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'कांटों भरे ताज' को पहन नीतीश को बदलनी होगी बिहार की तस्वीर

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Published : Nov 15, 2020, 8:12 PM IST

बिहार की आगे की राजनीतिक पटकथा बहुत हद तक जनता ने विधानसभा चुनाव 2020 में लिख दिया है. नीतीश अगर जनता के अनुसार चले, तो बिहार के इतिहास के सर्वोच्च नेता बन जाएंगे अन्यथा गुमनामी में खो जाएंगे. पढ़िए पूरी रिपोर्ट.

Nitish Kumar
नीतीश कुमार

हैदराबाद : बिहार में विधानसभा चुनाव समाप्त हो चुका है. नीतीश कुमार का सातवीं बार मुख्यमंत्री बनना तय है. राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के लिहाज से देखें तो नतीजे उसके पक्ष में आए हैं और उसे खुश होने का जनता ने पूरा मौका दिया है. हालांकि, नीतीश कुमार के लिए नतीजे संतोषजनक ही रहे. इस बार उनकी पार्टी जदयू को 2015 जैसी सफलता नहीं मिली है. जदयू को 2015 में मिली 71 सीटों की तुलना में इस बार 43 सीटें ही मिली हैं. सत्तारूढ़ गठबंधन ने बिहार विधानसभा की 243 सीटों में से 125 सीटों पर जीत हासिल की. विपक्ष के महागठबंधन ने 110 सीटें जीतीं. जाहिर है इस बार विपक्ष और सहयोगी मजबूत हैं और नीतीश कमजोर.

राजद और तेजस्वी करते रहेंगे परेशान

इस बार राजद 75 सीटें अपने नाम करके सबसे बड़ी एकल पार्टी के रूप में उभरी है. विपक्षी महागठबंधन की बात करें तो राजद को 75, कांग्रेस को 19, भाकपा माले को 12 और भाकपा एवं माकपा को दो-दो सीटों पर जीत मिली. महागठबंधन का आंकड़ा विधानसभा में 110 है. बहुमत के लिए 122 विधायकों का समर्थन चाहिए. जाहिर है विपक्ष महज 12 की संख्या से सरकार बनाने से चूक गया. तेजस्वी ने जता भी दिया है कि वह सरकार बनाने के लिए प्रयास करते रहेंगे. बताया जा रहा है कि जाेड़-तोड़ की कोशिश के बीच उपमुख्‍यमंत्री की कुर्सी का भी ऑफर खुल गया है. महागठबंधन के प्रमुख घटक राष्‍ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्‍वी यादव ने इसके लिए अपने कुछ प्रमुख सिपहसालारों को लगाया है. जोड़-तोड़ की कोशिशों का खुलासा हिंदुस्‍तानी अवाम मोर्चा (हम) के अध्‍यक्ष जीतन राम मांझी हाल ही में कर चुके हैं. आरजेडी के सांसद मनोज झा कहते हैं कि जनादेश नीतीश कुमार के खिलाफ है और हम इसका विकल्‍प खोज लेंगे. इसके पहले आरजेडी विधायक दल की बैठक में तेजस्वी यादव ने भी कहा था कि एनडीए सरकार ज्यादा दिनों तक नहीं चलेगी. बताया जाता है कि आरजेडी की तरफ से बाहुबली अनंत सिंह और रीतलाल यादव को महागठबंधन की सरकार के लिए 'जुगाड़' की जिम्मेदारी दी गई है. विधान पार्षद सुनील सिंह और राज्यसभा सांसद अमरेंद्र धारी सिंह को भी इस काम में लगाया गया है. साफ है कि तेजस्वी लगातार नीतीश कुमार को परेशान करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ेंगे.

भाजपा, हम और वीआईपी को देनी पड़ेगी तवज्जो

भाजपा इस बार 74 सीटों के साथ बिहार की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी है. जाहिर है भाजपा पर अब नीतीश पहले जैसा दबाव नहीं बना पाएंगे. भाजपा अब सरकार के कामकाज में ज्याद दखल देगी और अपने एजेंडे पर काम करेगी. दरअसल, भाजपा इस सरकार में खुलकर खेलेगी और 2025 की तैयारी करेगी. उपमुख्यमंत्री के रूप में नीतीश के चहेते सुशील मोदी को बिहार की सरकार से बाहर करना इसका स्पष्ट संकेत है. हालांकि, भाजपा नीतीश पर इतना भी दबाव नहीं बनाएगी कि उन्हें कोई कड़ा फैसला लेना पड़े, मगर इतना तय है कि भाजपा अपने एजेंडे पर काम करेगी और नीतीश रोकने की स्थिति में नहीं होंगे. हालांकि, नीतीश कुमार के लिए सबसे बड़ी समस्या सत्तारूढ़ गठबंधन के साझीदार हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) और विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) बनेंगी. दोनों ने चार-चार सीटें जीती हैं. दोनों दल चुनाव के पहले तक महागठबंधन में थे. इनके लिए पाला बदलना बहुत ही आसान होगा. अगर इन्हें लगा कि विपक्ष की सरकार बन सकती है और वहां इन्हें ज्यादा बड़ा ओहदा मिल सकता है तो ये दोनों दल एक मिनट की भी देर नहीं करेंगे.

भाकपा माले का उभार

भाकपा माले ने 12 सीटें जीतीं हैं. भाकपा माले का विधानसभा में इतनी भारी संख्या में पहुंचना नीतीश कुमार के लिए काफी नुकसानदायक हो सकता है. भाकपा माले को उग्र संगठन माना जाता है. नक्सलियों से इनकी सहानुभूति छुपी हुई नहीं है. ऐसे में कानून-व्यवस्था के लिए चुनौती काफी गंभीर है. बिहार में नक्सलवाद की जड़ें गहरी हैं. अगर, इसमें उभार आता है, तो यह बिहार के लिए नुकसानदायक होगा.

बड़े उद्योग लाना

बिहार में नीतीश कुमार ने काम तो बहुत किए, मगर अब जनता चाहती है कि उसे रोजगार के लिए पलायन नहीं करना पड़े. जनता यह मानने को तैयार नहीं कि बिहार समुद्र के किनारे नहीं है तो यहां उद्योग नहीं आ सकते. बिहार की जनता इसे कोरी बहानेबाजी मान रही है. नीतीश के दल की सीटें कम होने और तेजस्वी के उभरने का इस बार सबसे बड़ा कारण भी यही रहा. अगर नीतीश इस बार उद्योग ला पाने में विफल रहते हैं, तो शायद ही अगली बार बिहार की जनता उन्हें मौका दे.

नीतीश का अनुभव आएगा काम

नीतीश कुमार सातवीं बार मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं. ऐसे में उनके लिए इन चुनौतियों से पार पाना बहुत मुश्किल नहीं होगा. यही कारण है कि भाजपा ने यह जानते हुए कि नीतीश कुमार से लोग बहुत खुश नहीं हैं बार-बार चुनावी सभाओं में घोषणा की कि भाजपा के अगर ज्यादा विधायक जीत कर आए तो भी नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री होंगे. जाहिर है इस बार लड़ाई मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बनाम मुख्यमंत्री नीतीश कुमार है. नीतीश कुमार ने बिहार को बीमारू राज्य से निकाल दिया. शायद इसीलिए नाराजगी के बावजूद लोगों ने उनको पूरी तरह नहीं नकारा. अब नीतीश कुमार को बिहार को विकसित बनाकर जनता का विश्वास जीतना होगा. अगले चुनाव में नीतीश अगर बिहार को विकसित बना पाए, तो बिहार के इतिहास के सर्वोच्च नेता बन जाएंगे अन्यथा गुमनामी में खो जाएंगे.

हैदराबाद : बिहार में विधानसभा चुनाव समाप्त हो चुका है. नीतीश कुमार का सातवीं बार मुख्यमंत्री बनना तय है. राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के लिहाज से देखें तो नतीजे उसके पक्ष में आए हैं और उसे खुश होने का जनता ने पूरा मौका दिया है. हालांकि, नीतीश कुमार के लिए नतीजे संतोषजनक ही रहे. इस बार उनकी पार्टी जदयू को 2015 जैसी सफलता नहीं मिली है. जदयू को 2015 में मिली 71 सीटों की तुलना में इस बार 43 सीटें ही मिली हैं. सत्तारूढ़ गठबंधन ने बिहार विधानसभा की 243 सीटों में से 125 सीटों पर जीत हासिल की. विपक्ष के महागठबंधन ने 110 सीटें जीतीं. जाहिर है इस बार विपक्ष और सहयोगी मजबूत हैं और नीतीश कमजोर.

राजद और तेजस्वी करते रहेंगे परेशान

इस बार राजद 75 सीटें अपने नाम करके सबसे बड़ी एकल पार्टी के रूप में उभरी है. विपक्षी महागठबंधन की बात करें तो राजद को 75, कांग्रेस को 19, भाकपा माले को 12 और भाकपा एवं माकपा को दो-दो सीटों पर जीत मिली. महागठबंधन का आंकड़ा विधानसभा में 110 है. बहुमत के लिए 122 विधायकों का समर्थन चाहिए. जाहिर है विपक्ष महज 12 की संख्या से सरकार बनाने से चूक गया. तेजस्वी ने जता भी दिया है कि वह सरकार बनाने के लिए प्रयास करते रहेंगे. बताया जा रहा है कि जाेड़-तोड़ की कोशिश के बीच उपमुख्‍यमंत्री की कुर्सी का भी ऑफर खुल गया है. महागठबंधन के प्रमुख घटक राष्‍ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्‍वी यादव ने इसके लिए अपने कुछ प्रमुख सिपहसालारों को लगाया है. जोड़-तोड़ की कोशिशों का खुलासा हिंदुस्‍तानी अवाम मोर्चा (हम) के अध्‍यक्ष जीतन राम मांझी हाल ही में कर चुके हैं. आरजेडी के सांसद मनोज झा कहते हैं कि जनादेश नीतीश कुमार के खिलाफ है और हम इसका विकल्‍प खोज लेंगे. इसके पहले आरजेडी विधायक दल की बैठक में तेजस्वी यादव ने भी कहा था कि एनडीए सरकार ज्यादा दिनों तक नहीं चलेगी. बताया जाता है कि आरजेडी की तरफ से बाहुबली अनंत सिंह और रीतलाल यादव को महागठबंधन की सरकार के लिए 'जुगाड़' की जिम्मेदारी दी गई है. विधान पार्षद सुनील सिंह और राज्यसभा सांसद अमरेंद्र धारी सिंह को भी इस काम में लगाया गया है. साफ है कि तेजस्वी लगातार नीतीश कुमार को परेशान करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ेंगे.

भाजपा, हम और वीआईपी को देनी पड़ेगी तवज्जो

भाजपा इस बार 74 सीटों के साथ बिहार की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी है. जाहिर है भाजपा पर अब नीतीश पहले जैसा दबाव नहीं बना पाएंगे. भाजपा अब सरकार के कामकाज में ज्याद दखल देगी और अपने एजेंडे पर काम करेगी. दरअसल, भाजपा इस सरकार में खुलकर खेलेगी और 2025 की तैयारी करेगी. उपमुख्यमंत्री के रूप में नीतीश के चहेते सुशील मोदी को बिहार की सरकार से बाहर करना इसका स्पष्ट संकेत है. हालांकि, भाजपा नीतीश पर इतना भी दबाव नहीं बनाएगी कि उन्हें कोई कड़ा फैसला लेना पड़े, मगर इतना तय है कि भाजपा अपने एजेंडे पर काम करेगी और नीतीश रोकने की स्थिति में नहीं होंगे. हालांकि, नीतीश कुमार के लिए सबसे बड़ी समस्या सत्तारूढ़ गठबंधन के साझीदार हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) और विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) बनेंगी. दोनों ने चार-चार सीटें जीती हैं. दोनों दल चुनाव के पहले तक महागठबंधन में थे. इनके लिए पाला बदलना बहुत ही आसान होगा. अगर इन्हें लगा कि विपक्ष की सरकार बन सकती है और वहां इन्हें ज्यादा बड़ा ओहदा मिल सकता है तो ये दोनों दल एक मिनट की भी देर नहीं करेंगे.

भाकपा माले का उभार

भाकपा माले ने 12 सीटें जीतीं हैं. भाकपा माले का विधानसभा में इतनी भारी संख्या में पहुंचना नीतीश कुमार के लिए काफी नुकसानदायक हो सकता है. भाकपा माले को उग्र संगठन माना जाता है. नक्सलियों से इनकी सहानुभूति छुपी हुई नहीं है. ऐसे में कानून-व्यवस्था के लिए चुनौती काफी गंभीर है. बिहार में नक्सलवाद की जड़ें गहरी हैं. अगर, इसमें उभार आता है, तो यह बिहार के लिए नुकसानदायक होगा.

बड़े उद्योग लाना

बिहार में नीतीश कुमार ने काम तो बहुत किए, मगर अब जनता चाहती है कि उसे रोजगार के लिए पलायन नहीं करना पड़े. जनता यह मानने को तैयार नहीं कि बिहार समुद्र के किनारे नहीं है तो यहां उद्योग नहीं आ सकते. बिहार की जनता इसे कोरी बहानेबाजी मान रही है. नीतीश के दल की सीटें कम होने और तेजस्वी के उभरने का इस बार सबसे बड़ा कारण भी यही रहा. अगर नीतीश इस बार उद्योग ला पाने में विफल रहते हैं, तो शायद ही अगली बार बिहार की जनता उन्हें मौका दे.

नीतीश का अनुभव आएगा काम

नीतीश कुमार सातवीं बार मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं. ऐसे में उनके लिए इन चुनौतियों से पार पाना बहुत मुश्किल नहीं होगा. यही कारण है कि भाजपा ने यह जानते हुए कि नीतीश कुमार से लोग बहुत खुश नहीं हैं बार-बार चुनावी सभाओं में घोषणा की कि भाजपा के अगर ज्यादा विधायक जीत कर आए तो भी नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री होंगे. जाहिर है इस बार लड़ाई मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बनाम मुख्यमंत्री नीतीश कुमार है. नीतीश कुमार ने बिहार को बीमारू राज्य से निकाल दिया. शायद इसीलिए नाराजगी के बावजूद लोगों ने उनको पूरी तरह नहीं नकारा. अब नीतीश कुमार को बिहार को विकसित बनाकर जनता का विश्वास जीतना होगा. अगले चुनाव में नीतीश अगर बिहार को विकसित बना पाए, तो बिहार के इतिहास के सर्वोच्च नेता बन जाएंगे अन्यथा गुमनामी में खो जाएंगे.

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