नई दिल्ली : भारत के प्रधान न्यायाधीश एन वी रमना ने गुरुवार को कहा कि लोगों के मन में बैठी इस गलत धारणा को मिटाने की जरूरत है कि न्यायाधीशों का जीवन बहुत आसान होता है. हालांकि, उन्होंने कहा कि इस तथ्य को खारिज नहीं किया जा सकता कि जब 'हम न्यायाधीश बन जाते हैं तो समाज के साथ हमारी भागीदारी में बहुत बदलाव आ जाता है.'
प्रधान न्यायाधीश एन वी रमना यहां शीर्ष अदालत के न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन केी विदाई के लिए उच्चतम न्यायालय बार एसोसिएशन द्वारा आयोजित समारोह को संबोधित कर रहे थे. उन्होंने कहा कि न्यायाधीशों के लिए समाज के साथ जुड़े रहना जरूरी है और उन्हें पूरी तरह अलग-थलग नहीं होना चाहिए.
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, 'हर दिन लोगों के मन में यह गलत धारणा आती है कि न्यायाधीश बड़े बंगलों में रहते हैं, केवल सुबह 10 बजे से शाम चार बजे तक काम करते हैं और छुट्टियों का आनंद उठाते हैं. यह बात झूठ है. एक सप्ताह में 100 से अधिक मामलों के लिए तैयारी करना, दलीलों पर सुनवाई करना तथा प्रशासनिक जिम्मेदारियों से भी निपटना आसान नहीं है.'
उन्होंने कहा, 'इसलिए न्यायाधीशों का जीवन आसान रहने के बारे में झूठी बातें सहना मुश्किल होता है. हम अपना बचाव नहीं कर सकते. बार की जिम्मेदारी है कि इन गलत बातों को खारिज करे तथा लोगों को सीमित संसाधनों के साथ न्यायाधीशों द्वारा किये जाने वाले कामों के बारे में बताए.'
न्यायमूर्ति नरीमन ने कहा कि वह मिली-जुली प्रतिक्रियाओं के साथ सेवानिवृत्त हो रहे हैं. उन्होंने कहा, 'अब जब मैं सुबह छह बजे जागूंगा तो फाइलें मेरा इंतजार नहीं कर रही होंगी. मैं अब भी पहले की तरह ही जागूंगा लेकिन आम नागरिकों की तरह जीवन जीऊंगा.'
न्यायमूर्ति नरीमन ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि जब वह बार में थे तो उन्हें पीठ में रहने के बारे में एहसास नहीं था. उन्होंने कहा कि न्यायाधीश होना वकील होने से ज्यादा कठिन है. उन्होंने कहा, 'आपको बहुत पढ़ना होता है. मैंने फैसले लिखने का आनंद उठाया और अंत में सब कुछ ठीक रहा.'
फैसला लेने में जनता की सेवा की भावना
अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा कि न्यायमूर्ति नरीमन उत्कृष्ट विधिवेत्ता हैं, संविधान कानून, वाणिज्यिक तथा कर कानूनों के विशेषज्ञ हैं और धार्मिक विद्वान भी हैं. उन्होंने कहा कि न्यायमूर्ति नरीमन शीर्ष अदालत के अब तक रहे सबसे अच्छे न्यायाधीशों में से एक हैं. न्यायमूर्ति रमना ने कहा कि न्यायाधीश बनने में जाहिर तौर पर सबसे बड़ा त्याग आर्थिक रूप से होता है लेकिन इस तरह का फैसला लेने में जनता की सेवा की भावना होती है.
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एससीबीए के अध्यक्ष और वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने कहा, 'मुझे खुशी है कि मैं उनकी सेवानिवृत्ति के कार्यक्रम की मेजबानी कर रहा हूं लेकिन यह हमारा नुकसान भी है कि हम आज एक प्रतिभाशाली न्यायाधीश को खो रहे हैं. वकील के रूप में न्यायमूर्ति नरीमन का एक दिन का वेतन उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में सात साल में उनकी आय से ज्यादा है. उन्होंने यह त्याग किया.'
विकास सिंह ने कॉलेजियम से अनुरोध किया कि न्यायमूर्ति नरीमन जिन न्यायाधीशों को शीर्ष अदालत के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नति देना चाहते थे, उनका नामों को मंजूरी देना ही उनके प्रति सही सम्मान होगा. उन्होंने कहा, 'मैं प्रधान न्यायाधीश रमना से अनुरोध करता हूं कि महिला न्यायाधीशों के लिये भी कोटा शुरू किया जाए क्योंकि शीर्ष अदालत में न्यायालय महिला न्यायाधीशों की नियुक्ति का यही तरीका है.
(पीटीआई-भाषा)