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Citizen groups urge opposition: नागरिक समूहों ने मनरेगा को बचाने के लिए विपक्षी दलों से लगाई गुहार - Labor organizations accuse the government

कई नागरिक समूहों और श्रमिक संगठनों ने सरकार पर मनरेगा को खत्म करने का आरोप लगाया. वहीं, विपक्षी दलों से इस योजना को बचाने की गुहार लगाई.

Etv BharatCitizen groups urge opposition parties to 'save' MGNREGA
Etv Bharatनागरिक समूहों ने मनरेगा को ‘बचाने’ के लिए विपक्षी दलों से लगाई गुहार
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Published : Mar 15, 2023, 1:40 PM IST

नई दिल्ली: कई नागरिक समूहों और श्रमिक संगठनों ने केंद्र की राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार पर आरोप लगाया है कि वह महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) को धीरे-धीरे खत्म करने की राह पर है. उन्होंने विपक्षी दलों से इस योजना के लिए बजटीय आवंटन में वृद्धि की उनकी मांगों का समर्थन करने की अपील की है.

राजधानी स्थित कॉन्स्टीट्यूशन क्लब के डिप्टी स्पीकर्स हॉल में 14 मार्च को संसद सदस्यों के लिए आयोजित एक ब्रीफिंग में, नागरिक समाज के सदस्यों ने उनसे करोड़ों मजदूरों और श्रमिकों के मुद्दों को उठाने का आग्रह किया, जिन्हें दिसंबर 2021 से भुगतान नहीं किया गया है. इस दौरान उन्होंने अपर्याप्त वित्त पोषण, उपस्थिति प्रणाली में प्रतिकूल परिवर्तन के साथ-साथ भुगतान के तरीके के मुद्दे पर भी प्रकाश डाला. इस कार्यक्रम के आयोजन का व्यापक उद्देश्य सांसदों को मनरेगा के तहत काम करने के लोगों के अधिकार की रक्षा करने में मदद करना था.

इस कार्यक्रम में शामिल होने वाले विपक्षी दलों के सांसदों में संजय सिंह (आम आदमी पार्टी), दिग्विजय सिंह, उत्तम कुमार रेड्डी और कुमार केतकर (कांग्रेस), एस. सेंथिलकुमार (द्रविड़ मुनेत्र कषगम), जवाहर सरकार (तृणमूल कांग्रेस) शामिल थे. नागरिक समाज के सदस्यों ने इन सांसदों के साथ सरकार को बजटीय आवंटन बढ़ाने और भुगतान के तरीके में हालिया संशोधनों को बदलने के लिए मजबूर करने के उपायों पर विचार-विमर्श किया। सदस्यों ने दावा किया कि उक्त संशोधन श्रमिकों के हितों के लिए 'विनाशकारी' साबित हुआ है.

संबंधित विषयों पर प्रस्तुति की शुरुआत करते हुए रांची विश्वविद्यालय के विजिटिंग प्रोफेसर ज्यां द्रेज ने आरोप लगाया कि राजग सरकार ने मनरेगा पर अभूतपूर्व तीन तरफा हमला किया है. उनके मुताबिक इनमें अपर्याप्त धन, आधार आधारित भुगतान प्रणाली (एबीपीएस) की शुरुआत और राष्ट्रीय मोबाइल निगरानी सॉफ्टवेयर (एनएमएमएस) ऐप के माध्यम से वास्तविक समय उपस्थिति प्रणाली की शुरुआत शामिल है. द्रेज ने दावा किया कि मनरेगा के लिए इस साल का वित्तपोषण केवल 60,000 करोड़ रुपये है जो कार्यक्रम के इतिहास में अब तक का सबसे कम आवंटन है.

उन्होंने कहा, 'कोष खत्म हो जाता है और परियोजनाएं रुक जाती हैं. मजदूरी का भुगतान मिलने में देरी होती है और महीनों तक वह बढ़ती जाती है.' प्रोफेसर द्रेज ने कहा कि डिजिटल उपस्थिति की शुरुआत ने तकनीकी और नेटवर्क की गड़बड़ियों के कारण श्रमिकों को उनके वेतन से वंचित कर दिया है. उन्होंने कहा, 'आधार-आधारित भुगतान इतनी जटिल प्रणाली है कि कई बैंकर भी इसकी कार्यक्षमता को समझने में विफल रहते हैं और अधिकतर श्रमिकों को इस प्रणाली के माध्यम से भुगतान नहीं किया जा सकता है. श्रमिकों ने जो काम किया है, उसके लिए उन्हें मजदूरी का भुगतान नहीं करना अवैध और आपराधिक है.'

श्रमिकों की समस्याओं को साझा करने वाले अन्य वक्ताओं में निखिल डे (मजदूर किसान शक्ति संगठन, राजस्थान), जेम्स हेरेंज (नरेगा वॉच, झारखंड), आशीष रंजन (जन जागरण शक्ति संगठन, बिहार), रिचा सिंह (संगतिन किसान मजदूर संगठन, उत्तर प्रदेश), अनुराधा तलवार (पश्चिम बंगाल खेत मजदूर समिति, पश्चिम बंगाल) और उच्चतम न्यायालय के वकील प्रशांत भूषण शामिल थे. उन्होंने यह दिखाने के लिए साक्ष्य प्रस्तुत किए कि आधार-आधारित भुगतान और मोबाइल मॉनिटरिंग सॉफ्टवेयर ऐप कैसे ‘‘बड़ी संख्या में श्रमिकों को मजदूरी के भुगतान से वंचित कर रहा है.

निखिल डे ने कहा कि ग्रामीण विकास मंत्रालय (एमओआरडी) के आंकड़ों के अनुसार, केवल 43 प्रतिशत मनरेगा श्रमिक एबीपीएस के लिए पात्र हैं. उन्होंने कहा, 'मनरेगा में मौजूदा बदलाव देश भर के 15 करोड़ श्रमिकों को प्रभावित करते हैं, जो एक बड़ी संख्या है. हम जमीनी स्तर पर लोगों का समर्थन करने के लिए विपक्षी दलों से राजनीतिक प्रतिक्रिया चाहते हैं ताकि उन्हें कानून के तहत उनके अधिकार दिए जा सकें. नागरिक समाज के सदस्यों ने सांसदों से अनुरोध किया कि वे संसद में विशेषाधिकार नोटिस देकर ग्रामीण विकास मंत्री से मीडिया में की गई उनकी उस टिप्पणी के लिए स्पष्टीकरण मांगें, जिसमें उन्होंने सुझाव दिया गया था कि राज्य सरकार को इस योजना के तहत मजदूरी दायित्व में भी योगदान देना चाहिए. नागरिक समाज के सदस्यों ने दावा किया कि यह सुझाव मनरेगा के प्रावधानों के विपरीत है.

कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने नागरिक समाज के सदस्यों को पूर्ण समर्थन का आश्वासन देते हुए कहा कि श्रमिकों की समस्याएं वास्तविक हैं. उन्होंने कहा, 'इस सरकार की मंशा हमेशा महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम 2005 के आदर्शों के खिलाफ रही है। वे सभी सामाजिक सेवा बजटों में कटौती कर रहे हैं. मैं उस समर्थन के पक्ष में हूं जिसकी हमसे उम्मीद की जा रही है.'

ये भी पढ़ें- Budget Session 2023 : लोकसभा की कार्यवाही शुरू होते ही दो बजे तक के लिए स्थगित की गई

आप सांसद संजय सिंह ने कहा कि भाजपा सरकार ने उनके सवालों का जवाब देते हुए संसद में स्वीकार किया कि मनरेगा के तहत राज्यों का बकाया 3,000 करोड़ रुपये से अधिक है. सिंह ने सुझाव देते हुए कहा, 'यह जानकर बहुत आश्चर्य होता है कि 100 दिनों के काम की गारंटी में से, पर्याप्त धन की कमी के कारण मजदूरों को केवल 34 दिनों का काम मिल रहा है. हम इस मुद्दे को संसद में उठाएंगे लेकिन साथ ही हमें जन आंदोलन शुरू करने के बारे में भी सोचना चाहिए.'
अन्य सांसदों ने भी समर्थन का वादा किया और कहा कि वे श्रमिकों की दुर्दशा को उजागर करने में मदद करने के लिए अपने स्तर पर सर्वश्रेष्ठ प्रयास करेंगे.
मनरेगा संघर्ष मोर्चा देश भर के ग्रामीण मजदूरों और श्रमिकों के साथ काम करने वाले संगठनों का एक गठबंधन है. इस योजना पर 'हालिया हमलों' के विरोध में उनका जंतर मंतर पर 100 दिनों से धरना प्रदर्शन हो रहा है.

(पीटीआई-भाषा)

नई दिल्ली: कई नागरिक समूहों और श्रमिक संगठनों ने केंद्र की राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार पर आरोप लगाया है कि वह महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) को धीरे-धीरे खत्म करने की राह पर है. उन्होंने विपक्षी दलों से इस योजना के लिए बजटीय आवंटन में वृद्धि की उनकी मांगों का समर्थन करने की अपील की है.

राजधानी स्थित कॉन्स्टीट्यूशन क्लब के डिप्टी स्पीकर्स हॉल में 14 मार्च को संसद सदस्यों के लिए आयोजित एक ब्रीफिंग में, नागरिक समाज के सदस्यों ने उनसे करोड़ों मजदूरों और श्रमिकों के मुद्दों को उठाने का आग्रह किया, जिन्हें दिसंबर 2021 से भुगतान नहीं किया गया है. इस दौरान उन्होंने अपर्याप्त वित्त पोषण, उपस्थिति प्रणाली में प्रतिकूल परिवर्तन के साथ-साथ भुगतान के तरीके के मुद्दे पर भी प्रकाश डाला. इस कार्यक्रम के आयोजन का व्यापक उद्देश्य सांसदों को मनरेगा के तहत काम करने के लोगों के अधिकार की रक्षा करने में मदद करना था.

इस कार्यक्रम में शामिल होने वाले विपक्षी दलों के सांसदों में संजय सिंह (आम आदमी पार्टी), दिग्विजय सिंह, उत्तम कुमार रेड्डी और कुमार केतकर (कांग्रेस), एस. सेंथिलकुमार (द्रविड़ मुनेत्र कषगम), जवाहर सरकार (तृणमूल कांग्रेस) शामिल थे. नागरिक समाज के सदस्यों ने इन सांसदों के साथ सरकार को बजटीय आवंटन बढ़ाने और भुगतान के तरीके में हालिया संशोधनों को बदलने के लिए मजबूर करने के उपायों पर विचार-विमर्श किया। सदस्यों ने दावा किया कि उक्त संशोधन श्रमिकों के हितों के लिए 'विनाशकारी' साबित हुआ है.

संबंधित विषयों पर प्रस्तुति की शुरुआत करते हुए रांची विश्वविद्यालय के विजिटिंग प्रोफेसर ज्यां द्रेज ने आरोप लगाया कि राजग सरकार ने मनरेगा पर अभूतपूर्व तीन तरफा हमला किया है. उनके मुताबिक इनमें अपर्याप्त धन, आधार आधारित भुगतान प्रणाली (एबीपीएस) की शुरुआत और राष्ट्रीय मोबाइल निगरानी सॉफ्टवेयर (एनएमएमएस) ऐप के माध्यम से वास्तविक समय उपस्थिति प्रणाली की शुरुआत शामिल है. द्रेज ने दावा किया कि मनरेगा के लिए इस साल का वित्तपोषण केवल 60,000 करोड़ रुपये है जो कार्यक्रम के इतिहास में अब तक का सबसे कम आवंटन है.

उन्होंने कहा, 'कोष खत्म हो जाता है और परियोजनाएं रुक जाती हैं. मजदूरी का भुगतान मिलने में देरी होती है और महीनों तक वह बढ़ती जाती है.' प्रोफेसर द्रेज ने कहा कि डिजिटल उपस्थिति की शुरुआत ने तकनीकी और नेटवर्क की गड़बड़ियों के कारण श्रमिकों को उनके वेतन से वंचित कर दिया है. उन्होंने कहा, 'आधार-आधारित भुगतान इतनी जटिल प्रणाली है कि कई बैंकर भी इसकी कार्यक्षमता को समझने में विफल रहते हैं और अधिकतर श्रमिकों को इस प्रणाली के माध्यम से भुगतान नहीं किया जा सकता है. श्रमिकों ने जो काम किया है, उसके लिए उन्हें मजदूरी का भुगतान नहीं करना अवैध और आपराधिक है.'

श्रमिकों की समस्याओं को साझा करने वाले अन्य वक्ताओं में निखिल डे (मजदूर किसान शक्ति संगठन, राजस्थान), जेम्स हेरेंज (नरेगा वॉच, झारखंड), आशीष रंजन (जन जागरण शक्ति संगठन, बिहार), रिचा सिंह (संगतिन किसान मजदूर संगठन, उत्तर प्रदेश), अनुराधा तलवार (पश्चिम बंगाल खेत मजदूर समिति, पश्चिम बंगाल) और उच्चतम न्यायालय के वकील प्रशांत भूषण शामिल थे. उन्होंने यह दिखाने के लिए साक्ष्य प्रस्तुत किए कि आधार-आधारित भुगतान और मोबाइल मॉनिटरिंग सॉफ्टवेयर ऐप कैसे ‘‘बड़ी संख्या में श्रमिकों को मजदूरी के भुगतान से वंचित कर रहा है.

निखिल डे ने कहा कि ग्रामीण विकास मंत्रालय (एमओआरडी) के आंकड़ों के अनुसार, केवल 43 प्रतिशत मनरेगा श्रमिक एबीपीएस के लिए पात्र हैं. उन्होंने कहा, 'मनरेगा में मौजूदा बदलाव देश भर के 15 करोड़ श्रमिकों को प्रभावित करते हैं, जो एक बड़ी संख्या है. हम जमीनी स्तर पर लोगों का समर्थन करने के लिए विपक्षी दलों से राजनीतिक प्रतिक्रिया चाहते हैं ताकि उन्हें कानून के तहत उनके अधिकार दिए जा सकें. नागरिक समाज के सदस्यों ने सांसदों से अनुरोध किया कि वे संसद में विशेषाधिकार नोटिस देकर ग्रामीण विकास मंत्री से मीडिया में की गई उनकी उस टिप्पणी के लिए स्पष्टीकरण मांगें, जिसमें उन्होंने सुझाव दिया गया था कि राज्य सरकार को इस योजना के तहत मजदूरी दायित्व में भी योगदान देना चाहिए. नागरिक समाज के सदस्यों ने दावा किया कि यह सुझाव मनरेगा के प्रावधानों के विपरीत है.

कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने नागरिक समाज के सदस्यों को पूर्ण समर्थन का आश्वासन देते हुए कहा कि श्रमिकों की समस्याएं वास्तविक हैं. उन्होंने कहा, 'इस सरकार की मंशा हमेशा महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम 2005 के आदर्शों के खिलाफ रही है। वे सभी सामाजिक सेवा बजटों में कटौती कर रहे हैं. मैं उस समर्थन के पक्ष में हूं जिसकी हमसे उम्मीद की जा रही है.'

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आप सांसद संजय सिंह ने कहा कि भाजपा सरकार ने उनके सवालों का जवाब देते हुए संसद में स्वीकार किया कि मनरेगा के तहत राज्यों का बकाया 3,000 करोड़ रुपये से अधिक है. सिंह ने सुझाव देते हुए कहा, 'यह जानकर बहुत आश्चर्य होता है कि 100 दिनों के काम की गारंटी में से, पर्याप्त धन की कमी के कारण मजदूरों को केवल 34 दिनों का काम मिल रहा है. हम इस मुद्दे को संसद में उठाएंगे लेकिन साथ ही हमें जन आंदोलन शुरू करने के बारे में भी सोचना चाहिए.'
अन्य सांसदों ने भी समर्थन का वादा किया और कहा कि वे श्रमिकों की दुर्दशा को उजागर करने में मदद करने के लिए अपने स्तर पर सर्वश्रेष्ठ प्रयास करेंगे.
मनरेगा संघर्ष मोर्चा देश भर के ग्रामीण मजदूरों और श्रमिकों के साथ काम करने वाले संगठनों का एक गठबंधन है. इस योजना पर 'हालिया हमलों' के विरोध में उनका जंतर मंतर पर 100 दिनों से धरना प्रदर्शन हो रहा है.

(पीटीआई-भाषा)

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