लखनऊ: बिकरु कांड में हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे और उसके साथियों को मार गिराने वाली पुलिस को जांच आयोग ने क्लीन चिट दे दी है. रिटायर्ड जज बीएस चौहान की अध्यक्षता में गठित तीन सदस्यीय जांच आयोग ने अपनी रिपोर्ट सौंपी है. बता दें, जांच आयोग में हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश शशिकांत अग्रवाल व सेवानिवृत्त डीजीपी केएल गुप्ता शामिल हैं.
वहीं, जांच रिपोर्ट में विकास दुबे से मिलीभगत करने वाले पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई की सिफारिश भी की गई है. जानकारी के मुताबिक न्यायिक आयोग की रिपोर्ट गुरुवार को विधानसभा में के पटल पर रखी गई. दो जुलाई 2020 की रात कानपुर के बिकरु गांव में सीओ समेत आठ पुलिसकर्मियों की हत्या कर दी गई थी. पुलिस ने तीन से 10 जुलाई 2020 के मध्य अपराधी विकास दुबे उसके साथी प्रेम प्रकाश पांडे, अमर दुबे, अतुल दुबे, प्रभात और प्रवीण दुबे को मुठभेड़ में मार गिराया था. इस घटना की जांच के लिए सरकार ने आयोग का गठन किया था. आयोग ने 797 पेज की रिपोर्ट सरकार को सौंपी है. इसमें से 132 पेज की रिपोर्ट और 665 पेज की तथ्यात्मक सामग्री है.
बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्र ने कानपुर के बहुचर्चित बिकरू कांड के मुख्य अभियुक्त विकास दुबे की पुलिस मुठभेड़ में हुई मौत को सही ठहराने वाली जांच आयोग की रिपोर्ट की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए. उन्होंने कहा कि बसपा की सरकार बनने पर इस कांड की फिर से विस्तृत जांच की जाएगी.
मिश्र ने जिला मुख्यालय पर बसपा के प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन से इतर संवाददाताओं से बातचीत में कानपुर के बिकरू कांड के मुख्य अभियुक्त विकास दुबे की पुलिस मुठभेड़ में हुई मौत को सही ठहराने वाली न्यायिक आयोग की जांच रिपोर्ट की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े किए.
उन्होंने न्यायिक आयोग की जांच रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि जांच समिति मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के अधीन है और उसकी रिपोर्ट की कोई विश्वसनीयता नहीं है. मिश्र ने कहा, 'बसपा का सरकार बनने दीजिए, दोबारा सारे तथ्यों की जांच की जाएगी.''
उन्होंने पिछले साल हाथरस में दलित युवती के साथ सामूहिक दुष्कर्म और मौत की घटना याद दिलाते हुए सवाल किया कि उस जांच में क्या हुआ. इस मामले में राजनीतिक दलों ने आंदोलन किये, जिसके बाद जांच पुलिस से लेकर सीबीआई को सौंपी गई थी.
आयोग ने घटनाक्रम में स्थानीय पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों के रवैया के साथ ही न्यायिक सुधारों के संबंध में भी कई सिफारिशें की हैं. आयोग ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि विकास दुबे से हुई मुठभेड़ में शामिल पुलिस टीम ने जो रिपोर्ट सामने रखी उसका खंडन न तो जनता ने किया और न ही मीडिया ने. मुठभेड़ को फर्जी बताने वाली विकास की पत्नी रिचा दुबे ने हलफनामा तो दिया था, लेकिन वह भी आयोग के सामने अपना पक्ष रखने नहीं आईं. मजिस्ट्रेटी जांच रिपोर्ट में भी ऐसे ही निष्कर्ष आए थे.
इसके साथ-साथ रिपोर्ट में कहा गया है कि विकास और उसके गैंग में शामिल सभी अपराधियों को स्थानीय पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों का संरक्षण मिला था. स्थानीय थाने और राजस्व के अधिकारी विकास दुबे के संपर्क में थे और कई सुविधाएं ले रहे थे. विकास दुबे का वर्चस्व अफसरों के संरक्षण में ही फल फूल रहा था.
बिकरु कांड को लेकर सौंपी गई रिपोर्ट में कहा गया है कि विकास दुबे पर कार्रवाई पुलिस और प्रशासन की अनदेखी का नतीजा था. विकास दुबे सर्किल के टॉप टेन अपराधियों में शामिल था, लेकिन जिले के टॉप टेन अपराधियों की सूची में नहीं था. विकास दुबे और उसके गैंग पर 64 मुकदमे दर्ज थे, लेकिन विकास दुबे के लोग शांति समितियों के भी सदस्य थे.
(एजेंसी इनपुट)