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Chandrayaan 3 : चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग के लिए हैं कई चुनौतियां जिन पर पाना होगा काबू

अंतरिक्ष यान 23 अगस्त को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र पर अपनी सॉफ्ट लैंडिंग के करीब है. हालांकि चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग में कुछ बाधाएं भी हैं? जानिए इस बारे में एयरोस्पेस एवं रक्षा विश्लेषक गिरीश लिंगन्ना क्या कहते हैं.

Chandrayaan 3
चंद्रयान 3
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Published : Aug 19, 2023, 7:18 PM IST

बेंगलुरु (कर्नाटक): भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने अपने चंद्रयान-3 मिशन की जानकारी दी है. अंतरिक्ष यान धीरे-धीरे चंद्रमा के करीब पहुंच रहा है. 23 अगस्त को चंद्रयान-3 चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास पहली बार उतरने का प्रयास करेगा. डिबॉस्ट के बाद, चंद्रयान -3 लैंडर मॉड्यूल के विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर वर्तमान में 113 किलोमीटर गुणा 157 किलोमीटर की कक्षा में हैं. दूसरा डिबॉस्ट 20 अगस्त, 2023 को लगभग 2:00 बजे निर्धारित है. चंद्रयान-3, को इस साल 14 जुलाई को लॉन्च किया गया था. ये चंद्रयान-2 का अनुवर्ती मिशन है जिसे सुरक्षित चंद्र लैंडिंग के लिए डिज़ाइन किया गया है.

चंद्रमा पर सॉफ्ट-लैंडिंग के दौरान प्रमुख बाधाएं

  • चंद्रमा पर 100 किमी की ऊंचाई पर कोई वायुमंडल नहीं है, इसलिए पैराशूट धीरे से नीचे नहीं उतर सकते.
  • 30 किलोमीटर से 100 मीटर की ऊंचाई के बीच चंद्रयान-2 फेल हो गया था. इस बिंदु पर, सॉफ़्टवेयर त्रुटि के कारण दुर्घटनाग्रस्त होने से पहले लैंडर 2.1 किलोमीटर के भीतर चंद्रमा के पास पहुंचा, लेकिन अपनी स्पीड को नियंत्रित नहीं कर सका. इस बार इसकी स्पीड को नियंत्रित करना होगा.
  • 100 मीटर की ऊंचाई पर, चंद्रयान -3 लैंडर विक्रम को इलाके में अप्रत्याशित और अचानक बदलाव का सामना करना पड़ सकता है, जिसके परिणामस्वरूप सॉफ्टवेयर गड़बड़ियां या ऊंचाई सेंसर त्रुटियां हो सकती हैं.
  • लैंडिंग के दौरान, ल्यूनर मटीरियल हवा में उड़ेगा, जिससे सेंसर त्रुटियों और थ्रस्टर के बंद होने का खतरा पैदा हो सकता है. लैंडिंग की गति कम होने के बाद भी चंद्र कण खतरा पैदा करते रहेंगे. कण लैंडर के कैमरे के लेंस को अस्पष्ट कर सकते हैं और गलत रीडिंग का कारण बन सकते हैं.

इसरो के लिए सबसे बड़ा मुद्दा है लैंडर को झुकाना : इसरो अध्यक्ष के अनुसार, चंद्रयान-3 अंतरिक्ष यान की सुरक्षित लैंडिंग के लिए अंतरिक्ष यान की दिशा महत्वपूर्ण होगी. हालांकि यह गति चंद्रमा की सतह के क्षैतिज है. उन्होंने दावा किया कि लैंडिंग प्रक्रिया का प्रारंभिक वेग 1.68 किमी प्रति सेकंड के करीब होगा.

चंद्रयान-3 को वर्टिकल होना चाहिए क्योंकि यह इस स्थान पर लगभग 90 डिग्री झुका हुआ है. इसरो अध्यक्ष के अनुसार, इस स्थिति में हमें जिस 'ट्रिक' का उपयोग करना चाहिए, वह अंतरिक्ष यान को क्षैतिज से ऊर्ध्वाधर दिशा में ले जाने की क्षमता है, अर्थात चंद्रमा की सतह के समानांतर पैरों का सामना करना.

सुरक्षित चंद्र लैंडिंग हासिल करने के लिए, चंद्रयान -3 को कई चरणों के माध्यम से ऊर्ध्वाधर स्थिति (vertical position) में ले जाया जाएगा. चंद्रयान-2 मिशन के दौरान चंद्रमा की सतह पर अपने लैंडर को ठीक से उतारने में इसरो की पूर्व विफलता के कारण, यह कदम महत्वपूर्ण है.

इसरो निदेशक के अनुसार, कठिनाई में ईंधन के उपयोग को कम करना, सटीक दूरी की गणना सुनिश्चित करना और यह सुनिश्चित करना भी शामिल है कि सभी एल्गोरिदम उद्देश्य के अनुसार काम कर रहे हैं. हालांकि, इसरो टीम पूरी तरह से सतर्क है. उसने ऐसी व्यवस्था की है कि गणना में थोड़ी सी गड़बड़ी होने पर भी विक्रम सॉप्ट लैंडिंग कर सके. इसरो चेयरमैन ने कहा कि 'हमने यह सुनिश्चित किया है कि तीन मीटर प्रति सेकंड तक की लैंडिंग वेग से चंद्रयान-3 को कोई नुकसान नहीं पहुंचे.'

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बेंगलुरु (कर्नाटक): भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने अपने चंद्रयान-3 मिशन की जानकारी दी है. अंतरिक्ष यान धीरे-धीरे चंद्रमा के करीब पहुंच रहा है. 23 अगस्त को चंद्रयान-3 चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास पहली बार उतरने का प्रयास करेगा. डिबॉस्ट के बाद, चंद्रयान -3 लैंडर मॉड्यूल के विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर वर्तमान में 113 किलोमीटर गुणा 157 किलोमीटर की कक्षा में हैं. दूसरा डिबॉस्ट 20 अगस्त, 2023 को लगभग 2:00 बजे निर्धारित है. चंद्रयान-3, को इस साल 14 जुलाई को लॉन्च किया गया था. ये चंद्रयान-2 का अनुवर्ती मिशन है जिसे सुरक्षित चंद्र लैंडिंग के लिए डिज़ाइन किया गया है.

चंद्रमा पर सॉफ्ट-लैंडिंग के दौरान प्रमुख बाधाएं

  • चंद्रमा पर 100 किमी की ऊंचाई पर कोई वायुमंडल नहीं है, इसलिए पैराशूट धीरे से नीचे नहीं उतर सकते.
  • 30 किलोमीटर से 100 मीटर की ऊंचाई के बीच चंद्रयान-2 फेल हो गया था. इस बिंदु पर, सॉफ़्टवेयर त्रुटि के कारण दुर्घटनाग्रस्त होने से पहले लैंडर 2.1 किलोमीटर के भीतर चंद्रमा के पास पहुंचा, लेकिन अपनी स्पीड को नियंत्रित नहीं कर सका. इस बार इसकी स्पीड को नियंत्रित करना होगा.
  • 100 मीटर की ऊंचाई पर, चंद्रयान -3 लैंडर विक्रम को इलाके में अप्रत्याशित और अचानक बदलाव का सामना करना पड़ सकता है, जिसके परिणामस्वरूप सॉफ्टवेयर गड़बड़ियां या ऊंचाई सेंसर त्रुटियां हो सकती हैं.
  • लैंडिंग के दौरान, ल्यूनर मटीरियल हवा में उड़ेगा, जिससे सेंसर त्रुटियों और थ्रस्टर के बंद होने का खतरा पैदा हो सकता है. लैंडिंग की गति कम होने के बाद भी चंद्र कण खतरा पैदा करते रहेंगे. कण लैंडर के कैमरे के लेंस को अस्पष्ट कर सकते हैं और गलत रीडिंग का कारण बन सकते हैं.

इसरो के लिए सबसे बड़ा मुद्दा है लैंडर को झुकाना : इसरो अध्यक्ष के अनुसार, चंद्रयान-3 अंतरिक्ष यान की सुरक्षित लैंडिंग के लिए अंतरिक्ष यान की दिशा महत्वपूर्ण होगी. हालांकि यह गति चंद्रमा की सतह के क्षैतिज है. उन्होंने दावा किया कि लैंडिंग प्रक्रिया का प्रारंभिक वेग 1.68 किमी प्रति सेकंड के करीब होगा.

चंद्रयान-3 को वर्टिकल होना चाहिए क्योंकि यह इस स्थान पर लगभग 90 डिग्री झुका हुआ है. इसरो अध्यक्ष के अनुसार, इस स्थिति में हमें जिस 'ट्रिक' का उपयोग करना चाहिए, वह अंतरिक्ष यान को क्षैतिज से ऊर्ध्वाधर दिशा में ले जाने की क्षमता है, अर्थात चंद्रमा की सतह के समानांतर पैरों का सामना करना.

सुरक्षित चंद्र लैंडिंग हासिल करने के लिए, चंद्रयान -3 को कई चरणों के माध्यम से ऊर्ध्वाधर स्थिति (vertical position) में ले जाया जाएगा. चंद्रयान-2 मिशन के दौरान चंद्रमा की सतह पर अपने लैंडर को ठीक से उतारने में इसरो की पूर्व विफलता के कारण, यह कदम महत्वपूर्ण है.

इसरो निदेशक के अनुसार, कठिनाई में ईंधन के उपयोग को कम करना, सटीक दूरी की गणना सुनिश्चित करना और यह सुनिश्चित करना भी शामिल है कि सभी एल्गोरिदम उद्देश्य के अनुसार काम कर रहे हैं. हालांकि, इसरो टीम पूरी तरह से सतर्क है. उसने ऐसी व्यवस्था की है कि गणना में थोड़ी सी गड़बड़ी होने पर भी विक्रम सॉप्ट लैंडिंग कर सके. इसरो चेयरमैन ने कहा कि 'हमने यह सुनिश्चित किया है कि तीन मीटर प्रति सेकंड तक की लैंडिंग वेग से चंद्रयान-3 को कोई नुकसान नहीं पहुंचे.'

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