कोलकाता : इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टिवेशन ऑफ साइंस (IACS) ने संचार के लिए हिंदी का उपयोग करने के निर्देश दिए हैं. इसके अनुसार कम से कम 55% संचार हिंदी में किया जाना चाहिए और हिंदी में प्राप्त पत्र का उत्तर हिंदी में ही देना होगा. जिसके बाद संस्थान में विरोध के सुर उठने लगे हैं.
बता दें, IACS के कार्यवाहक रजिस्ट्रार पूरबशा बंदोपाध्याय ने 19 मार्च को सभी डीन, विभाग प्रमुखों और स्कूलों के प्रधानाचार्यों को ये निर्देश जारी किए थे. जिसके बाद से कर्मचारियों और अधिकारियों में असंतोष बढ़ने लगा.
इसकी प्रतियां सभी डीन, सभी विभागाध्यक्षों और स्कूल प्रिंसिपलों के बीच प्रसारित की गई हैं. हालांकि, इसने संचार से संबंधित कई वर्गों के बीच बड़े पैमाने पर असंतोष पैदा कर दिया है. इसके अनुसार कम से कम 55% संचार हिंदी में किया जाना चाहिए और हिंदी में प्राप्त पत्र का उत्तर हिंदी में ही देना होगा. फाइलों में नाम हिंदी और अंग्रेजी में लिखे जाने चाहिए और जहां तक संभव हो सेवा पुस्तिकाओं में प्रविष्टियां हिंदी में होनी चाहिए. राजभाषा अधिनियम की धारा 3 (3) के प्रावधानों की पुष्टि करते हुए आधिकारिक हस्ताक्षर भी यथासंभव हिंदी में किए जाने चाहिए.
निर्देश का हो रहा विरोध
निर्देशानुसार डीएसटी के अधिकारियों द्वारा आधिकारिक यात्रा के दौरान शर्मिंदगी से बचने के लिए इन कदमों का सख्ती से पालन करने की आवश्यकता है. हालांकि, निर्देश से असंतोष पैदा हो गया है. विख्यात बंगाली लेखक शीशेंदु मुखोपाध्याय के अनुसार यह अन्यायपूर्ण है और इसे किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं किया जा सकता. कहा कि कोई भी हमें हिंदी का उपयोग करने के लिए मजबूर नहीं कर सकता, क्योंकि हिंदी हमारी आधिकारिक भाषा नहीं है. हिंदी और अंग्रेजी समान रूप से महत्वपूर्ण भाषाएं हैं. मुझे समझ नहीं आता कि गैर-हिंदी भाषी लोगों पर हिंदी क्यों थोपी जा रही है.
बंगाली भाषा के कार्यकर्ता समूह बांग्ला पोक्खो (बंगाली पक्ष) के सदस्यों ने बुधवार दोपहर IACS के सामने विरोध प्रदर्शन किया. समूह की ओर से कौशिक मैती ने कहा कि यह पूरी तरह से बकवास है, क्योंकि इसका मतलब केवल हिंदी भाषी लोग विज्ञान शोध कर सकते हैं.
इस पत्र में कहा गया है कि संस्थान में किस भाषा का उपयोग हो रहा है, इसकी जांच के लिए डीएसटी अधिकारी जांच करेंगे. इसके मुताबिक, कम से कम 55 फीसदी कार्य हिंदी में होने चाहिए और हिंदी के पत्र का जवाब केवल हिंदी में ही देना अनिवार्य है. इतना ही नहीं, फाइलों पर नाम से लेकर आधिकारिक दस्तखत भी यथासंभव हिंदी में होने चाहिए.
वहीं, शिक्षाविद पाबित्रा सरकार ने कहा कि हिंदी केवल अन्य भाषाओं की तरह एक आधिकारिक भाषा है न कि देश की राष्ट्रीय भाषा. मुझे समझ में नहीं आता कि हिंदी को सभी पर क्यों लागू किया जा रहा है. केंद्र सरकार को इस मामले में स्पष्टीकरण देना चाहिए. उन्होंने कहा कि इस तरह के निर्देश IACS जैसे एक पारंपरिक संगठन से अपेक्षित नहीं है.