नई दिल्ली : भारत और चीन के बीच लद्दाख क्षेत्र में चल रहे सीमा गतिरोध को सुलझाने के लिए लगभग 11 सप्ताह के अंतराल के बाद शुक्रवार को भारत और चीन की कूटनीतिक बातचीत फिर से शुरू हुई. एक विदेश नीति विशेषज्ञ का कहना है कि चीन ने थोड़ा लचीलापन दिखाया है, मगर भारत राहत की सांस नहीं ले सकता.
चीनी सैनिक जल्द पीछे नहीं हटेंगे
ईटीवी भारत से बात करते हुए पूर्व राजदूत जितेंद्र कुमार त्रिपाठी ने कहा कि मुझे नहीं लगता कि सीमा गतिरोध बहुत जल्द सुलझ जाएगा. वार्ता के आने वाले दौर से कुछ भी ठोस होने की उम्मीद करना बहुत जल्दबाजी है. चीन की जिद को देखकर लगता है कि उसे किसी नतीजे पर पहुंचने में लगभग 3-4 राउंड और लगेंगे. हमें चीन से बात करते समय बहुत सतर्क रहना चाहिए और इतनी जल्दी चीन से बहुत उम्मीद नहीं करनी चाहिए. मुझे नहीं लगता कि जल्द ही चीनी सैनिक पीछे हटेंगे. हालांकि, तनाव जरूर कम हुआ है. इसके बावजूद दोनों सेनाएं एक-दूसरे के सामने अपने मैदान में डटी हुईं हैं. दोनों सेनाओं को धीरे-धीरे वापस जाना होगा. भारत ने मांग की है कि चीनी सेना को अप्रैल 2020 की स्थिति में वापस जाना होगा.
चीन असहज स्थिति में
पूर्व राजदूत ने कहा कि चीन अब मुश्किल स्थिति में है. दक्षिणी भाग में चार प्रमुख ऊंचाइयों पर कब्जा करने के बाद चीन असहज स्थिति में है. चीन तब तक पीछे हटने के लिए तैयार नहीं है, जब तक कि भारत कब्जा छोड़ने के लिए राजी नहीं होता. ऐसा लगता है कि चीन के पास ऊंचाई वाले युद्ध में बहुत अधिक अनुभव नहीं है. दूसरी बात यह पता चलती है कि लद्दाख सीमा में तैनात पीएलए कैडर उच्च प्रशिक्षित नहीं हैं. चीन ने कुछ लचीलापन दिखाया लेकिन क्या जमीन पर यह दिखेगा? निकट भविष्य में तो ऐसा नहीं लगता.
भारत को हल्के में लेता था चीन
शुक्रवार को चीनी विदेश मंत्रालय के हांग लिआंग और भारतीय विदेश मंत्रालय के संयुक्त सचिव नवीन श्रीवास्तव ने वीडियो लिंक से भारत-चीन बार्डर कार्य प्रणाली की 20 वीं बैठक की सह अध्यक्षता की. बैठक में कूटनीति, राष्ट्रीय रक्षा और प्रवास से संबंधित दोनों देशों के विभागों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया. चर्चा लद्दाख से सैनिकों को हटाने पर आयोजित की गई थी. पूर्व राजदूत ने कहा कि दोनों राष्ट्रों के बीच संबंध बेहतर होने जा रहे हैं. चीन अब तक भारत को हल्के में लेता था. यही कारण है कि जून में चीन ने गलवान में गलत व्यवहार किया. अब चीन जानता है कि भारत को आसानी से हराया नहीं जा सकता.
अब चीन पर दबाव
यूके के विदेश सचिव डॉमिनिक राब की हालिया यात्रा को याद करते हुए पूर्व राजदूत ने रेखांकित किया कि राब ने भारत, अमेरिका और जापान के साथ रक्षा सहयोग के बारे में उल्लेख किया. चीन पर दबाव बनाने के लिए यूके भी क्वाड देशों के साथ सहयोग करने के बारे में सोच रहा है. ये सभी अंतर्राष्ट्रीय दबाव निश्चित रूप से चीन को भारत के साथ कदमताल करने के लिए मजबूर करेंगे. विदेश मंत्रालय के एक बयान के अनुसार दोनों पक्षों ने चीन-भारत सीमा क्षेत्रों में वास्तविक नियंत्रण रेखा के साथ स्थिति पर स्पष्ट और गहन विचार-विमर्श किया. दोनों पक्षों ने ईमानदारी से मॉस्को की बैठक में दोनों देशों के विदेश मंत्रियों के बीच बने पांच-सूत्रीय सहमति को लागू करने पर सहमति व्यक्त की. फिलहाल किसी भी पक्ष को खेल बदलता नहीं दिख रहा. दोनों पक्षों ने महसूस किया है कि मामले में अब ज्यादा कुछ नहीं हो सकता.
सामरिक ऊंचाइयों पर भारत
ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में स्ट्रेटेजिक स्टडीज प्रोग्राम के निदेशक प्रोफेसर हर्ष वी पंत ने ईटीवी भारत को बताया कि दोनों पक्षों के वरिष्ठ कमांडरों की बैठक के 8वें दौर में राजनयिक और सैन्य चैनलों के माध्यम से बातचीत और परामर्श जारी रखने पर सहमत बनी. भारत ने कभी नहीं कहा था कि वार्ता के दरवाजे बंद हैं. मुझे लगता है कि संवादों को पकड़ना सबसे तार्किक बात लगती है. बातचीत शुरू हो रही है क्योंकि युद्ध के मैदान में जमीनी ताकतें भारत को सामरिक ऊंचाइयों पर ले जा रही हैं और चीन जहां है, वहीं है. शायद, दोनों पक्षों ने अगले तीन महीनों को कूटनीतिक रूप से हल करने के एक अवसर के रूप में देखा है. 30 सितंबर और अब के बीच, दोनों पक्षों ने सैन्य-स्तरीय संवाद आयोजित किए हैं.