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हाथियों के जरिए भीख मांगने वालों को जुर्माना लगाकर छोड़ा, छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने वन विभाग को दिया नोटिस

elephants brought chhattisgarh for begging छत्तीसगढ़ में कई साल पहले दो हाथियों को भीख मांगने के लिए यूपी से लाया गया था. इस केस में वन विभाग पर आरोप है कि उसने जुर्माना लेकर हाथियों को छोड़ दिया. छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने उत्तरप्रदेश से छत्तीसगढ़ लाए गए हाथियों को जब्त कर बिना कार्रवाई के छोड़ने पर मुख्य वन संरक्षक पीसीसीएफ के साथ ही वन विभाग के अफसरों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है.Chhattisgarh High Court

High Court issues notice to Forest Department
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट
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Published : Aug 24, 2022, 12:51 AM IST

बिलासपुर: उत्तर प्रदेश से जून जुलाई 2019 में भीख मांगने के लिए छत्तीसगढ़ लाए गए हथियों के मामले में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में सुनवाई (elephants brought chhattisgarh for begging) हुई. कुल दो हाथियों को छत्तीसगढ़ लाया गया (High Court issues notice to Forest Department) था. जिसमें एक नर और एक मादा हाथी थे. एक नर और मादा हाथी को रायपुर वन मंडल द्वारा जब्त करने के बाद अर्थ दंड लगा कर छोड़ने के मामले में यह याचिका लगी थी. रायपुर की संस्था पीपल फॉर एनिमल की तरफ से लगाई गई जनहित याचिका पर यह सुनवाई हुई. इस केस में वन विभाग को नोटिस जारी कर PCCF से जवाब मांगा है.

क्या है पूरा मामला: छत्तीसगढ़ में वर्षों से सैकड़ों किलोमीटर चल कर भीख मांगने के लिए उत्तर प्रदेश से हाथी लाए जाते रहे हैं. ऐसे ही दो हाथी जून जुलाई 2019 में रायपुर लाए गए थे. जिसकी शिकायत पीपल फॉर एनिमल नामक संस्था की कस्तूरी बलाल (कस्तूरी बल्लाल) ने वन विभाग से की. पहले महावतों ने हाथियों का नाम चंचल और अनारकली बताया था और प्रमाणपत्र प्रस्तुत किये थे. प्रमाणपत्र में दोनों हाथी मादा पाए गए तो बाद में नाम मिथुन और अनारकली बताया गया. इनमे से एक हाथी अंधा था और उसे पैदल चला कर उत्तर प्रदेश से रायपुर लाया गया था. दोनों हाथी में चिप लगना भी नहीं पाया गया. जब कि यह अनिवार्य है. शिकायत की जांच के बाद रायपुर वन मंडल ने दोनों हाथियों को जब्त कर वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 की धारा 48 ए के तहत अपराध दर्ज किया था.

क्या है कानूनी प्रावधान: वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की धारा 48 ए प्रावधानित करती है कि बिना मुख्य वन जीव संरक्षक के कोई भी अनुसूचित एक का वन्यजीव एक राज्य से दूसरे राज्य में नहीं लाया जा सकता. प्रकरण में छत्तीसगढ़ के मुख्य वन्यजीव संरक्षक की अनुमति के बिना हाथी छत्तीसगढ़ लाए गए थे. ऐसे प्रकरणों में वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के प्रावधानों के तहत 3 साल की सजा का प्रावधान होता है. धारा 54 के एक अन्य प्रावधान के तहत डिप्टी कंजरवेटर फॉरेस्ट द्वारा 25 हजार रुपए का फाइन लगाया जा सकता है. लेकिन जिन प्रकरणों में सजा का प्रावधान दिया गया है वहां पर यह फाइन नहीं लगाया जा सकता.

कैसे छोड़ दिए गए हाथी: दोनों हाथियों के प्रकरण में कस्तूरी बल्लाल प्रयत्न कर रही थी कि दोनों हाथियों को किसी सुरक्षित हाथी सेंचुरी में वन विभाग द्वारा भेजा जाए. परंतु इस बीच रायपुर के रेंज ऑफिसर ने हाथियों के मालिक से प्रत्येक हाथी का 25 हजार रुपए अर्थदंड लेकर. सुपर्द्नामे पर हाथियों को छोड़ दिया. याचिका में बताया गया की रेंज ऑफिसर को ना तो अर्थदंड लगाने का अधिकार प्राप्त है और ना ही शेड्यूल 1 के प्राणी को सुपर्द्नामे में देने का प्रावधान है. रेंज ऑफिसर द्वारा दोनों हाथियों को 25 हजार रुपए प्रति हाथी का अर्थदंड लगाकर सुपर्द्नामे में देना अवैध और मनमाना है. रेंज ऑफिसर ने अपनी रिपोर्ट 18 सितंबर 2019 को अनुविभागीय अधिकारी रायपुर तथा वनमंडल अधिकारी रायपुर को प्रस्तुत की. जिन्होंने रेंज ऑफिसर की रिपोर्ट को अप्रूव कर दिया.

ये भी पढ़ें: झीरम नक्सली हमला: नए आयोग की कार्यवाही पर छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने लगाई रोक

जनहित याचिका में क्या कहा गया: जनहित याचिका में बताया कि अधिकारियों द्वारा अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार क्रिमिनल कोर्ट में प्रकरण दर्ज ना कर हाथियों को छोड़ा जाना अवैध है. वन्य जीव संरक्षण के प्रावधान के विरुद्ध है. अगर छत्तीसगढ़ में यही प्रथा चालू रही तो छत्तीसगढ़ वन विभाग वन्यजीवों का संरक्षक रहने की बजाय अपराधियों का संरक्षक हो जाएगा.

इन्हें जारी हुआ है नोटिस: प्रकरण पर कोर्ट ने छत्तीसगढ़ शासन प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यप्राणी) छत्तीसगढ़, वनमंडल अधिकारी रायपुर, अनुविभागीय अधिकारी रायपुर, रेंज ऑफिसर रायपुर वन मंडल, हाथी के मालिक प्रेम कुमार तिवारी तथा हाथियों से संबंधित केवलाशंकर चैरिटेबल ट्रस्ट को नोटिस जारी कर 6 सप्ताह में जवाब मांगा है.

बिलासपुर: उत्तर प्रदेश से जून जुलाई 2019 में भीख मांगने के लिए छत्तीसगढ़ लाए गए हथियों के मामले में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में सुनवाई (elephants brought chhattisgarh for begging) हुई. कुल दो हाथियों को छत्तीसगढ़ लाया गया (High Court issues notice to Forest Department) था. जिसमें एक नर और एक मादा हाथी थे. एक नर और मादा हाथी को रायपुर वन मंडल द्वारा जब्त करने के बाद अर्थ दंड लगा कर छोड़ने के मामले में यह याचिका लगी थी. रायपुर की संस्था पीपल फॉर एनिमल की तरफ से लगाई गई जनहित याचिका पर यह सुनवाई हुई. इस केस में वन विभाग को नोटिस जारी कर PCCF से जवाब मांगा है.

क्या है पूरा मामला: छत्तीसगढ़ में वर्षों से सैकड़ों किलोमीटर चल कर भीख मांगने के लिए उत्तर प्रदेश से हाथी लाए जाते रहे हैं. ऐसे ही दो हाथी जून जुलाई 2019 में रायपुर लाए गए थे. जिसकी शिकायत पीपल फॉर एनिमल नामक संस्था की कस्तूरी बलाल (कस्तूरी बल्लाल) ने वन विभाग से की. पहले महावतों ने हाथियों का नाम चंचल और अनारकली बताया था और प्रमाणपत्र प्रस्तुत किये थे. प्रमाणपत्र में दोनों हाथी मादा पाए गए तो बाद में नाम मिथुन और अनारकली बताया गया. इनमे से एक हाथी अंधा था और उसे पैदल चला कर उत्तर प्रदेश से रायपुर लाया गया था. दोनों हाथी में चिप लगना भी नहीं पाया गया. जब कि यह अनिवार्य है. शिकायत की जांच के बाद रायपुर वन मंडल ने दोनों हाथियों को जब्त कर वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 की धारा 48 ए के तहत अपराध दर्ज किया था.

क्या है कानूनी प्रावधान: वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की धारा 48 ए प्रावधानित करती है कि बिना मुख्य वन जीव संरक्षक के कोई भी अनुसूचित एक का वन्यजीव एक राज्य से दूसरे राज्य में नहीं लाया जा सकता. प्रकरण में छत्तीसगढ़ के मुख्य वन्यजीव संरक्षक की अनुमति के बिना हाथी छत्तीसगढ़ लाए गए थे. ऐसे प्रकरणों में वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के प्रावधानों के तहत 3 साल की सजा का प्रावधान होता है. धारा 54 के एक अन्य प्रावधान के तहत डिप्टी कंजरवेटर फॉरेस्ट द्वारा 25 हजार रुपए का फाइन लगाया जा सकता है. लेकिन जिन प्रकरणों में सजा का प्रावधान दिया गया है वहां पर यह फाइन नहीं लगाया जा सकता.

कैसे छोड़ दिए गए हाथी: दोनों हाथियों के प्रकरण में कस्तूरी बल्लाल प्रयत्न कर रही थी कि दोनों हाथियों को किसी सुरक्षित हाथी सेंचुरी में वन विभाग द्वारा भेजा जाए. परंतु इस बीच रायपुर के रेंज ऑफिसर ने हाथियों के मालिक से प्रत्येक हाथी का 25 हजार रुपए अर्थदंड लेकर. सुपर्द्नामे पर हाथियों को छोड़ दिया. याचिका में बताया गया की रेंज ऑफिसर को ना तो अर्थदंड लगाने का अधिकार प्राप्त है और ना ही शेड्यूल 1 के प्राणी को सुपर्द्नामे में देने का प्रावधान है. रेंज ऑफिसर द्वारा दोनों हाथियों को 25 हजार रुपए प्रति हाथी का अर्थदंड लगाकर सुपर्द्नामे में देना अवैध और मनमाना है. रेंज ऑफिसर ने अपनी रिपोर्ट 18 सितंबर 2019 को अनुविभागीय अधिकारी रायपुर तथा वनमंडल अधिकारी रायपुर को प्रस्तुत की. जिन्होंने रेंज ऑफिसर की रिपोर्ट को अप्रूव कर दिया.

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जनहित याचिका में क्या कहा गया: जनहित याचिका में बताया कि अधिकारियों द्वारा अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार क्रिमिनल कोर्ट में प्रकरण दर्ज ना कर हाथियों को छोड़ा जाना अवैध है. वन्य जीव संरक्षण के प्रावधान के विरुद्ध है. अगर छत्तीसगढ़ में यही प्रथा चालू रही तो छत्तीसगढ़ वन विभाग वन्यजीवों का संरक्षक रहने की बजाय अपराधियों का संरक्षक हो जाएगा.

इन्हें जारी हुआ है नोटिस: प्रकरण पर कोर्ट ने छत्तीसगढ़ शासन प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यप्राणी) छत्तीसगढ़, वनमंडल अधिकारी रायपुर, अनुविभागीय अधिकारी रायपुर, रेंज ऑफिसर रायपुर वन मंडल, हाथी के मालिक प्रेम कुमार तिवारी तथा हाथियों से संबंधित केवलाशंकर चैरिटेबल ट्रस्ट को नोटिस जारी कर 6 सप्ताह में जवाब मांगा है.

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