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क्या आप जानते हैं क्रिसमस पर गिफ्ट बांटने वाले सांता क्लॉज कौन थे? जानें यहां - हैप्पी मैरी क्रिसमस

Happy Merry Christmas 2023 : आज दुनिया भर में प्रभु यीशु के जन्म का जश्न मनाया जा रहा है. इजरायल-फिलिस्तीन में जारी युद्ध के कारण इस साल उनके जन्मस्थल बेथलेहम में क्रिसमस उत्सव को रद्द कर दिया गया है. पढ़ें पूरी खबर..

Happy Merry Christmas 2023
प्रभु यीशु
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Dec 24, 2023, 7:53 PM IST

हैदराबाद : जोसेफ और मैरी के पुत्र यीशु को ईसाई धर्म में सर्वोच्च स्थान प्राप्त है, यानि वे मसीहा हैं. 25 दिसंबर प्रभु यीशु का जन्मदिवस है. हर साल उनके जन्मोत्सव को क्रिसमस के रूप में मनाया जाता है. भारत सहित दुनिया के ज्यादातर देशों में इस अवसर सार्वजनिक छुट्टी होती है. जानकारों के अनुसार क्रिसमस का त्योहार दो हजार से अधिक वर्षों से मनाया जा रहा है. आपको बता दें कि क्रिसमस से जुड़ी कई परंपराएं और प्रथाएं हैं.

इस अवसर पर गिर्जाघरों को विशेष रूप से सजाया-संवारा जाता है. चर्च में आयोजित होने वाले विशेष प्रार्थना सभा में समुदाय से जुड़े लोग परिवार सहित हिस्सा लेते हैं. वहीं सार्वजनिक स्थानों, विभिन्न कार्यालयों और लोग अपने घरों में क्रिसमस ट्री लगाते हैं. लोग एक-दूसरे को उपहार देते हैं और एक-दूसरे के साथ खाना खाते हैं. आज के समय में क्रिसमस एक विश्वव्यापी उत्सव बन चुका है. इसमें जाति-धर्म की दीवारों को तोड़कर हर धर्म-संप्रदाय के लोग क्रिसमस के आयोजन में हिस्सा लेते हैं.

क्रिसमस का इतिहास
क्रिसमस अंग्रेजी के Cristes Maesse शब्द से बना है, जिसका अर्थ है Christ’s Mass यानि मसीह का महीना. इतिहास के अनुसार क्रिसमस की शुरुआत ईसाई रोमन सम्राट कॉन्सटेंटाइन के शासनकाल के (First Roman Christian Emperor Constantine) दौरान 336 ईशा पूर्व हुई थी.

एक प्राचीन ईसाई किंवदंती के अनुसार 25 मार्च को प्रभु यीशु की माता मैरी ने सार्वजनिक रूप से बताया था कि वह एक विशेष बच्चे को जन्म देंगी. वहीं रोमन ईसाई इतिहासकार सेक्स्टस जूलियस अफ्रीकनस ने अनुसार इस तिथि के ठीक 9 महीने बाद 25 दिसंबर को प्रभु यीशु धरती पर आये थे. इसी कारण 25 दिसंबर को हर साल क्रिसमस डे के रूप में जाना जाता है.

सांता क्लॉज कौन हैं?
सांता क्लॉज, सेंट निकोलस नाम के एक साधु थे, जिनका जन्म 280 AD के आसपास तुर्की में हुआ था. वे प्रारंभिक ईसाई चर्च में एक बिशप थे, जिन्हें उनके विश्वासों के लिए सताया गया और जेल में डाल दिया गया था. सेंट निकोलस ने अपनी सारी विरासत में मिली संपत्ति को दान में दे दिया था. इसके अलावा अपनी कमाई से वे ग्रामीण इलाकों में घूम-घूमकर गरीबों और बीमारों की मदद करते थे. उन्हें बच्चों और नाविकों के रक्षक के रूप में जाना जाता था. उनके सम्मान में 6 दिसंबर को सेंट निकोलस दिवस मनाया जाता है.

क्रिसमस ट्री
ईसाई धर्म के जन्म से पहले ही हरियाली या कहे सदाबहार पेड़ों के बीच लोग रहना पसंद करते हैं. ऐसी मान्यता है कि सदाबहार पेड़-पौधे हमें बुराई से दूर रखते हैं. आदम और हव्वा का पर्व 24 दिसंबर को मध्य युग के दौरान मनाया जाता था, जिसमें स्वर्ग का पेड़ (Paradise Tree), लाल सेब से लिपटा हुआ देवदार का पेड़ शामिल था. हरा रंग समृद्धि के साथ-साथ वसंत के आगमन की आशा का प्रतिनिधित्व करता है.

यीशू का जन्मोत्सव विश्व के अलग-अलग हिस्सों में अलग तरह से मनाया जाता है. कहीं जन्मोत्सव सिर्फ 24 दिसंबर की रात को ही मनाया जाता है, जो कहीं जन्मोत्सव का समारोह दो से दस दिनों तक जारी रहता है. वहीं प्रभु ईशु के जन्म स्थान बेथलेहम में क्रिसमस का आयोजन खास होता है, लेकिन इस साल बेथलेहम में क्रिसमस उत्सव का आयोजन नहीं होगा. इजरायल के कब्जे वाले वेस्ट बैंक स्थित बेथलेहम में जारी युद्ध के कारण आयोजकों ने आयोजन को रद्द करने का निर्णय लिया है.

1917 के बाद पहली बार 25 दिसंबर को क्रिसमस आयोजन
जानकारी के अनुसार 1917 के बाद पहली बार यूक्रेन में 25 दिसंबर को क्रिसमस मनाया गया. यूक्रेन के मुख्य चर्च ने इस साल 25 दिसंबर को क्रिसमस डे मनाने पर सहमति व्यक्त की है. दिसंबर पारंपरिक जूलियन कैलेंडर से हट जाएगा, जिसका उपयोग रूस में किया जाता है. यह रूसी प्रभाव के सभी निशान मिटाने की दिशा में एक और कदम है, क्योंकि उनकी सेना क्रेमलिन आक्रमण को रोकती है.

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हैदराबाद : जोसेफ और मैरी के पुत्र यीशु को ईसाई धर्म में सर्वोच्च स्थान प्राप्त है, यानि वे मसीहा हैं. 25 दिसंबर प्रभु यीशु का जन्मदिवस है. हर साल उनके जन्मोत्सव को क्रिसमस के रूप में मनाया जाता है. भारत सहित दुनिया के ज्यादातर देशों में इस अवसर सार्वजनिक छुट्टी होती है. जानकारों के अनुसार क्रिसमस का त्योहार दो हजार से अधिक वर्षों से मनाया जा रहा है. आपको बता दें कि क्रिसमस से जुड़ी कई परंपराएं और प्रथाएं हैं.

इस अवसर पर गिर्जाघरों को विशेष रूप से सजाया-संवारा जाता है. चर्च में आयोजित होने वाले विशेष प्रार्थना सभा में समुदाय से जुड़े लोग परिवार सहित हिस्सा लेते हैं. वहीं सार्वजनिक स्थानों, विभिन्न कार्यालयों और लोग अपने घरों में क्रिसमस ट्री लगाते हैं. लोग एक-दूसरे को उपहार देते हैं और एक-दूसरे के साथ खाना खाते हैं. आज के समय में क्रिसमस एक विश्वव्यापी उत्सव बन चुका है. इसमें जाति-धर्म की दीवारों को तोड़कर हर धर्म-संप्रदाय के लोग क्रिसमस के आयोजन में हिस्सा लेते हैं.

क्रिसमस का इतिहास
क्रिसमस अंग्रेजी के Cristes Maesse शब्द से बना है, जिसका अर्थ है Christ’s Mass यानि मसीह का महीना. इतिहास के अनुसार क्रिसमस की शुरुआत ईसाई रोमन सम्राट कॉन्सटेंटाइन के शासनकाल के (First Roman Christian Emperor Constantine) दौरान 336 ईशा पूर्व हुई थी.

एक प्राचीन ईसाई किंवदंती के अनुसार 25 मार्च को प्रभु यीशु की माता मैरी ने सार्वजनिक रूप से बताया था कि वह एक विशेष बच्चे को जन्म देंगी. वहीं रोमन ईसाई इतिहासकार सेक्स्टस जूलियस अफ्रीकनस ने अनुसार इस तिथि के ठीक 9 महीने बाद 25 दिसंबर को प्रभु यीशु धरती पर आये थे. इसी कारण 25 दिसंबर को हर साल क्रिसमस डे के रूप में जाना जाता है.

सांता क्लॉज कौन हैं?
सांता क्लॉज, सेंट निकोलस नाम के एक साधु थे, जिनका जन्म 280 AD के आसपास तुर्की में हुआ था. वे प्रारंभिक ईसाई चर्च में एक बिशप थे, जिन्हें उनके विश्वासों के लिए सताया गया और जेल में डाल दिया गया था. सेंट निकोलस ने अपनी सारी विरासत में मिली संपत्ति को दान में दे दिया था. इसके अलावा अपनी कमाई से वे ग्रामीण इलाकों में घूम-घूमकर गरीबों और बीमारों की मदद करते थे. उन्हें बच्चों और नाविकों के रक्षक के रूप में जाना जाता था. उनके सम्मान में 6 दिसंबर को सेंट निकोलस दिवस मनाया जाता है.

क्रिसमस ट्री
ईसाई धर्म के जन्म से पहले ही हरियाली या कहे सदाबहार पेड़ों के बीच लोग रहना पसंद करते हैं. ऐसी मान्यता है कि सदाबहार पेड़-पौधे हमें बुराई से दूर रखते हैं. आदम और हव्वा का पर्व 24 दिसंबर को मध्य युग के दौरान मनाया जाता था, जिसमें स्वर्ग का पेड़ (Paradise Tree), लाल सेब से लिपटा हुआ देवदार का पेड़ शामिल था. हरा रंग समृद्धि के साथ-साथ वसंत के आगमन की आशा का प्रतिनिधित्व करता है.

यीशू का जन्मोत्सव विश्व के अलग-अलग हिस्सों में अलग तरह से मनाया जाता है. कहीं जन्मोत्सव सिर्फ 24 दिसंबर की रात को ही मनाया जाता है, जो कहीं जन्मोत्सव का समारोह दो से दस दिनों तक जारी रहता है. वहीं प्रभु ईशु के जन्म स्थान बेथलेहम में क्रिसमस का आयोजन खास होता है, लेकिन इस साल बेथलेहम में क्रिसमस उत्सव का आयोजन नहीं होगा. इजरायल के कब्जे वाले वेस्ट बैंक स्थित बेथलेहम में जारी युद्ध के कारण आयोजकों ने आयोजन को रद्द करने का निर्णय लिया है.

1917 के बाद पहली बार 25 दिसंबर को क्रिसमस आयोजन
जानकारी के अनुसार 1917 के बाद पहली बार यूक्रेन में 25 दिसंबर को क्रिसमस मनाया गया. यूक्रेन के मुख्य चर्च ने इस साल 25 दिसंबर को क्रिसमस डे मनाने पर सहमति व्यक्त की है. दिसंबर पारंपरिक जूलियन कैलेंडर से हट जाएगा, जिसका उपयोग रूस में किया जाता है. यह रूसी प्रभाव के सभी निशान मिटाने की दिशा में एक और कदम है, क्योंकि उनकी सेना क्रेमलिन आक्रमण को रोकती है.

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