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चारधाम परियोजना और उत्तराखंड आपदा को जोड़ने वाले पत्र पर केंद्र को जवाब दाखिल करने की अनुमति

उत्तराखंड आपदा में लगाए गए चारधाम परियोजना वाले आरोप पत्र में सरकार जवाब दाखिल कर सकती है. इसकी अनुमति उच्चतम न्यायालय से केंद्र को मिल गई है.

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Published : Feb 17, 2021, 9:43 PM IST

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड में कुछ दिनों पहले आई आपदा को सड़क चौड़ा करने के कार्य से जोड़े जाने संबंधी चारधाम परियोजना पर समिति के अध्यक्ष के आरोपों को लेकर केंद्र को जवाब दाखिल करने के लिए बुधवार को अनुमति दे दी.

उत्तराखंड में हिमस्खलन के कारण धौलीगंगा नदी में अचानक आई बाढ़ के चलते तपोवन जल विद्युत परियोजना को भारी नुकसान पहुंचा है.

अटार्नी जनरल (महान्यायवादी) के.के. वेणुगोपाल ने शीर्ष न्यायालय से कहा कि वह उच्च अधिकार प्राप्त समिति के अध्यक्ष के पत्र का जवाब दाखिल करेंगे.

दरअसल, सड़क को चौड़ा करने के कार्य और राज्य में आई हालिया आपदा के बारे में कई आरोप पत्र में लगाए गए हैं.

समिति, उत्तराखंड में भारत-चीन सीमा तक सड़कों को चौड़ा करने पर चारधाम राजमार्ग परियोजना की निगरानी कर रही है.

वेणुगोपाल ने कहा कि उच्च अधिकार प्राप्त समिति के अध्यक्ष रवि चोपड़ा ने सरकार को लिखे अपने पत्र में (हालिया) आपदा का संबंध चारधाम परियोजना से होने का जिक्र किया है.

उत्तराखंड में चारधाम राजमार्ग परियोजना की निगरानी करने वाली एक उच्चस्तरीय समिति के अध्यक्ष ने उच्चतम न्यायालय से कहा कि सड़क चौड़ीकरण और जलविद्युत परियोजनाओं के निर्माण के कारण हिमालयी पारिस्थितिकी को अपरिवर्तनीय क्षति हुई है, जिससे हाल ही में चमोली में आपदा आई.

शीर्ष अदालत को लिखे एक पत्र में, पैनल के अध्यक्ष, रवि चोपड़ा ने कहा कि 2013 में केदारनाथ त्रासदी के बाद एक विशेषज्ञ निकाय ने रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें जलविद्युत परियोजनाओं के प्रभाव पर प्रकाश डाला गया था और इन चिंताओं और सिफारिशों को अपनाया गया था, जिससे ऋषि गंगा और तपोवन विष्णुगाड परियोजनाओं में हुए जान-माल के भारी नुकसान के रोका जा सकता था.

उनकी दलील पर गौर करते हुए न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन, न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति बी आर गवई की पीठ ने कहा, आप इस पर जवाब दाखिल करिए. साथ ही, पीठ ने विषय की सुनवाई दो हफ्ते बाद के लिए सूचीबद्ध कर दी.

रणनीतिक महत्व की 900 किमी लंबी चारधाम राजमार्ग परियोजना यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बदरीनाथ तक बारहमासी सड़क संपर्क मुहैया करेगी.

शीर्ष न्यायालय ने 18 जनवरी को संबद्ध पक्षों से कहा था कि उच्च अधिकार प्राप्त समिति द्वारा दाखिल रिपोर्ट पर यदि उन्हें कोई आपत्ति है, तो वे अपना जवाब दाखिल कर सकते हैं.

केंद्र ने न्यायालय से 21 सदस्यीय समिति की बहुमत वाली रिपोर्ट स्वीकार करने का अनुरोध किया था, जिसमें (रिपोर्ट में) यह सिफारिश की गई थी कि रणनीतिक जरूरतों और बर्फ हटाने की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए दो लेन वाली सड़क बनाई जाई, जिस पर 10 मीटर चौड़ी कैरियेजवे हो.

केंद्र ने अपने हलफनामे में कहा था कि पिछले साल दो दिसंबर को शीर्ष न्यायालय द्वारा जारी निर्देश के अनुपालन में समिति ने 15-16 दिसंबर 2020 को बैठक की और सड़क की चौड़ाई पर चर्चा की. इस बारे में रिपोर्ट शीर्ष न्यायालय को पिछले साल 31 दिसंबर को सौंपी गई.

हलफनामे में कहा गया है, समिति की रिपोर्ट में सड़क की चौड़ाई के मुद्दों पर एक बार फिर प्राथमिक तौर पर भिन्न-भिन्न विचार नजर आए, 16 सदस्य और नामित सदस्यों ने सिफारिश की कि भारतीय सड़क सम्मेलन :52-2019 के प्रावधानों तथा 15 दिसंबर 2020 को सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय द्वारा जारी संशोधित परिपत्र के मुताबिक 10 मीटर चौड़े कैरियेजवे के साथ दो लेन वाली बनाई जाए. साथ ही, भूस्खलन नियंत्रण उपायों के लिए उपयुक्त सुरक्षा मानदंड अपनाए जाएं.

पढ़ें :- चारधाम परियोजना समिति रक्षा मंत्रालय के आवेदनों पर विचार करे : सुप्रीम कोर्ट

इसमें कहा गया है कि समिति के अध्यक्ष रवि चोपड़ा सहित तीन सदस्य (अल्पमत वाली रिपोर्ट) अब भी सड़क की चौड़ाई 5.5 (साढ़े पांच) मीटर रखने पर जोर दे रहे हैं, जैसा कि पूर्व में 23 मार्च 2018 को मंत्रालय द्वारा जारी परिपत्र में कहा गया था. वे लोग देश की सुरक्षा जरूरतों और भारत-चीन सीमा पर होने वाले किसी भी बाहरी आक्रमण का प्रतिरोध करने के लिए रक्षा बलों की जरूरतों से सहमत नहीं हैं.

केंद्र ने कहा, बहुमत वाली रिपोर्ट में एक ओर जहां देश की सामाजिक, आर्थिक और रणनीतिक जरूरतों को ध्यान में रखते हुए समग्र दृष्टिकोण अपनाया गया है, वहीं दूसरी ओर पर्यावरण की रक्षा भी की गई है.

केंद्र ने यह भी कहा कि परियोजना के समर्थक चारधाम परियोजना का पर्यावरण और सामाजिक जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव को न्यूनतम करने तथा परियोजना का क्रियान्वयन खड़ी ढाल वाली घाटी के अनुरूप करने के लिए कर्तव्यबद्ध हैं, ताकि किसी नए भूस्खलन को टाला जा सके और संवेदनशील हिमालयी घाटियों की सुरक्षा एवं संरक्षण सुनिश्चित हो सके.

उल्लेखनीय है कि अगस्त 2019 में शीर्ष न्यायालय ने राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के एक आदेश में बदलाव करते हुए चारधाम परियोजना के लिए मार्ग प्रशस्त कर दिया था. साथ ही, यह कहा था कि एक उच्च अधिकार प्राप्त समिति गठित की जाए, जो चारधाम परियोजना से जुड़ी पर्यावरणीय चिंताओं पर गौर करे.

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड में कुछ दिनों पहले आई आपदा को सड़क चौड़ा करने के कार्य से जोड़े जाने संबंधी चारधाम परियोजना पर समिति के अध्यक्ष के आरोपों को लेकर केंद्र को जवाब दाखिल करने के लिए बुधवार को अनुमति दे दी.

उत्तराखंड में हिमस्खलन के कारण धौलीगंगा नदी में अचानक आई बाढ़ के चलते तपोवन जल विद्युत परियोजना को भारी नुकसान पहुंचा है.

अटार्नी जनरल (महान्यायवादी) के.के. वेणुगोपाल ने शीर्ष न्यायालय से कहा कि वह उच्च अधिकार प्राप्त समिति के अध्यक्ष के पत्र का जवाब दाखिल करेंगे.

दरअसल, सड़क को चौड़ा करने के कार्य और राज्य में आई हालिया आपदा के बारे में कई आरोप पत्र में लगाए गए हैं.

समिति, उत्तराखंड में भारत-चीन सीमा तक सड़कों को चौड़ा करने पर चारधाम राजमार्ग परियोजना की निगरानी कर रही है.

वेणुगोपाल ने कहा कि उच्च अधिकार प्राप्त समिति के अध्यक्ष रवि चोपड़ा ने सरकार को लिखे अपने पत्र में (हालिया) आपदा का संबंध चारधाम परियोजना से होने का जिक्र किया है.

उत्तराखंड में चारधाम राजमार्ग परियोजना की निगरानी करने वाली एक उच्चस्तरीय समिति के अध्यक्ष ने उच्चतम न्यायालय से कहा कि सड़क चौड़ीकरण और जलविद्युत परियोजनाओं के निर्माण के कारण हिमालयी पारिस्थितिकी को अपरिवर्तनीय क्षति हुई है, जिससे हाल ही में चमोली में आपदा आई.

शीर्ष अदालत को लिखे एक पत्र में, पैनल के अध्यक्ष, रवि चोपड़ा ने कहा कि 2013 में केदारनाथ त्रासदी के बाद एक विशेषज्ञ निकाय ने रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें जलविद्युत परियोजनाओं के प्रभाव पर प्रकाश डाला गया था और इन चिंताओं और सिफारिशों को अपनाया गया था, जिससे ऋषि गंगा और तपोवन विष्णुगाड परियोजनाओं में हुए जान-माल के भारी नुकसान के रोका जा सकता था.

उनकी दलील पर गौर करते हुए न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन, न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति बी आर गवई की पीठ ने कहा, आप इस पर जवाब दाखिल करिए. साथ ही, पीठ ने विषय की सुनवाई दो हफ्ते बाद के लिए सूचीबद्ध कर दी.

रणनीतिक महत्व की 900 किमी लंबी चारधाम राजमार्ग परियोजना यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बदरीनाथ तक बारहमासी सड़क संपर्क मुहैया करेगी.

शीर्ष न्यायालय ने 18 जनवरी को संबद्ध पक्षों से कहा था कि उच्च अधिकार प्राप्त समिति द्वारा दाखिल रिपोर्ट पर यदि उन्हें कोई आपत्ति है, तो वे अपना जवाब दाखिल कर सकते हैं.

केंद्र ने न्यायालय से 21 सदस्यीय समिति की बहुमत वाली रिपोर्ट स्वीकार करने का अनुरोध किया था, जिसमें (रिपोर्ट में) यह सिफारिश की गई थी कि रणनीतिक जरूरतों और बर्फ हटाने की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए दो लेन वाली सड़क बनाई जाई, जिस पर 10 मीटर चौड़ी कैरियेजवे हो.

केंद्र ने अपने हलफनामे में कहा था कि पिछले साल दो दिसंबर को शीर्ष न्यायालय द्वारा जारी निर्देश के अनुपालन में समिति ने 15-16 दिसंबर 2020 को बैठक की और सड़क की चौड़ाई पर चर्चा की. इस बारे में रिपोर्ट शीर्ष न्यायालय को पिछले साल 31 दिसंबर को सौंपी गई.

हलफनामे में कहा गया है, समिति की रिपोर्ट में सड़क की चौड़ाई के मुद्दों पर एक बार फिर प्राथमिक तौर पर भिन्न-भिन्न विचार नजर आए, 16 सदस्य और नामित सदस्यों ने सिफारिश की कि भारतीय सड़क सम्मेलन :52-2019 के प्रावधानों तथा 15 दिसंबर 2020 को सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय द्वारा जारी संशोधित परिपत्र के मुताबिक 10 मीटर चौड़े कैरियेजवे के साथ दो लेन वाली बनाई जाए. साथ ही, भूस्खलन नियंत्रण उपायों के लिए उपयुक्त सुरक्षा मानदंड अपनाए जाएं.

पढ़ें :- चारधाम परियोजना समिति रक्षा मंत्रालय के आवेदनों पर विचार करे : सुप्रीम कोर्ट

इसमें कहा गया है कि समिति के अध्यक्ष रवि चोपड़ा सहित तीन सदस्य (अल्पमत वाली रिपोर्ट) अब भी सड़क की चौड़ाई 5.5 (साढ़े पांच) मीटर रखने पर जोर दे रहे हैं, जैसा कि पूर्व में 23 मार्च 2018 को मंत्रालय द्वारा जारी परिपत्र में कहा गया था. वे लोग देश की सुरक्षा जरूरतों और भारत-चीन सीमा पर होने वाले किसी भी बाहरी आक्रमण का प्रतिरोध करने के लिए रक्षा बलों की जरूरतों से सहमत नहीं हैं.

केंद्र ने कहा, बहुमत वाली रिपोर्ट में एक ओर जहां देश की सामाजिक, आर्थिक और रणनीतिक जरूरतों को ध्यान में रखते हुए समग्र दृष्टिकोण अपनाया गया है, वहीं दूसरी ओर पर्यावरण की रक्षा भी की गई है.

केंद्र ने यह भी कहा कि परियोजना के समर्थक चारधाम परियोजना का पर्यावरण और सामाजिक जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव को न्यूनतम करने तथा परियोजना का क्रियान्वयन खड़ी ढाल वाली घाटी के अनुरूप करने के लिए कर्तव्यबद्ध हैं, ताकि किसी नए भूस्खलन को टाला जा सके और संवेदनशील हिमालयी घाटियों की सुरक्षा एवं संरक्षण सुनिश्चित हो सके.

उल्लेखनीय है कि अगस्त 2019 में शीर्ष न्यायालय ने राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के एक आदेश में बदलाव करते हुए चारधाम परियोजना के लिए मार्ग प्रशस्त कर दिया था. साथ ही, यह कहा था कि एक उच्च अधिकार प्राप्त समिति गठित की जाए, जो चारधाम परियोजना से जुड़ी पर्यावरणीय चिंताओं पर गौर करे.

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