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कांग्रेस पैनल ने मणिपुर संकट को गंभीर बताया, पीएम से बैठक बुलाने की अपील

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Published : May 24, 2023, 6:34 PM IST

मणिपुर में हुई हिंसा को लेकर कांग्रेस पैनल ने गंभीर बताते हुए प्रधानमंत्री से कुकी जनजाति और मैतेई समुदाय के लोगों से खुली बातचीत करने के लिए बैठक बुलाने की अपील की है. पढ़िए ईटीवी भारत के वरिष्ठ संवाददाता अमित अग्निहोत्री की रिपोर्ट...

Congress panel
कांग्रेस पैनल

नई दिल्ली : मणिपुर में हाल ही में हुई हिंसा की जांच करने वाले कांग्रेस के एक पैनल ने पूर्वोत्तर राज्य की स्थिति पर चिंता जताते हुए मांग की है कि प्रधानमंत्री को कुकी जनजाति और मैतेई समुदाय से खुली बातचीत के लिए तुरंत एक बैठक बुलानी चाहिए. इस बारे में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने 17 मई को तीन सदस्यीय पैनल का नाम रखा था, जिसमें मुकुल वासनिक, अजय कुमार और सुदीप रॉय का नाम शामिल किया गया है. कांग्रेस ने मांग करते हुए कहा है कि पीएम, गृह मंत्रालय को शांति वार्ता आयोजित करने के लिए इन समुदाय के नेताओं की बैठक बुलानी चाहिए. साथ ही कहा गया है कि राज्य में लोग आपस में बातचीत नहीं कर रहे हैं.

मैतेई और कुकी के द्वारा खुद राहत शिविर चलाया जा रहा है. लेकिन राज्य सरकार कहीं भी राहत और शांति बहाल करती नजर नहीं आ रही है. वहीं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और जांच पैनल के सदस्य अजय कुमार ने कहा कि दो मुख्य समुदायों के बीच एक संवाद आवश्यकता है. उन्होंने कहा कि विस्थापित 54 हजार लोगों के लिए तत्काल पुनर्वास होना चाहिए. मणिपुर के हालात का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 20 थाने जलाए गए, 20000 घर जलाए गए, पुलिस से 1000 सेमी ऑटोमेटिक राइफलें लूटी गईं, 150 चर्च चलाए जाने के साथ ही करीब 150 सशस्त्र दस्ते आजाद घूम रहे हैं.

कांग्रेस नेता के अनुसार, केंद्र को सीमावर्ती राज्य मणिपुर में भारी सामाजिक अशांति पर ध्यान देना चाहिए. पूर्व आईपीएस अधिकारी अजॉय कुमार ने कहा कि संकट अब केवल मणिपुर तक ही सीमित नहीं है. हजारों विस्थापित लोग सीमा पार कर मिजोरम आ गए हैं. इसके अलावा, एक सीमावर्ती राज्य में सामाजिक अशांति का हमारे पड़ोसी फायदा उठा सकते हैं. सीमावर्ती क्षेत्रों में कोई सुरक्षा नहीं है. इससे भी बदतर, आगजनी मंगलवार को फिर से शुरू हो गई. उन्होंने कहा कि अगर मणिपुर के प्रवासी मिजोरम जा रहे हैं, तो समस्या दूसरे राज्यों में बढ़ रही है. केंद्र को यह समझना चाहिए. उन्होंने कहा कि संकट को लेकर पीएम या एचएम की ओर से कोई ट्वीट नहीं किया गया है.

ये भी पढ़ें - मणिपुर में हिंसा के बाद स्थिति तनावपूर्ण, लेकिन काबू में

कांग्रेस नेता के मुताबिक, बीजेपी के मंत्री कई बार चुनाव से पहले मणिपुर का दौरा करते थे, लेकिन वे भी हाल में भड़की घटनाओं पर चुप्पी साधे हुए हैं. उन्होंने कहा कि पहाड़ी लोगों के अलावा मैदानी लोगों ने अपना ठिकाना बदल लिया है. जबकि राज्य में ऐसा कभी नहीं हुआ. उन्होंने कहा कि मणिपुर में हुई त्रासदी पर पर्दा डालने की कोशिश की गई है. प्रधानमंत्री विदेश में रैलियां कर रहे हैं और राज्य में लोगों के आंसू पोंछने वाला कोई नहीं है. वे कानून और व्यवस्था को बिगाड़ना चाहते थे, लेकिन इस पर कोई चर्चा नहीं हुई क्योंकि कर्नाटक चुनाव के दौरान हालात बन गई थी. समस्या वास्तव में 3 मई को शुरू हुई, जब उपराष्ट्रपति ने राज्य का दौरा किया.

कुमार ने कहा कि सीएम बीरेन सिंह ने कुकी जनजातियों को अप्रवासी के रूप बताया. उन्होंने कहा कि हमने ऐसी सरकार चुनी है जिसे परवाह नहीं है. लेकिन सबसे बड़ी चिंता यह है कि दोनों ही तरफ की बागडोर चरमपंथियों के हाथों में चली गई है. एक उदाहरण का हवाला देते हुए, कांग्रेस नेता ने कहा कि इंफाल शवगृह में 70 शव लावारिस पड़े थे और चुराचंदपुर के एक अस्पताल में 10 शव लावारिस पड़े थे, जहां से समस्याएं शुरू हुईं. उन्होंने कहा, इससे पता चलता है कि लोग इतने डरे हुए हैं कि वे अपने परिजनों के शवों का दावा भी नहीं कर रहे हैं.

ये भी पढ़ें- Violence in Manipur : मणिपुर में फिर भड़की हिंसा, कई घरों को किया गया आग के हवाले

नई दिल्ली : मणिपुर में हाल ही में हुई हिंसा की जांच करने वाले कांग्रेस के एक पैनल ने पूर्वोत्तर राज्य की स्थिति पर चिंता जताते हुए मांग की है कि प्रधानमंत्री को कुकी जनजाति और मैतेई समुदाय से खुली बातचीत के लिए तुरंत एक बैठक बुलानी चाहिए. इस बारे में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने 17 मई को तीन सदस्यीय पैनल का नाम रखा था, जिसमें मुकुल वासनिक, अजय कुमार और सुदीप रॉय का नाम शामिल किया गया है. कांग्रेस ने मांग करते हुए कहा है कि पीएम, गृह मंत्रालय को शांति वार्ता आयोजित करने के लिए इन समुदाय के नेताओं की बैठक बुलानी चाहिए. साथ ही कहा गया है कि राज्य में लोग आपस में बातचीत नहीं कर रहे हैं.

मैतेई और कुकी के द्वारा खुद राहत शिविर चलाया जा रहा है. लेकिन राज्य सरकार कहीं भी राहत और शांति बहाल करती नजर नहीं आ रही है. वहीं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और जांच पैनल के सदस्य अजय कुमार ने कहा कि दो मुख्य समुदायों के बीच एक संवाद आवश्यकता है. उन्होंने कहा कि विस्थापित 54 हजार लोगों के लिए तत्काल पुनर्वास होना चाहिए. मणिपुर के हालात का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 20 थाने जलाए गए, 20000 घर जलाए गए, पुलिस से 1000 सेमी ऑटोमेटिक राइफलें लूटी गईं, 150 चर्च चलाए जाने के साथ ही करीब 150 सशस्त्र दस्ते आजाद घूम रहे हैं.

कांग्रेस नेता के अनुसार, केंद्र को सीमावर्ती राज्य मणिपुर में भारी सामाजिक अशांति पर ध्यान देना चाहिए. पूर्व आईपीएस अधिकारी अजॉय कुमार ने कहा कि संकट अब केवल मणिपुर तक ही सीमित नहीं है. हजारों विस्थापित लोग सीमा पार कर मिजोरम आ गए हैं. इसके अलावा, एक सीमावर्ती राज्य में सामाजिक अशांति का हमारे पड़ोसी फायदा उठा सकते हैं. सीमावर्ती क्षेत्रों में कोई सुरक्षा नहीं है. इससे भी बदतर, आगजनी मंगलवार को फिर से शुरू हो गई. उन्होंने कहा कि अगर मणिपुर के प्रवासी मिजोरम जा रहे हैं, तो समस्या दूसरे राज्यों में बढ़ रही है. केंद्र को यह समझना चाहिए. उन्होंने कहा कि संकट को लेकर पीएम या एचएम की ओर से कोई ट्वीट नहीं किया गया है.

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कांग्रेस नेता के मुताबिक, बीजेपी के मंत्री कई बार चुनाव से पहले मणिपुर का दौरा करते थे, लेकिन वे भी हाल में भड़की घटनाओं पर चुप्पी साधे हुए हैं. उन्होंने कहा कि पहाड़ी लोगों के अलावा मैदानी लोगों ने अपना ठिकाना बदल लिया है. जबकि राज्य में ऐसा कभी नहीं हुआ. उन्होंने कहा कि मणिपुर में हुई त्रासदी पर पर्दा डालने की कोशिश की गई है. प्रधानमंत्री विदेश में रैलियां कर रहे हैं और राज्य में लोगों के आंसू पोंछने वाला कोई नहीं है. वे कानून और व्यवस्था को बिगाड़ना चाहते थे, लेकिन इस पर कोई चर्चा नहीं हुई क्योंकि कर्नाटक चुनाव के दौरान हालात बन गई थी. समस्या वास्तव में 3 मई को शुरू हुई, जब उपराष्ट्रपति ने राज्य का दौरा किया.

कुमार ने कहा कि सीएम बीरेन सिंह ने कुकी जनजातियों को अप्रवासी के रूप बताया. उन्होंने कहा कि हमने ऐसी सरकार चुनी है जिसे परवाह नहीं है. लेकिन सबसे बड़ी चिंता यह है कि दोनों ही तरफ की बागडोर चरमपंथियों के हाथों में चली गई है. एक उदाहरण का हवाला देते हुए, कांग्रेस नेता ने कहा कि इंफाल शवगृह में 70 शव लावारिस पड़े थे और चुराचंदपुर के एक अस्पताल में 10 शव लावारिस पड़े थे, जहां से समस्याएं शुरू हुईं. उन्होंने कहा, इससे पता चलता है कि लोग इतने डरे हुए हैं कि वे अपने परिजनों के शवों का दावा भी नहीं कर रहे हैं.

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