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संघ प्रमुख मोहन भागवत के खिलाफ दाखिल मुकदमा खारिज, धार्मिक भावना आहत करने का था आरोप - लखनऊ कोर्ट की खबरें

लखनऊ में संघ प्रमुख मोहन भागवत के खिलाफ दाखिल धार्मिक भावना आहत करने काम मुकदमा न्यायालय ने खारिज कर दिया है. संघ प्रमुख मोहन भागवत के खिलाफ दाखिल मुकदमा खारिज धार्मिक भावना आहत करने का था आरोप

लखनऊ कोर्ट
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Published : Oct 12, 2022, 6:40 AM IST

लखनऊ: बुद्ध के अनुयायियों और सम्राट अशोक के खिलाफ कथित तौर पर टिप्पणी करने के आरोपों को लेकर संघ प्रमुख मोहन भागवत समेत तीन के खिलाफ दायर रिवीजन याचिका को एडीजे विनय सिंह ने खारिज कर दिया है. इसके पूर्व इस मामले में दाखिल परिवाद को निचली अदालत द्वारा भी खारिज किया जा चुका है.

कोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए निचली अदालत के आदेश को सही माना. कोर्ट ने कहा कि याची ने अपने परिवाद में अपनी तथा समाज के बड़े तबके की भावनाएं आहत होने, राष्ट्रद्रोह का अपराध होने और कार्यवाही न होने पर हिंसक संघर्ष होने की सम्भावना जताई है. लेकिन, ऐसी परिस्थिति में बिना सक्षम प्राधिकारी द्वारा अभियोजन स्वीकृति लिए मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है. कोर्ट ने कहा कि परिवादी ने अपना परिवाद दाखिल करते समय यह स्पष्ट नहीं किया है कि उसने परिवाद पेश करने के लिए आवश्यक अनुमति ली है या नहीं.

पत्रावली के अनुसार बंथरा निवासी ब्रह्मेन्द्र सिंह मौर्य ने सीजेएम की कोर्ट में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संचालक मोहन भागवत, संघ के तत्कालीन सचिव और डॉ राधिका लढ़ा के खिलाफ परिवाद दायर करके बताया था कि 24 जून 2016 को उसके व्हाट्सएप पर समाचार आया कि 23 जून को उदयपुर के दैनिक भास्कर समाचार पत्र में एक खबर प्रकाशित हुई थी कि "संघ परिवार की नज़र में अकबर के बाद अब सम्राट अशोक खलनायक और बौद्ध राष्ट्रद्रोही". कहा गया कि इस समाचार को पढ़कर परिवादी को धक्का लगा.

कहा गया कि सम्राट अशोक का प्रतीक चिन्ह देश का राष्ट्रीय चिन्ह है और अशोक की लाट के चक्र को भारतीय ध्वज में प्रयोग किया जाता है. संघ प्रमुख पर आरोप लगाया गया कि ऐसे महान सम्राट को खलनायक कहा गया है जिससे परिवादी और समाज की भावनाएं आहत हुई. परिवाद पर सुनवाई के बाद सीजेएम ने यह कहते हुए 25 जुलाई 2016 को परिवाद को खारिज कर दिया था.


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लखनऊ: बुद्ध के अनुयायियों और सम्राट अशोक के खिलाफ कथित तौर पर टिप्पणी करने के आरोपों को लेकर संघ प्रमुख मोहन भागवत समेत तीन के खिलाफ दायर रिवीजन याचिका को एडीजे विनय सिंह ने खारिज कर दिया है. इसके पूर्व इस मामले में दाखिल परिवाद को निचली अदालत द्वारा भी खारिज किया जा चुका है.

कोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए निचली अदालत के आदेश को सही माना. कोर्ट ने कहा कि याची ने अपने परिवाद में अपनी तथा समाज के बड़े तबके की भावनाएं आहत होने, राष्ट्रद्रोह का अपराध होने और कार्यवाही न होने पर हिंसक संघर्ष होने की सम्भावना जताई है. लेकिन, ऐसी परिस्थिति में बिना सक्षम प्राधिकारी द्वारा अभियोजन स्वीकृति लिए मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है. कोर्ट ने कहा कि परिवादी ने अपना परिवाद दाखिल करते समय यह स्पष्ट नहीं किया है कि उसने परिवाद पेश करने के लिए आवश्यक अनुमति ली है या नहीं.

पत्रावली के अनुसार बंथरा निवासी ब्रह्मेन्द्र सिंह मौर्य ने सीजेएम की कोर्ट में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संचालक मोहन भागवत, संघ के तत्कालीन सचिव और डॉ राधिका लढ़ा के खिलाफ परिवाद दायर करके बताया था कि 24 जून 2016 को उसके व्हाट्सएप पर समाचार आया कि 23 जून को उदयपुर के दैनिक भास्कर समाचार पत्र में एक खबर प्रकाशित हुई थी कि "संघ परिवार की नज़र में अकबर के बाद अब सम्राट अशोक खलनायक और बौद्ध राष्ट्रद्रोही". कहा गया कि इस समाचार को पढ़कर परिवादी को धक्का लगा.

कहा गया कि सम्राट अशोक का प्रतीक चिन्ह देश का राष्ट्रीय चिन्ह है और अशोक की लाट के चक्र को भारतीय ध्वज में प्रयोग किया जाता है. संघ प्रमुख पर आरोप लगाया गया कि ऐसे महान सम्राट को खलनायक कहा गया है जिससे परिवादी और समाज की भावनाएं आहत हुई. परिवाद पर सुनवाई के बाद सीजेएम ने यह कहते हुए 25 जुलाई 2016 को परिवाद को खारिज कर दिया था.


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