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भारत में कोविड-19 के दौरान गरीबी बढ़ने का दावा सरासर गलत: अरविंद पनगढ़िया

कोविड-19 महामारी के समय देश में गरीबी और असमानता बढ़ने का दावा किया जाना पूरी तरह से गलत है. उक्त बातें अर्थशास्त्री अरविंद पनगढ़िया (economist Arvind Panagariya) ने अपने शोध में कहीं हैं. उन्होंने शोध में कहा है कि कोविड-19 के बाद सालाना आधार पर असमानता शहरी और ग्रामीण दोनों ही क्षेत्रों में घटी है.

economist Arvind Panagariya
अर्थशास्त्री अरविंद पनगढ़िया
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Published : Mar 20, 2023, 4:32 PM IST

न्यूयार्क : जाने-माने अर्थशास्त्री अरविंद पनगढ़िया (economist Arvind Panagariya) ने कहा है कि कोविड-19 महामारी के दौरान भारत में गरीबी और असमानता बढ़ने का दावा सरासर गलत हैं. उन्होंने कहा कि ये दावे विभिन्न सर्वे पर आधारित हैं, जिनकी तुलना नहीं की जा सकती है. उन्होंने एक शोध पत्र में यह भी कहा है कि वास्तव में कोविड के दौरान देश में ग्रामीण और शहरी के साथ-साथ राष्ट्रीय स्तर पर असामानता कम हुई है.

कोलंबिया विश्वविद्यालय में प्रोफेसर और नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष पनगढ़िया और इंटेलिंक एडवाइजर्स के विशाल मोरे ने मिलकर 'भारत में गरीबी और असमानता: कोविड-19 के पहले और बाद में' शीर्षक से यह शोध पत्र लिखा है. कोलंबिया विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल एंड पब्लिक अफेयर्स में भारतीय आर्थिक नीति पर आयोजित आगामी सम्मेलन में इस शोध पत्र को पेश किया जाएगा. इस सम्मेलन का आयोजन विश्वविद्यालय में दीपक और नीरा राज सेंटर कर रहा है.

इसमें भारत में कोविड-19 महामारी से पहले और बाद में गरीबी और असमानता की स्थिति का विश्लेषण किया गया है. इसके लिए भारत के राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) के निश्चित अवधि पर होने वाले श्रमबल सर्वेक्षण (PLFS) में जारी घरेलू व्यय के आंकड़ों का उपयोग किया गया है. शोध पत्र में कहा गया है कि पीएलएफएस के जरिये जो गरीबी का स्तर निकला है, वह 2011-12 के उपभोक्ता व्यय सर्वे (सीईएस) से निकले आंकड़ों और उससे पहले के अध्ययन से तुलनीय नहीं है. इसका कारण पीएलएफएस और सीईएस में जो नमूने तैयार किए गए हैं, वे काफी अलग हैं.

इसके अनुसार, तिमाही आधार पर अप्रैल-जून, 2020 में कोविड महामारी की रोकथाम के लिए जब सख्त 'लॉकडाउन' लागू किया गया था, उस दौरान गांवों में गरीबी बढ़ी थी. लेकिन जल्दी ही यह कोविड-पूर्व स्तर पर आ गयी और उसके बाद से उसमें लगातार गिरावट रही. कोविड-19 के बाद सालाना आधार पर असमानता शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में घटी है. यह राष्ट्रीय स्तर पर देखा गया है.

शोध पत्र के अनुसार, 'कुल मिलाकर, यह कहना कि कोविड-19 के दौरान गरीबी और असमानता बढ़ी है, सरासर गलत है.' इसमें कहा गया है, 'सालाना आधार पर, कोविड वर्ष 2019-20 में गरीबी ग्रामीण क्षेत्रों में लगातार कम हुई है. हालांकि, इसके घटने की दर जरूर कम रही है. वित्त वर्ष 2020-21 में भी गांवों में गरीबी में उल्लेखनीय कमी आई...' शोध पत्र में कहा गया है, 'तिमाही आधार पर गांवों में गरीबी जरूर बढ़ी. लेकिन यह केवल कोविड महामारी की रोकथाम के लिए कड़ाई से लगाए गए लॉकडाउन' अप्रैल-जून, 2020 के दौरान देखने को मिली.' वहीं शहरी गरीबी में 2020-21 में सालाना आधार पर हल्की दर से बढ़ी.

इसमें कहा गया है, 'लेकिन अप्रैल-जून, 2021 तिमाही में शहरी गरीबी में गिरावट शुरू हुई. इससे पहले, चार तिमाहियों तक शहरी गरीबी में जो वृद्धि रही, उसका कारण संपर्क से जुड़े क्षेत्रों (होटल, रेस्तरां आदि) में उत्पादन में तीव्र गिरावट रही. हालांकि, पांच किलो अतिरिक्त अनाज के मुफ्त वितरण से शहरी गरीबी में तीव्र गिरावट आई.' शोध पत्र में पनगढ़िया और मोरे ने कुछ मौजूदा अध्ययन की आलोचना भी की है.

उन अध्ययनों में से एक अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी रिपोर्ट (2021) है. यह अध्ययन परिवार की आय और व्यय सर्वे पर आधारित है. यह सर्वे सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी ने किया था. शोध पत्र के अनुसार अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट में कहा गया कि बड़े पैमाने पर रोजगार की कमी के साथ ग्रामीण, शहरी के साथ गरीबी और असामानता में वृद्धि हुई है. इस अध्ययन की आलोचना करते हुए पनगढ़िया और मोरे लिखते हैं, 'गरीबी और असामानता का आकलन सीधे तौर पर व्यय सर्वे के जरिये करने के बजाय, रिपोर्ट में उसे मापने के लिए घटना अध्ययन का सृजन किया गया है. यह अजीब और संदेहास्पद है तथा हम इसे सही नहीं मानते.'

ये भी पढ़ें - Covid19 vaccination : 'भारत ने राष्ट्रव्यापी टीकाकरण अभियान चलाकर 34 लाख से अधिक लोगों की बचाई जान'

(पीटीआई-भाषा)

न्यूयार्क : जाने-माने अर्थशास्त्री अरविंद पनगढ़िया (economist Arvind Panagariya) ने कहा है कि कोविड-19 महामारी के दौरान भारत में गरीबी और असमानता बढ़ने का दावा सरासर गलत हैं. उन्होंने कहा कि ये दावे विभिन्न सर्वे पर आधारित हैं, जिनकी तुलना नहीं की जा सकती है. उन्होंने एक शोध पत्र में यह भी कहा है कि वास्तव में कोविड के दौरान देश में ग्रामीण और शहरी के साथ-साथ राष्ट्रीय स्तर पर असामानता कम हुई है.

कोलंबिया विश्वविद्यालय में प्रोफेसर और नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष पनगढ़िया और इंटेलिंक एडवाइजर्स के विशाल मोरे ने मिलकर 'भारत में गरीबी और असमानता: कोविड-19 के पहले और बाद में' शीर्षक से यह शोध पत्र लिखा है. कोलंबिया विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल एंड पब्लिक अफेयर्स में भारतीय आर्थिक नीति पर आयोजित आगामी सम्मेलन में इस शोध पत्र को पेश किया जाएगा. इस सम्मेलन का आयोजन विश्वविद्यालय में दीपक और नीरा राज सेंटर कर रहा है.

इसमें भारत में कोविड-19 महामारी से पहले और बाद में गरीबी और असमानता की स्थिति का विश्लेषण किया गया है. इसके लिए भारत के राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) के निश्चित अवधि पर होने वाले श्रमबल सर्वेक्षण (PLFS) में जारी घरेलू व्यय के आंकड़ों का उपयोग किया गया है. शोध पत्र में कहा गया है कि पीएलएफएस के जरिये जो गरीबी का स्तर निकला है, वह 2011-12 के उपभोक्ता व्यय सर्वे (सीईएस) से निकले आंकड़ों और उससे पहले के अध्ययन से तुलनीय नहीं है. इसका कारण पीएलएफएस और सीईएस में जो नमूने तैयार किए गए हैं, वे काफी अलग हैं.

इसके अनुसार, तिमाही आधार पर अप्रैल-जून, 2020 में कोविड महामारी की रोकथाम के लिए जब सख्त 'लॉकडाउन' लागू किया गया था, उस दौरान गांवों में गरीबी बढ़ी थी. लेकिन जल्दी ही यह कोविड-पूर्व स्तर पर आ गयी और उसके बाद से उसमें लगातार गिरावट रही. कोविड-19 के बाद सालाना आधार पर असमानता शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में घटी है. यह राष्ट्रीय स्तर पर देखा गया है.

शोध पत्र के अनुसार, 'कुल मिलाकर, यह कहना कि कोविड-19 के दौरान गरीबी और असमानता बढ़ी है, सरासर गलत है.' इसमें कहा गया है, 'सालाना आधार पर, कोविड वर्ष 2019-20 में गरीबी ग्रामीण क्षेत्रों में लगातार कम हुई है. हालांकि, इसके घटने की दर जरूर कम रही है. वित्त वर्ष 2020-21 में भी गांवों में गरीबी में उल्लेखनीय कमी आई...' शोध पत्र में कहा गया है, 'तिमाही आधार पर गांवों में गरीबी जरूर बढ़ी. लेकिन यह केवल कोविड महामारी की रोकथाम के लिए कड़ाई से लगाए गए लॉकडाउन' अप्रैल-जून, 2020 के दौरान देखने को मिली.' वहीं शहरी गरीबी में 2020-21 में सालाना आधार पर हल्की दर से बढ़ी.

इसमें कहा गया है, 'लेकिन अप्रैल-जून, 2021 तिमाही में शहरी गरीबी में गिरावट शुरू हुई. इससे पहले, चार तिमाहियों तक शहरी गरीबी में जो वृद्धि रही, उसका कारण संपर्क से जुड़े क्षेत्रों (होटल, रेस्तरां आदि) में उत्पादन में तीव्र गिरावट रही. हालांकि, पांच किलो अतिरिक्त अनाज के मुफ्त वितरण से शहरी गरीबी में तीव्र गिरावट आई.' शोध पत्र में पनगढ़िया और मोरे ने कुछ मौजूदा अध्ययन की आलोचना भी की है.

उन अध्ययनों में से एक अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी रिपोर्ट (2021) है. यह अध्ययन परिवार की आय और व्यय सर्वे पर आधारित है. यह सर्वे सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी ने किया था. शोध पत्र के अनुसार अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट में कहा गया कि बड़े पैमाने पर रोजगार की कमी के साथ ग्रामीण, शहरी के साथ गरीबी और असामानता में वृद्धि हुई है. इस अध्ययन की आलोचना करते हुए पनगढ़िया और मोरे लिखते हैं, 'गरीबी और असामानता का आकलन सीधे तौर पर व्यय सर्वे के जरिये करने के बजाय, रिपोर्ट में उसे मापने के लिए घटना अध्ययन का सृजन किया गया है. यह अजीब और संदेहास्पद है तथा हम इसे सही नहीं मानते.'

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(पीटीआई-भाषा)

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