नई दिल्ली : 2017 और 2018 में भूस्खलन के कारण एक अस्थिर कृत्रिम झील के रूप में विशाल 'वाटर बम' ने अरुणाचल प्रदेश में सियांग और असम में ब्रह्मपुत्र नदी के रूप में बहने वाली यरलुंग त्संगपो नदी पर दो मेगा बांध बनाने की चीन की योजना को रोक दिया है
सेडोंगपु बेसिन में एक स्थान पर लगभग 600 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी जमा हुआ है. ये मेगा बांध स्थल पर थोड़ा ऊपर की ओर एक खंड में स्थित है, जहां दुनिया की सबसे गहरी घाटी स्थित है.
चीनी सरकार ने पहले ही वैज्ञानिकों और अधिकारियों की कई टीमों को सेडोंगपु जल जमा होने वाले क्षेत्र में भेजा ताकि पानी छोड़ने का कोई उपाय निकल सके और यरलुंग पर मेगा बांध पर काम शुरू हो सके.
ऊपर इतना पानी जमा है कि मजदूर बांध स्थल पर काम नहीं कर पा रहे हैं.
तत्काल समाधान नहीं है : प्रोफेसर जिंग ज़िगुओ
शंघाई जिओ टोंग विश्वविद्यालय में सिविल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर और सरकारी टीम का हिस्सा रहे जिंग ज़िगुओ ने हांगकांग स्थित 'साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट' को बताया 'हालात बहुत कठिन हैं, अभी कोई तत्काल समाधान नहीं है.'
बैराज को तोड़ने के लिए संचित पानी पर बढ़ते दबाव के कारण अस्थिरता के अलावा यह क्षेत्र भूकंप के कारण बेहद संवेदनशील है.
अभी हाल ही में शनिवार (22 मई, 2021) को पास के युन्नान प्रांत में 6.9 की तीव्रता वाले भूकंप ने इस क्षेत्र को हिलाकर रख दिया था, जिससे तबाही हुई थी और जनहानि हुई थी.
मार्च में मिली थी योजना की मंजूरी
चीन की शीर्ष विधायिका ने 14वीं पंचवर्षीय योजना (2021-25) में 11 मार्च, 2021 को नदी से बिजली के दोहन की योजना को मंजूरी दी थी. 14वीं पंचवर्षीय योजना के दस्तावेज सार्वजनिक होने से बहुत पहले ही 'ईटीवी भारत' ने बता दिया था कि चीन पूर्वी तिब्बत में दो बिंदुओं पर त्संगपो-ब्रह्मपुत्र नदी को बांधकर भारी मात्रा में बिजली पैदा करने की योजना बना रहा है.
दो मुख्य स्थल मेटोक (मेडोग या मोटुओ) काउंटी और दादुओ (दादुक्विया) में थे जो भारत के साथ सीमा के बहुत करीब स्थित हैं. मोटुओ में 850 मीटर और दादुओ में 560 मीटर की दूरी पर टर्बाइनों में सुरंग बनानी हैं. जबकि मेटोक बांध को 38,000 मेगावाट (एमवी) की बिजली उत्पादन क्षमता के साथ बनाने की योजना है. दादुकिया बांध की क्षमता 43,800 मेगावाट है.
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गौरतलब है कि दुनिया का सबसे बड़ा 'थ्री गोरजेस डैम' चीन में है जो 18,600 मेगावाट बिजली का उत्पादन करता है. नियोजित बांधों का निर्माण भी निचले तटवर्ती देशों भारत और बांग्लादेश के अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत अधिकारों का घोर उल्लंघन है.