नई दिल्ली : 30 नवंबर को संयुक्त अरब अमीरात में जलवायु परिवर्तन पर बैठक होनी है. बैठक में भाग लेने वाले सभी देश 2015 के पेरिस समझौते पर विचार करेंगे. उन्हें यह तय करना है कि क्या वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री से. तक रोका जा सकता है या नहीं.
पेरिस में हुए समझौते के अनुसार 2050 तक ग्लोबल वार्मिंग को पूर्व औद्योगिक लेवल की तुलना में 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने पर सहमति बनाई गई थी. लंबे समय में तापमान में जो वृद्धि होती है, उसे ग्लोबल वार्मिंग कहा जाता है. पिछले सौ सालों में इसमें काफी वृद्धि हुई है और इसकी वजह जीवाश्म ईंधन का प्रयोग है- जैसे कोयला, तेल और नेचुरल गैस का उपयोग करना. इसकी वजह से वायुमंडल में ग्रीन हाउस इफैक्ट पैदा हो रहा है.
जब सूर्य की किरणें वायुमंडल में प्रवेश करती हैं, तो उसकी गर्मी धरती से रिफ्लेक्ट होती हैं, यानी परावर्तित होती है. लेकिन ग्रीन हाउस इफैक्ट की वजह से यह गर्मी वायुमंडल में ही रह जाती है. लिहाजा, पृथ्वी का तापमान धीरे-धीरे बढ़ रहा है. ग्रीन हाउस गैस में कार्बन डायॉक्साइड, क्लोरोफ्लोरोकार्बन, वाटर वेपर, मिथेन और नाइट्रस ऑक्साइड प्रमुख रूप से योगदान करते हैं.
पेरिस समझौते की वजह से ग्रीन हाउस गैस को कम करने में मदद मिली. 2011 में अनुमान लगाया गया था कि साल 2100 आते-आते वैश्विक तापमान में 3.7 डिग्री से लेकर 4.8 डिग्री से. तक वृद्ध हो सकती है. हालांकि, शर्म-अल-शेख में हुए कॉप27 की बैठक के बाद इस सीमा को 2.4 डिग्री से लेकर 2.6 डिग्री से. तक रखा गया. यानि इस दौरान ग्रीन हाउस इफैक्ट को कम करने के लिए जो भी कदम उठाए गए, उससे फायदा पहुंचा. आज की बात करें तो हम पेरिस समझौते में तय किए गए लक्ष्यों तक पहुंचने के आसपास भी नहीं दिख रहे हैं. इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए खरबों डॉलर खर्च करने की जरूरत होगी. साथ ही अंतरराष्ट्रीय सहयोग महत्वपूर्ण है.
सीओपी 28 यूएई के प्रेसिडेंट सुल्तान अहमद अल जाबेर ने कहा कि अगर हमें अपने लक्ष्य को पाना है, तो 2030 तक उत्सर्जन को आधा करना होगा, यानी उसे हासिल करने के लिए हमारे पास सात साल हैं. इसलिए सीओपी 28 हमें अपने एजेंडे पर विचार करने, अपने प्रयास को फिर से शुरू करने का बड़ा मौका दे रहा है. अंतरराष्ट्रीय विकास समूह प्रैक्टिकल एक्शन के अनुसार और अधिक आर्थिक नुकसान से बचने के लिए हमें साहसिक फैसले करने ही होंगे.
अल जाबेर यूएई के नेशनल ऑयल एंड गैस कंपनी एडीएनओसी के मुखिया भी हैं. उन्होंने जीवाश्म ईंधन अधिकारियों को भी बैठक में आमंत्रित किया है. जाबेर ने कहा कि इन्हें भी अपनी बात रखने का मौका मिलना चाहिए. जाबेर नवीकरणीय ऊर्जा कंपनी मसदर के अध्यक्ष हैं. और इस नाते वह यूएई के क्लाइमेट मैसेंजर भी हुए.
अल जाबेर ने इसी साल जुलाई महीने में ब्रूसेल्स में हुई बैठक के दौरान सीओपी 28 के लिए एजेंडा दिया था. उन्होंने कहा कि हमारी योजना सिंगल नॉर्थ स्टार द्वारा निर्देशित है, 1.5 डिग्री से. तक का लक्ष्य है, इसके लिए हमसब मिलकर बात करेंगे. उनकी कार्य योजना में क्लाइमेट फाइनेंस, क्लीन ऊर्जा की ओर तेजी से बढ़ना, लाइफ और लाइवलीहुड की रक्षा करना शामिल है.
क्लाइमेट फाइनेंस का मतलब - लोकल, नेशनल और इंटरनेशनल फाइनेंसिंग है. इसमें पब्लिक, सरकारी और अन्य वैकल्पिक स्रोतों से फंड जुटाना है. जाहिर है, वैसे देश जो आर्थिक रूप से अधिक सक्षम हैं, उन्हें आर्थिक रूप से कम सक्षम देशों का सहयोग करना होगा. इसमें कोई दो राय नहीं है कि उत्सर्जन को महत्वपूर्ण रूप से कम करने के लिए बड़े पैमाने पर निवेश की आवश्यकता होगी.
क्लाइमेट फाइनेंस का महत्व बताते हुए जाबेर ने सभी हितधारकों से व्यापक परिवर्तन का लक्ष्य हासिल करने के लिए छोटे-छोटे रिफॉर्म के बजाए व्यापक कदम उठाने का आह्वान किया. उन्होंने कहा कि 2025 तक फाइनेंस को डबल करना होगा. 2009 में कोपेनहेगन में आयोजित सीओपी15 में, डेवलप्ड नेशन्स ने 2020 तक प्रति वर्ष 100 बिलियन डॉलर जुटाने के सामूहिक लक्ष्य के लिए प्रतिबद्धता जताई थी. उसके बाद उन्होंने इसे फिर से दोहराया भी यानी पेरिस समझौते के दौरान.
जाबेर ने कहा कि जीवाश्म ईंधन को धीरे-धीरे कर खत्म करना ही होगा. यह समय की जरूरत है. इसके लिए हमें व्यापक दृष्टिकोण अपनाए जाने की जरूरत है, लेकिन हमें एक समग्र दृष्टिकोण पर भी विचार करना होगा, ताकि आपूर्ति और मांग भी प्रभावित न हो.
उन्होंने आगे कहा कि वह दुनिया के उस नजरिए से सहमत हैं, जिसमें प्रकृति, भोजन, स्वास्थ्य और लचीलेपन पर विचार करने को कहा जा रहा है. पेरिस समझौते में ग्लोबल गोल ऑन अडॉप्शन को स्वीकार किया गया था. इसका लक्ष्य अनुकूल क्षमता को बढ़ाना, लचीलेपन को मजबूत करना और जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशीलता को कम करना है.
अल जाबेर ने नेशनल फूड सिस्टम ट्रांसफॉर्मेशन को नेशनली डिटर्मिंड कंट्रीब्यूशन और नेशनल अडॉप्शन प्लान के साथ एकीकृत करने पर जोर देने को कहा. ट्रांजिशन प्लान 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन को तीन गुना और हाइड्रोजन उत्पादन को दोगुना करने का आह्वान करती है. वह ऑयल और गैस कंपनियों से स्वच्छ ऊर्जा में विविधता लाने का आग्रह करती है.
उन्होंने कहा कि समावेशिता को बढ़ाने के लिए हमने अंत्रेप्रेन्योर, इंजीनियर, और इस फील्ड के विशेषज्ञों और काम करने वालों को भी शामिल किया है. यही वजह है कि लोकल लीडरशीप को भी शामिल किया गया है. उन्होंने कहा कि हमें सक्रियतावाद और क्रियावाद दोनों की आवश्यकता है.
सम्मेलन में प्रथम ग्लोबल स्टॉकटेक का भी समापन होगा. इसकी शुरुआत पेरिस समझौते में ही हुई थी. इनका उद्देस्य मॉनिटरिंग करना और जिन भी लक्ष्यों पर सहमति बन गई है, उसको आगे बढ़ाने के लिए मूल्यांकन करना है. पहला स्टॉकटेक 2021 में ग्लासगो में सीओपी 26 में शुरू हुआ और 2023 में सीओपी 28 में समाप्त होगा. स्टॉकटेक दो साल की प्रक्रिया है, जो हरेक पांच साल में होती है.
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