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असम में भाजपा के मिशन 100+ के लिए मतदान का पहला चरण चुनौतीपूर्ण

असम विधानसभा चुनाव का पहला चरण भाजपा गठबंधन के लिए सफलता की कुंजी है, लेकिन यह चुनौतीपूर्ण भी है. राज्य के राजनीतिक पर्यवेक्षकों को लगता है कि पहले चरण के बाद से ही प्रदेश में दलों की स्थिति साफ होने लगेगी. पढ़ें ईटीवी भारत के वरिष्ठ संवाददाता गौतम बरुआ की रिपोर्ट...

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Published : Mar 25, 2021, 5:47 PM IST

गुवाहाटी : असम में लगातार दूसरे कार्यकाल के लिए सत्तारूढ़ भाजपा और उसके गठबंधन सहयोगियों ने राज्य में मिशन 100+ की घोषणा की है. हालांकि, यह मिशन भगवा पार्टी के लिए आसान नहीं होने वाला है. अगर वे पहले चरण के मतदान में अच्छा प्रदर्शन नहीं करते हैं, तो आगे की राह मुश्किल हो सकती है.

असम के कुल 126 निर्वाचन क्षेत्रों में से पहले चरण में 47 सीटों के लिए अगले शनिवार को वोट डाले जाएंगे. असम गण परिषद (एजीपी), यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी लिबरल (यूपीपीएल) और गण सुरक्षा पार्टी (जीएसपी) के साथ चुनावों में जा रही भगवा पार्टी ने असम की कुल 126 सीटों में से 100 सीटें सुरक्षित करने का संकल्प लिया है. 2016 में भगवा गठबंधन ने 83 सीटें एक साथ हासिल की थीं, जो बताता है कि गठबंधन को इस बार मिशन 100+ के लक्ष्य को पाने के लिए कम से कम 13 और सीटों की आवश्यकता होगी.

28 पर भाजपा का है कब्जा

पहले चरण के होने वाले मतदान में 47 सीटों में से 28 पर भाजपा का कब्जा है. जबकि उसके साझेदार एजीपी के पास आठ सीटें हैं. दूसरी ओर कांग्रेस ने इन 47 में से नौ क्षेत्रों में जीत हासिल की थी. अखिल भारतीय यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (AIUDF) ने 2016 में दो सीटें जीती थीं. सभी दलों का यह लक्ष्य है कि मौजूदा सीटें बनाए रखें और ज्यादा सीटें जीतने की कोशिश करें.

सीएए व एनआरसी बना मुद्दा

बीजेपी ने 2016 में दूसरे और तीसरे चरण के चुनावों में कुछ क्षेत्रों में जीत हासिल की थी. लेकिन इस बार स्थिति बदल गई है, क्योंकि कांग्रेस ने एआईयूडीएफ, वाम दलों और अन्य दलों के साथ गठबंधन किया है. इसके अलावा सीएए और एनआरसी पर बीजेपी का रुख भी कुछ क्षेत्रों में भगवा पार्टी और उसके सहयोगियों को प्रभावित कर रहा है. विशेष रूप से दो नए क्षेत्रीय राजनीतिक दलों को बढ़त दे रहा है, जिन्होंने सीएए को पहले ही अपने मुख्य चुनावी एजेंडे में शामिल किया है.

यह भी पढ़ें-वाजे के साथ कार में थे मनसुख हिरेन, CCTV फुटेज से खुलासा

कांग्रेस और AIUDF गठबंधन का कटिगोरा, बोरखला, बिलासीपारा पूर्व, उदरबंद, मंगलादाई, बोरखेड़ी, सरभोग, सोनई, पथराकंडी और गोलकगंज जैसे निर्वाचन क्षेत्रों में भाजपा की संभावनाओं को प्रभावित करने का लक्ष्य है. अगर भाजपा इन निर्वाचन क्षेत्रों को खो देती है तो यह जरूरी है कि भगवा पार्टी और उसके सहयोगी पहले चरण के चुनावों में बेहतर प्रदर्शन करें.

गुवाहाटी : असम में लगातार दूसरे कार्यकाल के लिए सत्तारूढ़ भाजपा और उसके गठबंधन सहयोगियों ने राज्य में मिशन 100+ की घोषणा की है. हालांकि, यह मिशन भगवा पार्टी के लिए आसान नहीं होने वाला है. अगर वे पहले चरण के मतदान में अच्छा प्रदर्शन नहीं करते हैं, तो आगे की राह मुश्किल हो सकती है.

असम के कुल 126 निर्वाचन क्षेत्रों में से पहले चरण में 47 सीटों के लिए अगले शनिवार को वोट डाले जाएंगे. असम गण परिषद (एजीपी), यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी लिबरल (यूपीपीएल) और गण सुरक्षा पार्टी (जीएसपी) के साथ चुनावों में जा रही भगवा पार्टी ने असम की कुल 126 सीटों में से 100 सीटें सुरक्षित करने का संकल्प लिया है. 2016 में भगवा गठबंधन ने 83 सीटें एक साथ हासिल की थीं, जो बताता है कि गठबंधन को इस बार मिशन 100+ के लक्ष्य को पाने के लिए कम से कम 13 और सीटों की आवश्यकता होगी.

28 पर भाजपा का है कब्जा

पहले चरण के होने वाले मतदान में 47 सीटों में से 28 पर भाजपा का कब्जा है. जबकि उसके साझेदार एजीपी के पास आठ सीटें हैं. दूसरी ओर कांग्रेस ने इन 47 में से नौ क्षेत्रों में जीत हासिल की थी. अखिल भारतीय यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (AIUDF) ने 2016 में दो सीटें जीती थीं. सभी दलों का यह लक्ष्य है कि मौजूदा सीटें बनाए रखें और ज्यादा सीटें जीतने की कोशिश करें.

सीएए व एनआरसी बना मुद्दा

बीजेपी ने 2016 में दूसरे और तीसरे चरण के चुनावों में कुछ क्षेत्रों में जीत हासिल की थी. लेकिन इस बार स्थिति बदल गई है, क्योंकि कांग्रेस ने एआईयूडीएफ, वाम दलों और अन्य दलों के साथ गठबंधन किया है. इसके अलावा सीएए और एनआरसी पर बीजेपी का रुख भी कुछ क्षेत्रों में भगवा पार्टी और उसके सहयोगियों को प्रभावित कर रहा है. विशेष रूप से दो नए क्षेत्रीय राजनीतिक दलों को बढ़त दे रहा है, जिन्होंने सीएए को पहले ही अपने मुख्य चुनावी एजेंडे में शामिल किया है.

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कांग्रेस और AIUDF गठबंधन का कटिगोरा, बोरखला, बिलासीपारा पूर्व, उदरबंद, मंगलादाई, बोरखेड़ी, सरभोग, सोनई, पथराकंडी और गोलकगंज जैसे निर्वाचन क्षेत्रों में भाजपा की संभावनाओं को प्रभावित करने का लक्ष्य है. अगर भाजपा इन निर्वाचन क्षेत्रों को खो देती है तो यह जरूरी है कि भगवा पार्टी और उसके सहयोगी पहले चरण के चुनावों में बेहतर प्रदर्शन करें.

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