नई दिल्ली : असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा द्वारा यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा-इंडिपेंडेंट) के परेश बरुआ गुट को बातचीत की मेज पर लाने के लिए की जा रही एक नवीनतम पहल की पृष्ठभूमि में एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने ईटीवी भारत को बताया कि केंद्रीय सरकार ने आतंकवादी संगठन के वार्ता समर्थक गुट के साथ शांति समझौते को लगभग अंतिम रूप दे दिया है.
अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि हम उल्फा के वार्ता समर्थक गुट के साथ शांति समझौता लगभग पूरा कर चुके हैं. शांति समझौते पर हस्ताक्षर करने से पहले सरकार और उल्फा नेताओं के बीच कुछ और बैठकें होंगी. उन्होंने कहा कि अगले कुछ और दौर की चर्चा के बाद शांति समझौता हस्ताक्षर के लिए अंतिम रूप ले लेगा.
संगठन के परेश बरुआ गुट का जिक्र करते हुए अधिकारी ने कहा कि अगर वह (परेश बरुआ) बात करने के लिए आते हैं, तो उनका स्वागत है वरना सरकार लंबे समय तक इंतजार नहीं कर सकती. अधिकारी द्वारा दिया गया बयान इस तथ्य के बाद विशेष महत्व रखता है कि केंद्र सरकार और असम सरकार दोनों ने हाल ही में परेश बरुआ गुट के साथ बातचीत शुरू करने की प्रक्रिया शुरू की है.
हालांकि बरुआ द्वारा रखी गई संप्रभुता की मांगों के बाद उम्मीद के मुताबिक बातचीत आगे नहीं बढ़ पाई है. उल्लेखनीय है कि उल्फा-समर्थक वार्ता गुट के साथ बातचीत 2011 में शुरू हुई थी. वार्ता समर्थक नेताओं में उल्फा के उपाध्यक्ष अरबिंदी राजखोवा, संगठन के विदेश मंत्री शशधर चौधरी, सूचना मंत्री मिथिंगा दैमारी और कई अन्य शामिल थे.
संगठन के वार्ता समर्थक गुट ने केंद्र सरकार को मांगों का 12 सूत्री चार्टर सौंपा था. जिसमें असम में छह समुदायों को एसटी का दर्जा, भूटान से लापता उल्फा नेताओं के ठिकाने का विवरण शामिल है. यहां यह उल्लेख किया जा सकता है कि भूटान सरकार ने उल्फा के खिलाफ आक्रमण शुरू किया था. विकास पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कोकराझार (असम) के मौजूदा सांसद हीरा सरानिया ने ईटीवी भारत से कहा कि परेश बरुआ गुट को वार्ता प्रक्रिया में शामिल किया जाना चाहिए.
सरानिया ने कहा कि असम की उग्रवाद समस्या के निर्णायक समाधान के लिए परेश बरुआ को बातचीत की मेज पर लाना जरूरी है. जब सरकार पिछले 10 वर्षों से इंतजार कर रही है, तो हम किसी समझौते पर हस्ताक्षर करने से पहले कुछ और इंतजार कर सकते हैं.
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मौजूदा लोकसभा सांसद सरानी हिंसा का रास्ता छोड़कर राजनीति में आने से पहले संगठन से जुड़े एक विद्रोही नेता भी थे. सरानिया ने कहा कि हम हमेशा के लिए शांति चाहते हैं. इसलिए बरुआ को बातचीत की मेज पर लाना बहुत जरूरी है वरना असम में उग्रवाद जिंदा रहेगा.