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कांग्रेस ही नहीं भाजपा शासनकाल में भी विवादों से रहा है पीएससी का नाता

छत्तीसगढ़ में चाहे रमन सरकार रही हो या फिर अब भूपेश सरकार. दोनों के ही समय सीजीपीएससी विवादों में आया. रमन सरकार की बात की जाए तो 2003 और 2005 में पीएससी भर्ती में गड़बड़ी और भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे. मामला कोर्ट तक पहुंचा. भूपेश सरकार में सीजीपीएससी परीक्षा की आंसर शीट के मामले को लेकर भी हंगामा हुआ और अब परीक्षा परिणाम पर सियासत गरमाई हुई है. आइए जानते हैं कि सीजीपीएससी कब-कब किन मामलों को लेकर विवादों में रहा.Bhupesh Baghel government

Bhupesh Baghel government
पीएससी भर्ती में गड़बड़ी
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Published : May 18, 2023, 11:27 PM IST

Updated : May 20, 2023, 12:06 AM IST

पीएससी भर्ती में गड़बड़ी

रायपुर: रमन सरकार के 15 साल में केवल 9 बार भर्ती की गई है जबकि छह बार पीएससी की भर्तियों को किसी न किसी कारण से निरस्त किया गया. लगातार पीएससी भर्ती के जाने को लेकर भी राजनीति होती रही और यह मुद्दा लगातार चर्चा में बना रहा. भाजपा सरकार के दौरान 2003 और 2005 में पीएससी भर्ती घोटाला चर्चा में रहा. 2003 के मामले में अभ्यर्थियों की शिकायत पर सुनवाई करते हुए बिलासपुर हाई कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा था कि "रमन सरकार के दौरान उक्त भर्ती में भ्रष्टाचार और गड़बड़ी साफ दिख रही है." जांच के बाद उस सूची को निरस्त कर मानव विज्ञान की कॉपीयों को दोबारा जांचने और फिर से स्कैलिंग कर नई सूची जारी करने का आदेश दिया था. उस दौरान इस भर्ती की जांच में यह भी पाया गया कि किसी अभ्यर्थी को 50 नंबर के पूर्णांक के आधार पर तो किसी को उपकृत करने के लिए 75 नंबर के पूर्णांक के आधार पर कापियां जांची गईं.

2005 में चयनित अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर: वर्ष 2005 के पीएससी भर्ती के मामले में सभी चयनित अधिकारियों के खिलाफ गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज हुआ था. पीएससी के तत्कालीन चेयरमैन अशोक दरबारी सस्पेंड हुए. बिलासपुर हाईकोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश ने पूरी नियुक्ति सूची को ही निरस्त कर दिया था. लेकिन बाद में सुप्रीम कोर्ट से वह सूची बहाल करा दी गई. आज भी 2005 का मामला न्यायालय में लंबित है.

cgpsc and controversy
सीजीपीएससी और विवाद



2020 में आंसर शीट में गड़बड़ी का मामला आया था सामने: कांग्रेस सरकार के समय पीएससी लगातार विवादों में घिरा रहा. साल 2020 की बात की जाए तो उस समय पीएससी की परीक्षा के बाद प्रश्नों के उत्तर को लेकर गड़बड़ी का मामला सामने आया था. पीएससी परीक्षा के बाद जारी आंसर शीट में 4 प्रश्नों के गलत उत्तर को सही बताया गया था. इस परीक्षा में छत्तीसगढ़ के मानसून, संपत्ति के अधिकार, कांगेर घाटी और प्रति व्यक्ति आय से संबंधित प्रश्न को लेकर विवाद हुआ था. परीक्षार्थी और विशेषज्ञों का कहना था कि इन सभी प्रश्नों के गलत जवाब को सही बताया गया है.

अब परिणाम में भाई भतीजावाद का आरोप: वर्तमान में परीक्षा परिणाम को लेकर भी पीएससी विवादों से घिर गया है. भाजपा का आरोप है कि पीएसीएस सेलेक्शन में भाई भतीजावाद किया गया है. चेयरमैन के बेटे का टॉप टेन में सेलेक्शन हुआ है साथ ही कई उच्च अधिकारियों और कांग्रेस के नेताओं के बेटा बेटी सहित अन्य रिश्तेदारों का चयन किया गया है. वहीं कांग्रेस ने भी रमन सरकार के समय आयोजित पीएससी परीक्षा परिणाम को लेकर सवाल उठाए हैं. गुरुवार को प्रेसवार्ता कर कांग्रेस ने भी एक सूची जारी की है, जिसमें तत्कालीन पीएससी चेयरमैन के रिश्तेदारों सहित अन्य अधिकारियों और नेताओं के रिश्तेदारों के नाम हैं. कांग्रेस के मुताबिक "सूची जारी करने का मकसद सिर्फ ये है कि पहले भी प्रशासनिक अफसरों, नेताओं और व्यवसायियों के रिश्तेदारों का चयन पीएससी में होता रहा है. लेकिन किसी का किसी नेता या अधिकारी का रिश्तेदार होना उसकी अयोग्यता नहीं हो जाती है."

लगातार विवादों में रहा पीएससी: राजनीति के जानकार एवं वरिष्ठ पत्रकार उचित शर्मा ने बताया कि "पीएससी में 2003, 2005 और 2008 बैच लगातार चर्चा में बना रहा. हाल की बात की जाए तो 2021 में आंसर शीट को लेकर विवाद रहा है. लगातार रिश्तेदारों भाई भतीजा को लेकर बात होती रही है. तत्कालीन चेयरमैन की विश्वसनीयता और छवि को लेकर सवाल उठते रहे हैं. वर्तमान पीएससी अध्यक्ष की बात की जाए तो उनकी छवि भी कोई खास अच्छी नहीं रही है. अब पीएससी के चेयरमैन की पोस्ट पॉलिटिकल पोस्ट हो गई है, जिसका भरपूर फायदा उठाया जाता है."

journalist uchit sharma
क्या कहते हैं जानकार

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पहले भी विवादों में रहे हैं चेयरमैन टामन सिंह: वर्तमान चेयरमैन टामन सिंह को लेकर उचित शर्मा ने कहा कि "जब वे जांजगीर-चांपा में थे तो उस दौरान भी उन पर आरोप लगे थे. कृषि विभाग में तैनाती के दौरान उन पर कई आरोप लगे. पूर्व में जब कलेक्टर थे उस दौरान भी आरोप लगते थे. ये शुरू से विवादों में ही रहे हैं. यह पॉलिटिकल पोस्ट है और जो सरकार के नजदीक होते हैं उनकी नियुक्ति की जाती है. यह शुरू से होता आया है. आज पहली बार ऐसा नहीं हो रहा है. हालांकि यह एक सामान्य प्रक्रिया है कि जो भी सिलेक्ट होंगे वह किसी ना किसी के बेटे-बेटी, भाई-बहन, रिश्तेदार तो होंगे ही. लेकिन यह जरूरी नहीं कि उनकी सिलेक्शन में पूरी तरह से गड़बड़ी हुई हो."

Expert opinion on Taman Singh
टामन सिंह पर जानकार की राय

रिजल्ट पर राजनीति से युवाओं पर पड़ रहा बुरा प्रभाव: उचित शर्मा मानना है कि वर्तमान में पीएससी रिजल्ट को लेकर जो राजनीति की जा रही है, उससे छात्रों के मन पर भी बुरा प्रभाव पड़ रहा है. उन्हें लगता कि हम इतनी मेहनत कर रहे हैं बावजूद इसके होना उनका ही है जो पॉलिटिकली क्लोज हों, प्रशासनिक पद पर जिनके माता-पिता या रिश्तेदार हों या जो आर्थिक रूप से संपन्न हैं और पैसे देकर सिलेक्शन करा सकते है. इस घटना से पीएससी की तैयारी कर रहे छात्रों का मनोबल टूट रहा है. उनमें हताशा पैदा हो रही है और वे डिप्रेशन का शिकार भी हो रहे हैं.

विवाद चाहे जो भी हो लेकिन ऐसे मामलों की इमानदारी से जांच होनी चाहिए. मुख्यमंत्री ने भी कहा है कि यदि कोई सबूत है तो जांच कराएंगे. हालांकि दिक्कत वाली बात यह है कि जांचे होती नहीं हैं और ऐसे तथ्य सामने आ नहीं पाते हैं. पारदर्शिता के लिए जो टॉपर हैं उनके आंसर सीट ओर प्राप्तांक सहित सभी जानकारी पब्लिक डोमेन में डाल देनी चाहिए, ताकि कोई भी कभी भी इसे देख सके.

पीएससी भर्ती में गड़बड़ी

रायपुर: रमन सरकार के 15 साल में केवल 9 बार भर्ती की गई है जबकि छह बार पीएससी की भर्तियों को किसी न किसी कारण से निरस्त किया गया. लगातार पीएससी भर्ती के जाने को लेकर भी राजनीति होती रही और यह मुद्दा लगातार चर्चा में बना रहा. भाजपा सरकार के दौरान 2003 और 2005 में पीएससी भर्ती घोटाला चर्चा में रहा. 2003 के मामले में अभ्यर्थियों की शिकायत पर सुनवाई करते हुए बिलासपुर हाई कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा था कि "रमन सरकार के दौरान उक्त भर्ती में भ्रष्टाचार और गड़बड़ी साफ दिख रही है." जांच के बाद उस सूची को निरस्त कर मानव विज्ञान की कॉपीयों को दोबारा जांचने और फिर से स्कैलिंग कर नई सूची जारी करने का आदेश दिया था. उस दौरान इस भर्ती की जांच में यह भी पाया गया कि किसी अभ्यर्थी को 50 नंबर के पूर्णांक के आधार पर तो किसी को उपकृत करने के लिए 75 नंबर के पूर्णांक के आधार पर कापियां जांची गईं.

2005 में चयनित अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर: वर्ष 2005 के पीएससी भर्ती के मामले में सभी चयनित अधिकारियों के खिलाफ गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज हुआ था. पीएससी के तत्कालीन चेयरमैन अशोक दरबारी सस्पेंड हुए. बिलासपुर हाईकोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश ने पूरी नियुक्ति सूची को ही निरस्त कर दिया था. लेकिन बाद में सुप्रीम कोर्ट से वह सूची बहाल करा दी गई. आज भी 2005 का मामला न्यायालय में लंबित है.

cgpsc and controversy
सीजीपीएससी और विवाद



2020 में आंसर शीट में गड़बड़ी का मामला आया था सामने: कांग्रेस सरकार के समय पीएससी लगातार विवादों में घिरा रहा. साल 2020 की बात की जाए तो उस समय पीएससी की परीक्षा के बाद प्रश्नों के उत्तर को लेकर गड़बड़ी का मामला सामने आया था. पीएससी परीक्षा के बाद जारी आंसर शीट में 4 प्रश्नों के गलत उत्तर को सही बताया गया था. इस परीक्षा में छत्तीसगढ़ के मानसून, संपत्ति के अधिकार, कांगेर घाटी और प्रति व्यक्ति आय से संबंधित प्रश्न को लेकर विवाद हुआ था. परीक्षार्थी और विशेषज्ञों का कहना था कि इन सभी प्रश्नों के गलत जवाब को सही बताया गया है.

अब परिणाम में भाई भतीजावाद का आरोप: वर्तमान में परीक्षा परिणाम को लेकर भी पीएससी विवादों से घिर गया है. भाजपा का आरोप है कि पीएसीएस सेलेक्शन में भाई भतीजावाद किया गया है. चेयरमैन के बेटे का टॉप टेन में सेलेक्शन हुआ है साथ ही कई उच्च अधिकारियों और कांग्रेस के नेताओं के बेटा बेटी सहित अन्य रिश्तेदारों का चयन किया गया है. वहीं कांग्रेस ने भी रमन सरकार के समय आयोजित पीएससी परीक्षा परिणाम को लेकर सवाल उठाए हैं. गुरुवार को प्रेसवार्ता कर कांग्रेस ने भी एक सूची जारी की है, जिसमें तत्कालीन पीएससी चेयरमैन के रिश्तेदारों सहित अन्य अधिकारियों और नेताओं के रिश्तेदारों के नाम हैं. कांग्रेस के मुताबिक "सूची जारी करने का मकसद सिर्फ ये है कि पहले भी प्रशासनिक अफसरों, नेताओं और व्यवसायियों के रिश्तेदारों का चयन पीएससी में होता रहा है. लेकिन किसी का किसी नेता या अधिकारी का रिश्तेदार होना उसकी अयोग्यता नहीं हो जाती है."

लगातार विवादों में रहा पीएससी: राजनीति के जानकार एवं वरिष्ठ पत्रकार उचित शर्मा ने बताया कि "पीएससी में 2003, 2005 और 2008 बैच लगातार चर्चा में बना रहा. हाल की बात की जाए तो 2021 में आंसर शीट को लेकर विवाद रहा है. लगातार रिश्तेदारों भाई भतीजा को लेकर बात होती रही है. तत्कालीन चेयरमैन की विश्वसनीयता और छवि को लेकर सवाल उठते रहे हैं. वर्तमान पीएससी अध्यक्ष की बात की जाए तो उनकी छवि भी कोई खास अच्छी नहीं रही है. अब पीएससी के चेयरमैन की पोस्ट पॉलिटिकल पोस्ट हो गई है, जिसका भरपूर फायदा उठाया जाता है."

journalist uchit sharma
क्या कहते हैं जानकार

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पहले भी विवादों में रहे हैं चेयरमैन टामन सिंह: वर्तमान चेयरमैन टामन सिंह को लेकर उचित शर्मा ने कहा कि "जब वे जांजगीर-चांपा में थे तो उस दौरान भी उन पर आरोप लगे थे. कृषि विभाग में तैनाती के दौरान उन पर कई आरोप लगे. पूर्व में जब कलेक्टर थे उस दौरान भी आरोप लगते थे. ये शुरू से विवादों में ही रहे हैं. यह पॉलिटिकल पोस्ट है और जो सरकार के नजदीक होते हैं उनकी नियुक्ति की जाती है. यह शुरू से होता आया है. आज पहली बार ऐसा नहीं हो रहा है. हालांकि यह एक सामान्य प्रक्रिया है कि जो भी सिलेक्ट होंगे वह किसी ना किसी के बेटे-बेटी, भाई-बहन, रिश्तेदार तो होंगे ही. लेकिन यह जरूरी नहीं कि उनकी सिलेक्शन में पूरी तरह से गड़बड़ी हुई हो."

Expert opinion on Taman Singh
टामन सिंह पर जानकार की राय

रिजल्ट पर राजनीति से युवाओं पर पड़ रहा बुरा प्रभाव: उचित शर्मा मानना है कि वर्तमान में पीएससी रिजल्ट को लेकर जो राजनीति की जा रही है, उससे छात्रों के मन पर भी बुरा प्रभाव पड़ रहा है. उन्हें लगता कि हम इतनी मेहनत कर रहे हैं बावजूद इसके होना उनका ही है जो पॉलिटिकली क्लोज हों, प्रशासनिक पद पर जिनके माता-पिता या रिश्तेदार हों या जो आर्थिक रूप से संपन्न हैं और पैसे देकर सिलेक्शन करा सकते है. इस घटना से पीएससी की तैयारी कर रहे छात्रों का मनोबल टूट रहा है. उनमें हताशा पैदा हो रही है और वे डिप्रेशन का शिकार भी हो रहे हैं.

विवाद चाहे जो भी हो लेकिन ऐसे मामलों की इमानदारी से जांच होनी चाहिए. मुख्यमंत्री ने भी कहा है कि यदि कोई सबूत है तो जांच कराएंगे. हालांकि दिक्कत वाली बात यह है कि जांचे होती नहीं हैं और ऐसे तथ्य सामने आ नहीं पाते हैं. पारदर्शिता के लिए जो टॉपर हैं उनके आंसर सीट ओर प्राप्तांक सहित सभी जानकारी पब्लिक डोमेन में डाल देनी चाहिए, ताकि कोई भी कभी भी इसे देख सके.

Last Updated : May 20, 2023, 12:06 AM IST
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