नई दिल्ली : Karnataka Election Results 2023 को देखकर ऐसा लगता है कि भाजपा के मुकाबले कांग्रेसी नेता अपनी बात ज्यादा प्रभावी तरीके से समझाने में सफल रहे हैं. वहीं भाजपा सरकार के खिलाफ लगे ठेकेदारों से कमीशन लेने के आरोपों के अलावा मठ से 30 फीसदी की रिश्वतखोरी का मामला चुनाव में भाजपा के खिलाफ गया. मुस्लिम आरक्षण, बजरंगबली और केरल स्टोरी का मुद्दा भी भाजपा के काम नहीं आया है.
कर्नाटक विधानसभा के चुनाव के परिणाम आने लगे हैं और अब कांग्रेस पार्टी की बहुमत वाली सरकार बनने की संभावना भी लगभग पक्की हो गई है, लेकिन भाजपा के कुछ नेता अभी भी अपनी पार्टी की सरकार बनाने का दावा और मतगणना खत्म होने तक परिणाम बदलने की उम्मीद लगाए हैं, लेकिन जिस तरह से रुझान परिणामों में बदल रहे हैं, उससे भारतीय जनता पार्टी की सरकार जाना लगभग तय हो गया है.
भारतीय जनता पार्टी की कर्नाटक विधानसभा में भाजपा की हार को देखते हुए ये बात तो लगभग तय हो गई है कि कांग्रेस पार्टी ने भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ कमीशन और भ्रष्टाचार का मुद्दा बखूबी भुनाया है. भले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी न खाऊंगा और न खाने दूंगा का नारा दिल्ली से उछालते रहे हों, लेकिन कर्नाटक में भाजपा नेता उसके उलट अपनी गंगा बहाते नजर आए है और दक्षिण में भाजपा का सबसे मजबूत किला कमीशन और भ्रष्टाचार के नाम पर ढह गया.
कर्नाटक के चुनाव में कमीशन और भ्रष्टाचार के प्रभाव को कम करने के लिए भाजपा ने नरेन्द्र मोदी व अमित शाह के साथ-साथ जेपी नड्डा की भी खूब रैलियां कीं, ताकि नेशनल लीडरों के नाम पर व देश के बड़े-बड़े मुद्दों पर जनता का ध्यान कमीशन और भ्रष्टाचार से भटका सके लेकिन कर्नाटक की जनता के मिजाज को भांप नहीं पायी. जनता राज्य में चल रहे कमीशन और भ्रष्टाचार के खेल से त्रस्त होकर बाहर का रास्ता दिखाने का मन बना लिया.
आपको याद होगा कि कांग्रेस पार्टी ने बीजेपी सरकार के भ्रष्टाचार को जमकर उछाला. कर्नाटक में बीजेपी सरकार में 40% कमीशन खोरी के आरोपों के साथ साथ मठ से 30 फीसद की रिश्वतखोरी का मामला भी लोगों के सामने लाया गया, जिसका आरोप कर्नाटक सरकार के मंत्रियों पर लगे थे. इसके अलावा स्कूलों के नाम पर रिश्वतखोरी के मामले को भी कांग्रेसी नेताओं ने चुनाव में जमकर उछाला है. इन सबका असर बोम्मई सरकार पर दिखायी दिया है.
वहीं भारतीय जनता पार्टी कर्नाटक के चुनाव में छाए रहे कमीशन और भ्रष्टाचार के मुद्दे को हिंदुत्व के नारे और बजरंगबली के सहारे दबाना चाहती थी, लेकिन भारतीय जनता पार्टी का एंटी इनकंबेंसी फैक्टर और भ्रष्टाचार के मुद्दे बजरंगबली भी दबा नहीं पाए और बीजेपी के सारे दावे और सारे प्रयोग फेल हो गए.
भारतीय जनता पार्टी ने राज्य सरकार की खराब छबि को चुनाव से दूर करने की कोशिश की और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आगे करके एक बार फिर चुनाव में उतरी थी और भाजपा को ऐसा लगता था कि मुस्लिम आरक्षण को खत्म करके अगर लिंगायत और वोक्कालिगा समुदाय को लुभाने की कोशिश करेंगे तो वह एक बार फिर से सत्ता में आ सकते हैं. लेकिन भाजपा की यह रणनीति काम नहीं आयी. भारतीय जनता पार्टी ने चुनाव प्रचार के आखिरी समय में बजरंगबली और केरल स्टोरी का भी मुद्दा जमकर भुलाने की कोशिश की, लेकिन चुनाव की तारीख के नजदीक आने पर इन दोनों का भी असर उस तरह से नहीं दिखा जिस तरह से भारतीय जनता पार्टी के नेता अपने पक्ष में माहौल बनाने के लिए कर रहे थे.
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