नई दिल्ली : जी-20 की अध्यक्षता के दौरान भारत ने जिस तरीके से देश की संस्कृति और आर्थिक प्रगति को दुनिया के सामने रखा है, उससे काफी सकारात्मक संदेश गया है. इन सारे मुद्दों के बीच एक ऐसा विषय भी है, जिस पर भारत का स्टैंड विकासशील देशों के लिए किसी आदर्श से कम नहीं है. वह मुद्दा है जलवायु का. उम्मीद की जा रही है कि जी-20 शिखर बैठक के दौरान भारत न सिर्फ इस मुद्दे की संवेदनशीलता से सदस्य देशों को अवगत कराएगा, बल्कि उन्हें अपना रूख बदलने के लिए विचार करने पर मजबूर भी करेगा.
वैसे तो भारत ने शून्य उत्सर्जन का संकल्प लिया हुआ है, लेकिन विकसित देश चाहते हैं कि भारत इसे कम समय में पूरा करे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2070 तक शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य निर्धारित किया है. जीडीपी में 45 फीसदी उत्सर्जन तीव्रता की कमी का भी भारत ने संकल्प लिया हुआ है. भारत ने इंटरनेशनल सोलर एलायंस की पहल की है. भारत ने एक्स्ट्रा कार्बन सिंक का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए फॉरेस्ट लॉ में संशोधन किए हैं.
इसके साथ ही भारत ने यह भी साफ कर दिया है कि वह किसी भी विकसित देश के दबाव में नहीं आएगा. भारत ने यह भी कहा है कि इस मुद्दे पर वह विकासशील देशों को साथ लेकर चलेगा और वह यह कभी नहीं चाहेगा कि इनका विकास प्रभावित हो. यही वजह है कि भारत ने जी-20 में अफ्रीकी संघ को भी पार्टीशिपेशन का प्रपोजल दिया है. उनके साथ जलवायु के मुद्दे पर बातचीत होगी, ताकि विकसित और विकासशील देशों के बीच भेदभाव न हो.
भारत ने गोवा में हुए जी-20 के ऊर्जा संबंधी बैठक के दौरान भी सबको अपनी सोच से अवगत करा दिया था. उस दौरान भी यह तथ्य उभरकर सामने आया कि जी-20 के सदस्य देशों के अधिकांश सदस्य कार्बन उत्सर्जन और जलवायु संकट के भागीदार हैं.
जलवायु पर भारत की स्थिति सर्वविविदत है. वह सबके साथ न्याय चाहता है, फिर चाहे वह विकासशील देश हो या फिर अन्य देश. भारत ने विकसित देशों के उस एजेंडे का हमेशा विरोध किया है, जिसमें वे विकासशील देशों को परिणाम भुगतने के लिए छोड़ देते हैं, ताकि वे विकास की दौड़ में वे पीछे रह जाएं. अगर आप इसका उदाहरण देखना चाहते हैं तो हाल ही में संपन्न हुई ब्रिक्स की बैठक का हवाला दे सकते हैं.
इस बैठक के दौरान भारत ने जिस तरीके से ग्लोबल साउथ का मुद्दा उठाया, उससे भारत को व्यापक समर्थन मिला. बैठक के घोषणा पत्र में जलवायु संकट का सामना करने के लिए सभी ने मिलकर आगे बढ़ने का संकल्प लिया. सभी देशों ने लंबी अवधि में कम से कम लो-कार्बन और लो-उत्सर्जन बेस्ड इकोनोमिक सिस्टम को डेवलप करने की प्रतिबद्धता जताई.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि जलवायु परिवर्तन, टेरोरिज्म और महामारियों का मुकाबला एक दूसरे के खिलाफ लड़कर नहीं, बल्कि एक दूसरे के साथ मिलकर सामना कर सकते हैं. आपको बता दें कि भारत समेत दुनिया की 20 सबसे बड़ी आर्थिक व्यवस्थाओं को संभालने वाले देशों का ग्रीन हाउस उत्सर्जन में योगदान 80 फीसदी तक है. तथ्य ये है कि ग्लोबल साउथ में जिन-जिन देशों ने भागीदारी की थी, उनमें से सात देश ऐसे हैं, जो जी-20 के भी सदस्य हैं. इसलिए उम्मीद की जा रही है कि जलवायु पर अच्छी बहस और अच्छी पहल हो सकती है. वैसे भी , इस बैठक के बाद सीओपी-28 की बैठक होनी है. इस बैठक को ग्लोबल स्टॉक टेक भी कहते हैं.
क्या है अमेरिका का स्टैंड - व्हाइट हाउस ने कहा है कि जी-20 शिखर सम्मेलन में राष्ट्रपति जो बाइडन जिन महत्वपूर्ण मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करेंगे उनमें विकासशील देशों के लिए काम करना, जलवायु, प्रौद्योगिकी जैसे विषयों पर प्रगति करना और बहुपक्षीय विकास बैंकों को नया आकार देना शामिल हैं. व्हाइट हाउस ने उम्मीद जताई कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में समूह इन विषयों पर प्रगति करने में सक्षम होगा.
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(एक्स्ट्रा इनपुट- एजेंसी)