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कांग्रेस ने दिल्ली में ट्रांसफर पोस्टिंग से जुड़े अध्यादेश के विरोध की खबरों का किया खंडन - दिल्ली सरकार

दिल्ली में ट्रांसफर पोस्टिंग से जुड़े अध्यादेश के विरोध की खबरों का कांग्रेस ने खंडन कर दिया है. कांग्रेस नेता अजय माकन ने कहा है कि दिल्ली अध्यादेश के विरोध पर कोई फैसला नहीं किया है. इस बारे में प्रदेश इकाई और सहयोगी दलों से मशविरा करेंगे.

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दिल्ली अध्यादेश
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Published : May 23, 2023, 1:41 PM IST

नई दिल्ली: दिल्ली अध्यादेश के विरोध पर कांग्रेस ने कोई फैसला नहीं लिया है. कांग्रेस के पूर्व केंद्रीय मंत्री अजय माकन ने कहा है प्रदेश इकाई और सहयोगी दलों से मशविरा करेंगे. उसके बाद कोई निर्णय लिया जाएगा. दरअसल, आम आदमी पार्टी को दिल्ली के अफसरों के ट्रांसफर पोस्टिंग को लेकर केंद्र सरकार के अध्यादेश के मुद्दे पर कांग्रेस का समर्थन मिलने की उम्मीद थी लेकिन अब कांग्रेस ने इन खबरों का खंडन कर दिया है.

कांग्रेस ने अधिकारियों की नियुक्ति के संबंध में दिल्ली सरकार की एनसीटी की शक्तियों पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ लाए गए अध्यादेश के मुद्दे पर कोई निर्णय नहीं लिया है. कांग्रेस ने कहा है कि पार्टी कानून के शासन में विश्वास करती है और साथ ही किसी भी राजनीतिक दल द्वारा राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ झूठ पर आधारित राजनीतिक टकराव की अनुमति नहीं देती है.

दिल्ली इकाई के पूर्व प्रमुख और पूर्व केंद्रीय मंत्री अजय माकन अध्यादेश के मामले में नए तर्कों के साथ सामने आए हैं. माकन ने कहा है कि केजरीवाल का समर्थन करने और अध्यादेश का विरोध करने वाला अनिवार्य रूप से पंडित जवाहरलाल नेहरू, बाबा साहिब अंबेडकर, सरदार पटेल, लाल बहादुर शास्त्री और नरसिम्हा राव के ज्ञान और फैसलों के खिलाफ जा रहा है, जबकि अहम सवाल ये है कि अगर दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री बिना हंगामे के अपनी भूमिका निभा सकते थे, तो केजरीवाल अब अराजकता क्यों भड़का रहे हैं? क्या यह महज राजनीतिक दिखावा है? दुर्भाग्य से यह दिल्ली है जो इस अशांति का खामियाजा भुगत रही है? इस उथल-पुथल में दिल्ली सबसे अधिक पीड़ित है.

ये भी पढ़ें- केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटा, दिल्ली के अधिकारियों के ट्रांसफर पोस्टिंग पर अध्यादेश जारी

राजनीतिक कारणों का हवाला देते हुए माकन ने कहा कि केजरीवाल ने कांग्रेस का समर्थन मांगा लेकिन भाजपा का समर्थन किया और एक प्रस्ताव पारित कर केंद्र से पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी से भारत रत्न वापस लेने का आग्रह किया. उन्होंने कहा कि इसके अलावा, केजरीवाल ने संसद के अंदर और बाहर जम्मू-कश्मीर (अनुच्छेद 370 को हटाने) के मुद्दे पर भी भाजपा का समर्थन किया.

आपको बता दें कि दिल्ली में अधिकारियों की नियुक्ति पर केंद्र सरकार के नियंत्रण से संबंधित दिल्ली अध्यादेश अरविंद और भाजपा शासित केंद्र के बीच विवाद का कारण बन गया है. केंद्र सरकार ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिल्ली सरकार के पक्ष में फैसला सुनाए जाने के बाद अध्यादेश लाया, जो स्थानीय प्रशासन में अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग पर नियंत्रण रखने को लेकर केंद्र के साथ कानूनी लड़ाई में उलझा हुआ था.

केंद्र को जुलाई में संसद के आगामी मानसून सत्र में अध्यादेश पारित होने की उम्मीद है. भाजपा के पास लोकसभा में प्रचंड बहुमत है और निचले सदन में अध्यादेश को मंजूरी दिलाने में उसे कोई परेशानी नहीं होगी. लेकिन राज्यसभा पेंच फंस सकता है. राज्यसभा में विपक्ष विवादास्पद अध्यादेश के पारित होने को रोक सकता है.

राजनीतिक अवसर को भांप चुके केजरीवाल इस मुद्दे पर अन्य विपक्षी दलों को एकजुट करने की कोशिश कर रहे हैं. केजरीवाल ने अध्यादेश को शीर्ष अदालत के आदेश को नकारने का प्रयास करार दिया था और इसके विरोध में 11 जून को दिल्ली में एक बड़ी रैली करेंगे. दिल्ली और पंजाब में आप से लड़ने वाली कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का समर्थन किया है, लेकिन पार्टी के भीतर इस मुद्दे पर तीखी बहस चल रही है क्योंकि दिल्ली इकाई इस गिनती पर केजरीवाल का समर्थन करने के खिलाफ है.

नई दिल्ली: दिल्ली अध्यादेश के विरोध पर कांग्रेस ने कोई फैसला नहीं लिया है. कांग्रेस के पूर्व केंद्रीय मंत्री अजय माकन ने कहा है प्रदेश इकाई और सहयोगी दलों से मशविरा करेंगे. उसके बाद कोई निर्णय लिया जाएगा. दरअसल, आम आदमी पार्टी को दिल्ली के अफसरों के ट्रांसफर पोस्टिंग को लेकर केंद्र सरकार के अध्यादेश के मुद्दे पर कांग्रेस का समर्थन मिलने की उम्मीद थी लेकिन अब कांग्रेस ने इन खबरों का खंडन कर दिया है.

कांग्रेस ने अधिकारियों की नियुक्ति के संबंध में दिल्ली सरकार की एनसीटी की शक्तियों पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ लाए गए अध्यादेश के मुद्दे पर कोई निर्णय नहीं लिया है. कांग्रेस ने कहा है कि पार्टी कानून के शासन में विश्वास करती है और साथ ही किसी भी राजनीतिक दल द्वारा राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ झूठ पर आधारित राजनीतिक टकराव की अनुमति नहीं देती है.

दिल्ली इकाई के पूर्व प्रमुख और पूर्व केंद्रीय मंत्री अजय माकन अध्यादेश के मामले में नए तर्कों के साथ सामने आए हैं. माकन ने कहा है कि केजरीवाल का समर्थन करने और अध्यादेश का विरोध करने वाला अनिवार्य रूप से पंडित जवाहरलाल नेहरू, बाबा साहिब अंबेडकर, सरदार पटेल, लाल बहादुर शास्त्री और नरसिम्हा राव के ज्ञान और फैसलों के खिलाफ जा रहा है, जबकि अहम सवाल ये है कि अगर दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री बिना हंगामे के अपनी भूमिका निभा सकते थे, तो केजरीवाल अब अराजकता क्यों भड़का रहे हैं? क्या यह महज राजनीतिक दिखावा है? दुर्भाग्य से यह दिल्ली है जो इस अशांति का खामियाजा भुगत रही है? इस उथल-पुथल में दिल्ली सबसे अधिक पीड़ित है.

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राजनीतिक कारणों का हवाला देते हुए माकन ने कहा कि केजरीवाल ने कांग्रेस का समर्थन मांगा लेकिन भाजपा का समर्थन किया और एक प्रस्ताव पारित कर केंद्र से पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी से भारत रत्न वापस लेने का आग्रह किया. उन्होंने कहा कि इसके अलावा, केजरीवाल ने संसद के अंदर और बाहर जम्मू-कश्मीर (अनुच्छेद 370 को हटाने) के मुद्दे पर भी भाजपा का समर्थन किया.

आपको बता दें कि दिल्ली में अधिकारियों की नियुक्ति पर केंद्र सरकार के नियंत्रण से संबंधित दिल्ली अध्यादेश अरविंद और भाजपा शासित केंद्र के बीच विवाद का कारण बन गया है. केंद्र सरकार ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिल्ली सरकार के पक्ष में फैसला सुनाए जाने के बाद अध्यादेश लाया, जो स्थानीय प्रशासन में अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग पर नियंत्रण रखने को लेकर केंद्र के साथ कानूनी लड़ाई में उलझा हुआ था.

केंद्र को जुलाई में संसद के आगामी मानसून सत्र में अध्यादेश पारित होने की उम्मीद है. भाजपा के पास लोकसभा में प्रचंड बहुमत है और निचले सदन में अध्यादेश को मंजूरी दिलाने में उसे कोई परेशानी नहीं होगी. लेकिन राज्यसभा पेंच फंस सकता है. राज्यसभा में विपक्ष विवादास्पद अध्यादेश के पारित होने को रोक सकता है.

राजनीतिक अवसर को भांप चुके केजरीवाल इस मुद्दे पर अन्य विपक्षी दलों को एकजुट करने की कोशिश कर रहे हैं. केजरीवाल ने अध्यादेश को शीर्ष अदालत के आदेश को नकारने का प्रयास करार दिया था और इसके विरोध में 11 जून को दिल्ली में एक बड़ी रैली करेंगे. दिल्ली और पंजाब में आप से लड़ने वाली कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का समर्थन किया है, लेकिन पार्टी के भीतर इस मुद्दे पर तीखी बहस चल रही है क्योंकि दिल्ली इकाई इस गिनती पर केजरीवाल का समर्थन करने के खिलाफ है.

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