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राफेल सौदे में बिचौलिए को कंपनी ने दिए करोड़ों रुपये, हो निष्पक्ष जांच : कांग्रेस

कांग्रेस के प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि फ्रांस के पब्लिकेशन ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया है कि 2016 में जब भारत और फ्रांस में राफेल लड़ाकू विमान को लेकर डील हुई थी, तब फ्रांस की डसॉल्ट ने भारतीय बिचौलिए को 1.1 मिलियन यूरो का भुगतान उपहार के रूप में दिया. क्या यह भुगतान बिचौलिए को कमीशन के रूप में दिया गया था. इसका जवाब सरकार को देना चाहिए.

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Published : Apr 5, 2021, 4:54 PM IST

नई दिल्ली : फ्रांस की एक रिपोर्ट के बाद राफेल सौदे के बारे में नए खुलासे किए गए हैं. कांग्रेस पार्टी ने आरोप लगाया है कि डसॉल्ट द्वारा एक बिचौलिए को 1.1 मिलियन यूरो का भुगतान किया गया. कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा कि इस मामले में स्वतंत्र जांच की जानी चाहिए.

कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता और महासचिव रणदीप सिंह सुरजेवाला ने प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा कि डसॉल्ट एविएशन से भारत का सबसे बड़ा रक्षा सौदा सरकारी खजाने को नुकसान पहुंचाने वाला है. यह क्रोनी कैपिटलिज्म (सहचर पूंजीवाद) की संस्कृति को बढ़ावा देने वाला है. उन्होंने कहा कि इस रक्षा खरीद प्रक्रिया में निर्धारित अनिवार्य पहलुओं की उपेक्षा की गई.

कांग्रेस ने लगाए आरोप

कांग्रेस ने कहा रक्षा खरीद प्रक्रिया के तहत भारत सरकार की नीति है कि प्रत्येक रक्षा खरीद अनुबंध में एक 'इंटेग्रिटी क्लॉज' होगा. इससे किसी भी बिचौलिया को कमीशन या रिश्वत का भुगतान नहीं हो सकता है. बिचौलिया को कमीशन या रिश्वत का कोई भी साक्ष्य मिलता है, तो आपूर्तिकर्ता रक्षा कंपनी पर प्रतिबंध लगाने, अनुबंध रद्द करने, एफआईआर दर्ज करने और कंपनी पर भारी वित्तीय जुर्माना लगाने के दंडात्मक अधिकार होते हैं.


2016 में राफेल सौदा

फ्रांसीसी पत्रिका में यह कहा गया है कि 'फ्रेंच एंटी-करप्शन एजेंसी-एएफए' द्वारा की गई जांच से पता चला है कि 2016 में राफेल सौदे के लिए डसॉल्ट ने एक बिचौलिया डिफिस सॉल्यूशंस को 1.1 मिलियन यूरो का भुगतान किया. इस राशि को डसॉल्ट द्वारा ग्राहकों को उपहार के रूप में व्यय दिखाया गया है. बिचौलिए पर अब भारत में एक और रक्षा सौदे में मनी लॉन्ड्रिंग मामले का आरोप है.

फ्रेंच एंटी-करप्शन एजेंसी की जांच

फ्रांसीसी रिपोर्ट में कहा गया है कि 30 मार्च 2017 को डसॉल्ट ने फ्रेंच एंटी-करप्शन एजेंसी को स्पष्टीकरण देते हुए कहा कि यह राफेल के 50 मॉडलों के निर्माण के लिए भुगतान था. हालांकि, एएफए ने संदेह जताया था कि डसॉल्ट ने एक भारतीय कंपनी को अपने स्वयं के विमान के मॉडल बनाने के लिए क्यों कहा और वह भी 20,000 यूरो प्रति दर पर.

पीएम मोदी से भी मांगा जवाब

कांग्रेस प्रवक्ता सुरजेवाला ने जोर देकर कहा कि क्या डसॉल्ट पर भारी वित्तीय जुर्माना लगाने, कंपनी पर प्रतिबंध लगाने, एफआईआर दर्ज करने और अन्य दंडात्मक कार्रवाई पर रोक लगाने का काम किया गया? क्या अब भारत के सबसे बड़े रक्षा सौदे की स्वतंत्र जांच की आवश्यकता नहीं है? कांग्रेस ने इस मामले पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से जवाब देने की भी मांग की है.

यह भी पढ़ें-महाराष्ट्र के गृहमंत्री अनिल देशमुख ने दिया इस्तीफा

विपक्षी दलों ने 2019 के आम चुनावों के दौरान इस मुद्दे को जोरदार तरीके से उठाया था. कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने संयुक्त संसदीय समिति द्वारा जांच की मांग की थी. कांग्रेस ने डसॉल्ट द्वारा बनाए गए 36 राफेल युद्धक विमानों को खरीदने के लिए यूपीए सरकार के सौदे की जगह सरकारी स्वामित्व वाली हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) ने 126 राफेल खरीदने के लिए फ्रांस के साथ डील पर सवाल उठाया था.

नई दिल्ली : फ्रांस की एक रिपोर्ट के बाद राफेल सौदे के बारे में नए खुलासे किए गए हैं. कांग्रेस पार्टी ने आरोप लगाया है कि डसॉल्ट द्वारा एक बिचौलिए को 1.1 मिलियन यूरो का भुगतान किया गया. कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा कि इस मामले में स्वतंत्र जांच की जानी चाहिए.

कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता और महासचिव रणदीप सिंह सुरजेवाला ने प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा कि डसॉल्ट एविएशन से भारत का सबसे बड़ा रक्षा सौदा सरकारी खजाने को नुकसान पहुंचाने वाला है. यह क्रोनी कैपिटलिज्म (सहचर पूंजीवाद) की संस्कृति को बढ़ावा देने वाला है. उन्होंने कहा कि इस रक्षा खरीद प्रक्रिया में निर्धारित अनिवार्य पहलुओं की उपेक्षा की गई.

कांग्रेस ने लगाए आरोप

कांग्रेस ने कहा रक्षा खरीद प्रक्रिया के तहत भारत सरकार की नीति है कि प्रत्येक रक्षा खरीद अनुबंध में एक 'इंटेग्रिटी क्लॉज' होगा. इससे किसी भी बिचौलिया को कमीशन या रिश्वत का भुगतान नहीं हो सकता है. बिचौलिया को कमीशन या रिश्वत का कोई भी साक्ष्य मिलता है, तो आपूर्तिकर्ता रक्षा कंपनी पर प्रतिबंध लगाने, अनुबंध रद्द करने, एफआईआर दर्ज करने और कंपनी पर भारी वित्तीय जुर्माना लगाने के दंडात्मक अधिकार होते हैं.


2016 में राफेल सौदा

फ्रांसीसी पत्रिका में यह कहा गया है कि 'फ्रेंच एंटी-करप्शन एजेंसी-एएफए' द्वारा की गई जांच से पता चला है कि 2016 में राफेल सौदे के लिए डसॉल्ट ने एक बिचौलिया डिफिस सॉल्यूशंस को 1.1 मिलियन यूरो का भुगतान किया. इस राशि को डसॉल्ट द्वारा ग्राहकों को उपहार के रूप में व्यय दिखाया गया है. बिचौलिए पर अब भारत में एक और रक्षा सौदे में मनी लॉन्ड्रिंग मामले का आरोप है.

फ्रेंच एंटी-करप्शन एजेंसी की जांच

फ्रांसीसी रिपोर्ट में कहा गया है कि 30 मार्च 2017 को डसॉल्ट ने फ्रेंच एंटी-करप्शन एजेंसी को स्पष्टीकरण देते हुए कहा कि यह राफेल के 50 मॉडलों के निर्माण के लिए भुगतान था. हालांकि, एएफए ने संदेह जताया था कि डसॉल्ट ने एक भारतीय कंपनी को अपने स्वयं के विमान के मॉडल बनाने के लिए क्यों कहा और वह भी 20,000 यूरो प्रति दर पर.

पीएम मोदी से भी मांगा जवाब

कांग्रेस प्रवक्ता सुरजेवाला ने जोर देकर कहा कि क्या डसॉल्ट पर भारी वित्तीय जुर्माना लगाने, कंपनी पर प्रतिबंध लगाने, एफआईआर दर्ज करने और अन्य दंडात्मक कार्रवाई पर रोक लगाने का काम किया गया? क्या अब भारत के सबसे बड़े रक्षा सौदे की स्वतंत्र जांच की आवश्यकता नहीं है? कांग्रेस ने इस मामले पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से जवाब देने की भी मांग की है.

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विपक्षी दलों ने 2019 के आम चुनावों के दौरान इस मुद्दे को जोरदार तरीके से उठाया था. कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने संयुक्त संसदीय समिति द्वारा जांच की मांग की थी. कांग्रेस ने डसॉल्ट द्वारा बनाए गए 36 राफेल युद्धक विमानों को खरीदने के लिए यूपीए सरकार के सौदे की जगह सरकारी स्वामित्व वाली हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) ने 126 राफेल खरीदने के लिए फ्रांस के साथ डील पर सवाल उठाया था.

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