रांची : हर साल 27 मार्च को विश्व रंगमंच दिवस मनाया जाता है. 1961 में इंटरनेशनल थिएटर इंस्टीट्यूट ने इस दिन की शुरुआत थी. हर साल दुनियाभर में इस दिन राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय थिएटर समारोह आयोजित होते हैं. झारखंड में भी प्रत्येक वर्ष इस विशेष दिवस को मनाया जाता है, लेकिन सुनकर आश्चर्य होगा की इस दिन को मनाने के लिए झारखंड के रंगमंचकर्मी कड़ी मशक्कत करते हैं. आर्थिक रूप से कमजोर होने के कारण ये लोग आपस मे चंदा इकट्ठा कर इस विशेष दिवस के अवसर पर कार्यक्रम आयोजित करने की कोशिश करते हैं.
रंगकर्मियों का बदरंग होता जीवन
झारखंड के रंगमंच के नाट्यकर्मी बदहाली का जीवन जीने को विवश हैं. सरकार की ओर से इन नाट्य कर्मियों की ओर ध्यान नहीं दिया जाता है. इस वजह से यह आज गुमनामी की जिंदगी जीने को मजबूर हैं. आर्थिक रूप से टूट चुके इन रंगकर्मियों को कभी-कभी नुक्कड़ पर नाटक करते देखा जा सकता है. विभिन्न विकट परिस्थितियों के बावजूद यह लोग, लोगों को जागरूक करते हैं. नाटक मंचन के जरिए समाज की कुरीतियों के साथ ही लोगों का मनोरंजन भी करते हैं. इस क्षेत्र की ओर सरकार की ऐसी उदासीनता है कि प्रत्येक वर्ष 27 मार्च को विश्व रंगमंच दिवस के अवसर पर भी इन नाट्य कर्मियों की ओर विभाग का ध्यान नहीं जाता है. मंच के अभाव में यह लोग नाटक का मंचन तक नहीं कर पाते हैं. इसके बावजूद विश्व रंगमंच दिवस के अवसर पर यह लोग एक दूसरे से ही चंदा इकट्ठा कर इस दिवस को मनाने की तैयारी जरूर करते हैं. राज्य भर में लगभग 480 नाट्यकर्मी हैं. राजधानी रांची में 152 नाट्यकर्मियों की संख्या है.
क्या कहते हैं नाट्य कर्मी
बरसों से इस पेशे से जुड़ी वरीय नाट्य कर्मी रीना सहाय कहती हैं कि अब पीड़ा होती है. जो स्थिति नाटक और इस क्षेत्र की हुई है, यह वाकई दयनीय है. युवा इस क्षेत्र में आना नहीं चाहते हैं, जो पुराने साथी कलाकार हैं वह भी अब निराश हो चले हैं. नाट्यकर्मी ऋषिकेश बताते हैं कि दिन-ब-दिन इस पेशे से जुड़े कलाकारों की हालत खराब हो रही है. कोई भुखमरी की कगार पर है, तो कोई बीमारी से जूझ रहा है और सरकार का इस ओर ध्यान नहीं है. यह विभाग सीएम हेमंत सोरेन के हाथों में है, लेकिन 1 साल बीतने के बाद भी इस ओर मुख्यमंत्री का भी ध्यान नहीं गया. प्रचार प्रसार की कमी है. नाटक कर्मियों को इस राज्य में सम्मान नहीं मिल रहा है. कोरोना काल के दौरान भी इस और सरकार ने बिल्कुल ही ध्यान नहीं दिया. लोग आर्थिक तंगी से गुजर रहे हैं.
वहीं, इसी पेशे से जुड़े चंद्रदेव सिंह की मानें, तो राज्य सरकार को इस ओर ध्यान देने की जरूरत है. वह कहते हैं कि अगर नई शिक्षा नीति के तहत स्कूल, कॉलेज या फिर विभिन्न क्षेत्रों में नाट्य कर्मियों को शिक्षक और अनुबंध पर नाटक के प्राध्यापक सरकार की ओर से नियुक्त किया जाए, तो थोड़ी परेशानियां इस क्षेत्र में भी कम होगी. एक और नाटक मंचन कर रहे युवा कलाकार विनोद कुमार की मानें, तो नाटक तैयार करने के बाद इसकी प्रस्तुति देने के लिए इन्हें जगह नहीं मिलती है. कहीं अगर भाड़े पर जगह लेने की कोशिश होती है, तो हॉल या फिर किसी स्थान का इतना खर्च बता दिया जाता है कि कलाकार उसे वहन नहीं कर पाते हैं. वहीं, रांची विश्वविद्यालय से इसी क्षेत्र में एमए डिग्री डिग्री हासिल कर चुकी कामिनी की मानें, तो उन्हें लगता है कि उन्होंने इस क्षेत्र में डिग्री लेकर भूल कर दी है, क्योंकि यह क्षेत्र अब बिल्कुल ही अनदेखा हो चुका है. सामाजिक संगठनों के अलावा सरकार का भी इस ओर ध्यान नहीं है.
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सरकारी सहयोग की सख्त जरूरत
गुमनाम जिंदगी जीने के लिए अब यह नाट्यकर्मी मजबूर हैं. आने वाले समय में युवा इस ओर आकर्षित हों, इसके लिए कुछ बेहतर पहल करने की भी विभाग को जरूरत है. बिना सरकारी सहायता के इस क्षेत्र का विकास नहीं हो सकता है और इसे लेकर विभाग को आगे आना होगा और राज्य सरकार को भी बड़ा दिल दिखाना होगा, ताकि भुखमरी के कगार पर पहुंचे इन नाट्य कर्मियों के दिन भी बहुर सके.