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भारत के लिए बाल विवाह अब भी चुनौती : यूनिसेफ

यूनिसेफ ने बाल विवाह पर एक रिपोर्ट में कहा कि दुनिया के तीन में से एक बाल वधु भारत में रहती हैं. भारत के लिए 2030 तक सतत विकास लक्ष्य प्राप्त करने में बाल विवाह एक संभावित चुनौती बनी हुई है. यूनिसेफ का कहना है कि कोविड-19 का असर भारत में बाल विवाह जैसे कुप्रथा बढ़ा सकता है. विस्तार से जानिएं क्या कहती है यूनिसेफ की रिपोर्ट

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Published : Mar 9, 2021, 12:35 PM IST

नई दिल्ली : यूनिसेफ ने 'कोविड-19 ए थ्रेट टू प्रोग्रेस अगेंस चाइल्ड मौरिज' नाम से एक रिपोर्ट जारी किया है. रिपोर्ट में कोरोना महामारी के बाद भारत में बाल विवाह कुप्रथा का प्रभाव बढ़ने के संकेत दिए हैं. यूनिसेफ ने सोमवार को कहा कि दुनिया के तीन में से एक बाल वधु भारत में रहती हैं. भारत के लिए 2030 तक सतत विकास लक्ष्य प्राप्त करने में बाल विवाह एक संभावित चुनौती बनी हुई है.

यूनिसेफ की रिपोर्ट

रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में, अनुमानित 65 करोड़ लड़कियां जीवित हैं जिनका बाल विवाह हुआ था. इनमें आधी संख्या भारत, बांग्लादेश, ब्राजील, इथियोपिया और नाइजीरिया में है.

इस विषय पर विश्लेषण करते हुए यूनिसेफ का कहना है कि कोविड-19 का असर भारत में बाल विवाह जैसे कुप्रथा बढ़ा सकता है. हालांकि यूनिसेफ ने कहा है कि भारत कई नीतियों, कानूनों और कार्यक्रमों के माध्यम से बाल विवाह को खत्म करने के लिए प्रतिबद्ध है.

यूनिसेफ ने कहा, '1992-93 और 2015-16 के बीच एनएफएचएस सर्वेक्षणों से पता चलता है कि बचपन में शादी करने वाली युवा महिलाओं का प्रतिशत आधा हो गया है (54 प्रतिशत से 27 प्रतिशत तक) और पिछले दशक में गिरावट की गति में तेजी आई है'

बाल विवाह को रोकने में ज्यादातर असर शहरी इलाकों में हैं. 2015-16 में दर्ज की कई रिपोर्ट के मुताबिक भारत के शहरी इलाकों में 18 प्रतिशत महिलाएं 20 से 24 साल की उम्र में विवाहित हुई, जबकि 18 साल से कम उम्र में शादी करने वालों की ज्यादातर संख्या लगभग 32 प्रतिशत ग्रामीण इलाकों में है.

यूनिसेफ ने कहा, '18 वर्ष की आयु से पहले शादी करने वाली लड़कियों का सिधा संबंध उनकी पृष्ठभूमि के साथ जुड़ा हुआ है. ग्रामीण इलाकों में या गरीब घरों की लड़कियों को बाल विवाह का जोखिम ज्यादा है. बाल विवाह में बाल वधू का अधिक अनुपात अशिक्षित लोगों के बीच है.'

यूनिसेफ का कहना है कि बाल विवाह लड़कियों की तुलना में लड़कों में कम है और 2030 तक लड़कों के बीच इस कुप्रथा को समाप्त किया जा सकता है.

यूनिसेफ में भारत के प्रतिनिधित्व का बयान

यूनिसेफ में भारत के प्रतिनिधित्व करने वाली डॉ. यास्मीन अली हक ने कहा कि भारत में बाल विवाह को समाप्त करने के लिए, हमें सबसे गरीब और सबसे कमजोर लड़कियों और उनके परिवारों पर ध्यान केंद्रित करना जारी रखना चाहिए. यह एक महत्वपूर्ण बात है कि कोविड-19 महामारी ना सिर्फ हमारे स्वास्थ्य, शिक्षा और बच्चों की सुरक्षा को प्रभावित किया है बल्कि बाल विवाह को रोकने के सभी प्रयासों पर भी असर डाल सकता है.

पढ़ें : कोरोना महामारी के कारण एक करोड़ लड़कियों पर बाल विवाह का खतरा : यूनेस्को

उन्होने कहा कि बाल विवाह को समाप्त करने के अभियान को एक बच्चे के पूरे जीवन चक्र पर विचार करने की आवश्यकता है, लड़कियों को स्कूल में बेहतर शिक्षा दिया जाना चाहिए, सामाजिक कुप्रथा और नकारात्मक मापदंडो के बारे में बताना चाहिए. लड़कियों को और सफल बनाने एवं कामयाब होने के लिए जीवन कौशल और कैरियर के अवसरों को पैदा करना होगा.

रिपोर्ट में कोरोना महामारी का जिक्र

यूनिसेफ का कहना है कि दशक के अंत से पहले एक करोड़ अतिरिक्त बाल विवाह हो सकते हैं. ऐसे में बाल विवाह को खत्म करने के प्रयासों को झटका लग सकता है

रिपोर्ट में कोरोना महामारी का जिक्र किया गया है जिसके कारण स्कूल बंद होने से, आर्थिक तनाव, सेवा में व्यवधान, गर्भावस्था और माता-पिता की मौतें बाल विवाह के खतरे को बढ़ा सकती हैं.रिपोर्ट के मुताबिक 65 करोड़ लड़कियां जीवित हैं जिनका बाल विवाह हुआ था. इनमें आधी संख्या बांग्लादेश, ब्राजील, इथियोपिया, भारत और नाइजीरिया में है

नई दिल्ली : यूनिसेफ ने 'कोविड-19 ए थ्रेट टू प्रोग्रेस अगेंस चाइल्ड मौरिज' नाम से एक रिपोर्ट जारी किया है. रिपोर्ट में कोरोना महामारी के बाद भारत में बाल विवाह कुप्रथा का प्रभाव बढ़ने के संकेत दिए हैं. यूनिसेफ ने सोमवार को कहा कि दुनिया के तीन में से एक बाल वधु भारत में रहती हैं. भारत के लिए 2030 तक सतत विकास लक्ष्य प्राप्त करने में बाल विवाह एक संभावित चुनौती बनी हुई है.

यूनिसेफ की रिपोर्ट

रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में, अनुमानित 65 करोड़ लड़कियां जीवित हैं जिनका बाल विवाह हुआ था. इनमें आधी संख्या भारत, बांग्लादेश, ब्राजील, इथियोपिया और नाइजीरिया में है.

इस विषय पर विश्लेषण करते हुए यूनिसेफ का कहना है कि कोविड-19 का असर भारत में बाल विवाह जैसे कुप्रथा बढ़ा सकता है. हालांकि यूनिसेफ ने कहा है कि भारत कई नीतियों, कानूनों और कार्यक्रमों के माध्यम से बाल विवाह को खत्म करने के लिए प्रतिबद्ध है.

यूनिसेफ ने कहा, '1992-93 और 2015-16 के बीच एनएफएचएस सर्वेक्षणों से पता चलता है कि बचपन में शादी करने वाली युवा महिलाओं का प्रतिशत आधा हो गया है (54 प्रतिशत से 27 प्रतिशत तक) और पिछले दशक में गिरावट की गति में तेजी आई है'

बाल विवाह को रोकने में ज्यादातर असर शहरी इलाकों में हैं. 2015-16 में दर्ज की कई रिपोर्ट के मुताबिक भारत के शहरी इलाकों में 18 प्रतिशत महिलाएं 20 से 24 साल की उम्र में विवाहित हुई, जबकि 18 साल से कम उम्र में शादी करने वालों की ज्यादातर संख्या लगभग 32 प्रतिशत ग्रामीण इलाकों में है.

यूनिसेफ ने कहा, '18 वर्ष की आयु से पहले शादी करने वाली लड़कियों का सिधा संबंध उनकी पृष्ठभूमि के साथ जुड़ा हुआ है. ग्रामीण इलाकों में या गरीब घरों की लड़कियों को बाल विवाह का जोखिम ज्यादा है. बाल विवाह में बाल वधू का अधिक अनुपात अशिक्षित लोगों के बीच है.'

यूनिसेफ का कहना है कि बाल विवाह लड़कियों की तुलना में लड़कों में कम है और 2030 तक लड़कों के बीच इस कुप्रथा को समाप्त किया जा सकता है.

यूनिसेफ में भारत के प्रतिनिधित्व का बयान

यूनिसेफ में भारत के प्रतिनिधित्व करने वाली डॉ. यास्मीन अली हक ने कहा कि भारत में बाल विवाह को समाप्त करने के लिए, हमें सबसे गरीब और सबसे कमजोर लड़कियों और उनके परिवारों पर ध्यान केंद्रित करना जारी रखना चाहिए. यह एक महत्वपूर्ण बात है कि कोविड-19 महामारी ना सिर्फ हमारे स्वास्थ्य, शिक्षा और बच्चों की सुरक्षा को प्रभावित किया है बल्कि बाल विवाह को रोकने के सभी प्रयासों पर भी असर डाल सकता है.

पढ़ें : कोरोना महामारी के कारण एक करोड़ लड़कियों पर बाल विवाह का खतरा : यूनेस्को

उन्होने कहा कि बाल विवाह को समाप्त करने के अभियान को एक बच्चे के पूरे जीवन चक्र पर विचार करने की आवश्यकता है, लड़कियों को स्कूल में बेहतर शिक्षा दिया जाना चाहिए, सामाजिक कुप्रथा और नकारात्मक मापदंडो के बारे में बताना चाहिए. लड़कियों को और सफल बनाने एवं कामयाब होने के लिए जीवन कौशल और कैरियर के अवसरों को पैदा करना होगा.

रिपोर्ट में कोरोना महामारी का जिक्र

यूनिसेफ का कहना है कि दशक के अंत से पहले एक करोड़ अतिरिक्त बाल विवाह हो सकते हैं. ऐसे में बाल विवाह को खत्म करने के प्रयासों को झटका लग सकता है

रिपोर्ट में कोरोना महामारी का जिक्र किया गया है जिसके कारण स्कूल बंद होने से, आर्थिक तनाव, सेवा में व्यवधान, गर्भावस्था और माता-पिता की मौतें बाल विवाह के खतरे को बढ़ा सकती हैं.रिपोर्ट के मुताबिक 65 करोड़ लड़कियां जीवित हैं जिनका बाल विवाह हुआ था. इनमें आधी संख्या बांग्लादेश, ब्राजील, इथियोपिया, भारत और नाइजीरिया में है

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