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किसान आंदोलन@2.0 : किसानों की 6 शीर्ष मांगों पर जारी रह सकता है देशव्यापी विरोध-प्रदर्शन

सरकार ने पहले पलक झपकते ही किसानों की प्रमुख मांग (Main demand of farmers) को मान लिया है. इसके बावजूद किसान पीछे हटने के मूड में नहीं (Farmers in no mood to back down) हैं. क्या है इसके पीछे की रणनीति औ योजना? ईटीवी भारत के वरिष्ठ संवाददाता संजीब कुमार बरूआ की रिपोर्ट.

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Published : Nov 20, 2021, 8:24 PM IST

नई दिल्ली : राष्ट्रीय टीवी पर शुक्रवार की सुबह अचानक हुई घोषणा में नरेंद्र मोदी सरकार ने आंदोलनकारी किसानों की प्रमुख मांग को मान (Main demand of farmers) लिया. जिसे किसानों की जीत (Farmers' victory) के रूप में देखा जा रहा है, जो साल भर से विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं.

सभी तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने के निर्णय की घोषणा करते हुए पीएम मोदी ने अपील की (PM Modi's appeal) है कि मैं उन सभी किसानों से अपील करता हूं जो विरोध का हिस्सा हैं, अपने प्रियजनों, अपने खेतों और परिवार को वापस लौट जाएं और आगे बढ़कर एक नई शुरुआत करें.

पीएम का बयान विरोध से निपटने में सरकार की विफलता की एक मौन स्वीकृति हो सकती है कि किसानों के साथ वेटिंग गेम खेलने का सरकारी हथकंडा वाकई एक बड़ी भूल रही. धैर्य हर किसान के चरित्र में निहित है. जब वे मानसून की प्रतीक्षा करते हैं, खेतों की बुवाई की प्रतीक्षा करते हैं तो यह धैर्य का खेल है जो किसान हमेशा खेलता है.

लेकिन आंदोलनकारियों की शुरुआती प्रतिक्रियाओं से क्या पता चलता है, किसान स्पष्ट रूप से यह महसूस करने के मूड में नहीं हैं कि सरकार अच्छी तरह से उनकी मांगें मान रही है. इसलिए वे उन पांच चीजों पर जोर देंगे जो आगे के रास्ते में उनके एजेंडे में सबसे ऊपर होंगी.

इस गति को आगे बढ़ाने के इरादे से किसानों ने कहा है कि 22 नवंबर को लखनऊ में रैली, आंदोलन के एक वर्ष के उपलक्ष्य में 26 नवंबर को जनसभा और 29 नवंबर को संसद में ट्रैक्टर रैली होगी. जाहिर है इससे सरकार के लिए आगे की राह आसान नहीं होने वाली है.

सबसे पहले किसान 26 नवंबर 2020 को शुरू हुए राष्ट्रीय राजधानी के पास अपना धरना जारी रखेंगे. वे उन कानूनों के वास्तविक निरसन की प्रतीक्षा करेंगे, जिसके लिए प्रधानमंत्री ने आश्वासन दिया है. जिसे संसद के शीतकालीन सत्र में अमलीजामा पहनाया जाएगा.

भारत के कृषि क्षेत्र को प्रभावित करने वाली पुरातन प्रथाओं में सुधार के उद्देश्य से तीन कानून- किसान उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अधिनियम, किसान (सशक्तिकरण और संरक्षण) मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा अधिनियम, और आवश्यक वस्तुएं (संशोधन) अधिनियम को सरकार द्वारा ऐसे कानूनों के रूप में आगे बढ़ाया गया जो भारतीय कृषि को उसके बंधनों से मुक्त कर देते.

दूसरा किसान एक ऐसे कानून के लिए आगे बढ़ेंगे जो किसानों को उनकी उपज के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य या एमएसपी की गारंटी देता है. यह समस्याओं से भरा मसला है. एमएसपी तय करना अपने आप में मांग-आपूर्ति बाजार की गतिशीलता की विकृति है और केवल चावल और गेहूं के लिए प्रभावशाली है.

जिसे सरकार किसानों से उठाती है और जो पहले से ही असहनीय मात्रा में संग्रहीत है. एमएसपी निर्धारण के परिणामस्वरूप कृषि निर्यात गैर-प्रतिस्पर्धी हो सकता है क्योंकि निर्धारित मूल्य घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजार दरों से अधिक हैं.

तीसरा, किसान बिजली (संशोधन) विधेयक 2020 को वापस लेने की मांग करेंगे क्योंकि यह भावना व्याप्त है कि नए बिल में प्रस्तावित बदलाव से किसानों को उनकी खेती की जरूरतों को पूरा करने के लिए मुफ्त बिजली मिल जाएगी.

चौथा, विरोध प्रदर्शन के दौरान अपनी जान गंवाने वाले 700 से अधिक आंदोलनकारियों के लिए पर्याप्त मुआवजे की मांग करेंगे. पांचवां, आंदोलनकारियों के खिलाफ चल रहे मामलों और प्राथमिकी को वापस लेना होगा.

छठा, किसान गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग करेंगे, जिनके बेटे पर 3 अक्टूबर 2021 को यूपी के लखीमपुर खीरी में एक रैली के बाद आठ लोगों को कुचलने का आरोप है.

यह भी पढ़ें- SKM ने किसानों से की अपील, 26 नवंबर को आंदोलन की पहली वर्षगांठ पर दिखाएं ताकत

पहले से ही संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) कई किसान संघों वाला एक संगठन, पहले ही इस घटना की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में विशेष जांच दल (SIT) की मांग कर चुका है. इसके अलावा राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद को पत्र लिखकर मिश्रा को हटाने और गिरफ्तारी की मांग कर रहा है.

नई दिल्ली : राष्ट्रीय टीवी पर शुक्रवार की सुबह अचानक हुई घोषणा में नरेंद्र मोदी सरकार ने आंदोलनकारी किसानों की प्रमुख मांग को मान (Main demand of farmers) लिया. जिसे किसानों की जीत (Farmers' victory) के रूप में देखा जा रहा है, जो साल भर से विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं.

सभी तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने के निर्णय की घोषणा करते हुए पीएम मोदी ने अपील की (PM Modi's appeal) है कि मैं उन सभी किसानों से अपील करता हूं जो विरोध का हिस्सा हैं, अपने प्रियजनों, अपने खेतों और परिवार को वापस लौट जाएं और आगे बढ़कर एक नई शुरुआत करें.

पीएम का बयान विरोध से निपटने में सरकार की विफलता की एक मौन स्वीकृति हो सकती है कि किसानों के साथ वेटिंग गेम खेलने का सरकारी हथकंडा वाकई एक बड़ी भूल रही. धैर्य हर किसान के चरित्र में निहित है. जब वे मानसून की प्रतीक्षा करते हैं, खेतों की बुवाई की प्रतीक्षा करते हैं तो यह धैर्य का खेल है जो किसान हमेशा खेलता है.

लेकिन आंदोलनकारियों की शुरुआती प्रतिक्रियाओं से क्या पता चलता है, किसान स्पष्ट रूप से यह महसूस करने के मूड में नहीं हैं कि सरकार अच्छी तरह से उनकी मांगें मान रही है. इसलिए वे उन पांच चीजों पर जोर देंगे जो आगे के रास्ते में उनके एजेंडे में सबसे ऊपर होंगी.

इस गति को आगे बढ़ाने के इरादे से किसानों ने कहा है कि 22 नवंबर को लखनऊ में रैली, आंदोलन के एक वर्ष के उपलक्ष्य में 26 नवंबर को जनसभा और 29 नवंबर को संसद में ट्रैक्टर रैली होगी. जाहिर है इससे सरकार के लिए आगे की राह आसान नहीं होने वाली है.

सबसे पहले किसान 26 नवंबर 2020 को शुरू हुए राष्ट्रीय राजधानी के पास अपना धरना जारी रखेंगे. वे उन कानूनों के वास्तविक निरसन की प्रतीक्षा करेंगे, जिसके लिए प्रधानमंत्री ने आश्वासन दिया है. जिसे संसद के शीतकालीन सत्र में अमलीजामा पहनाया जाएगा.

भारत के कृषि क्षेत्र को प्रभावित करने वाली पुरातन प्रथाओं में सुधार के उद्देश्य से तीन कानून- किसान उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अधिनियम, किसान (सशक्तिकरण और संरक्षण) मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा अधिनियम, और आवश्यक वस्तुएं (संशोधन) अधिनियम को सरकार द्वारा ऐसे कानूनों के रूप में आगे बढ़ाया गया जो भारतीय कृषि को उसके बंधनों से मुक्त कर देते.

दूसरा किसान एक ऐसे कानून के लिए आगे बढ़ेंगे जो किसानों को उनकी उपज के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य या एमएसपी की गारंटी देता है. यह समस्याओं से भरा मसला है. एमएसपी तय करना अपने आप में मांग-आपूर्ति बाजार की गतिशीलता की विकृति है और केवल चावल और गेहूं के लिए प्रभावशाली है.

जिसे सरकार किसानों से उठाती है और जो पहले से ही असहनीय मात्रा में संग्रहीत है. एमएसपी निर्धारण के परिणामस्वरूप कृषि निर्यात गैर-प्रतिस्पर्धी हो सकता है क्योंकि निर्धारित मूल्य घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजार दरों से अधिक हैं.

तीसरा, किसान बिजली (संशोधन) विधेयक 2020 को वापस लेने की मांग करेंगे क्योंकि यह भावना व्याप्त है कि नए बिल में प्रस्तावित बदलाव से किसानों को उनकी खेती की जरूरतों को पूरा करने के लिए मुफ्त बिजली मिल जाएगी.

चौथा, विरोध प्रदर्शन के दौरान अपनी जान गंवाने वाले 700 से अधिक आंदोलनकारियों के लिए पर्याप्त मुआवजे की मांग करेंगे. पांचवां, आंदोलनकारियों के खिलाफ चल रहे मामलों और प्राथमिकी को वापस लेना होगा.

छठा, किसान गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग करेंगे, जिनके बेटे पर 3 अक्टूबर 2021 को यूपी के लखीमपुर खीरी में एक रैली के बाद आठ लोगों को कुचलने का आरोप है.

यह भी पढ़ें- SKM ने किसानों से की अपील, 26 नवंबर को आंदोलन की पहली वर्षगांठ पर दिखाएं ताकत

पहले से ही संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) कई किसान संघों वाला एक संगठन, पहले ही इस घटना की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में विशेष जांच दल (SIT) की मांग कर चुका है. इसके अलावा राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद को पत्र लिखकर मिश्रा को हटाने और गिरफ्तारी की मांग कर रहा है.

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