नई दिल्ली : भारतीय चकमा आदिवासी समुदायों के चार संगठनों ने भारत और बांग्लादेश से पड़ोसी देश के दक्षिण-पूर्वी क्षेत्र में विकास और शांति के लिए 1997 में हस्ताक्षरित चटगांव हिल ट्रैक्ट्स (सीएचटी) समझौते को पूरी तरह से लागू करने की मांग की. चकमा आदिवासी संगठनों ने, दोनों प्रधानमंत्रियों को एक संयुक्त ज्ञापन में, सोमवार को उनसे 2 दिसंबर, 1997 को हस्ताक्षरित सीएचटी समझौते के पूर्ण कार्यान्वयन के लिए संयुक्त उपाय करने का आग्रह किया और सीएचटी को 'शांति क्षेत्र के रूप में घोषित किया."
प्रमुख चकमा नेता और मिजोरम के पूर्व विधायक राशिक मोहन चकमा ने कहा कि हालांकि 25 साल पहले सीएचटी समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे, समझौते के प्रमुख प्रावधान विशेष रूप से कानून और व्यवस्था और तीन पहाड़ी जिला परिषदों बंदरबन, खगराचारी और रंगमती का सीएचटी क्षेत्रीय परिषद को आदेश और पर्यवेक्षण अभी तक नहीं किया गया था. समझौते के अन्य प्रावधान जो अभी तक लागू नहीं हुए हैं, उनमें सशस्त्र संघर्षो के दौरान सीएचटी के भीतर छावनियों में स्थापित बांग्लादेश सेना के शिविरों को वापस लेना, सीएचटी भूमि आयोग के कामकाज के माध्यम से भूमि विवादों का समाधान और आदिवासी शरणार्थियों का पुनर्वास शामिल है.
चकमा डेवलपमेंट फाउंडेशन ऑफ इंडिया के संस्थापक नेता सुहास चकमा ने कहा कि क्षेत्रीय शांति और सुरक्षा के लिए विशेष रूप से बांग्लादेश, भारत और म्यांमार के लिए सीएचटी समझौते के कार्यान्वयन के महत्व पर पर्याप्त जोर नहीं दिया जा सकता है. सुहास चकमा ने एक बयान में कहा कि समझौते को लागू न करने के कारण सामूहिक रूप से 'जुम्मा' के रूप में जाने जाने वाले सीएचटी के स्वदेशी लोगों की नागरिक अशांति के अलावा, सीएचटी का इस्तेमाल अक्सर विभिन्न विद्रोही समूहों द्वारा किया जाता है. एक अन्य आदिवासी नेता प्रीतिमय चकमा, चकमा हाजोंग राइट्स एलायंस के संयोजक ने कहा, "यह बांग्लादेश, भारत, स्वदेशी 'जुम्मा' लोगों के हित में नहीं है कि वे चेस्ट क्षेत्र में सक्रिय नागरिक अशांति रखें या इस क्षेत्र को विभिन्न विद्रोह गतिविधियों के लिए इस्तेमाल करने की अनुमति दें."
कहां से आए चकमा शरणार्थी
चकमा बौद्ध धर्म को मानने वाले लोग हैं जबकि हाजोंग हिन्दू हैं. यह लोग 1964 से 1966 के बीच तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से भारत में आकर अरुणाचल प्रदेश में बस गए थे. इन दोनों समुदायों के लोग असम समेत कई पूर्वोत्तर राज्यों में फैले हैं. 1962 में पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में कप्ताई बांध को शुरू करने के बाद इन अल्पसंख्यक समुदायों का बड़े पैमाने पर विस्थापन हुआ. उसके बाद यह लोग खुली सीमाओं के रास्ते भारत पहुंचे थे.
मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने कहा है कि अरुणाचल प्रदेश में चकमा और हाजोंग शरणार्थी नहीं रह सकते. उन्होंने कहा कि अरुणाचल प्रदेश जनजातीय राज्य है और यहां बाहरी लोगों को बसने की अनुमति नहीं मिल सकती. मुख्यमंत्री का कहना है कि शुरुआत में राज्य में चकमा और हाजोंग लोग शरणार्थी के रूप में आए थे. लेकिन बाद में उनकी संख्या कई गुना बढ़ गई. सरकार ने बीते साल विधानसभा में कहा था कि 2015-16 में कराए गए एक विशेष सर्वेक्षण के मुताबिक राज्य में चकमा और हाजोंग लोगों की संख्या 65,857 थी. हालांकि गैर सरकारी अनुमान के मुताबिक यह तादाद दो लाख से ज्यादा बताई जाती है.