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देशद्रोह कानून की जरूरत पर जवाब, केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से मांगा समय

केंद्र सरकार ने देशद्रोह से संबंधित भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 124 ए को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना जवाब दाखिल करने के लिए और समय मांगा है.

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Published : May 2, 2022, 3:14 PM IST

नई दिल्ली: केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में आवेदन देकर देशद्रोह कानून (sedition law) पर जवाब देने के लिए वक्त मांगा है. भारत के मुख्य न्यायाधीश की एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ में न्यायमूर्ति सूर्य कांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली सुनवाई कर रहे हैं. पिछली सुनवाई में भारत संघ की प्रतिक्रिया मांगी गई थी और नोटिस जारी कर दिया गया था.

कोर्ट ने केंद्र को 30 अप्रैल तक जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया था लेकिन केंद्र यह नहीं कर सका. इससे पहले की सुनवाई में अदालत ने आजादी के 75 साल बाद देशद्रोह कानून की आवश्यकता पर केंद्र से सवाल किया था. इसमें कहा गया है कि यह ब्रिटिश कानून है, जिसका इस्तेमाल देश के स्वतंत्र होने से पहले महात्मा गांधी और बाल गंगाधर तिलक को चुप कराने के लिए किया गया. अब इसका दुरुपयोग उन लोगों को दंडित करने के लिए किया जा रहा है जिनके विचार अलग हैं.

यह भी पढ़ें- पूर्व अटॉर्नी जनरल ने 'देशद्रोह कानून' काे खत्म करने की दी सलाह, जानें क्याें कहा ऐसा

कोर्ट ने कहा था कि हमारी चिंता कानून के दुरुपयोग का है क्योंकि कार्यपालिका की कोई जवाबदेही नहीं है. सीजेआई ने कहा कि राजद्रोह कानून को चुनौती देने वाली याचिका दो पत्रकार किशोरचंद्र वांगखेमचा और कन्हैया लाल शुक्ला ने दायर की है. जिन पर सोशल मीडिया पर देशद्रोह का आरोप लगाया गया था. इसके बाद अन्य याचिकाकर्ता और हस्तक्षेपकर्ता भी देशद्रोह कानून के खिलाफ शीर्ष अदालत पहुंचे हैं.

नई दिल्ली: केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में आवेदन देकर देशद्रोह कानून (sedition law) पर जवाब देने के लिए वक्त मांगा है. भारत के मुख्य न्यायाधीश की एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ में न्यायमूर्ति सूर्य कांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली सुनवाई कर रहे हैं. पिछली सुनवाई में भारत संघ की प्रतिक्रिया मांगी गई थी और नोटिस जारी कर दिया गया था.

कोर्ट ने केंद्र को 30 अप्रैल तक जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया था लेकिन केंद्र यह नहीं कर सका. इससे पहले की सुनवाई में अदालत ने आजादी के 75 साल बाद देशद्रोह कानून की आवश्यकता पर केंद्र से सवाल किया था. इसमें कहा गया है कि यह ब्रिटिश कानून है, जिसका इस्तेमाल देश के स्वतंत्र होने से पहले महात्मा गांधी और बाल गंगाधर तिलक को चुप कराने के लिए किया गया. अब इसका दुरुपयोग उन लोगों को दंडित करने के लिए किया जा रहा है जिनके विचार अलग हैं.

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कोर्ट ने कहा था कि हमारी चिंता कानून के दुरुपयोग का है क्योंकि कार्यपालिका की कोई जवाबदेही नहीं है. सीजेआई ने कहा कि राजद्रोह कानून को चुनौती देने वाली याचिका दो पत्रकार किशोरचंद्र वांगखेमचा और कन्हैया लाल शुक्ला ने दायर की है. जिन पर सोशल मीडिया पर देशद्रोह का आरोप लगाया गया था. इसके बाद अन्य याचिकाकर्ता और हस्तक्षेपकर्ता भी देशद्रोह कानून के खिलाफ शीर्ष अदालत पहुंचे हैं.

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