नई दिल्ली : कोरोना की तीसरी लहर पर काबू पाने के लिए सरकार ज्यादा से ज्यादा वैक्सीनेशन पर जोर दे रही है. लेकिन इन सबके बीच वैक्सीन को लेकर विवाद थम नहीं रहा है. इस बीच वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने वैक्सीन पर विवादास्पद ट्वीट किया है. उनके ट्वीट से नया बखेड़ा खड़ा हो गया है. प्रशांत भूषण ने कहा कि मैंने न तो कोरोना की वैक्सीन लगवाई है और न ही मेरा ऐसा कोई इरादा है.
भूषण ने सिलसिलेवार ट्वीट कर लिखा, 'स्वस्थ युवकों में कोरोना के कारण गंभीर प्रभाव या मौत की संभावना बहुत कम होती है. वैक्सीन लगने के कारण उनके मरने की संभावना अधिक हो जाती है. कोरोना से ठीक होने वालों की नेचुरल इम्युनिटी, वैक्सीन की तुलना में कहीं बेहतर होती है. टीके उनकी नेचुरल इम्युनिटी से समझौता कर सकते हैं.
उन्होंने एक खबर का हवाला देते हुए बच्चे कोरोना वैक्सीन क्यों न लगवाए. इसके दस कारण बताए हैं. उन्होंने कहा कि बच्चों को कोरोना की वैक्सीन नहीं लगवानी चाहिए. स्थित बहुत खराब है. बायोमेडिकल एथिक्स की अवहेलना की जा रही है. विज्ञान मर चुका है. नूर्नबर्ग कोड का उल्लंघन करते हुए माता-पिता को गलत जानकारी दी जा रही है.
यह भी पढ़ें- ट्विटर की वेबसाइट पर भारत का गलत नक्शा, जम्मू-कश्मीर, लद्दाख को दिखाया अलग देश
उन्होंने कहा कि मेरे मित्र और परिवार सहित बहुत से लोग ने मुझ पर वैक्सीन हिचकिचाहट को बढ़ावा देने का आरोप लगातें है, मुझे अपनी स्थिति स्पष्ट करने दें. मैं वैक्सीन विरोधी नहीं हूं, लेकिन मेरा मानना है कि प्रायोगिक और परीक्षण न किए गए टीकों के सार्वभौमिक टीकाकरण को बढ़ावा देना गैर-जिम्मेदाराना है, खासकर युवा और कोविड से ठीक हुए लोगों के लिए.
डॉ. तमोरिश कोले की प्रतिक्रिया
प्रशांत भूषण के बयान पर ईटीवी भारत से बात करते हुए एशियन सोसाइटी फॉर इमरजेंसी मेडिसिन के अध्यक्ष डॉ. तमोरिश कोले ने तीखी प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने कहा कि प्रशांत भूषण का बयान पूरी तरह से पर्सनल है और वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित नहीं है.
डॉ कोले ने कहा कि दूसरी लहर में युवा लोग, बूढ़े और सह-रुग्णता वाले रोगियों की तरह समान रूप से प्रभावित हुए थे. इस समय महामारी से बचने के लिए वैक्सीन ही सबसे बड़ा हथियार है. उन्होंने कहा कि सामान्य उपयोग के लिए अनुमति देने से पहले सभी टीकों का ठीक से परीक्षण किया जाता है.