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कोरोना संक्रमित मां से गंभीर बीमारी के साथ जन्मे नवजात को मिली नई जिंदगी

कोरोना महामारी के बीच गुजरात से एक चौंकाने वाली घटना सामने आई है. संक्रमित मां से जन्मे बच्चे को बचाने में चिकित्सकों को सफलता मिली है. बच्चे में 21000 डी-डिमर पाया गया था जिससे उसे खतरा था लेकिन भगवान रूपी डॉक्टर की कोशिशों से आखिरकार बच्चे को एक नई जिंदगी मिल गई. पढ़ें पूरी खबर...

नवजात को मिली नई जिंदगी
नवजात को मिली नई जिंदगी
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Published : May 14, 2021, 4:10 PM IST

आनंद : गुजरात के एक परिवार में आठ साल बाद बेटे का जन्म हुआ. इस खबर से पूरे परिवार में खुशी का माहौल था लेकिन उन पर गमों का पहाड़ तब टूटा जब ये पता चला कि नवजात को सांस लेने में दिक्कत है और वह उच्च रक्तचाप जैसी गंभीर बीमारी से पीड़ित है.

नवजात को तुरंत वेंटिलेटर में रखने की जरूरत थी, वरना उसकी हालत और गंभीर हो जाती इसलिए चिकित्सक की सलाह पर परिवार ने तुरंत उसे आनंद जिला लांभवेल के निजी अस्पताल में भर्ती कराया.

नवजात को मिली नई जिंदगी

शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. बिराज ठाकरे ने बताया कि जब नवजात को इलाज के लिए उनके पास लाया गया उसकी हालत अत्यंत गंभीर थी. उसे सांस में दिक्कत होने के साथ उच्च रक्तचाप भी था. नवजात को वेंटिलेटर सर्पोट दिया गया.

नवजात को मिली नई जिंदगी
नवजात को मिली नई जिंदगी

नवजात की आवश्यक रिपोर्ट तैयार की गई जिससे पता चला कि बच्चे का डी-डिमर 21000 है. उसके शरीर के कई अंदरूनी अंगों में क्षति पाई गई. रैपिड और आरटी-पीसीआर टेस्ट की रिपोर्ट में मां और बच्चे निगेटिव पाए गए. लेकिन फिर बच्चे के एंटीबॉडी टेस्ट में वह पॉजिटिव निकला.

डॉक्टर ने बताया कि संक्रमित मां के भीतर बने एंटीबॉडी केवल मां के लिए ही फायदेमंद होते हैं लेकिन जब वह बच्चे में चला जाता है तब उसके लिए नुकसानदायक साबित होता है. इससे बच्चे की किडनी, लिवर और दिल को नुकसान पहुंचता है.

उन्होंने बताया कि यह संभव है कि इस तरह की हालत में मां को अपने संक्रमित होने का पता नहीं चला होगा और उनकी एंटीबॉडी अम्बिलिकल कॉर्ड के माध्यम से बच्चे में चला गया होगा.

ऐसी स्थिति को मेडिकल पैरलेंस में मल्टी सिस्टम इंफ्लेमेटरी सिंड्रोम इन न्यूबॉर्न (MIS-N) कहा जाता है.

उन्होंने बताया कि नवजात का 8 दिनों तक वेंटिलेटर में इलाज चला. इसके बाद 15 दिनों तक उसे ऑक्सीजन दिया गया जिसके बाद उसकी हालत में सुधार आया है. गंभीर अवस्था के कारण नवजात अपनी मां से 18 दिनों तक दूर रहा. सही इलाज के बाद अगले दो दिन में नवजात को अस्पताल से छुट्टी मिल जाएगी.

इस बारे में मां निर्मिता अख्जा ने कहा कि 18 दिनों बाद उन्होंने अपने बच्चे का चेहरा देखा है. जब उन्हें अपने बच्चे की गंभीर बीमारी के बारे में पता चला तब वह घबरा गई थीं. लेकिन अब वह स्वस्थ है.

पढ़ें- गुजरात, असम सहित आठ राज्यों को कोवैक्सीन की खेप डिस्पैच: भारत बायोटेक

उन्होंने चिकित्सकों और अस्पताल के कर्मचारियों को एक मां के साथ तुलना करते हुए कहा कि मेरे बच्चे को आज डॉक्टर की वजह से नई जिंदगी मिली है जिसके लिए उन्हें केवल धन्यवाद कहना काफी नहीं होगा.

आनंद : गुजरात के एक परिवार में आठ साल बाद बेटे का जन्म हुआ. इस खबर से पूरे परिवार में खुशी का माहौल था लेकिन उन पर गमों का पहाड़ तब टूटा जब ये पता चला कि नवजात को सांस लेने में दिक्कत है और वह उच्च रक्तचाप जैसी गंभीर बीमारी से पीड़ित है.

नवजात को तुरंत वेंटिलेटर में रखने की जरूरत थी, वरना उसकी हालत और गंभीर हो जाती इसलिए चिकित्सक की सलाह पर परिवार ने तुरंत उसे आनंद जिला लांभवेल के निजी अस्पताल में भर्ती कराया.

नवजात को मिली नई जिंदगी

शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. बिराज ठाकरे ने बताया कि जब नवजात को इलाज के लिए उनके पास लाया गया उसकी हालत अत्यंत गंभीर थी. उसे सांस में दिक्कत होने के साथ उच्च रक्तचाप भी था. नवजात को वेंटिलेटर सर्पोट दिया गया.

नवजात को मिली नई जिंदगी
नवजात को मिली नई जिंदगी

नवजात की आवश्यक रिपोर्ट तैयार की गई जिससे पता चला कि बच्चे का डी-डिमर 21000 है. उसके शरीर के कई अंदरूनी अंगों में क्षति पाई गई. रैपिड और आरटी-पीसीआर टेस्ट की रिपोर्ट में मां और बच्चे निगेटिव पाए गए. लेकिन फिर बच्चे के एंटीबॉडी टेस्ट में वह पॉजिटिव निकला.

डॉक्टर ने बताया कि संक्रमित मां के भीतर बने एंटीबॉडी केवल मां के लिए ही फायदेमंद होते हैं लेकिन जब वह बच्चे में चला जाता है तब उसके लिए नुकसानदायक साबित होता है. इससे बच्चे की किडनी, लिवर और दिल को नुकसान पहुंचता है.

उन्होंने बताया कि यह संभव है कि इस तरह की हालत में मां को अपने संक्रमित होने का पता नहीं चला होगा और उनकी एंटीबॉडी अम्बिलिकल कॉर्ड के माध्यम से बच्चे में चला गया होगा.

ऐसी स्थिति को मेडिकल पैरलेंस में मल्टी सिस्टम इंफ्लेमेटरी सिंड्रोम इन न्यूबॉर्न (MIS-N) कहा जाता है.

उन्होंने बताया कि नवजात का 8 दिनों तक वेंटिलेटर में इलाज चला. इसके बाद 15 दिनों तक उसे ऑक्सीजन दिया गया जिसके बाद उसकी हालत में सुधार आया है. गंभीर अवस्था के कारण नवजात अपनी मां से 18 दिनों तक दूर रहा. सही इलाज के बाद अगले दो दिन में नवजात को अस्पताल से छुट्टी मिल जाएगी.

इस बारे में मां निर्मिता अख्जा ने कहा कि 18 दिनों बाद उन्होंने अपने बच्चे का चेहरा देखा है. जब उन्हें अपने बच्चे की गंभीर बीमारी के बारे में पता चला तब वह घबरा गई थीं. लेकिन अब वह स्वस्थ है.

पढ़ें- गुजरात, असम सहित आठ राज्यों को कोवैक्सीन की खेप डिस्पैच: भारत बायोटेक

उन्होंने चिकित्सकों और अस्पताल के कर्मचारियों को एक मां के साथ तुलना करते हुए कहा कि मेरे बच्चे को आज डॉक्टर की वजह से नई जिंदगी मिली है जिसके लिए उन्हें केवल धन्यवाद कहना काफी नहीं होगा.

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