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चिकित्सा पाठ्यपुस्तकों में कुछ सामग्री के खिलाफ याचिका पर विचार करें: केरल हाई कोर्ट - पर विचार करें

केरल हाई कोर्ट ने स्नातक चिकित्सा बोर्ड, नई दिल्ली को निर्देश दिया है कि वह दो गैर सरकारी संगठनों द्वारा चिकित्सा पाठ्यपुस्तकों में कथित सामग्री को लेकर दिए गए अभ्यावेदन पर विचार करे.

केरल हाई कोर्ट
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Published : Sep 8, 2021, 9:04 PM IST

कोच्चि : केरल उच्च न्यायालय (Kerala High Court) ने स्नातक चिकित्सा शिक्षा बोर्ड, नई दिल्ली को निर्देश दिया है कि वह चिकित्सा पाठ्यपुस्तकों में कथित क्वीर फोबिक सामग्री के खिलाफ एलजीबीटीक्यू समुदाय के कल्याण के लिए काम कर रहे दो गैर सरकारी संगठनों के अभ्यावेदन पर विचार करे.

अदालत ने अपने सात सितंबर के आदेश में बोर्ड को निर्देश दिया कि अंतिम निर्णय लेने से पहले वह गैर सरकारी संगठनों- क्वीरिदम और दिशा द्वारा दिए गए अभ्यावेदन पर केरल स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय, त्रिशूर की टिप्पणियों और विचारों को प्राप्त करे. आदेश की कॉपी बुधवार को उपलब्ध करायी गयी.

ये भी पढ़ें - कृषि कानून : कोर्ट नियुक्त समिति के सदस्यों ने रिपोर्ट को शत प्रतिशत किसानों के पक्ष में बताया

अदालत ने कहा कि तत्काल आदेश मिलने के आठ सप्ताह के भीतर फैसला लेना होगा. गैर सरकारी संगठनों ने कहा कि लेस्बियन, गे, बाय-सेक्सुअल, ट्रांसजेंडर और क्वीर (एलजीबीटीक्यू) समुदाय के संबंध में पाठ्यपुस्तकों में भेदभावपूर्ण टिप्पणी और अमानवीय संदर्भ दिए गए हैं.

उन्होंने आरोप लगाया कि किताबों की सामग्री में समुदाय की यौन या लिंग पहचान को अपराध, मानसिक विकार या विकृति के रूप में चित्रित किया गया है. उन्होंने कहा कि यह उनके मौलिक और संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है, जिसे उच्चतम न्यायालय द्वारा भी मान्यता दी गई है, जिसने सहमति के साथ वयस्कों के बीच समलैंगिक यौन संबंध को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया है.

(पीटीआई-भाषा)

कोच्चि : केरल उच्च न्यायालय (Kerala High Court) ने स्नातक चिकित्सा शिक्षा बोर्ड, नई दिल्ली को निर्देश दिया है कि वह चिकित्सा पाठ्यपुस्तकों में कथित क्वीर फोबिक सामग्री के खिलाफ एलजीबीटीक्यू समुदाय के कल्याण के लिए काम कर रहे दो गैर सरकारी संगठनों के अभ्यावेदन पर विचार करे.

अदालत ने अपने सात सितंबर के आदेश में बोर्ड को निर्देश दिया कि अंतिम निर्णय लेने से पहले वह गैर सरकारी संगठनों- क्वीरिदम और दिशा द्वारा दिए गए अभ्यावेदन पर केरल स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय, त्रिशूर की टिप्पणियों और विचारों को प्राप्त करे. आदेश की कॉपी बुधवार को उपलब्ध करायी गयी.

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अदालत ने कहा कि तत्काल आदेश मिलने के आठ सप्ताह के भीतर फैसला लेना होगा. गैर सरकारी संगठनों ने कहा कि लेस्बियन, गे, बाय-सेक्सुअल, ट्रांसजेंडर और क्वीर (एलजीबीटीक्यू) समुदाय के संबंध में पाठ्यपुस्तकों में भेदभावपूर्ण टिप्पणी और अमानवीय संदर्भ दिए गए हैं.

उन्होंने आरोप लगाया कि किताबों की सामग्री में समुदाय की यौन या लिंग पहचान को अपराध, मानसिक विकार या विकृति के रूप में चित्रित किया गया है. उन्होंने कहा कि यह उनके मौलिक और संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है, जिसे उच्चतम न्यायालय द्वारा भी मान्यता दी गई है, जिसने सहमति के साथ वयस्कों के बीच समलैंगिक यौन संबंध को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया है.

(पीटीआई-भाषा)

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