज जाने के समय उसकी शादी को केवल तीन महीने हुए थे, ऐसे में उसे परिवार शुरू करने का मौका नहीं मिला.

हालांकि, इसपर अदालत ने कहा कि ऐसे कई मामले हैं जिनका सभी पहलुओं से परीक्षण करने की जरुरत है.

अदालत ने कहा कि जहां एक ओर पैदा होने वाले बच्चे का भविष्य बिना पिता के मुश्किल होगा, वहीं किसी अभियुक्त को गरिमा के अधिकार से वंचित करना भी कानून के लिहाज से सही नहीं होगा.

अदालत ने यह भी महसूस किया कि ऐसे मामलों में पत्नी के अधिकारों पर भी विचार करना होगा.

ये भी पढ़ें : सरकार अदालत को मूर्ख बनाना बंद करे और जमीनी सच्चाई बताए : हाईकोर्ट

मामले के सभी विधिक और सामाजिक पहलुओं को ध्यान में रखते हुए अदालत ने अर्जी को आगे सुनवाई और समग्र रूप से परीक्षण के लिए सुरक्षित रख लिया.

(एजेंसी)

Last Updated : Aug 5, 2021, 10:47 PM IST
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