देहरादून: देशभर की तरह उत्तराखंड के अस्पतालों में भी कोरोना के मरीज कराह रहे हैं, कभी ऑक्सीजन की कमी तो कभी दवाइयों की आपूर्ति से वंचित मरीजों की सांसें सरकारी सिस्टम की लापरवाही से अटक रही हैं. लेकिन प्रदेश के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत हैं कि दुख-दर्द और आपदा के इस वक्त पर भी सबको 'मिठास' बांटने पर खुद की पीठ खुद ही ठोक रहे हैं.
वैसे इसका दूसरा पहलू ये भी है कि प्रदेश में जब अस्पताल मरीजों से खचाखच भरे हैं और उत्तराखंड के अस्पतालों के हालात बद से बदतर हैं. ऐसे मौके पर 'जुबां को मीठा' करने वाली चीनी की बात कर मुख्यमंत्री जाने-अनजाने प्रभावित परिवारों के घावों को भी कुरेद गए हैं. दरअसल, उत्तरकाशी में मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने चीनी को लेकर जो बयान दिया वो केवल जुबान फिसलने तक ही सीमित नहीं है, बल्कि मौजूदा हालातों में इसके दूसरे कई राजनीतिक मायने भी हैं.
प्रदेश में कैबिनेट ने 2 दिन पहले ही प्रत्येक परिवार को 2 किलो चीनी सस्ते गल्ले की दुकानों से दिए जाने पर सहमति जाहिर की है. कैबिनेट के फैसले को धरातल पर आने में कितना वक्त लगेगा ये तो नहीं कह सकते, लेकिन इस मुद्दे पर राजनीति करने में मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत एक सेकंड भी नहीं चूकना चाहते, शायद कारण है कि अपने पहाड़ी जिले के दौरे से ही उन्होंने अपने इस फैसले का बखान करना शुरू कर दिया.
वो बात अलग है कि मुख्यमंत्री साहब अपनी जुबान फिसलने की आदत के कारण एक बार फिर घिर गए हैं. बहरहाल, अपनी और अपनी सरकार की तारीफ करते करते सीएम साहब ने देश की आजादी के बाद चीनी देने के फैसले को ऐतिहासिक करार दे दिया. बस यहीं से बात बिगड़ गई.
दरअसल, देश की आजादी के बाद से ही राशन की दुकानों पर कम दामों में राशन कार्ड होल्डर्स को चीनी दी जाती रही है. आजादी के बाद दशकों तक चीनी बेहद कम दामों में राशन की दुकान पर मिलती रही और इसका फायदा गरीब परिवारों को होता रहा. यहां तक कि राशन कार्ड पर मिट्टी के तेल से लेकर चावल गेहूं और चीनी की उपलब्धता के बावजूद लोगों की पहली पसंद चीनी ही रही, लेकिन धीरे-धीरे वक्त आगे बढ़ने के साथ ही करीब 90 के बाद चीनी के राशन की दुकानों में अचानक दाम बढ़ा दिए गए, साथ ही प्रत्येक यूनिट पर चीनी की मात्रा को भी कम किया जाता रहा. इसके बाद मोदी सरकार में राशन की दुकानों पर चीनी पूरी तरह से बंद कर दी गई.
दरअसल, केंद्र सरकार की तरफ से राज्यों को चीनी का कोटा दिया जाता था. उत्तराखंड में करीब 6000 टन चीनी केंद्र की तरफ से भेजी जाती थी. साल 2016 के करीब चीनी प्रत्येक यूनिट 400 ग्राम दी जाती थी और इसके बाद केंद्र से कोटा खत्म होने के चलते राशन की दुकानों पर चीनी मिलना बंद हो गया.
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चीनी को लेकर यह इतिहास शायद मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत को नहीं पता है और शायद उन्हें कभी राशन की दुकान पर राशन लेने की जरूरत भी नहीं पड़ी होगी. शायद इसलिए मुख्यमंत्री देश के इतिहास को चीनी से कार्यकर्ताओं को गलत रूबरू करा रहे हैं.
वैसे इसका दूसरा पहलू ये भी है कि प्रदेश में जब अस्पताल मरीजों से खचाखच भरे हैं और उत्तराखंड के अस्पतालों के हालात बद से बदतर हैं ऐसे मौके पर 'जुबां को मीठा' करने वाली चीनी की बात कर मुख्यमंत्री जाने-अनजाने प्रभावित परिवारों के घावों को भी कुरेद गए हैं.
चुनाव नजदीक हैं लिहाजा मुख्यमंत्री कैबिनेट में 2 किलो चीनी देने के उस फैसले को इस मौके पर बताना जरूरी समझ रहे होंगे, लेकिन यह वक्त स्वास्थ्य सुविधाओं की बात करने का है और उन्हें जुटाने का भी, ऐसे में मुख्यमंत्री को ये याद रखना होगा कि साल 2022 में वोट तभी मिलेंगे जब प्रदेश में मूलभूत सुविधाओं पर चर्चा होगी और सरकार उस पर कुछ बेहतर कर पाएगी.